Saturday 27 November 2021

जंगली हैं हम

कृपया शेयर करें ,
,

धरती का ऋण ,कुछ तो हों उऋण 
..........
सुधा राजे ,
*********
वर्षोत्सव व्यर्थ न जाये आओ फलदार वृक्ष लगायें 
<><><><><><><><><><><><><><><><><><>
आज का वृक्ष 
बेल 
विल्व 
विल्वम् 
................
यह एक इकलौता ही वृक्ष है जो अति प्राचीन कालीन वृक्ष होकर भी अपनी प्रजाति का एक ही रूप है । हालांकि "कैंथ"और जमालघोंटा"भी लगभग ऐसे ही फल होते हैं परंतु उन पर बाद में चर्चा करेंगे ।बेल का हर अंग एक औषधि होने से इसे पूजन और शिवाराधन में अनिवार्य माना गया है । कहते हैं कि बेलवृक्ष घर के उत्तर पश्चिम में लगाने से यश और दक्षिण पश्चिम में लगाने से लक्ष्मी बढ़ती है । विल्व का गूदा हवन में करने से भी श्री और शिव को प्रसन्न किया जाता है । त्रिपत्री के एक सौ आठ या एक हजार आठ पत्र शिव पर चढ़ाने का भी विशेष महत्त्व है ।सावन में तो और भी अधिक क्योंकि शिव के ही  होते हैं ये चतुर्मास । बेल के आसपास सर्प नहीं आते ऐसा मानते हैं जबकि रातरानी पर आते हैं ।बेल का फल सेब और नाशपाती से बड़ा कड़क शल्क में होता है जिसे तोड़ने पर भीतर गूदा पीले भूरे नारंगी रंग का मिलता है उसे पकने पर शरबत ठंडई मुरब्बा टाॅफी जूस शेक और जैली जैम आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है । गर्भवती स्त्री और पेट के हर प्रकार के रोगी के लिये बेल का शरबत मुरब्बा और हलवा सब ही लाभदायक पौष्टिक और पाचन शक्ति वर्दधक होते हैं जलन एसिडिटी अपच अफारा कब्ज और दस्त सब पर बेल का असर बहुत शीघ्र लाभ कारक होता है । यह इन्स्टेन्ट एनर्जिक पेय भी है जो थकान और कमजोरी दूर करता है । लू लगने तथा सिरदर्द आदि में भी बेल का शरबत राहतकारक है । बेल का वृक्ष बहुत कम देखभाल में ही पनप जाता है ।बीज या पौध से लगाया जा सकता है । नर्सरी पर भी प्राप्त कर सकते हैं । बेल को वर्षा में रोप दें और बस एक दो वर्ष से चार वर्ष तक में यह फल देने लगता है । राय बेल आकार में बहुत बड़े और बहुत मीठे होते है जबकि सादे बेल भी बहुत गुणकारी होते हैं । बेल में प्रोटीन फाईबल और शरीर को त्वचा के घाव भरने वाले मिनरल देने लायक तत्व होते हैं । यह पूर्णतः भारतीय फल है कांटे तो होते हैं परंतु काट छांटकर भी यह बहुत शीघ्र ही घना हो जाता है छाया बहुत घनी होती है कद पांच से पैंतीस फीट तक हो सकता है । आप बड़े से गमले में भी लगा सकते हैं बस समय समय पर बेकार टहनियां काटते रहें । बच्चों शिशुओं को बेल बहुत ही शक्ति देने वाला निरापद फल है । आयुर्वेद के अनुसार इसमें देह भीतर के समस्त विष हरने की अद्भुत शक्ति होती है ।तो आईये जहां जहां जगह मिले हम बेलफल का वृक्ष लगाकर सावन मनाये कहते हैं शवयात्रा के समय यदि बेलवृक्ष की छाया के नीचे से अर्थी निकल जाये तो उस व्यक्ति के पाप क्षमा होकर मोक्ष मिल जाता है । ऐसा तभी तो हो सकता है जब डिवाईडर पर सड़क किनारे  नदी मन्दिर श्मशान मुहल्ले के हर संस्थान और घर तथा बाहर की जगहों पर बेल का पेड़ को । लोग शिव को पत्तियां चढ़ाकर प्रसन्न करते हैं आईयेे हम इस बार एक सौ आठ बेल वृक्ष लगाकर महाकाल महाप्रकृति की आराधना करें।सादर 
©®सुधा राजे 

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अपना प्रकृति ऋण अ्दा करें .....सादर निवेदन

जंगली हैं हम

धरती का ऋण ,कुछ तो हों उऋण 
..........
सुधा राजे ,
*********
वर्षोत्सव व्यर्थ न जाये आओ फलदार वृक्ष लगायें 
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आज का वृक्ष 
बेल 
विल्व 
विल्वम् 
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यह एक इकलौता ही वृक्ष है जो अति प्राचीन कालीन वृक्ष होकर भी अपनी प्रजाति का एक ही रूप है । हालांकि "कैंथ"और जमालघोंटा"भी लगभग ऐसे ही फल होते हैं परंतु उन पर बाद में चर्चा करेंगे ।बेल का हर अंग एक औषधि होने से इसे पूजन और शिवाराधन में अनिवार्माना गया है । कहते हैं कि बेलवृक्ष घर के उत्तर पश्चिम में लगाने से यश और दक्षिण पश्चिम में लगाने से लक्ष्मी बढ़ती है । विल्व का गूदा हवन में करने से भी श्री और शिव को प्रसन्न किया जाता है । त्रिपत्री के एक सौ आठ या एक हजार आठ पत्र शिव पर चढ़ाने का भी विशेष महत्तव है ।सावन में तो और भी अधिक क्योंकि शिव के होते हैं ये चतुर्मास । बेल के आसपास सर्प नहीं आते ऐसा मानते हैं जबकि रातरानी पर आते हैं ।बेल का फल सेब और नाशपाती से बड़ा कड़क शल्क में होता है जिसे तोड़ने पर भीतर गूदा पीले भूरे नारंगी रंग का मिलता है उसे पकने पर शरबत ठंडई मुरब्बा टाॅफी जूस शेक और जैली जैम आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है । गर्भवती स्त्री और पेट के हर प्रकार के रोगी के लिये बेल का शरबत मुरब्बा और हलवा सब ही लाभदायक पौष्टिक और पाचन शक्ति वर्दधक होते हैं जलन एसिडिटी अपच अफारा कब्ज और दस्त सब पर बेल का असर बहुत शीघ्र लाभ कारक होता है । यह इन्स्टेन्ट एनर्जिक पेय भी है जो थकान और कमजोरी दूर करता है । लू लगने तथा सिरदर्द आदि में भी बेल का शरबत राहतकारक है । बेल का वृक्ष बहुत कम देखभाल में ही पनप जाता है ।बीज या पौध से लगाया जा सकता है । नर्सरी पर भी प्राप्त कर सकते हैं । बेल को वर्षा में रोप दें और बस एक दो वर्ष से चार वर्ष तक में यह फल देने लगता है । राय बेल आकार में बहुत बड़े और बहुत मीठे होते है जबकि सादे बेल भी बहुत गुणकारी होते हैं । बेल में प्रोटीन फाईबल और शरीर को त्वचा के घाव भरने वाले मिनरल देने लायक तत्व होते हैं । यह पूर्णतः भारतीय फल है कांटे तो होते हैं परंतु काट छांटकर भी यह बहुत शीघ्र ही घना हो जाता है छाया बहुत घनी होती है कद पांच से पैंतीस फीट तक हो सकता है । आप बड़े से गमले में भी लगा सकते हैं बस समय समय पर बेकार टहनियां काटते रहें । बच्चों शिशुओं को बेल बहुत ही शक्ति देने वाला निरापद फल है । आयुर्वेद के अनुसार इसमें देह भीतर के समस्त विष हरने की अद्भुत शक्ति होती है ।तो आईये जहां जहां जगह मिले हम बेलफल का वृक्ष लगाकर सावन मनाये कहते हैं शवयात्रा के समय यदि बेलवृक्ष की छाया के नीचे से अर्थी निकल जाये तो उस व्यक्ति के पाप क्षमा होकर मोक्ष मिल जाता है । ऐसा तभी तो हो सकता है जब डिवाईडर पर सड़क किनारे  नदी मन्दिर श्मशान मुहल्ले के हर संस्थान और घर तथा बाहर की जगहों पर बेल का पेड़ को । लोग शिव को पत्तियां चढ़ाकर प्रसन्न करते हैं आईयेे हम इस बार एक सौ आठ बेल वृक्ष लगाकर महाकाल महाप्रकृति की आराधना करे ।
©®सुधा राजे 

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Friday 26 November 2021

जंगली हैं हम

जंगली है हम दिल से 
स्वभाव से गँवार (सुधा राजे )

~सूरन ,सुथनी ,रतालू ,जिमीकंद ,कन्दौरा ,कान्दू ,टेपियोका ,
को 
प्राय: लोग एक ही सब्जी समझ लेते हैं ये सब अलग अलग हैं । 
प्रजाति एक है । ये घुईयाँ के भाई बहिन हैं 
 बिहार मिथिला नेपाल और आसपास के क्षेत्रों में ""छठ "जो दीवाली के बाद आती है पर ""सूर्यपूजा का त्रिदिनात्मक व्रत होता है ,जिसमें जल स्रोतों के किनारे सूर्य वेदी बनाकर उसपर उस ऋतु की सब चीजें सूर्य को अर्पित करके आरोग्य संतान सौभाग्य समृद्धि की कामना की जाती है । 
उस टोकरी सूप डलिया में ,सिंघाड़ा ,पूरा नारियल ,गन्ना ,आदि हरिद्रा ,बेलफल ,और ""सुथनी ""अनिवार्य रूप से अन्य अनेक फल सब्जियों के साथ प्रसाद में लगाते हैं ।
सुथनी की सब्जी ,चोखा ,पकौड़ी पूरी ,कचौरी ,बनाते है ,यह आकार में आलू जैसा होता है ,इसकी बेलें पौधे छोटे होते हैं 
जबकि 
""कन्दौरा जो ऊपर से नारियल जैसा कत्थई भीतर रानी रंग गुलाबी ,और फिर सफेद होता है ,की बेलें जैसी हमने गृहवाटिका में लगाकर अनुभव लिया बहुत लंबी होती हैं 20 से 30 मीटर तक फैलतीं है बरसों चलतीं हैं हम जड़ में से 5 से 7 किलो तक कंदौरा निकालते थे ,
कई तो 4 किलों तीन किलो के होते थे ।
रतालू सफेद निकलता है 
सूरत कुछ पीलापन लिये 
कान्दू तो बड़ी अरबी जैसा होता पत्ते भी अरबी के ही जैसे होते हैं 
जिमीकंद पत्थर जैसा कत्थई कठोर दिखता है 
जबकि टेपियोका का रंग सफेद आकार बड़ा ।
............
आज ये सुथनी है 
............
मांसाहारियों के लिए वैकल्पिक शाकाहार है 
शाकाहारियों के मजेदार मांसाहार जैसा हर स्वाद परन्तु है सब्जी ।
.........(सुधा राजे )

जंगली हैं हम

जंगली है हम दिल से 
स्वभाव से गँवार (सुधा राजे )

~सूरन ,सुथनी ,रतालू ,जिमीकंद ,कन्दौरा ,कान्दू ,टेपियोका ,
को 
प्राय: लोग एक ही सब्जी समझ लेते हैं ये सब अलग अलग हैं । 
प्रजाति एक है । ये घुईयाँ के भाई बहिन हैं 
 बिहार मिथिला नेपाल और आसपास के क्षेत्रों में ""छठ "जो दीवाली के बाद आती है पर ""सूर्यपूजा का त्रिदिनात्मक व्रत होता है ,जिसमें जल स्रोतों के किनारे सूर्य वेदी बनाकर उसपर उस ऋतु की सब चीजें सूर्य को अर्पित करके आरोग्य संतान सौभाग्य समृद्धि की कामना की जाती है । 
उस टोकरी सूप डलिया में ,सिंघाड़ा ,पूरा नारियल ,गन्ना ,आदि हरिद्रा ,बेलफल ,और ""सुथनी ""अनिवार्य रूप से अन्य अनेक फल सब्जियों के साथ प्रसाद में लगाते हैं ।
सुथनी की सब्जी ,चोखा ,पकौड़ी पूरी ,कचौरी ,बनाते है ,यह आकार में आलू जैसा होता है ,इसकी बेलें पौधे छोटे होते हैं 
जबकि 
""कन्दौरा जो ऊपर से नारियल जैसा कत्थई भीतर रानी रंग गुलाबी ,और फिर सफेद होता है ,की बेलें जैसी हमने गृहवाटिका में लगाकर अनुभव लिया बहुत लंबी होती हैं 20 से 30 मीटर तक फैलतीं है बरसों चलतीं हैं हम जड़ में से 5 से 7 किलो तक कंदौरा निकालते थे ,
कई तो 4 किलों तीन किलो के होते थे ।
रतालू सफेद निकलता है 
सूरत कुछ पीलापन लिये 
कान्दू तो बड़ी अरबी जैसा होता पत्ते भी अरबी के ही जैसे होते हैं 
जिमीकंद पत्थर जैसा कत्थई कठोर दिखता है 
जबकि टेपियोका का रंग सफेद आकार बड़ा ।
............
आज ये सुथनी है 
............
मांसाहारियों के लिए वैकल्पिक शाकाहार है 
शाकाहारियों के मजेदार मांसाहार जैसा हर स्वाद परन्तु है सब्जी ।
.........(सुधा राजे )

जंगली हैं हम

जंगली है हम दिल से 
स्वभाव से गँवार (सुधा राजे )

~सूरन ,सुथनी ,रतालू ,जिमीकंद ,कन्दौरा ,कान्दू ,टेपियोका ,
को 
प्राय: लोग एक ही सब्जी समझ लेते हैं ये सब अलग अलग हैं । 
प्रजाति एक है । ये घुईयाँ के भाई बहिन हैं 
 बिहार मिथिला नेपाल और आसपास के क्षेत्रों में ""छठ "जो दीवाली के बाद आती है पर ""सूर्यपूजा का त्रिदिनात्मक व्रत होता है ,जिसमें जल स्रोतों के किनारे सूर्य वेदी बनाकर उसपर उस ऋतु की सब चीजें सूर्य को अर्पित करके आरोग्य संतान सौभाग्य समृद्धि की कामना की जाती है । 
उस टोकरी सूप डलिया में ,सिंघाड़ा ,पूरा नारियल ,गन्ना ,आदि हरिद्रा ,बेलफल ,और ""सुथनी ""अनिवार्य रूप से अन्य अनेक फल सब्जियों के साथ प्रसाद में लगाते हैं ।
सुथनी की सब्जी ,चोखा ,पकौड़ी पूरी ,कचौरी ,बनाते है ,यह आकार में आलू जैसा होता है ,इसकी बेलें पौधे छोटे होते हैं 
जबकि 
""कन्दौरा जो ऊपर से नारियल जैसा कत्थई भीतर रानी रंग गुलाबी ,और फिर सफेद होता है ,की बेलें जैसी हमने गृहवाटिका में लगाकर अनुभव लिया बहुत लंबी होती हैं 20 से 30 मीटर तक फैलतीं है बरसों चलतीं हैं हम जड़ में से 5 से 7 किलो तक कंदौरा निकालते थे ,
कई तो 4 किलों तीन किलो के होते थे ।
रतालू सफेद निकलता है 
सूरत कुछ पीलापन लिये 
कान्दू तो बड़ी अरबी जैसा होता पत्ते भी अरबी के ही जैसे होते हैं 
जिमीकंद पत्थर जैसा कत्थई कठोर दिखता है 
जबकि टेपियोका का रंग सफेद आकार बड़ा ।
............
आज ये सुथनी है 
............
मांसाहारियों के लिए वैकल्पिक शाकाहार है 
शाकाहारियों के मजेदार मांसाहार जैसा हर स्वाद परन्तु है सब्जी ।
.........(सुधा राजे )

जंगली हैं हम दिल से गँवार

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============
धरतीमाँ का ऋणकुछ तो हों उऋण 
-------------------------------------:सुधा राजे 
पावसोत्सव मनायें ,कुछ फलदार वृक्ष लगायें 
.............आज का वृक्ष 
बेर 
पेंदू बेर 
झरबेरी 
बदर 
~,~,~,~,~,~,~,~,~,~,
बेर का पेड़ कँटीला होता है और घनी झाड़ी दार गुँथी हुयी टहनियाँ होने से बेर तोड़ते समय हाथ में कांटे छिल जाते हैं । एक बार चंबल क्षेत्र के बरई पनिहार करई पाटई आरोन घाटीगांव में रहने घूमने का अवसर मिला तो पठारी मुरम पाटौर वाले गरम क्षेत्र में बाल्यकाल में हम सब गोष्ठ मनाने यानि पिकनिक पर जब जाते तो सबसे अधिक आकर्षण होते बेर ,चाहे वे पेंदू पबंदी एपल बेर हों या झरबेरी के या सादा देशी खटमिट्ठे बेर । 
बेर को अधपका पूरा पका और सुखाकर तथा उबालकर और पीसकर चूरन यानि बिरचन के तौर पर भी खाया जाता है । बेर के प्रमुख व्यंजनों में शरबत हलवा मुरब्बा अचार और जैम जैली मार्मेड आदि हैं । टाॅफी में भी बेर काम आता है । बेर बकरी ऊँट भेड़ आदि के लिये पसंदीदा पत्ती चारा है । बेर की लकड़ी बहुत मजबूत हल्की और बहुत समय तक चलने वाली होती है इसलिये बेंट और हत्थे तथा चारपाईयों किवाड़ों में भी लगती है । बेर का झाड़ खेत के लिये बाड़ रोक का काम करता है और बाऊण्ड्री की सुरक्षा भी । बेर पूरे भारत में हिमालय के अलावा कहीं भी लग सकता है जल्दी लगता है और कम देखरेख में पनप जाता है ।बेर के एपल बेर पबंदी बेर तो बहुत लाभ की खेती हैं यह संकरनस्ल है । पबंदी बेर मीठा बड़ा हरा सा और बहुत गूदेदार होता है । झरबेरी की झाड़ी होती है जबकि सादा बेर देसी स्वाद में सबसे बढ़िया और सुखाने पर पौष्टिक मेवा होता है । विटामिन बी सी का बहुत बढ़िया स्रोत है बेर । आयुर्वेद में इसके गुण सेब से अधिक माने गये हैं ।
नोट_:***
एपल बेर हाइब्रिड फलों का पौधा है

विटामिन सी, कैल्सियम, खनिज लवण और फॉस्फोरस जैसे तत्वों से फल भरा होने के कारण  बेहद लाभदायक।

बुवाई के बाद तेज वृद्धि तथा 6 माह में फल शुरू 
परन्तु पौधा छोटा होने के कारण यह फसल नहीं लेनी चाहिए।
एक पेड़ पर पहले साल 20 से 25 किलो उत्पादन
एक साल के बाद एक पेड़ 50 से 100 किलो फल देता है।
एक फल 50 से 125 ग्राम का
ये बेर खाने में सेब दिखने में भी सेब जैसे हैं।
इसमें कॉंटे नहीं लगते
फल बड़े तुड़ाई आसान व सस्ती
 लगभग 50 साल तक आमदनी लम्बी उम्र  कीमत परम्परागत बेर से ज्यादा मार्च व अक्टुबर में दो बार फूल  एक साल में दो बार फसल 

सेब में जितने न्यूट्रीशंस और एंटिऑक्सीडेंट होते हैं लगभग उतने ही गुणकारी तत्व एपल बेर में मौजूद हैं। 

तो चलो बेर कहीं भारत से मिट न जायें जहां भी जगह मिलें लगाये । बड़े गमले में भी बेर लग जाता है । न केवल स्वयं बल्कि औरों के लिये भी बेर लगायें यह शबरी का बेर है विदुर का भी । सादर निवेदन सहित ,
©®सुधा राजे

जंगली हैं हम दिल से गँवार

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धरतीमाँ का ऋणकुछ तो हों उऋण 
-------------------------------------:सुधा राजे 
पावसोत्सव मनायें ,कुछ फलदार वृक्ष लगायें 
.............आज का वृक्ष 
बेर 
पेंदू बेर 
झरबेरी 
बदर 
~,~,~,~,~,~,~,~,~,~,
बेर का पेड़ कँटीला होता है और घनी झाड़ी दार गुँथी हुयी टहनियाँ होने से बेर तोड़ते समय हाथ में कांटे छिल जाते हैं । एक बार चंबल क्षेत्र के बरई पनिहार करई पाटई आरोन घाटीगांव में रहने घूमने का अवसर मिला तो पठारी मुरम पाटौर वाले गरम क्षेत्र में बाल्यकाल में हम सब गोष्ठ मनाने यानि पिकनिक पर जब जाते तो सबसे अधिक आकर्षण होते बेर ,चाहे वे पेंदू पबंदी एपल बेर हों या झरबेरी के या सादा देशी खटमिट्ठे बेर । 
बेर को अधपका पूरा पका और सुखाकर तथा उबालकर और पीसकर चूरन यानि बिरचन के तौर पर भी खाया जाता है । बेर के प्रमुख व्यंजनों में शरबत हलवा मुरब्बा अचार और जैम जैली मार्मेड आदि हैं । टाॅफी में भी बेर काम आता है । बेर बकरी ऊँट भेड़ आदि के लिये पसंदीदा पत्ती चारा है । बेर की लकड़ी बहुत मजबूत हल्की और बहुत समय तक चलने वाली होती है इसलिये बेंट और हत्थे तथा चारपाईयों किवाड़ों में भी लगती है । बेर का झाड़ खेत के लिये बाड़ रोक का काम करता है और बाऊण्ड्री की सुरक्षा भी । बेर पूरे भारत में हिमालय के अलावा कहीं भी लग सकता है जल्दी लगता है और कम देखरेख में पनप जाता है ।बेर के एपल बेर पबंदी बेर तो बहुत लाभ की खेती हैं यह संकरनस्ल है । पबंदी बेर मीठा बड़ा हरा सा और बहुत गूदेदार होता है । झरबेरी की झाड़ी होती है जबकि सादा बेर देसी स्वाद में सबसे बढ़िया और सुखाने पर पौष्टिक मेवा होता है । विटामिन बी सी का बहुत बढ़िया स्रोत है बेर । आयुर्वेद में इसके गुण सेब से अधिक माने गये हैं ।
नोट_:***
एपल बेर हाइब्रिड फलों का पौधा है

विटामिन सी, कैल्सियम, खनिज लवण और फॉस्फोरस जैसे तत्वों से फल भरा होने के कारण  बेहद लाभदायक।

बुवाई के बाद तेज वृद्धि तथा 6 माह में फल शुरू 
परन्तु पौधा छोटा होने के कारण यह फसल नहीं लेनी चाहिए।
एक पेड़ पर पहले साल 20 से 25 किलो उत्पादन
एक साल के बाद एक पेड़ 50 से 100 किलो फल देता है।
एक फल 50 से 125 ग्राम का
ये बेर खाने में सेब दिखने में भी सेब जैसे हैं।
इसमें कॉंटे नहीं लगते
फल बड़े तुड़ाई आसान व सस्ती
 लगभग 50 साल तक आमदनी लम्बी उम्र  कीमत परम्परागत बेर से ज्यादा मार्च व अक्टुबर में दो बार फूल  एक साल में दो बार फसल 

सेब में जितने न्यूट्रीशंस और एंटिऑक्सीडेंट होते हैं लगभग उतने ही गुणकारी तत्व एपल बेर में मौजूद हैं। 

तो चलो बेर कहीं भारत से मिट न जायें जहां भी जगह मिलें लगाये । बड़े गमले में भी बेर लग जाता है । न केवल स्वयं बल्कि औरों के लिये भी बेर लगायें यह शबरी का बेर है विदुर का भी । सादर निवेदन सहित ,
©®सुधा राजे

जंगली हैं हम दिल से गँवार

जंगली हैं हम दिल से .....स्वभाव से गँवार ...(सुधा राजे 
,
परवल पृथक सब्जी है 
और कुँदरू पृथक 
परवल तनिक मँहगा मिलता है 
कुँदरू तनिक सस्ता 
सो बहुत माॅडर्न परिवारों के केवल फ्लैट कल्चर से परिचित लोग प्राय:
यह अंतर नहीं समझ पाते ,
परवल और कुँदरू दोनों का अचार ,सब्जी ,सलाद ,और मसाले लगाकर सुखाकर ,बाद में तल कर भूनकर ,स्वाद वर्धक के रूप में प्योग होता है ,
परन्तु हैं दोनों एकदम पृथक 
कुँदरू की बेलें 3 साल तक फल देतीं हैं , 
परवल भी बेल के रूप में गमले छत की ट्रे में लगाया जा सकता है ,खिड़की पर लटका सकते हैं ,
कुँदरू से खीरे के गुण प्राप्त होते हैं ,
परवल की सब्जी चटक बनती है और आलू आदि के साथ मिलाकर खाई जाती है ,एक शोध के अनुसार "स्वर्ण तत्व बथुआ और परवल में आंशिक रूप से पाया जाता है 
जबकि कुँदरू की कोंपलें मधुमेह नाशक हैं

Thursday 25 November 2021

स्मृतियों के अनहदनाद

कभी कभी बुरे दिन याद करना भी भला लगता है ',जब जवाब देने को रहता है ""उन सबको जब हाथ को हाथ नहीं दिखा तो पहला ''''चूहा कौन था जहाज पर से कूदने वाला ''
बचाने वाला तो तखते के फट्टे पर भी तैराकर किनारे लगा ही देता है ',
किंतु फिर '??यूँ ही आज यादों के वनवास में 
©®सुधा राजे

खेती बाड़ी साक सब्जी

जंगली हैं हम दिल से स्वभाव से गँवार (सुधा राजे )
  बुन्देलखंड छत्तीसगढ़ में सुर्ख गुलाबी ललाभ रंग का रतालू होता है जिसे ""कँदौरा ""कहते हैं ।
चिकिन मटन फिश करी वाली रेसिपी से पकाया बनाया जाता है 
लगभग वैसे ही कबाब कोफ्ते चोखा भुर्ता भरवाँ पराँठे पकौड़ी सब्जी बनाते हैं 
पान के पत्तों के आकार की लंबी लंबी बेलें बहुत फैलती हैं ,और उनपर बुलबुले जैसे फल भी लगते हैं परन्तु कंदौरा रतालू तो जड़ में लगता है ,
बाँस या लकड़ी डोरी का सहारा देकर बेलें चढ़ादी जातीं हैं 
हमने इसे गृहवाटिका में उगाया ,
जड़ से निकले कंद के टुकड़े काटकर गाड़ देने से बरसों तक कंदौरा चलता रहता है ,बेलें मर कर सूख जातीं हैं बरसात बाद फिर उसी जगह अपने आप निकलतीं हैं एक बार जहाँ लगा देते हैं कंदौरा चलता रहता है

Saturday 10 August 2019

PRIVACY NOTICE: Warning - any person and / or institution and / or Agent and / or Agency of any governmental structure including but not limited to the United States Federal Government also using or monitoring this website or any of its associated sites DO NOT have my permission to use any of my profile information nor any of the content contained herein including, but not limited to my photos, and / or the comments made about my photos or any other "picture" of art posted on my profile. You are hereby notified that it is strictly prohibited to disclose, copy, distribute, disclose or take any other action against me with regard to this profile and the contents herein. The previous prohibitions also apply to your employee, agent, student, or any personnel under your direction or control. The contents of this profile are private and confidential information and sensitive. The violation of my personal privacy is punishable by law. UCC 1-103 1-308// Sudha Raje//Sudha Raje the word plagiarism comes from Latin word kidnapping. in this context, plagiarism is stealing a person's ideas or writing . plagiarism may thus be defined as the unauthorized use or close imitation of the language and thoughts of another author and the representation of them as one's own work . plagiarism can appear in many different context but in the academic it is most commonly associated with writing and the borrowing of ideas without lending credit to the source from whence the material was taken. in other words ,plagiarism is very much like the theft in that something is taken or borrowed from an author or creator without credit being given . examples of plagiarism can vary but one common instance involves borrowing of ideas in exactly the same way they have been written by another person before. another example of plagiarism is when thoughts or words are paraphrased and used in someones writings or works. the punishmentsof plagiarism are harsh and it would not be worth it for anyone to commit it. accurate documentation may seem like a waste of time to you but you will waste a lot of time in defending yourself against an allegation of plagiarism be safe prevention is better than cure क्या है कापीराईट एक्ट ...... ये एक्ट लेखक को उसकी रचना का स्वामित्व प्रदान करता है ...कोई दूसरा व्यक्ति उसकी रचना की ... १. चोरी नहीं कर सकता २. अनुवाद नहीं कर सकता ३. पुनः तैयार नहीं कर सकता ४. सामंजस्य स्थापित नहीं कर सकता ५. प्रकाशित, प्रसारित व प्रदर्शित नहीं कर सकता यदि उक्त में से कोई भी हरकत कोई करता है तो वह चोरी मानी जाती है . इसके उल्लंघन करने अथवा उकसाने पर 6 माह से लेकर 3 साल तक की क़ैद तथा पचास हज़ार से लेकर दो लाख तक का जुर्माना हो सकता है ... रचना चोरी हो तो क्या करें ... ० .....निकटतम पुलिस थाणे में तुरंत रिपोर्ट करें ..... ०.....किसी वकील से मिलकर तुरंत केस डाले, सारे सबूत केस फाइल करने के साथ ही नत्थी कर दें ..ऐसे मामलों में तुरंत फैसला आता है .......इसलिए केस डालने से कतई न डरें... ०......उसके तमाम दोस्तों को पत्र लिख दें ..सबूत साथ में भेजें कि ये रचनाकार नहीं चोर है ... मैं फेसबुक ब्लॉगर या उससे जुड़े किसी भी सोशल प्लेटफार्म को ये अधिकार नहीं देता कि वो मेरे प्रोफाइल से भूत या भविष्य की ऐसी कोई भी जानकारी,तस्वीरें या टिप्पणीयों को सार्वजनिक करें या उसका दुरूपयोग करें। मेरे प्रोफाइल के सारे दस्तावेज व्यक्तिगत एवं गोपनीय हैं। अगर कोई भी इस गोपनीयता का उल्लंघन करते पाये जाते हैं तो (UCC 1308 etc Rome statute) इस नियम के तहत आपको दंडित किया जायेगा।












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Wednesday 7 August 2019

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Wednesday 17 July 2019

Gazal

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=265159233588868&id=100002843810788&sfnsn=mo

e
tere lafz rah rahe hain mere dil main
pyar bankar .teyree gazal piroyi
maine dil ka haar bankar . kis bat se
khafa hai kis bat ki khata hai ,tera
aksh hai zehan main sanson ka taar
bankar ,, aye dost dekhana too royega
meri khatir ,chal degi jab 'sudha'ye
sabro-karaar bankar.(missing you

Thursday 2 May 2019

ठाकुर पिद्दी~:ठकुराईन जिद्दी

राजपूतों का नैतिक पतन हो चुका है
जिनके स्वयं के समाज संगठित हैं उन सिखों, दलितों, क्रिश्चियनों, यहां तक कि कर्मकारों तक पर भी हाथ नहीं डाल सकता कोई
किंतु
क्षत्रिय दुल्हन की डोली दो चार लड़के लूट ले सकते हैं !
राह चलती छात्रा का अपहरण हो सकता है
छेड़छाड़ मामूली बात है
रायल हो या गरीब किसान परिवार की बेटी बहू पर बदनीयत रख सकते हैं! !!!क्षत्राणी पटाई जा रहीं हैं या न पटी तो दुनियां से हटाई जा रहीं हैं? !?!
दलित मुसलिम ईसाई कोई भी राजपूत कुमारी पर बदनीयती से आक्रमण, साजिश, हमला कर दे रहा है! !
कारण?
ब्राह्मण समाज की स्त्री रोजगारोन्मख है
सबसे अधिक सरकारी शिक्षिकायें हैं, फिर क्लर्क बैंक या अन्य व्यवसाय में गांव की हो या नगर की
कायस्थ को लगभग शतप्रतिशत व्यवसाय में हैं निठल्ली स्त्री कदाचित ही मिले
रहे बनिया, स्त्रियां या तो संपन्न व्यापारी की पत्नी बेटी हैं या स्वयं जाॅब रोजगार में
,
क्षत्रिय स्त्रियां जो शासन, सतीत्व, सत्ता, युद्ध शस्त्र शास्त्रार्थ हर क्षेत्र का चरम उत्कट उद्भट उदाहरण हैं,
,
गंवार रह गयीं
या मजबूरन कैदी
,
प्रतिष्ठा के नाम पर बन्दिनी बनाते जाने के कारण50% से अधिक राजपूत स्त्रियां पोस्ट ग्रेजुएशन तक भी नहीं पहुँच सकीं हैं,
,
पश्चिमी यूपी, दिल्ली राज्यक्षेत्र में
माईनोरिटी दलित संगठनों का ही राज चलता है
उदित, माया,भीम, रावन, जिग्नेश  जैसे लोग वहीं पनपे हैं,
राजपूत स्त्री गोबर बेचती है, कुट्टी काटती है, गन्ना छीलती है, दूध बेचती है, या पढ़ गयी तो ट्यूशन पढ़ा लेती है किसी प्रायवेट स्कूल में शादी ना होने तक
सब के सब भरतियां30 वर्ष से इस क्षेत्र में दलित माईनोरिटी संगठनों के हक में ही हुयीं हैं,
वरना तो बच् खुचे पसमान्दा मुल्लिम, पिछड़े वर्ग ओबीसी के लोग ले उड़े,
,बचा रजवाड़ा?
सयूपी बिहार बंगाल में
मोल की लुगाई लेकर आते हैं राजपूत जब विवाह नहीं होता,
लड़के सट्टा जुआ शराब चवन्नीछाप सड़क गुंडई करके गुटखा चबाते, मरियल बकरी की तरह मिमियाते हैं
नकल से या रकम भर के पास होते हैं
बचे
मेधावी लड़के टिकते नहीं देश में जन्मभूमि में
मीडियम लड़के, बिकाऊ माल एवरेज कीमत10 लाख,
चाहे दुकान हो किराये की या प्रायवेट कंपनी की20 हजार रुपये महीने की नौकरी
,
परिणाम
योग्य लड़कियों को समकक्ष वर नहीं मिलते
जनक सी प्रतिज्ञा करने वाले की सभा में वरण में ही हरण होने लगे हैं,
झूठी औकात दिखाकर शादी कर ली जाती है
ट्रिपल मास्टर्स लड़की मूर्ख लालची निहायत उजड्ड के घर की गुलाम बनकर मारपीट नशे में हिंसा, विवाह के नाम पर शर्मनाक बलात्कार या अद्धपूर्ण पागल नपुंसक मनोरोगी के बच्चे जनमने पर विवश होती है,
विवाह से मर्यादा प्रेम सिद्धान्त नैतिकता करतव्य गायब है
रह गयी है हक की हिंसा,
दहेज हक है
शराब मांसाहार बदचलनी हक है
स्त्रियों पर हिंसा हक है
अवधी कहावत है
""महरी के मारपीट बनलें भतारा, बहिनी के मारपीर सूरमा हजारी, घरहिं दुआरे नाच वीर कहलाबें
,
नाचते लड़के लडकियां सड़क की बारात में, धुत्त नशे में
मूँछ पगड़ी बड़े पद खिताब! !!
उँह
सब के सब समाज पर एक नौटंकी मात्र रह गये है
रीयल इंटेलीजेंस बिद ब्रेन एंड रिफोर्म आर नेवर गेटिंग प्लेस इन अवर कम्युनिटी.
साहस किसी भी लोमड़ समूह का बाघिन की बच्ची चबाने का यूँ ही तो नहीं आने लगा? ?
रहा मानसिक दुर्भाव? सो सिनेमा से साहित्य तक कम्युनिज्म के प्रचार के दौरान""बोर्जुआ बनाम मजदूर को दलित मुल्लिम बनाम राजपूत कर के दर्शाया जाकर गहरी ब्रेनवाश की चाल खेली जाती रही है
सब साजिशें कामयाब हो ही गयीं हैं
शराब पीकर घर की ठकुराईन को गालियां बककर हर जात के बिस्तर पर भेजने की कल्पना करके जलील करने वाले ठाकुर पिद्दीसाब,
कँवर सा बना सा राना सा सिंह सा राजा सा ,भले ही कहलें सुन ले लगालें
सूट नहीं करते अकसर व्यक्तियों पर ये सब शब्द
सही कहूँ तो बहुतायत ठाकुर बचे ही नहीं क्षत्राणी वरण के काबिल
अपने बीज सतऊ जात में रोपते फिरते रहे सब तो, ~,??गैर में बैर सगों में रार बराबरी क्यों न होती
गीता में चरित्र संयम और वीरता समाज सुधार की परमानेंट ठेकेदारी क्षत्रिय को दी गयी है,
मगर डी जे कमर लचकाते बना बाई सा हुकुम सा के लिये तो नहीं
कड़वी लगी हो तो एक ठर्रा और पीकर गटक लें
जहर मारना ही काम है हमारा नाम बस"सुधा"
एक सन्यासिनी लेखिका ©®सुधा राजे

Tuesday 30 April 2019

लेख: :सखा कृष्ण

कृष्ण आराध्य से अधिक वांछित पुरुष मित्र रहे हैं ,लगभग हर स्त्री पुरुष को एक कृष्ण सखा की आवश्यकता रही है ,जो  मन का हर भेद समझे हर राज जाने परंतु कभी किसी एक मित्र तक का भेद दूसरे पर प्रकट न करे ,न कभी तन छुये न वासना का रंचमात्र भी आये हाव भाव बनाव चाव लगाव में फिर भी कोली भर सकें हूकते मन की पीर पर जिसके काँधे घुटने और गोद तक में सिर धर कर रो सकें ,जो चिढ़ाये खिजाये भी और समझाये बुझाये भी ,जो परायी समझे  कि सीमा रेखा का पालन करे ,अपना हो इतना कि कोई विषय वस्तु ऐसी न हो कि उससे बतियायी न जा सके ,,,,,,
कृष्ण के रसिक रूप पर रीतिकाल के कवियों ने जमकर अपनी दरबारी हवसई भस थोपी परंतु कथासार तो यही है कि किशोरबालक कृष्ण जो एक बार बृज छोड़कर गये तो फिर राजकाज सुराज में ऐसे उलझे कि फिर मथुरा से हस्तिनापुर होते हुये द्वारिका जा बसे ,,,,
उस काल में विदेशी आक्रमण गौजयराष्ट्र के माध्यम से समुद्र पार से होने को रोका समुद्र पर नगरी बसाई ,,,,,
परॉंतु प्रशांत भूषण जैसे ,,,,,,,निहायत ओछी मानसिकता वालों को कृष्ण का बाल सखा कलाकार चपल बाल सेनानी रूप बालवीर रूप नहीं समझ आया न समाज सुधारक बालक दिखा ,,,ऐसों को  कान्हा और सड़कछाप सीटी मारते नंगई करते तेजाब फेंकते पीछा करते बलात्कार अपहरण वीडियो बनाने वाले और पढ़ना लिखना बाहर  घर छत कहीं रह पाना कठिन कर डालने वाले ,,,,,,वासना के अंधे नरपशु छिछोरों में कोई अंतर ही समझ नहीं आया ,,,,,!!!!!!!!
आयेगा भी कैसे अब कितने बचे हैं सचमुच के सखा कान्हावत नर ,जो नरत्व से परे हटकर मनुज रूप सखा हो सकें व्यक्ति रूप होकर परायी स्त्री या पराये पुरुष की सीमा भी मर्यादा में रख ले और लखन हनुमान की भाँति कृष्ण की भाँति पीडा़ सुख दुख भी समझ समझा बाँट लें ,,,,,,,
क्या प्रेम का यही रूप बचा है आज के लोगों के मस्तिष्क में ??? पीछा करो गालियाँ बको तेजाब फेंको जबरन वीडियो फोटो लेलो भद्दे अश्लील गंदे गीत गाओ फूहड़ इशारे करो रास्ता रोको ,नोचों खीचो रुलाओ ?????क्या ऐसा कोई उदाहरण कानाहा का है ?मीरा को कृष्ण चाहिये ,रुक्मणि को भी सुभद्रा को कुबजा को यशोदा को सत्यभामा को राधा को द्रौपदी को कुन्ती और गांधारी तक को कृष्ण चाहिये ,,,,,,
कृष्ण एक एक कृष्ण सबको चाहिये मुझे भी ,,,,,,,तुम नहीं समझोगे प्रशांतभूषण ,,,,क्योंकि तुम भीतर से रिक्त हो जो भरा है भीतर से वही पुकारता है मानता समझता है ,,,,,,,,©®सुधा राजे

Sunday 28 April 2019

कविता, गद्य चित्र: :लकड़ी पहाड़ और प्रकृति

तुमने देखी पहाङ पर खिलखिलाती लङकी ',
तुमने पहचानी मैदान में गुनगुनाती लङकी
तुम्हें भायी छत पर थिरकती लङकी '
तुमने एक रिश्ता बना लिया लङकी की "शराबी आँखों से, गुलाबी गालों से, हिरनी सी चाल से, और बलखाते बाल से,
कभी
कहीं
एक लङकी पहाङ पर टीले के पीछे, चट्टानों को हराकर पानी बना रही थी तुम नहीं देख पाये जब मैदानों में कोई लङकी लंबी फसलों को एक एक करके उगा रही थी और न तुम समझ सके जब छत पर से एक लङकी ने छलाँग लगा दी आकाश गंगा में तैरने को ',
आँखे बाल गाल और चाल की रंगत मादकता और सौन्दर्य के सुर थिरक कर विशाल पेङ बनकर "स्त्री "होते रहे मैदान पहाङ नदी आकाशगंगा और छतें सब मिलकर ढोते रहे "तुम्हें "और तुम कभी नहीं जान सके कि लङकियाँ पेङ बनकर "पैर जमाये खङी रही लोग फल फूल ईँधन और खाद लेते रहे "पेङ वहीं रहे "कैद "में जमीन की लङकियाँ चिङियाँ होकर आकाश नापती रहीं पेङ वहीं रहे और जब जब एक पेङ गिरा धरती पहाङ मैदान नदी और छतें "और वीरान सब कुछ और कमज़ोर हो गये "लङकियाँ "तारे बनकर आकाश में टिमटिमाती रहीं औरतें लालटेन बनकर घरों में ',और पेट बदन दिमाग की भूख के बाद जो बचा वह सारा कलुष कल के लिये खाद बनता रहा ',अब तक न लङकियों ने "पहाङ मैदान नदी पेङ आकाश को हराना छोङा है न जिन्दा रहने का बहाना छोङा है ',तुमने कभी महसूस किया कि जब धूप थी तो एक लङकी पेङ थी और जब भूख थी तो एक लङकी फल जब तुम पेङ काटते हो लकङियाँ बनकर लङकियाँ भी कटतीं है ये चिता पर जायेंगी या चली चूल्हे पर या बनेगी छप्पर कौन जाने
©®सुधा राजे

Friday 26 April 2019

दोहे: सुधा दोहावली

सुधा साँझ है मूक सी
तारे खा गये रात
बैरी है जो मीत थे ।
मीत करै ना बात।
सुधा चरौ बिरवार नै ।
हरौ भरौ सब खेत।
अब केवल बिरवार है।
खेतन ठाङी रेत।
सुधा जिन्हैं सौंपे मुकुट ।
बैई छील रये भाल
भाला जिनके हाथ दओ।
बैंच ऐंच रये माल।
सुधा कपट कैसो भरौ।
जा नृपनय में ठेठ।
सावन में उजङे सुआ।
चैतन उजङे पेट।
सुधा पाल कैं ब्याल खौं
विष दंतन खौं तोर।
तोर मोर फैलाऊत तै।
दे पुखरा में बोर।
सुधा काठ की देगची
बरू चढ़बै सौ बार।
जो नईयां निज देश को
बौ सत्तुर कौ यार।
सुधा कहौ घर घर जगैं
तरुण करुण रस छोङ।
रति रस छाँङो वारुणी।
वीर रौद्र पथ मोङ।
सुधा नीच सें कीच सें
मुंडा धर फिर बोल ।
काय नहीं रहे चौकसे।
तुपक धरैं कै ढोल??
©®Sudha Raje
बुंदेली
Jai Hind

Thursday 25 April 2019

गीत: मेरी बेटी ये नगर3

तेरे उस घर की मैं तामीर किया करती हूँ ',
जर्रे ज़र्रे को बेनज़ीर किया करती हूँ ',
तुझको दुनियाँ की बलाओं से बचायेगा वही ',
इल्म हासिल तू करे, क्या है ग़लत और सही ',
रौशनी दिल में रहे पीछे ज़माना होगा ''
मेरी बेटी तुझे घर छोङ के जाना होगा ',
ये तो तय है कि तेरा घर वो ठिकाना होगा ',
©®सुधा राजे

गीत...हमने तो हर बार मृत्यु से जीवन का वरदान लिया

मर जाने जैसा ही अनुभव है सपनों का मर जाना
दहन चिता जैसा ही तो है  "रिश्तों तक से डर जाना
मरे डरे टूटे रहकर भी नहीं झुकेंगे ठान लिया
हमने तो हर बार मृत्यु से जीवन का वरदान लिया
©®सुधा राजे

Wednesday 24 April 2019

गीत: मेरी बेटी ये नगर~2~

जब वो खाली सी निगाहों के सवाहिल से परे ',
खोजते होंगे मुक्म्मिल से किनारों को डरे
जब वो अश्क़ों के समन्दर में नज़र धुँधली सी ',
बुन रही होगी वो ख़्वाबों की सुबह उजली सी ',
तब तेरे सुर्ख लबों पै ये तराना होगा ',
मेरी बेटी तुझे घर छोङ के जाना होगा ',
ये तो तय है कि तेरा घर वो  ठिकाना होगा ',
©®सुधा राजे

गीत: मेरी बेटी ये नगर छोड़ के जाना होगा, तेरा अपना वो नया घर जो बनाना होगा

मैं सँवारूँगी, सजाऊँगी, निखारूँगी तुझे,
दिल के गोशे से हर इक सिम्त निहारूँगी तुझे ',
तू बङी होके सितारों के सफ़र पर होगी
पाँव मजबूत रहें अपनी डगर पर होगी ',
मेरे हर ख़्वाब को ताबीर में लाना होगा ',
मेरी बेटी तुझे घर छोङ के जाना होगा ',
ये तो तय है कि तेरा घर वो ठिकाना होगा ।
©®सुधा राजे

Tuesday 23 April 2019

दोहो: सुधा के दोहे

मैं मँगनारिन हरि घरै
माँगत रही सदैव ',
सुधा  हरिहिँ माँगत हरयेँ
भये हर दैव अदैव
©®सुधा राजे
का दैहौ का दै भये
का माँगू का नाँय ',
जो मँगतिन दाता करै
सुधा 'देओ ''कऊँ ''जाएँ 
©®सुधा राजे

Sunday 21 April 2019

सत्यकथा: आह और आँसू

आह और शाप
...........
सत्यकथा(सुधा राजे)
वह हमारा एक रिश्ते का संबंधी भाई था, भले ही जन्मभूमि और माता एक नहीं थी ,आयु में डेढ़ दशक बड़ा, और जन्म से भैया कहकर राखी बाँधते रहे हम,
एकाएक कुछ समय से महसूस हुआ कि"""स्पर्श अजीब होने लगे, और बातचीत के विषय भी"""
एक दिन आलीशान बंगले के बाहरी लाॅन में पढ़ने की पुरानी आदत आधी रात के बाद पढ़ने की, देखा वह भी  आया हुआ है और परिवार के अन्य पुरुषों के निकट ही मसहरी लगवा दी गयी है सेवकों द्वारा,  पढ़ते पढ़ते हम आराम करने के लिये दूसरे पलंग पर जा लेटे,
नींद तो नहीं ही आ रही थी सुबह11वीं की परीक्षायें थीं
तभी सीने पर हाथ रख दिया उस व्यक्ति ने,
नींद का बहाना था साफ समझ आ गया,
हम उठे और छत पर चले गये
मां दूसरे नगर रहतीं थी
बापू शिकार पर गये थे दल बल के साथ कई दिन बाद लौटने वाले थे
बंगले में सेवक प्रहरी और गुस्सैल भाई लोग थे
हम चुप चाप पृथक पृथक रहने लगे,
बरसों बरस राखी तो भी आता बँधवाने बेमन से बाँध देते
उस बार हम आई ए एस की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे
हमारे कक्ष तक किसी का भी प्रवेश निषिद्ध था
पहुँचना सरल नहीं था
नगार थानेे पौर  कमरे आँगन ड्योढ़ी दालान गैलरी भीतरी सीढ़ियां पार करके ही पहुँचा जा सकता था
हम
पढ़कर विश्राम कर रहे थे
परिवार में उत्सव था
बहुत गीत संगीत चल रहा था
मन कवि भावुक उदास कब प्रसन्न कब पता नहीं,
कोई चुभती बात पर भरे मन से कुछ लिख रहे थे
वह व्यक्ति आया
हाल चाल पूछा
हमने औपचारिकता निभाई,  वह अचानक चेहरे को छूने लगा""स्पर्श" बहुत बहुत गंदा लगा
और हम विद्युत की तरह उठे पूरी ताकत से धकेल कर कक्ष बंद कर लिया,
एक पल के समझ नहीं आया""भैया? ????और ये सब सोच! !!!!
,
इन हाथों पर तो हम राखी बांधते हैं, इस माथे पर तो हम तिलक करते हैं ???पांव छूता है ये व्यक्ति हमारे,  आयु में पिता के समकक्ष है! !!
ओह
हम सँभल कर ध़ड़धड़ाते हुये सीढ़ियां उतरते हुये नीचे उतरते चले गये
बाहर तक
फाटक पर वह व्यक्ति निकल ही रहा था कि हमने धीमी किंतु बहुत बहुत बहुत कठोर आवाज में कहा
सुन! !!
.
,
उसने भिखारी की तरह हाथ जोड़ दिये
,कांपने लगा
,
हमने कहा शक्ल मत दिखा अब कभी इस देहरी पर गंदे कदम मत रखना,
,
वह चला गय
घर में नृत्यगान उत्सव था
हम ने कठोर मन से सांस ली विघ्न न हो
वरना लाशें गिर सकतीं थीं तत्काल
परंतु मन से दर्द की कराह निकली
ओह ये हाथ राखी से सजाये हमने ये हमारे लिये क्या भावना रखता था
हे जगदंबे रक्षा करो
हम आगे पढ़ने!""प्रयाराज""चले गये
एक वर्ष बाद आई ए एस की परीक्षा देकर
,परिवार में एक हादसे के कारण लौटे तो,
देखा वह व्यक्ति, बापू के साथ बैठक में बैठा है,
ओह तो ये समझता है कि
किसी को पता नहीं
छवि बना ली जाये!
,
हमने
जैसा कि परिवार की युगों पुरानी परंपरा है हर किवाड़ हर सिरहाने हथियार रहता है
किवाड़ के पीछे हाथ डाला
भारी कुल्हाड़ा रखा था
पूरी शक्ति से उठाया और चीख कर दौड़ा दिया
वह
भागता चला गया
बापू ने बहुत पूछा क्या हुआ
हमने कह दिया बस्स ये जानवर यहां नहीं दिखना चाहिये
बापू ने इससे पहले कभी हमें इस तरह बे अदबी करते नहीं देखा था
वह व्यक्ति दूर प्रांत चला गया
बहुत बाद में आया तो बहाने बना डाले कि बहिन को गलत फहमी हो गयी हम तो आँसू पोंछना चाहते थे, धोखे से कोहनी लग गयी,
हमने किसी से कुछ नहीं कहा न पूछा
बरसों बीत गये
एक दिन समाचार मिला
सड़क दुर्घटना में अनजान कसबे में वह व्यक्ति मर गया चिंथड़े होकर,  सड़क से खरोंच कर अवशेष लाये गये,  चिता जली""रक्षाबंधन के दिन""शव में कीड़े पड़ गये थे कि अरथी उठाने वालों पर गिर रहे थे।....
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उस के बच्चे इंजी .डाॅक्टर हो गये
सबसे सहानुभूति और स्नेह रहा
बस हमने क्षमा भी कर दिया था
उसकी कोई बहिन नहीं थी
दूर का ही सही
रक्त संबंधी भी था
बहुत चर्चा नहीं की कि परिवार में कुटुंब में रक्तपात न हो
मानवपशु समझकर कि
जाको राखे जगदंबा की64 कला
सो का कर सके कोई बला
किंतु यह कदाचित ईश्वर प्रकृति और न्याय को मंजूर नहीं था,
उसके बच्चे निर्दोष थे सो बन गये
संवर गये
वह करोड़ों रुपये बैग में भरकर नयी संपत्ति खरीदने दूसरे प्रांत दूसरे नगर गया था साथ में पत्नी का भाई भी था वह भी मारा गया,  तब उसकी पत्नी का व्यवहार बहुत कड़वा था जिसने बहुत ही घटिया सोच दिखाई थी,
हमने35 वर्ष बाद
ये अंजाम देखा
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ये सब सच है ©®सुधा राजे