Thursday 17 December 2015

सुधा राजे की कहानी :- अम्मा की कूटी हुईं मिर्चें.



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अम्माँ की कूटी हुयी मिरचें।
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• अम्माँ!  बस आ गयी मुझसे और नहीं पिया जा रहा बस्स दूध।.इतना सारा दलिया औऱ परांठा भी खा लिया अब तो ख़ुश???

कहते हुये तेजस्वी ने माँ के गाल पर एक चुंबन जङ दिया औऱ बस्ता बोतल टिफिन सँभालती भागी ।

दीदी!!  जल्दी चल

यदु" को धकेला उसने ।

रूक!  तो अम्माँ की दवाई तो दे दूँ नहीं तो ये नहीं खाने वाली ।"
यदु ने गोली अम्माँ के हाथ पर रखी पानी का गिलास दिया और गले से झूल गयी ।

यदु और मैं यानि तेज दोनों बहिनें पंद्रह किलोमीटर दूर दूसरे बङे कस्बे में पढ़ने जाती हैं ।

स्कूल बस रोज़ एक फर्लांग दूर हाईवे पर आकर रूकती । पहले अम्माँ खुद उंगली पकङ कर दोनों को बस तक बिठाने आतीं थीं । अब मैं  चौथी कक्षा में यदु सातवीं कक्षा में पढ़तीं है ।

यदु चुप रहती है हमेशा माँ की तरह । मैं  बोलती रहती हूँ हर समय बापू  और बाबा की तरह ।

अम्माँ दिन भर काम करतीं रहतीं हैं । सुबह चार बजे से देर रात तक । अम्माँ कब सोतीं हैं?
कभी कभी हम दोनों बातें करतीं । घर में गाय है भैंस है बूढे बाबा जी हैं । हर महीने दो चार नाते रिश्ते दार आ धमकते हैं । अक्सर पास के शहर वाली बुआयें जो हर छुट्टी में पिकनिक मनाने आ जातीं हैं । बुआओं का आना हम दोनों बहिनों को ज़रा भी पसंद नहीं । क्योंकि वे हर वक्त शोर शराबा मचाये रहतीं हैं । माँ हर वक्त उन दिनों किचिन में घुसी रहतीं हैं । जब बुआयें पास के बाग बगीचे और लोगों से मिलने चलीं जातीं माँ उन सबके कपङे धोती घर साफ करतीं । बाबा रात दिन नयी नयी डिशेज फरमाईश करके बनवाते और माँ उनके जाते ही कई दिन बीमार पङ जातीं । हर दिन दर्द की गोली खाती माँ । बुआ तो मटर तक नहीं छिलवातीं । माँ तब मदद को गिङगिङातीं और यदु दीदी माँ का हर काम करवाती हैं । मुझे बुआओं की हर वक्त आलोचना पसंद नहीं जो वे माँ के हर काम पर बतियातीं हैं । माँ ज़वाब क्यों नहीं देतीं?  बुआयें तो हम दोनों को भी उन दिनों नौकर ही बनाके दौङातीं रहतीं हैं चाहे एक्जाम ही क्यों न हों । दीदी तो कर देतीं हैं हर काम ख़ामोश से। मग़र मैं टोक देतीं हूँ "बुआ जी दीदी को पढ़ने दो "।
बुआयें मुझे छोटी मिर्ची कहती औऱ खिसिया जातीं । उनके बच्चे दो दो ज़गह ट्यूशन करके भी जैसे तैसे पास होते हैं और वे शहर में रहतीं हैं जहाँ काम वाली बाईयाँ सारे काम करतीं हैं । मशीनों और बिजली से काम होता है । रेडीमेड चीजें खरीदतीं हैं । ब्रेड मैगी पिज्जा बर्गर टोस्ट बिस्किट का नाश्ता करते हैं उनके बच्चे । डेयरी से दूध पनीर दही आता है । बुआ ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं मगर हर हफ्ते ब्यूटी पारलर जातीं हैं । वीक एंड पर सिनेमा और होटल में डिनर करतीं हैं परिवार का खाना भी फूफाजी की मदद से बनता है । अक्सर बाहर से खाकर आते हैं । कपङे लॉण्ड्री में धुलते है या वाशिंग मशीन पर । सबमर्सिबल का पानी हर वक्त हर कमरे में टैप खोलते ही मिल जाता है ।

माँ तो बगीचे के हैंडपंप से पानी भरती हैं । डीजल इंजन से कुट्टी काटतीं हैं । बरतन झाङू पोंछा और चूल्हे पर खाना पकाना हाथ से कपङे धोना सिलबट्टे से मसाला पीसना । हाथ की चक्की से दालें दलना दलिया बनाना । हम दोनों बहिनों को सुबह शाम पढ़ाना । कोयले बचाकर बापू के कपङे लोहे की प्रेस से इस्तिरी करना । रोज लालटेनें साफ करना । माँ ने बगीचे में कई सारी सब्ज़ियाँ लगा रखीं हैं । आसपास की लङकियों को रोज शाम ट्यूशन भी पढ़ातीं हैं । सिलाई करके हमारे कपङे तैयार करतीं हैं ।

माँ फिर भी कभी नहीं रुकतीं । हर रोज नया नाश्ता हमारे टिफिन में होता है । माँ इतनी चुप चुप क्यों रहतीं हैं । सिस्टर जब भी कोई प्रोजेक्ट देतीं माँ तैयार करातीं हैं । क्लास में दीदी सबसे ज्यादा नंबर लाती है। माँ स्किट लिख कर देतीं तो सिस्टर दंग रह जाती पूछतीं "किसने लिखी?
मैं कहती माँ ने तो वे कुछ सोचने लग जातीं ।
कोई काम ऐसा भी है जो माँ को ना आता हो???
कभी जब मैं दीदी से पूछती तो वो झिङक देती है । कहती है पढ़ो । मुझे खेलना पसंद है और माँ शतरंज कैरम लूडो बेडमिंटन सब खेल लेतीं हैं ।
माँ कभी मेक अप नहीं करतीं बुआ की तरह । पर जब भी कहीं शादी या पार्टी में जातीं हैं सब माँ को घूर घूर कर देखते हैं । माँ कितनी सुंदर लगतीं हैं ।
माँ जाने क्या क्या लिखती रहतीं हैं । एक अलमारी में लिख लिख कर बंद कर देती हैं ।
मेरे सारे स्वेटर बुआ डिजायन उतारती रहतीं हैं जब समझ नहीं आता तो माँ से कहतीं हैं ये तो आउट ऑफ फैशन हो गया दुल्हन!!
बुआ को क्या पता । शहर में बापू के बङे बङे दोस्तों की पार्टी में जब हम दोनों बहिनें वही कपङे पहिन कर जाते हैं तो वो सब कहते है"" वाओ मास्टर आर्ट!!! माँ ने ताऊ जी की बेटी की शादी पर पहिनने के लिये हम दोनों का जो लँहगा कुरता बनाया था सबने पूरे शहर में तलाशा नहीं मिला ।

माँ के ज़िस्म पर अक्सर चोटें बहुत लगतीं हैं । काले नीले कत्थई दाग । कभी खरोंचें । एक दो बार तो टाँके और फ्रेक्चर भी । पूछने पर माँ कहतीं गिर गये । गाय भैंस ने मार दिया । चक्कर आ गया । खाना बनाते जल गये ।
माँ अपना खयाल क्यों नहीं रखतीं? पूछो तो कहते हुये फीकी सी मुसकरा देतीं । जैसे रुलायी छिपा रहीं हों ""तुम दोनों पल जाओ अपना अपना दफतर सँभालो तो माँ को घर सँभालने से मुक्ति मिलेगी और तब सारी चोटें अपने आप ठीक हो जायेंगी ।

मैं सोचती हूँ जल्दी बङी हो जाऊँ । किरण बेदी की जीवनी लिखी थी पिछले स्टेण्डर्ड में तभी सोच लिया था पुलिस ऑफिसर बनूँगी । माँ को बताया तो माँ देर तक हँसती रहीं । दीदी को तो बहुत सारा पैसा कमाने विदेश जा बसने का शौक़ है । ऑप्शनल क्लास वर्क में वो फ्रैंच सीख भी रही है ।

बापू तो सारा दिन पास के शहरों में दवाईयों का ऑर्डर लेते और सप्लाई करते रहते हैं । बाकी दिनों में खेत देखने बाबा के साथ चले जाते हैं । बटाईदार करते हैं सब काम तो । बाबा तो बस घूमने चले जाते हैं ।
माँ बापू सिर्फ़ बहुत जरूरी होने पर ही बात करते हैं । अक्सर हम बच्चों के बहाने से । कभी कभी मैं  दीदी से कहती हमारे बापू कितने अच्छे हैं । लेकिन बस हमारी बाकी क्लासमेट के पापा डैडी की तरह हुल्लङ भी मचाते तो कितना अच्छा होता ।

ये बात जब माँ से कही तो माँ तो लगा बस रो ही देंगी ।
फिर बोलीं पढ़ाई के अलावा क्या क्या ऊल जुलूल सोचती रहती है!!!
अबकी बार टॉप करना है समझी ।


उस दिन

स्कूल किसी नेता की डेथ हो जाने से प्रेयर के बाद कंडोलेन्स और छुट्टी

हम दोनों पैर दबाये चुपचाप माँ को चौंकाने के विचार से घर में घुसे । माँ कहीं नहीं थीं सारा घर खाली था ।बगीचे में भी माँ नहीं थीं । तभी दीदी को माँ की घुटी घुटी चीख सुनायी दी  ।हम दोनो अनाज भंडार वाली कोठरी की तरफ भागे । स्टोर का दरवाज़ा जरा सा खुला था । माँ औंधे मुँह फर्श पर पङीं थीं । पीठ पर बापू ने जूता रख रखा था । और दोनों हाथ एक हाथ से पीठ पर मोङ रखे थे । एक हाथ से माँ के बाल खींच रखे थे और दूसरे पैर से जूते की ठोकर माँ की पसलियों पर मारते जा रहे थे ।
माँ चीख रोकने की कोशिश में बुरी तरह तङप रहीं थीं । दीदी रोने लगीं । मुझे कुछ याद आया मैं किचिन में गयी । जहाँ सिर्फ हमारा नाश्ता जल्दी बनाने के लिये माँ ने दो साल पहले गैस स्टोव ' लगाया था वहीं परांत में किलो भर मिरचें रखीं थीं । मैं ने  दोनों मुट्ठियों में मिर्चें भरीं और स्टोर का दरवाजा खोल दिया। अँधेरे में बापू ने हम दोनों को देखा ही था कि मैंने होली के गुलाल की तरह सारा मिर्च पाउडर बापू की आँखों में उछाल दिया ।

बापू जोर से साँड की तरह अंधे होकर डकराये ।

और माँ की पीठ पर जूते की एङी से जोर से ठोकर मारी ।

माँ पलट गयी बापू के हटते ही । बापू माँ की छाती पर खङे थे । हाथ पैर छूटते ही माँ ने हमें देखा और चीखीं ।
छुटकी बङकी भाग । भाग के छिप जा कहीं ।
और बापू की कोली भर ली कमर से ।
बापू गालियाँ बक रहे थे । अंधाधुन्ध पीट रहे थे माँ को और चिघ्घाङ रहे थे ।

हम दोनों भाग कर गाय के कमरे के भुसोरे में छिप गयीं ।
वहाँ छेद में से देखा । माँ हैंडपंप चलाकर बापू की आँखें धुलातीं जा रहीं थीं और बापू गालियाँ बक रहे थे ।

""मेरे बच्चे ख़िलाफ़ भङकाती है""
कई घंटे बाद बापू आई ड्रॉप डालकर लेटे थे आँख पर मलाई की पट्टी रखे।
तब माँ हमारे पास आयीं । पेट से चिपका कर खूब रोयीं । माँ को इतना रोते तो कभी नहीं देखा । मामा के घर से भी माँ मुसकरा कर चली आतीं है जब कभी साल में एक बार जातीं ।

सुबह छुट्टी थी । माँ बापू के पास खङीं थी
बदले हुये रूप में । आज माँ ने बरसों  बाद  साङी नहीं  अपना बहुत पुराना सलवार सूट और कोट पहना था ।

बहुत हो गया  कुंदन!!
अब बात मेरी बेटियों तक जा पहुँची है ।
इसी दिन से हम डरते थे ।

हम शहर किराये का कमरा खोजने जा रहें हैं । सोचते हैं अपनी प्रैक्टिस फिर चालू कर दें । बेटियाँ अब काफी बङी हो गयीं ।

बापू चुप खङे हो गये । ये रूप तो कभी देखा न था माँ का ।

मुझे एक और मौका दो नंदिनी ।
बच्चे मेरे भी तो हैं प्लीज!!

बापू गिङगिङा रहे थे । ऐसा तो कभी नहीं हुआ!!!!

आप सारे मौके गँवा चुके हैं कुंदन!!

माँ ने इतनी कठोर लेकिन धीमी आवाज़ में कहा कि हमें झुरझुरी आ गयी ।


माँ ने हम दोनो को
बापू वाले स्कूटर पर बिठाया हैलमेट पहना और हमारी सहेली अवंती के घर कमरा देखने चल पङी शहर ।

माँ ने स्कूटर कब सीखा!!!!
दीदी से पूछा तो वह फिर होठों पर उंगली रखे चुप का इशारा कर रही थी ।

आज दीदी पहली बार मुसकरा रही थी ।
और उसे जोक्स भी याद आ गये ।
स्कूटर चल रहा है ।
मुझे लगता है एक दिन मैं  हैली कॉप्टर चला कर माँ को फ्रांस घुमाने ले जाऊँगी दीदी के दफ्तर ।
आमेन!!
दीदी ने सिस्टर की तरह सीने पर क्रॉस बनाया ।
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Sudha Raje