कविता :आग सी ये लङकियाँ

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Sudha RajeSudha
Rajeतिलमिलाती माचिसों मेंआग सी ये
लङकियाँमाँओं
केख्वाबों की खिङकी ताजसी ये
लङकियाँका...
माचिसों में तिलमिलाती
आग सी ये लङकियाँ
माँओं के
ख्वाबों की खिङकी ताज
सी ये लङकियाँ
कालकोठी में
पङीं जो भी तमन्ना खौफ़
से
उस अज़ल का इक मुक्म्मिल
राज़ सी ये लङकियाँ
तोङकर डैने
गरूङिनी हंसिनी के
बालपन
हसरतें छू ती ख़ला परवाज़
सी ये लङकियाँ
घूँघटों हिज़्जाब में घुट
गयीं जो चीखें हैं दफ़न
वो उफ़ुक छूती हुयी आवाज़
सी ये लङकियाँ
ग़ुस्ले-आतश में
हुयी पाक़ीजगी के
इम्तिहाँ
इंतिहा उस दर्द के अंदाज़
सी ये लङकियाँ
आह में सुर घुट गये
रोटी पे मचली नज़्म के
तानपूरे औऱ् पखावज़
साज़ सी ये
लङकियाँ
अक्षरों चित्रों सुरों छैनी हथोङों की
दफन
जंग खायी पेटियों पर
ग़ाज सी ये लङकियाँ
ग़ुमशुदा तनहाईयों में
दोपहर की नींद सी
एक
बिछुङी सी सखी ग़ुलनाज़
सी ये लङकियाँ
दहशतों की बस्तियों में
रतजगे परदेश के
पंछियों सँग भोर के आग़ाज
सी ये लङकियाँ
वंशदीपक दे न पाने पर
हुयी ज़िल्लत लिये
कोख दुखते ज़खम पर
हिमताज़ सी ये लङकियाँ
रूखसती के बाद से
हो गयी परायी धूल तक
गाँव से
लाती वो पाती बाज़
सी ये लङकियाँ
सब्र की शूली पे
जिंदा ठोंक
दी गयी हिम्मतें
बाईबिल
लिखती सुधा अल्फ़ाज
सी ये लङकियाँ
©®¶©®Sudha
Raje
Dta★Bjnr
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Sudha Raje
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