लेख :नक्सल वाद घरेलू समस्या नहीं

Sudha Raje
अमेरिका प्रारंभ में अहस्तक्षेप
की नीति पर चला और बोस्टन
क्रांति ""चाय पार्टी "के बाद
फिलाडेल्फिया कन्वेंशन से जो संविधान
बना वह अपरिवर्तनीय कठोर संविधान
शक्ति पृथक्करण की अवधारणा पर
चला ।
लेकिन ब्रिटेन में जब से
गुलाबों की क्रांति हुयी और
सत्ता क्राऊन से निकल कर संसद के हाथ
में आ गयी तब चर्च का प्रभाव कम
हो गया । चर्च अपने आप में
शक्तिशाली समानान्तर सत्ता बन
चुका था और जो भी कविता लेख
कहानी किताब व्यक्ति ईसाईयत पर
सवाल उठाता रहस्यमय अंत को प्राप्त
होता । स्त्रियों को पूरे और बंद कपङे
पहनने होते थे और मतदान का अधिकार
नहीं था । तब जब भारतीय औरते
कछोटा बाँधी धोती झुंड के झुंड खेतों और
नदी तालाबों पर मुँह उघाङे अधखुले बदन
में काम करती और झूलती नहाती उत्सव
मेलों में भाग लेती । भारत जैसे देश
जो चर्च की नज़र में असभ्य थे जहाँ के
लोगों को सभ्य बनाना उन सफेद
लोगो का दैवीय कर्त्तव्य ""White
men's burden""के तहत वे सिखाने चल
पङे
जंगली तीसरी दुनियाँ चौथी दुनिया के
अविकसित देशों को विकास राजनीतिक
व्यवस्था और इंसानी तौर तरीके
सिखाने
और ईश्वर की संदेश सुनाने और ईसाईयत
का विस्तार देने चल पङे । इन
पादरियों को सारा व्यय चंदे से
सभी धनिक ईसाई चंदा करके देते ।
गोवा पांडिचेरी और केरल फिर बंगाल
और
बंबई इनके गढ़ बने । लेकिन
जल्दी ही समझ में आ गया कि पंडितों और
राजपूतों के बीच फैले जातिवाद में
इनकी दाल नहीं गलेगी । क्रिस्तान
अछूत
समझे गये क्योंकि वे मांसाहारी थे और
भारत के प्रमुख धर्मों में वर्जित
सभी पशु
खाते थे । तब
निशाना बनाया गया उपेक्षित गरीब
मजदूर और वनवासी अछूत कही जाने
वाली जातियाँ और अनाथ बच्चे तथा वे
लोग जो धर्म
की पाखंडी हिंसा उपेक्षा के शिकार थे

अंग्रेजों का रहन सहन ठाठ बाट और
रूतबा देखकर कई खाते पीते परिवार
भी सांस्कृतिक अनुकरण की चपेट में आ गये

बाईबिल के उपदेश वितरण
ज्यादा संख्या में हो सकें इसीलिये एक
प्रेस गोवा फिर केरल फिर विभिन्न
जगहों पर लगायीं और हिंदी संस्कृत
टाईप भी विकसित किये गये ।
प्रारंभिक
अखबार सिर्फ विज्ञापन के लिये
सूचना के
लिये होते । व्यापार
तो बहाना था दरअसल खनिज का दोहन
ही मुख्य बात थी । उधर रूस फिनलैंड
पोलेङ चैक और बाल्टिक राज्यों में खनिज
का दोहन तो होता लेकिन
मजदूरों की दशा पर कोई ध्यान
नहीं जाता । वहाँ किसान वर्ग
जैसी मध्य धारा नहीं थी । जो भारत
की जङ थी क्योंकि उपजाऊ जमीने
नही थी और न ही लंबे खेत रूस का एक
बहुत बङा भाग ध्रुवीय बर्फ से
ढँका रहता मजदूर और मालिक
दो ही साफ विभाजन थे सारे विचारक
पीडित परिवारों के हिस्से थे । लेनिन
के
भाई साशा की हत्या हुई और जब
वोल्शेविक क्रांति हुयी तब पहली बार
रूस में आम आदमी को बिजली मिली जिसे
मजदूरों ने नाम दिया ""इल्यीच
की बत्तियाँ""ये नाम लेनिन निकोलाई
का घरेलू नाम था । डबल रोटी ब्रैड
वाली संस्कृति में खाना फैक्ट्रियों में
बनता जो रोज खरीदा जाता बेकर
तहखानों में भट्टियों पर काम करते
वहाँ स्त्रियों को दलना पीसना उङाना
ब्रैड लिया फल सब्जी माँस के
द्वारा कुछ
बना लिया । जबकि भारत में स्त्री आज
भी अन्नपूर्णा है । तब
खाना लूटा गया ।
मजदूरों ने पहली बार जी भर माँस और
डबल रोटियाँ केक ब्रैड खाये । लेनिन
की मेन्शेविकों ने हत्या करवा दी ।
स्टालिन के उदय की जमीन तैयार हुयी
©सुधा राजे
May 29 at 1:17pm
Sudha Raje
वैचारिक युद्ध
जीतने की कोशिश ही प्रत्येक विचार
धारा का पहला और आखिरी क़दम है ।
जो भी लङाई ज़मीन पर
लङी जा रही होती पहले वह किसी के
दिमाग में एक कौंध और फिर
योजना बनती है । ये योजना कुछ लोग
सिर्फ इसलिये पसंद कर लेते हैं कि वे आपके
मित्र या संबंधी या शुभचिंतक हैं ।
तो कुछ मित्र संबंधी सिर्फ इसीलिये
नाराज़ हो जाते हैं कि वह योजना और
विचार उनको पसंद नहीं ।
ये नाराज़ होने वाले लोग ही सबसे पहले
उस विचार धारा के शिकार बनायें जाते
है ।
भौतिक पदार्थ और पूँजी का श्रम के
खिलाफ खेल । एक पूरा विज्ञान बनकर
एक विचार के रूप में जब सामने
आया तो ।
जो पूँजी के अभाव में जो लोग परेशान थे
उनको ये विचार सुंदर मनमोहक लगा ।
और जिनके पास पूँजी थी उनको भयानक

एंगल खुद पूँजीपति था लेकिन दोस्ती के
लिये मार्क्स की मदद करता रहा । और
मार्क्स का सपना हर मजदूर के दिमाग
तक पहुँचाने में इसी तरह के पूँजी के अभाव
में कुंठित लोगों ने संसार में फैलाया
क्योंकि नया नया विचार हमेशा कुछ
बाग़ी ऊबे हुये लोगों को पसंद आता है ।
धर्म को जब मार्क्स ने अफीम
कहा तो उन
सबको अच्छा लगा जिनको चर्च के नियम
पालन और हर बात में बाईबिल
की दुहाई
पसंद लगती थी ।
याद रहे इस्लामिक विश्व में मार्क्स
को कभी बहुत घुसपैठ नहीं मिली ।
इस तरह दो समर्थक मार्क्स को मिले ।
पूँजी के अभाव में कुछ न कर पाने वाले
कुंठित लोग जिनके पास तेज दिमाग और
महात्वाकांक्षा औऱ बङे सपने औऱ कुछ न
कर पाने की घुटन थी । ये शिक्षित
बेरोजगार लोग थे ।
दूसरे वे लोग जो धर्म के नियमों से
परेशान थे ।
तीसरे वे लोग जो हुकूमत करना चाहते थे
लेकिन राजशाही के वंशवाद से उनके लिये
कोई मौका नहीं था
मजदूर या ग़रीब ?? का हित
कभी भी हो ही नहीं सका । लाल चीन
में
जो हश्र है गरीबी का वो खबर
नहीं बनता लेकिन कठोर नियंत्रण लौह
आवरण की नीति के चलते ये खबरें
बरसों तक बाहर
नहीं आयी कि वहाँ सत्ता के
लालविचारक
ही शोषक हैं । और स्टालिन की लौह
आवरण की नीति से
मानवाधिकारों का जो उल्लंघन हुआ वह
अपने आप में एक भीषण उदाहरण है
डॉ पास्टरनाक और कई लोगों ने
प्रताङना सहकर सारी चीजें बाहर
निकाली । संगीत कला शिल्प और लेखन
को विलासिता समझा गया और
जो इनका प्रयोग था उसे नियंत्रित
लालविचार के प्रचार पर खर्च करने
की सख्ती की गयी । जमकर हत्यायें
हुयीं औऱतों को लालविचारकों के दैहिक
सुख के लिये
निजी पवित्रता जैसी बातों को तुच्छ
और
लालविचार धारा को महान् मंज़िल
मानकर ""व्होल टाईमर ""यानि वे
जो सिर्फ प्रचार प्रसार
योजना विस्तार में लगे उनके लिये
क़ुरबान होने को कहा गया ।
दूसरी तरफ
अमेरिका एक के बाद एक गरीब देश में
बढ़ते लाल निशानों से परेशान था ।
चिंता में ब्रिटेन फ्रांस और उद्योग
व्यापार पर निर्भर पश्चिमी देश भी थे

ये सब विरोध के लिये सहमत हुये तब
अमेरिका ने अटलांटिक पर
चहलकदमी बढ़ायी । और कर्ज
दो नीति हमारे मुताबिक
रहेगी की नीति अपनायी और
विकासशील देशों को आर्थिक उपनिवेश
बनाने के लिये मुक्त हाथ से सशर्त कर्ज़
दिये जिनमें लालविचार
धारा को प्रश्रय ना देना भी शामिल
था ।
©Sudha Raje
Wednesday at 7:24pm
Sudha Raje
आप शायद नाज़ी वाद फासीवाद
साम्यवाद और चर्च क्राउन संघर्ष
को भूल
रहे हैं ।।।
भारत पर पुर्तगाली और
फ्रांसीसी पहले
आये और उनका ही प्रभाव था ।।।
दूसरी ओर से अरब और तुर्क तीसरी और से
मंगोल और तातार हूण कुषाण ।।
ये सब कालांतर में स्थानीयता से घुल
मिल
गये ।।।।
यूरोप और अमेरिका और साम्यवादी देश
ये तीन स्पष्ट गुट विदेश के नाम पर
भारत में प्रभाव बढ़ाना चाहते थे ।।
वजह
कोयला जो उस समय ट्रेन से लेकर
बॉयलर
तक हर तरह की ऊर्जा का मूल स्रोत
था ।।
कोई वाहन या मिल
फेक्टरी दो ही चीजों से चलती थी ।।
लोहा और कोयला
ये था भारत में
सदियों का भंडार ।।।
तेल के लिये जिस तरह तुर्की के
खलीफा और अरब इजरायल ईराक ईरान
कुवैत फिलिस्तीन
को
अखाङा बनाया और इराक़ को तबाह
किया गया ।।
इसी तरह ।।
लोहा कोयला और बंधुआ मजदूर कपास
नील नमक मसाले और चाय ।।
के लिये भारत
को अखाङा बनाया गया ।
यूरोप चर्च के प्रभाव में आ गया और
यहूदी वहाँ से मारे भगाये जलाये सताये
जाने लगे ।।
रोम जब जल
रहा था तो नीरो बाँसुरी बजा रहा था
कांस्टेटीनोपोली पर हमला हुआ और
चर्च
यूरोप में सिमट गया ।
चर्च अब तानाशाही की बजाय भूमिगत
ईसाईकरण की लङाई लङने लगा और
शिकार को अस्पताल स्कूल अनाथालय
की रणनीति अपनायी ।हर अनाथ
तो ईसाई होना ही था ।
चर्च राजनीति पर हावी हो गया वैसे
ही जैसे मिडिलईस्ट औऱ पङौस में इस्लाम

राजा और चर्च के खीचतान में साम्यवाद
का उदय हुआ.
रूसो हॉब्स मैकियावेली हीगल बेंथम
मिल
कांट बोजांके दांते मार्क्स और एंगल ने
।।
समाज के मनन पर पृथक पृथक विचार
दिये

जो घर घऱ गीता कुरान बाईबिल
की तरह पढे गये ।
लोगो को आशा दिखी
और फ्रांस में क्रांति हो गयी ।।
रूसो के विचार
जन जन में छा गये मौलिक अधिकार
वहाँ पहली बार माने गये ।
लेनिन बोल्शेविक नेता बने और
मेन्शेविको की विपरीत धारा से जार
जरीना को मार कर चर्च और राजमहल
पर लाल झंडा फहरा ।
ये लहर पूरे यूरोप में दौङी और बाल्टिक
राज्यों में असर कर ही गयी ।
अमेरिका किसान कारीगरों का देश
इससे
घबरा गया औऱ लाल सागर में
चौकसी बढा दी ।
विश्वयुद्ध की जङ में ये चर्च क्राउन
लालविचार औऱ लोकतंत्र का ।
संघर्ष था ।
सेना नही विचारक लङ रहे थे
May 28 at 6:06pm
Jun 1, 2013
Like · Comment
· Edit Privacy · Edit · Delete
डॉ. सस्मित द्विवेदी likes this.
Sudha Raje
Sudha Raje
लालक्रांति का मतलब
पूँजीवादी को मारकर
मजदूरों की तानाशाही ।।
ये गरीब
का मसीहा कहलाना तो पहला चरण है ।
उसके स्टेप बाई स्टेप को पढ़ो ।
ये
लाल होली उसके स्टेप बाई स्टेप
का सदी पुराना हिस्सा है ।
पूँजी पतियों की हत्या लालक्रांति का अ
अंग है ।
वे
इसे प्रचार में नहीं लाते परंतु
अवधारणा का सारा दारोमदार
इसी तीसरे स्टेप पर चौथा है
मजदूरों की तानाशाही पाँचवा कम्युनिस्
इंटरनेशनल की स्थापना और
छठा संपत्ति का सरकारी कब्जा सातवाँ
की सोवियतें स्थापित करना ।
डा.रामविलास शऱ्र्मा ने
सवऱ्हारा की तानाशाही का ‌जिक्र
अपनी एक पुस्तक में ‌किया है। जब तक
गरीब रहेगा लाल क्रांिततिके
झंडाबरदारों की दुकानें चलती रहेंगी।
इसीिललिए ये चाहते हैं गरीबी बनी रहे।
पूरा नक्सलवाद लुटेरों का गैंग है ।
ये लोग बंगाल नेपाल तमिलनाडु के विदेश
वित्त पोषित विचारक है ।
ये
पलटन बनकर टेक्निकल लोग जंगल में आते हैं
।।।
लाल
साहित्य का
पूरा फिक्स नक्शा है ।।
भारत में
संविधान में वार्सा पैक्ट राष्ट्रों के
दवाब पर सोवियत रूस के समर्थन के लिये
।।
समाजवादी
शब्द बाद में प्रस्तावना में डाला गया
ताकि लालविश्व को यकीन हो जाये
कि ।
भारत
अमेरिका के खेमे में नहीं है ।
तब दुनियाँ दो ध्रुवों में बँटी हुयी थी
और
चाईना के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिये
रावलपिंडी न्यूयॉर्क धुरी बनी थी
तब कश्मीर और बांगलादेश मसले पर भारत
को समर्थन चाहिये था वीटो पावर
का । ताकि यू एन ओ की दखलंदाजी बंद
हो कश्मीर में ।
जब बंगाल में लालविचारक देश को लाल
विश्व में मिलाने का बङा भारी समर्थन
पा चुके थे तब ।।
इंदिरा जी ने ।।
ये
कूटनीति की औऱ देश
का चेहरा गुटनिरपेक्ष रह पाया ।।
लाल
क्रांति में हर चरण लिखा है ।
गरीब
का समाधान मतलब????
लाल विश्व का सफाया ।।।
फिर ये सपने में खून कैसे भरेगे
इनको
समाधान गरीबी का नहीं चाहिये
ये
गरीब पर अपनी सत्ता चाहते है
और देश की सत्ता का सफाया
Like · Edit · May 27 at 5:42pm

Comments