सुधा राजे :-गूंगे रुदन , जंगली गीत ,SUDHA RAJE :- Wild song, dreamy fly ; drenched verses , mute cry
Saturday 27 November 2021
जंगली हैं हम
जंगली हैं हम
Friday 26 November 2021
जंगली हैं हम
जंगली हैं हम
जंगली हैं हम
जंगली हैं हम दिल से गँवार
जंगली हैं हम दिल से गँवार
जंगली हैं हम दिल से गँवार
Thursday 25 November 2021
स्मृतियों के अनहदनाद
खेती बाड़ी साक सब्जी
Saturday 10 August 2019
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Wednesday 7 August 2019
Wednesday 17 July 2019
Gazal
Thursday 2 May 2019
ठाकुर पिद्दी~:ठकुराईन जिद्दी
राजपूतों का नैतिक पतन हो चुका है
जिनके स्वयं के समाज संगठित हैं उन सिखों, दलितों, क्रिश्चियनों, यहां तक कि कर्मकारों तक पर भी हाथ नहीं डाल सकता कोई
किंतु
क्षत्रिय दुल्हन की डोली दो चार लड़के लूट ले सकते हैं !
राह चलती छात्रा का अपहरण हो सकता है
छेड़छाड़ मामूली बात है
रायल हो या गरीब किसान परिवार की बेटी बहू पर बदनीयत रख सकते हैं! !!!क्षत्राणी पटाई जा रहीं हैं या न पटी तो दुनियां से हटाई जा रहीं हैं? !?!
दलित मुसलिम ईसाई कोई भी राजपूत कुमारी पर बदनीयती से आक्रमण, साजिश, हमला कर दे रहा है! !
कारण?
ब्राह्मण समाज की स्त्री रोजगारोन्मख है
सबसे अधिक सरकारी शिक्षिकायें हैं, फिर क्लर्क बैंक या अन्य व्यवसाय में गांव की हो या नगर की
कायस्थ को लगभग शतप्रतिशत व्यवसाय में हैं निठल्ली स्त्री कदाचित ही मिले
रहे बनिया, स्त्रियां या तो संपन्न व्यापारी की पत्नी बेटी हैं या स्वयं जाॅब रोजगार में
,
क्षत्रिय स्त्रियां जो शासन, सतीत्व, सत्ता, युद्ध शस्त्र शास्त्रार्थ हर क्षेत्र का चरम उत्कट उद्भट उदाहरण हैं,
,
गंवार रह गयीं
या मजबूरन कैदी
,
प्रतिष्ठा के नाम पर बन्दिनी बनाते जाने के कारण50% से अधिक राजपूत स्त्रियां पोस्ट ग्रेजुएशन तक भी नहीं पहुँच सकीं हैं,
,
पश्चिमी यूपी, दिल्ली राज्यक्षेत्र में
माईनोरिटी दलित संगठनों का ही राज चलता है
उदित, माया,भीम, रावन, जिग्नेश जैसे लोग वहीं पनपे हैं,
राजपूत स्त्री गोबर बेचती है, कुट्टी काटती है, गन्ना छीलती है, दूध बेचती है, या पढ़ गयी तो ट्यूशन पढ़ा लेती है किसी प्रायवेट स्कूल में शादी ना होने तक
सब के सब भरतियां30 वर्ष से इस क्षेत्र में दलित माईनोरिटी संगठनों के हक में ही हुयीं हैं,
वरना तो बच् खुचे पसमान्दा मुल्लिम, पिछड़े वर्ग ओबीसी के लोग ले उड़े,
,बचा रजवाड़ा?
सयूपी बिहार बंगाल में
मोल की लुगाई लेकर आते हैं राजपूत जब विवाह नहीं होता,
लड़के सट्टा जुआ शराब चवन्नीछाप सड़क गुंडई करके गुटखा चबाते, मरियल बकरी की तरह मिमियाते हैं
नकल से या रकम भर के पास होते हैं
बचे
मेधावी लड़के टिकते नहीं देश में जन्मभूमि में
मीडियम लड़के, बिकाऊ माल एवरेज कीमत10 लाख,
चाहे दुकान हो किराये की या प्रायवेट कंपनी की20 हजार रुपये महीने की नौकरी
,
परिणाम
योग्य लड़कियों को समकक्ष वर नहीं मिलते
जनक सी प्रतिज्ञा करने वाले की सभा में वरण में ही हरण होने लगे हैं,
झूठी औकात दिखाकर शादी कर ली जाती है
ट्रिपल मास्टर्स लड़की मूर्ख लालची निहायत उजड्ड के घर की गुलाम बनकर मारपीट नशे में हिंसा, विवाह के नाम पर शर्मनाक बलात्कार या अद्धपूर्ण पागल नपुंसक मनोरोगी के बच्चे जनमने पर विवश होती है,
विवाह से मर्यादा प्रेम सिद्धान्त नैतिकता करतव्य गायब है
रह गयी है हक की हिंसा,
दहेज हक है
शराब मांसाहार बदचलनी हक है
स्त्रियों पर हिंसा हक है
अवधी कहावत है
""महरी के मारपीट बनलें भतारा, बहिनी के मारपीर सूरमा हजारी, घरहिं दुआरे नाच वीर कहलाबें
,
नाचते लड़के लडकियां सड़क की बारात में, धुत्त नशे में
मूँछ पगड़ी बड़े पद खिताब! !!
उँह
सब के सब समाज पर एक नौटंकी मात्र रह गये है
रीयल इंटेलीजेंस बिद ब्रेन एंड रिफोर्म आर नेवर गेटिंग प्लेस इन अवर कम्युनिटी.
साहस किसी भी लोमड़ समूह का बाघिन की बच्ची चबाने का यूँ ही तो नहीं आने लगा? ?
रहा मानसिक दुर्भाव? सो सिनेमा से साहित्य तक कम्युनिज्म के प्रचार के दौरान""बोर्जुआ बनाम मजदूर को दलित मुल्लिम बनाम राजपूत कर के दर्शाया जाकर गहरी ब्रेनवाश की चाल खेली जाती रही है
सब साजिशें कामयाब हो ही गयीं हैं
शराब पीकर घर की ठकुराईन को गालियां बककर हर जात के बिस्तर पर भेजने की कल्पना करके जलील करने वाले ठाकुर पिद्दीसाब,
कँवर सा बना सा राना सा सिंह सा राजा सा ,भले ही कहलें सुन ले लगालें
सूट नहीं करते अकसर व्यक्तियों पर ये सब शब्द
सही कहूँ तो बहुतायत ठाकुर बचे ही नहीं क्षत्राणी वरण के काबिल
अपने बीज सतऊ जात में रोपते फिरते रहे सब तो, ~,??गैर में बैर सगों में रार बराबरी क्यों न होती
गीता में चरित्र संयम और वीरता समाज सुधार की परमानेंट ठेकेदारी क्षत्रिय को दी गयी है,
मगर डी जे कमर लचकाते बना बाई सा हुकुम सा के लिये तो नहीं
कड़वी लगी हो तो एक ठर्रा और पीकर गटक लें
जहर मारना ही काम है हमारा नाम बस"सुधा"
एक सन्यासिनी लेखिका ©®सुधा राजे
Tuesday 30 April 2019
लेख: :सखा कृष्ण
कृष्ण आराध्य से अधिक वांछित पुरुष मित्र रहे हैं ,लगभग हर स्त्री पुरुष को एक कृष्ण सखा की आवश्यकता रही है ,जो मन का हर भेद समझे हर राज जाने परंतु कभी किसी एक मित्र तक का भेद दूसरे पर प्रकट न करे ,न कभी तन छुये न वासना का रंचमात्र भी आये हाव भाव बनाव चाव लगाव में फिर भी कोली भर सकें हूकते मन की पीर पर जिसके काँधे घुटने और गोद तक में सिर धर कर रो सकें ,जो चिढ़ाये खिजाये भी और समझाये बुझाये भी ,जो परायी समझे कि सीमा रेखा का पालन करे ,अपना हो इतना कि कोई विषय वस्तु ऐसी न हो कि उससे बतियायी न जा सके ,,,,,,
कृष्ण के रसिक रूप पर रीतिकाल के कवियों ने जमकर अपनी दरबारी हवसई भस थोपी परंतु कथासार तो यही है कि किशोरबालक कृष्ण जो एक बार बृज छोड़कर गये तो फिर राजकाज सुराज में ऐसे उलझे कि फिर मथुरा से हस्तिनापुर होते हुये द्वारिका जा बसे ,,,,
उस काल में विदेशी आक्रमण गौजयराष्ट्र के माध्यम से समुद्र पार से होने को रोका समुद्र पर नगरी बसाई ,,,,,
परॉंतु प्रशांत भूषण जैसे ,,,,,,,निहायत ओछी मानसिकता वालों को कृष्ण का बाल सखा कलाकार चपल बाल सेनानी रूप बालवीर रूप नहीं समझ आया न समाज सुधारक बालक दिखा ,,,ऐसों को कान्हा और सड़कछाप सीटी मारते नंगई करते तेजाब फेंकते पीछा करते बलात्कार अपहरण वीडियो बनाने वाले और पढ़ना लिखना बाहर घर छत कहीं रह पाना कठिन कर डालने वाले ,,,,,,वासना के अंधे नरपशु छिछोरों में कोई अंतर ही समझ नहीं आया ,,,,,!!!!!!!!
आयेगा भी कैसे अब कितने बचे हैं सचमुच के सखा कान्हावत नर ,जो नरत्व से परे हटकर मनुज रूप सखा हो सकें व्यक्ति रूप होकर परायी स्त्री या पराये पुरुष की सीमा भी मर्यादा में रख ले और लखन हनुमान की भाँति कृष्ण की भाँति पीडा़ सुख दुख भी समझ समझा बाँट लें ,,,,,,,
क्या प्रेम का यही रूप बचा है आज के लोगों के मस्तिष्क में ??? पीछा करो गालियाँ बको तेजाब फेंको जबरन वीडियो फोटो लेलो भद्दे अश्लील गंदे गीत गाओ फूहड़ इशारे करो रास्ता रोको ,नोचों खीचो रुलाओ ?????क्या ऐसा कोई उदाहरण कानाहा का है ?मीरा को कृष्ण चाहिये ,रुक्मणि को भी सुभद्रा को कुबजा को यशोदा को सत्यभामा को राधा को द्रौपदी को कुन्ती और गांधारी तक को कृष्ण चाहिये ,,,,,,
कृष्ण एक एक कृष्ण सबको चाहिये मुझे भी ,,,,,,,तुम नहीं समझोगे प्रशांतभूषण ,,,,क्योंकि तुम भीतर से रिक्त हो जो भरा है भीतर से वही पुकारता है मानता समझता है ,,,,,,,,©®सुधा राजे
Sunday 28 April 2019
कविता, गद्य चित्र: :लकड़ी पहाड़ और प्रकृति
तुमने देखी पहाङ पर खिलखिलाती लङकी ',
तुमने पहचानी मैदान में गुनगुनाती लङकी
तुम्हें भायी छत पर थिरकती लङकी '
तुमने एक रिश्ता बना लिया लङकी की "शराबी आँखों से, गुलाबी गालों से, हिरनी सी चाल से, और बलखाते बाल से,
कभी
कहीं
एक लङकी पहाङ पर टीले के पीछे, चट्टानों को हराकर पानी बना रही थी तुम नहीं देख पाये जब मैदानों में कोई लङकी लंबी फसलों को एक एक करके उगा रही थी और न तुम समझ सके जब छत पर से एक लङकी ने छलाँग लगा दी आकाश गंगा में तैरने को ',
आँखे बाल गाल और चाल की रंगत मादकता और सौन्दर्य के सुर थिरक कर विशाल पेङ बनकर "स्त्री "होते रहे मैदान पहाङ नदी आकाशगंगा और छतें सब मिलकर ढोते रहे "तुम्हें "और तुम कभी नहीं जान सके कि लङकियाँ पेङ बनकर "पैर जमाये खङी रही लोग फल फूल ईँधन और खाद लेते रहे "पेङ वहीं रहे "कैद "में जमीन की लङकियाँ चिङियाँ होकर आकाश नापती रहीं पेङ वहीं रहे और जब जब एक पेङ गिरा धरती पहाङ मैदान नदी और छतें "और वीरान सब कुछ और कमज़ोर हो गये "लङकियाँ "तारे बनकर आकाश में टिमटिमाती रहीं औरतें लालटेन बनकर घरों में ',और पेट बदन दिमाग की भूख के बाद जो बचा वह सारा कलुष कल के लिये खाद बनता रहा ',अब तक न लङकियों ने "पहाङ मैदान नदी पेङ आकाश को हराना छोङा है न जिन्दा रहने का बहाना छोङा है ',तुमने कभी महसूस किया कि जब धूप थी तो एक लङकी पेङ थी और जब भूख थी तो एक लङकी फल जब तुम पेङ काटते हो लकङियाँ बनकर लङकियाँ भी कटतीं है ये चिता पर जायेंगी या चली चूल्हे पर या बनेगी छप्पर कौन जाने
©®सुधा राजे
Friday 26 April 2019
दोहे: सुधा दोहावली
सुधा साँझ है मूक सी
तारे खा गये रात
बैरी है जो मीत थे ।
मीत करै ना बात।
सुधा चरौ बिरवार नै ।
हरौ भरौ सब खेत।
अब केवल बिरवार है।
खेतन ठाङी रेत।
सुधा जिन्हैं सौंपे मुकुट ।
बैई छील रये भाल
भाला जिनके हाथ दओ।
बैंच ऐंच रये माल।
सुधा कपट कैसो भरौ।
जा नृपनय में ठेठ।
सावन में उजङे सुआ।
चैतन उजङे पेट।
सुधा पाल कैं ब्याल खौं
विष दंतन खौं तोर।
तोर मोर फैलाऊत तै।
दे पुखरा में बोर।
सुधा काठ की देगची
बरू चढ़बै सौ बार।
जो नईयां निज देश को
बौ सत्तुर कौ यार।
सुधा कहौ घर घर जगैं
तरुण करुण रस छोङ।
रति रस छाँङो वारुणी।
वीर रौद्र पथ मोङ।
सुधा नीच सें कीच सें
मुंडा धर फिर बोल ।
काय नहीं रहे चौकसे।
तुपक धरैं कै ढोल??
©®Sudha Raje
बुंदेली
Jai Hind
Thursday 25 April 2019
गीत: मेरी बेटी ये नगर3
तेरे उस घर की मैं तामीर किया करती हूँ ',
जर्रे ज़र्रे को बेनज़ीर किया करती हूँ ',
तुझको दुनियाँ की बलाओं से बचायेगा वही ',
इल्म हासिल तू करे, क्या है ग़लत और सही ',
रौशनी दिल में रहे पीछे ज़माना होगा ''
मेरी बेटी तुझे घर छोङ के जाना होगा ',
ये तो तय है कि तेरा घर वो ठिकाना होगा ',
©®सुधा राजे
गीत...हमने तो हर बार मृत्यु से जीवन का वरदान लिया
मर जाने जैसा ही अनुभव है सपनों का मर जाना
दहन चिता जैसा ही तो है "रिश्तों तक से डर जाना
मरे डरे टूटे रहकर भी नहीं झुकेंगे ठान लिया
हमने तो हर बार मृत्यु से जीवन का वरदान लिया
©®सुधा राजे
Wednesday 24 April 2019
गीत: मेरी बेटी ये नगर~2~
जब वो खाली सी निगाहों के सवाहिल से परे ',
खोजते होंगे मुक्म्मिल से किनारों को डरे
जब वो अश्क़ों के समन्दर में नज़र धुँधली सी ',
बुन रही होगी वो ख़्वाबों की सुबह उजली सी ',
तब तेरे सुर्ख लबों पै ये तराना होगा ',
मेरी बेटी तुझे घर छोङ के जाना होगा ',
ये तो तय है कि तेरा घर वो ठिकाना होगा ',
©®सुधा राजे
गीत: मेरी बेटी ये नगर छोड़ के जाना होगा, तेरा अपना वो नया घर जो बनाना होगा
मैं सँवारूँगी, सजाऊँगी, निखारूँगी तुझे,
दिल के गोशे से हर इक सिम्त निहारूँगी तुझे ',
तू बङी होके सितारों के सफ़र पर होगी
पाँव मजबूत रहें अपनी डगर पर होगी ',
मेरे हर ख़्वाब को ताबीर में लाना होगा ',
मेरी बेटी तुझे घर छोङ के जाना होगा ',
ये तो तय है कि तेरा घर वो ठिकाना होगा ।
©®सुधा राजे
Tuesday 23 April 2019
दोहो: सुधा के दोहे
मैं मँगनारिन हरि घरै
माँगत रही सदैव ',
सुधा हरिहिँ माँगत हरयेँ
भये हर दैव अदैव
©®सुधा राजे
का दैहौ का दै भये
का माँगू का नाँय ',
जो मँगतिन दाता करै
सुधा 'देओ ''कऊँ ''जाएँ
©®सुधा राजे
Sunday 21 April 2019
सत्यकथा: आह और आँसू
आह और शाप
...........
सत्यकथा(सुधा राजे)
वह हमारा एक रिश्ते का संबंधी भाई था, भले ही जन्मभूमि और माता एक नहीं थी ,आयु में डेढ़ दशक बड़ा, और जन्म से भैया कहकर राखी बाँधते रहे हम,
एकाएक कुछ समय से महसूस हुआ कि"""स्पर्श अजीब होने लगे, और बातचीत के विषय भी"""
एक दिन आलीशान बंगले के बाहरी लाॅन में पढ़ने की पुरानी आदत आधी रात के बाद पढ़ने की, देखा वह भी आया हुआ है और परिवार के अन्य पुरुषों के निकट ही मसहरी लगवा दी गयी है सेवकों द्वारा, पढ़ते पढ़ते हम आराम करने के लिये दूसरे पलंग पर जा लेटे,
नींद तो नहीं ही आ रही थी सुबह11वीं की परीक्षायें थीं
तभी सीने पर हाथ रख दिया उस व्यक्ति ने,
नींद का बहाना था साफ समझ आ गया,
हम उठे और छत पर चले गये
मां दूसरे नगर रहतीं थी
बापू शिकार पर गये थे दल बल के साथ कई दिन बाद लौटने वाले थे
बंगले में सेवक प्रहरी और गुस्सैल भाई लोग थे
हम चुप चाप पृथक पृथक रहने लगे,
बरसों बरस राखी तो भी आता बँधवाने बेमन से बाँध देते
उस बार हम आई ए एस की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे
हमारे कक्ष तक किसी का भी प्रवेश निषिद्ध था
पहुँचना सरल नहीं था
नगार थानेे पौर कमरे आँगन ड्योढ़ी दालान गैलरी भीतरी सीढ़ियां पार करके ही पहुँचा जा सकता था
हम
पढ़कर विश्राम कर रहे थे
परिवार में उत्सव था
बहुत गीत संगीत चल रहा था
मन कवि भावुक उदास कब प्रसन्न कब पता नहीं,
कोई चुभती बात पर भरे मन से कुछ लिख रहे थे
वह व्यक्ति आया
हाल चाल पूछा
हमने औपचारिकता निभाई, वह अचानक चेहरे को छूने लगा""स्पर्श" बहुत बहुत गंदा लगा
और हम विद्युत की तरह उठे पूरी ताकत से धकेल कर कक्ष बंद कर लिया,
एक पल के समझ नहीं आया""भैया? ????और ये सब सोच! !!!!
,
इन हाथों पर तो हम राखी बांधते हैं, इस माथे पर तो हम तिलक करते हैं ???पांव छूता है ये व्यक्ति हमारे, आयु में पिता के समकक्ष है! !!
ओह
हम सँभल कर ध़ड़धड़ाते हुये सीढ़ियां उतरते हुये नीचे उतरते चले गये
बाहर तक
फाटक पर वह व्यक्ति निकल ही रहा था कि हमने धीमी किंतु बहुत बहुत बहुत कठोर आवाज में कहा
सुन! !!
.
,
उसने भिखारी की तरह हाथ जोड़ दिये
,कांपने लगा
,
हमने कहा शक्ल मत दिखा अब कभी इस देहरी पर गंदे कदम मत रखना,
,
वह चला गय
घर में नृत्यगान उत्सव था
हम ने कठोर मन से सांस ली विघ्न न हो
वरना लाशें गिर सकतीं थीं तत्काल
परंतु मन से दर्द की कराह निकली
ओह ये हाथ राखी से सजाये हमने ये हमारे लिये क्या भावना रखता था
हे जगदंबे रक्षा करो
हम आगे पढ़ने!""प्रयाराज""चले गये
एक वर्ष बाद आई ए एस की परीक्षा देकर
,परिवार में एक हादसे के कारण लौटे तो,
देखा वह व्यक्ति, बापू के साथ बैठक में बैठा है,
ओह तो ये समझता है कि
किसी को पता नहीं
छवि बना ली जाये!
,
हमने
जैसा कि परिवार की युगों पुरानी परंपरा है हर किवाड़ हर सिरहाने हथियार रहता है
किवाड़ के पीछे हाथ डाला
भारी कुल्हाड़ा रखा था
पूरी शक्ति से उठाया और चीख कर दौड़ा दिया
वह
भागता चला गया
बापू ने बहुत पूछा क्या हुआ
हमने कह दिया बस्स ये जानवर यहां नहीं दिखना चाहिये
बापू ने इससे पहले कभी हमें इस तरह बे अदबी करते नहीं देखा था
वह व्यक्ति दूर प्रांत चला गया
बहुत बाद में आया तो बहाने बना डाले कि बहिन को गलत फहमी हो गयी हम तो आँसू पोंछना चाहते थे, धोखे से कोहनी लग गयी,
हमने किसी से कुछ नहीं कहा न पूछा
बरसों बीत गये
एक दिन समाचार मिला
सड़क दुर्घटना में अनजान कसबे में वह व्यक्ति मर गया चिंथड़े होकर, सड़क से खरोंच कर अवशेष लाये गये, चिता जली""रक्षाबंधन के दिन""शव में कीड़े पड़ गये थे कि अरथी उठाने वालों पर गिर रहे थे।....
.....
.....
..
उस के बच्चे इंजी .डाॅक्टर हो गये
सबसे सहानुभूति और स्नेह रहा
बस हमने क्षमा भी कर दिया था
उसकी कोई बहिन नहीं थी
दूर का ही सही
रक्त संबंधी भी था
बहुत चर्चा नहीं की कि परिवार में कुटुंब में रक्तपात न हो
मानवपशु समझकर कि
जाको राखे जगदंबा की64 कला
सो का कर सके कोई बला
किंतु यह कदाचित ईश्वर प्रकृति और न्याय को मंजूर नहीं था,
उसके बच्चे निर्दोष थे सो बन गये
संवर गये
वह करोड़ों रुपये बैग में भरकर नयी संपत्ति खरीदने दूसरे प्रांत दूसरे नगर गया था साथ में पत्नी का भाई भी था वह भी मारा गया, तब उसकी पत्नी का व्यवहार बहुत कड़वा था जिसने बहुत ही घटिया सोच दिखाई थी,
हमने35 वर्ष बाद
ये अंजाम देखा
...
...
ये सब सच है ©®सुधा राजे