हमारी एक
महिला मित्र का
रटा रटाया बयान
पढा मेरे स्टेटस पर
कि """बाप भाई तो बहुत
प्यार करते है हाँ पति जरूर
अधिकांश अन्याय करते है""
मेरा कोई व्यक्तिपरक
उत्तर नही है
लेकिन
एक सङे गले सिस्टम
को समझे बिना
ये बयान
देना बङा कच्चा होगा
हम जिस दौर मे है ये औरत
का स्वर्णिम युग भी है और
यपग प्रलय भी
क्योंकि
इस युग के लोग कई तरह के है
1--ऐसे लोग
जो बेटी पैदा होने
ही नही देते हो जाये
तो मार देते है
2--वे लोग
जो किसी साधन
की अनुपलब्धता की वजह
से मार नही पाये
मौका नही मिला हिम्मत
नही थी खतरा था जान
चली जाती पाप का डर
था इब
बो गयी तो क्या फेंक दे
3--चल भाई
जैसा बेटा वैसी बेटी बस
एक बेटा भी हो जाये
तो परिवार पूरा हो
3-मुझे बेटा हुआ
ही नही क्या करे तीन
चार पाँच
बेटी हो गयी अब
हो गयी तो पाल रहे है पर
काश बेटा होता
एक ही होता
5-- मुझे बेटी ही चाहिये
((कितने लोग
है))जो बेटी ही माँगे और
बेटा ना होने दे फिर
बेटी पर ही परिवार
पूरा कर ले????
अब आप एक पहलू असंभव
सोचिये बेटे का ऐबॉर्शन
????!!!!!!!
बेटी ही बेटी
ये तसवीर है ये भारत है
चिता को आग भी देने
लगी है बेटियाँ
और चाँद पर जा रही है
लेकिन
अभी ऑनर किलिंग में
हत्यायें बदस्तूर जारी है
बाप भाई प्यार करते है
यकीनन
पर कितनी नसीब
वालियाँ है
जिनके पिता ने
कभी पीटा ना हो
भाई के समान ही पोषण
मिला हो
भाई की तरह खेल और हर
चीज पर पहला हक
जब जो लड़कियाँ समय से
पहले ही ये मान लेती है
कि भाई ही युवराज है
तो कंपटीशन बंद
प्यार तो यूँ
हो ही जाता है पालतू
चीजों से भी
औऱ ये जो जान देना है
वो भी
बहिन बेटी की बजाय
समाज के बीच पवित्र
बेटी बहिन का बाप भाई
होने के लिये जादा है
किसी गैर जाति से
विवाह करने पर कितने
लोग साथ दे पाते है
क्या संपत्ति पर
बिना नाराज हुये हक दे
देगे
क्या विवाह के बाद उस
घऱ में बिना अपमानित त
हुये बिगङ
चुकी शादी छोङकर रह
लोगी
कितनी संगी होगी पिता की मुहब्बत
जब कुछ पाप भाई की तरह
का कर बैठो
strange is our country
men usually do not take
part in olympics, or in any
sports or games , take part
in cultural programs, or to
do any thing for the welfare
of the country.
all their strength (if they
express) is in the form of
any assault on a feeble
female.
salute to india, salute to
mankind !!!
किसी भी प्रकार
की बात जो किसी पुरूष
को बुरी लगती हो तुरंत
तिरिया चरित्तर कह
दी जाती है
मेरे बहुत से मित्रों ने अगर
तोता मैना के किस्से
बेताल पच्चीसी
सिहासन बत्तीसी
चंद्रकांता संतति
भूतनाथ
सुखसागर
और अलिफ़ लैला पढी हो
तो
ये भी पढा होगा
तुलसी ने तो हर
स्त्री पात्र से
कहलवाया है जिस पर हम
पृथक से चर्चा करेगे
क्या है
तिरिया चरित्तर???
एक ऐसा इल्जाम
जो कही भी लगाया जा सकता है
न
मसलन --एक नैसर्गिक तत्व है
प्यार जहाँ दो आकर्षित
मन परस्पर खिंचते है
पहल किसने की कोई
मायने नही लेकिन
किसी मोङ पर परिवार
समाज जाति धर्म
की दीवारे आङे आ जायें
लङकी पीछे हट जाये
तो तिरिया चरित्तर
लेकिन अगर लङका पीछे हट
जाये तो महान् कुरबान
लाले की जान तुच्छ मुहब्बत
को ठुकरा कर आने
वाला वीर
एक लङकी को लङका छेङ
रहा है वो मना करती है
कि ठीक है में भाई
को बताती हूँ
खट से
सहेली कहती तिरिया चरित्तर
दिखा रही है कल तक
तो कहता थी कित्ता cute
है
अब अगर वो दोस्ती करले
देख इसके तिरिया चरित्तर
जरा सा किसी ने लाईन
दी फौरन पट गयी
कुछ मामलों में ऐसा हुआ
कि पिता भाई समाज के
डर से जब दोनो पकङे गये
तो लङकी ने इलजाम धर
दिया लङके पर कि ये मुझे
छेङ रहा था लङके
की धुनायी हुयी लङकी की मरम्मत
और जबरन अवाँछित
शादी हो गयी
दंड
दोनो को मिला लेकिन
ये है तिरिया चरित्तर
परंतु जब लङका बङे आराम
से कह देता है मै तो इसे
लिफ्ट तक नही दे
रहा था ये ही मेरे पीछे
पङी थी और मुसकरा के चल
गे
देता है तब कौन
सी गाली है
अकसर रेप के प्रयास वाले
केस में एक लचर
सा बहाना होता रहा है
वह खुद
ऐसा चाहती थी उससे
संबंध थे वह बदचलन थी वह
कई लोगो के साथ संबंध
बना चुकी
जबकि
कानून साफ साफ कहता है
अगर
लङकी नाबालिग है तब
उसकी इच्छा से भी बनाये
गये संबंध रेप की श्रेणी में
आते है
चाहे वह पत्नी ही क्यों न
हो
लेकिन
क्या हमारा समाज इसे
मानता है??
एक चालीस वर्ष का पुरूष
आराम से बहका लेता है
नाबालिग कन्या को और
उस लङकी को ही बदचलन
कह कर मारपीट कर
किसी बेमेल वर के साथ
खोटे सिक्के की तरह
ब्याह देते है
ये
था उसका तिरिया चरित्र
कल एक लङकी जिसके साथ
कार खीच कर गैंग रेप हुआ ने
आत्म हत्या कर ली एक
माह बाद कटिंग
की फोटो मैने लगायी है
क्यो ये दोहरे मानदंड??
क्योंकि
ये संहिताये सब
स्वार्थी पुरूषों ने लिखी
इनका पुनर्लेखन हो
इतिहास के काले सफे
ही बांचना क्या ठीक है ?
एक लकड़ी से
सभी को हांकना क्या ठीक
है ?
बेशक ठीक है क्योंकि आज
भी
सबको सीता की तमन्ना है
और भारतीय नारी
होने
का ठीकरा 70%ॆआबामहिललाओं
की सहन शक्ति के दम
पकरखा है
एक नया नारी धर्म सर्व
स्वीकृत जब तक नही बनेगा
तुलसी दास रे दोहे
हर स्च्स्त्रपरस्यत्री पर
पत्थर मारते रह्गे
नया रोल मॉड पप
पुरूष को स्वीकृत
नहूी होगा
वो ताज महल बचायेगा वेद
पर इच
तरायेगा और नारी पकर
वही पुराने पैमाने
दुहरायेगा लेकिन
मौका लगते
ही अत्याचार से बाज
वही आयेगा
आज अगर जो नही उठोगे
आँगन भी जल जायेंगे
कल का सूरज
काला होगा
हम न बुलाने
आयेगें
आज अगर जो डर गये सोचो
कौन बचाने आयेगा
बेटी बहिन
माँओं का कातिल
हर कायर कहलायेगा
ज़र्रा जर्रा माँग रहा है
आधी आबादी का सच
तू व कहे पर वक़्त एक
तुझको भी थर्रायेगा
आज दामिनी और
कामिनी कल किस किस
की बारी है
क्या जाने किस
गली का कुत्ता किसे
फाड़कर खायेगा
बेटी बहिनों पर लाठी है
ज़ुल्म सितम है
पहरे हैं
अत्यारी जेल में सुख से
बिरयानी फरमायेगा
संसद राजभवन में छिपकर बैठे
रावण दुर्योधन
लोकतंत्र में लोक रो रहा
तंत्र क़हर बरसायेगा
पर्दे और ज़ुल्म देखे है
देखी आग चिताओं की
अरे!!! कापुरूष
क्या गोली से ये
सैलाब बहायेगा
ज़ौर ज़ुल्म की टक्कर से
संघर्ष का नारा
गूँजा है
अब इंसाफ छीन कर लेगे
दौर ये बदला जायेगा
सुधा सर्द रातों में पानी
पानी हो गयी ग़ैरत भी
जब औरत बंदूक उठा ले
मर्द
तो क्या कहलायेगा ©®
SudhaRaje
पुलिस रक्षक भी है माना
लेकिन
एक बडे
परिवर्तन की जरूरत है
क्योंकि
अकेली औरत थाने
कोतवाली पीडित होने
की दशा मे
नही जाना चाहती
हजारो अच्छे पुलिस
वालो मे सैकडो बुरे लोग
जो छुपे है
उनका जब तक
विभागीय इलाज
सख्ती से नही होगा जब
तक पुलिस
वाली नौकरी परोक्ष
लाभ का परिभाषक
बनी रहेगी ये विश्वास
बहाल नही होगा
मेरे मित्र जो कानून और
पुलिस से साबका रखते है
समझ सकते है विश्वास
बहाली के मायने
क्या है????
महिला पुलिस का खुद
पुलिस वाले मजाक बनाते
है
मेरी एक दोस्त ने तंग आकर
इस्तीफा दे दिया था और
मुझे पुलिस मे जाने
की इजाजत नही मिली
अक्सर तर्क होता है अरे ये
क्या अपराधी पकडेगी
इनकी रखवाली को हमे
जाना पडतै है
ओह ओह ओह
महिला पुलिस पुरूष
अपराधी पकडने को नही है
आज जिनपर अपराध
का इल्जाम है उन औरतो के
साथ कोई पुरूष हाथापाई
ना करे
कोई पुरूष तलाशी ना ले
कोई पुरूष मारपीट ना करे
कोई बयान
लिया जानावहो तब पुरूष
के सामने अगर ना कहने
वाली बात
हो तो महिला पुलिस से
कही जा सके
लाठी डंडा गिरफ्तारी महिला ही करे
महिला की
माफ करे
लेकिन मुझसे खुद एक
वरदीधारी का कहना था कि महिला पुलिस
से मन लगा रहता है
सब नही
पर बहुत सारे लोग गलत चल
रहे हो तब कर्तव्य है
कि जो जानता है वो कहे
लिखे बोले डर डर कर
ही सही
सच को स्वाकार
तो करो इलाज
भी हो लेगा
स्वप्न टूट फिर फिर जुरै जुरै
न मन के भाव
काया पर दिखते नही
मन के दुखते घाव
मन की तीखी पीर सा
नयन नयन ये नीर
अक्षर में कैसै भरे
हरे घाव गंभीर
शब्द भरी अतिवेदना
अर्थ निरर्थक आश
रस नीरस आँसे सुधा
अश्रु भये परिहास©®
SudhaRaje
हमारे
एक महान्
पत्रकार मित्र
का सही बयान आया
बहुत बढिया बात
लिखी बधाई
लेकिन
एक अलंकृत भाषा --+--IPC KI
DHARAAYEN TO IN POLICE
WALON KI RAKHAIL HOTI
HAIN
रखैल
हम पहले ही कह रहे है
कि जडे नारी के
प्रति विकृत सोच की
बहुत गहरी है
उपमायें कहाँ है मुहावरे
कहाँ है
कल एक विद्वान
जी का कमेंट था
ओम थानवी साब ले बयान
पर कि
कई लोगो को सस्पेंड
किया इसे कहते है --
रंडी का दंड फकीर को--
माफ करे यही आम भाषा है
जो संस्कृति कू वाहक है
ये
विद्वज्जनो की भाषा है
तो आम की कैसी होगी
जब देश नशे की गिरफ्त में है
सुनना हे तो मेरठ के बस
अड्डे पर सात बजे बाद खडे
हो जाना
एक समग्र क्रांति
नहीं
दोगला
मतलब जिसकी माँ के
दो पुरूष की भोग्या हो
और ये पता न हो कि ये
किस का पुत्र है
जिसमें
दोनो पृथक जाति से हों
ये
गाली भी स्त्री को ही लगती है
क्योंकि बनायी पुरूषों ने है
लङकियो!!!!!!!!
लग रहा है
हिंदुस्तानी मर्द की गैरत
जाग रही है
चिन्ता मुक्त हो जाओ
अब डरने की क्या बात
है????????
जहाँ कोई पागल
भेङिया बस्ती में घुस
जाता है तो गाँव वाले
आज।भी लाठी बल्लम
भाला लेकर झुंड बनाकर
पीछा करते है मार डाले
बगैर कोई घर नही लौटता
आग जलाके रात भर
पहरा देते है बारी बारी
लगता है
अब पौरूष जागा
देश का
अब कोई तुम पर गंदे फिकरे
नहीं कसेगा
अब कोई अश्लील मैसेज
नही करेगा
अब कोई भी
गंदे लैटर नही लिखेगा
अब कोई भी ब्लैक मेल करने
को धोखे से और कम्प्यूटर से
गंदी मूवी नहीं बनायेगा
और हाँ
अब तुझे भी सेहत बनाने
का मौका मिलेगा
अब काहे का डर?????
हर गली में रक्षक भी तो हैं
हा हा हा हा ही ही ही
अब भारतवासी
जाग चुके है
जलन टसन दहन क्या कहू
बोलो
इन मगरमच्छों में कितने
ही भेङिये भी है
तमाश बीन जो घर में
बेटी बीबी बहिन
को पीटते है बाहर गर्ल्स
कॉलेज की छुट्टी के वक्त
खङे हो जाते हैं
तुलसी उस काल मे आये जब
बौद्ध जैन शैव शाक्त
कापालिक और अघोर पंथ
के उदय के साथ इस्लाम
भी पाँव पसार
रहा थी वैष्णव धर्म खतरे में
कठोर यज्ञ और संस्कृत के
शिक्षण की कमी के कारण
पिछङने लगा था
पूरी निष्ठा से तुलसी ने
अद्भुत कविता में रामायण
का रोचक अनुवाद
किया और सार नैतिक
सामाजिक राजनैतिक
नियमों को स्मरणीय
दोहो चौपाईयों में लिख
डाला
जबकि
जायसी इसी काव में
प्रेमाश्रयी निर्गुण
रहस्यवादी भक्ति पर
पद्मावत लिख चुके थे
बेशक महान् लेखन जिसे
मार मार कर राम
कहाया जाकर
रामलीला और अखंड।पाठ
नवान्ह पाठ से घर घर
पहुचाया
और
हुआ यूँ कि संस्कृत से बिछुङ
चुकी
जनता भाषा बद्ध सरस
गीत महाकाव्य
को आसान रोचक
महसूस कर घर घर गाने लगी
वरना योग
ध्यान
जप
तप
कानून की एक एक मज़बूरी
अङियल
समाज
को स्वार्थी ठेकेदारों की देन
है
डॉ.राजेन्द्र प्रसाद
तलाक़ की व्यवस्था के
कट्टर खिलाफ थे
पंडिता रमाबाई
और रमाबाई रानाडे
का जीना हराम कर
दिया था ढकोसला वादियों ने
जब उन्होने
कन्या शिक्षा की मुहिम
जगायी
पं केशव धोंदो कर्वे
जो पूरी उम्र विधवाओं
को सती होने बचाकर
उनको आश्रम और विधुर से
पुनर्विवाह की मुहिम
चलाते रहे
अंत में
अपनी विधवा बेटी का विवाह
करने का साहस
नही जुटा पाये
पं बालकृष्ण जैसे तमाम
बुद्धिजीवी पत्रकार
विधवा विवाह के कट्टर
खिलाफ थे
आज भी लोग
विधवा का मुँह देखकर
अपशकुन।मानते है
बाँझ के हाथों शुभकार्य में
स्पर्श नही कराते
जबकि विधुर
या निसंतान पुरूष पर
इतना मानसिक
अत्याचार नही होता
आज
भी रजस्वला स्त्री लाखों घरों में
आटा चावल
पानी का घङा वही छू
सकती
आज भी
नाक कान औरत के
बिंधवाये जाते है
जबकि
वैदिक युग के बाद पुरूष ने ये
प्रथा त्याग दी कुछ
राजपूतों में कर्ण बेधन
का संस्कार है सो हीरे
सोने से
जबकि
केवल पूर्वाँचल की दलित
लङकियाँ नाक में कोई
गहना नही पहनती
वरना सारे हिंदुस्तान में ये
कीलें पहनना अनिवार्य है
दक्षिण में तो तीन।कीलें
और चाहे इसे ब्रेनवॉश
कहो या गुलामी का प्रतीक
आज भी कई कई कीलें कान
में पहनने की शौकीन
महिलायें कम नही
यूरोप में ये मर्जी है और पुरूष
स्त्री का कोई मजबूर
करारनामा नही
अफ्रीका में पुरष भी एक से
वस्त्र गहने पहनते है
क्या
आपमें
साहस है कि
बेटी के बालिग होने तक
उसके नाक कान
ना बिंधवाओ???
ये फैसला उसपर ही छोङ
दो
ये
गुलामी की निशानियाँ कुछ
तो कम हों
हमने जब ये मुहिम छेङी थी
तो क्या आलम था
शराब का माफिया औऱ
बस कुछ अनपढ़ औऱतों के दम
पर हम
लेकिन
कारवाँ बढ़ता गया लोग
आते गये
किन किन तरीकों से
हिम्मत तोङी जाती है
एक साफ सकारात्मक
अभियान की
सोचकर कोई भी पीछे हट
जाये
कन्यादान
महादान
?????????
दान किस चीज
का होता है???????
जो वस्तु
आपकी संपत्ति हो????
वैदिक
संस्कृति युवती को वर चुनने
का अधिकार देती थी।
किंतु बाद के।
स्वार्थी मीमांसको ने
नैसर्गिक प्रेम
का गला घोंट दिया
और
आज।
भी पिता को कन्यादान
करनी पङती है
पीले हाथ करके
ये घोषणा करनी पङती है
कि आज से तुम इसके
स्वामी हुये
जब।समय बदलता है
सबकुछ।बदलता है
किसी भी धर्म में
कन्या दान नहीं।होता
दो आत्माओं
देहों का परिवार चलाने के
लिये मिलन होता है ईश
साक्षी करके कसम
उठायी जाती है निभाने
की
अब रही बात
नाता निभान् की
तो वो किसी भी व्यक्ति की अपनी सोच
पर है टूटे हुये रिश्ते ढोना
और
मरी हुयी जिंदगी जीना कोई
भारतीय घरों में घुस कर देखे
सब नही
परंतु लाखो है
फर्क इतना है दूसरे मुल्कों में
वे लोग रिश्ते घसीटते नही
रही विवाहेत्तर संबंध
तो
ये ढकोसला आसपास
जरा नजर पसारिये आज
भी मिल
जायेगा मध्यकाल
तो बहुविवाह का था ही
वे लोग बस्ती में
भेड़िया घुस जाये?????
कुत्ता पागल होकर
काटने लगे?????
कोई आदम खोर जानवर
आ जाये???
तो क्या करते????
उस बाप
को वो लुटी पिटी बच्ची भी मिल
जाती
जिन्दा बच जाती
अब क्या मिलेगा
इंसाफ़??????
कब??? क्या अपनी आबरू
की रक्षा के सिर्फ़
नारी की जिम्मेदारी है??????
क्या ये सिर्फ़
नारी की लड़ाई है????????
तो क्यों नहीं इस
आक्रोश की गूँज सब
की आवाज़
नहीं होनी चाहिये??????
जो इस वक्त गुस्से में नहीं
वो मूक समर्थक ह
महिला मित्र का
रटा रटाया बयान
पढा मेरे स्टेटस पर
कि """बाप भाई तो बहुत
प्यार करते है हाँ पति जरूर
अधिकांश अन्याय करते है""
मेरा कोई व्यक्तिपरक
उत्तर नही है
लेकिन
एक सङे गले सिस्टम
को समझे बिना
ये बयान
देना बङा कच्चा होगा
हम जिस दौर मे है ये औरत
का स्वर्णिम युग भी है और
यपग प्रलय भी
क्योंकि
इस युग के लोग कई तरह के है
1--ऐसे लोग
जो बेटी पैदा होने
ही नही देते हो जाये
तो मार देते है
2--वे लोग
जो किसी साधन
की अनुपलब्धता की वजह
से मार नही पाये
मौका नही मिला हिम्मत
नही थी खतरा था जान
चली जाती पाप का डर
था इब
बो गयी तो क्या फेंक दे
3--चल भाई
जैसा बेटा वैसी बेटी बस
एक बेटा भी हो जाये
तो परिवार पूरा हो
3-मुझे बेटा हुआ
ही नही क्या करे तीन
चार पाँच
बेटी हो गयी अब
हो गयी तो पाल रहे है पर
काश बेटा होता
एक ही होता
5-- मुझे बेटी ही चाहिये
((कितने लोग
है))जो बेटी ही माँगे और
बेटा ना होने दे फिर
बेटी पर ही परिवार
पूरा कर ले????
अब आप एक पहलू असंभव
सोचिये बेटे का ऐबॉर्शन
????!!!!!!!
बेटी ही बेटी
ये तसवीर है ये भारत है
चिता को आग भी देने
लगी है बेटियाँ
और चाँद पर जा रही है
लेकिन
अभी ऑनर किलिंग में
हत्यायें बदस्तूर जारी है
बाप भाई प्यार करते है
यकीनन
पर कितनी नसीब
वालियाँ है
जिनके पिता ने
कभी पीटा ना हो
भाई के समान ही पोषण
मिला हो
भाई की तरह खेल और हर
चीज पर पहला हक
जब जो लड़कियाँ समय से
पहले ही ये मान लेती है
कि भाई ही युवराज है
तो कंपटीशन बंद
प्यार तो यूँ
हो ही जाता है पालतू
चीजों से भी
औऱ ये जो जान देना है
वो भी
बहिन बेटी की बजाय
समाज के बीच पवित्र
बेटी बहिन का बाप भाई
होने के लिये जादा है
किसी गैर जाति से
विवाह करने पर कितने
लोग साथ दे पाते है
क्या संपत्ति पर
बिना नाराज हुये हक दे
देगे
क्या विवाह के बाद उस
घऱ में बिना अपमानित त
हुये बिगङ
चुकी शादी छोङकर रह
लोगी
कितनी संगी होगी पिता की मुहब्बत
जब कुछ पाप भाई की तरह
का कर बैठो
strange is our country
men usually do not take
part in olympics, or in any
sports or games , take part
in cultural programs, or to
do any thing for the welfare
of the country.
all their strength (if they
express) is in the form of
any assault on a feeble
female.
salute to india, salute to
mankind !!!
किसी भी प्रकार
की बात जो किसी पुरूष
को बुरी लगती हो तुरंत
तिरिया चरित्तर कह
दी जाती है
मेरे बहुत से मित्रों ने अगर
तोता मैना के किस्से
बेताल पच्चीसी
सिहासन बत्तीसी
चंद्रकांता संतति
भूतनाथ
सुखसागर
और अलिफ़ लैला पढी हो
तो
ये भी पढा होगा
तुलसी ने तो हर
स्त्री पात्र से
कहलवाया है जिस पर हम
पृथक से चर्चा करेगे
क्या है
तिरिया चरित्तर???
एक ऐसा इल्जाम
जो कही भी लगाया जा सकता है
न
मसलन --एक नैसर्गिक तत्व है
प्यार जहाँ दो आकर्षित
मन परस्पर खिंचते है
पहल किसने की कोई
मायने नही लेकिन
किसी मोङ पर परिवार
समाज जाति धर्म
की दीवारे आङे आ जायें
लङकी पीछे हट जाये
तो तिरिया चरित्तर
लेकिन अगर लङका पीछे हट
जाये तो महान् कुरबान
लाले की जान तुच्छ मुहब्बत
को ठुकरा कर आने
वाला वीर
एक लङकी को लङका छेङ
रहा है वो मना करती है
कि ठीक है में भाई
को बताती हूँ
खट से
सहेली कहती तिरिया चरित्तर
दिखा रही है कल तक
तो कहता थी कित्ता cute
है
अब अगर वो दोस्ती करले
देख इसके तिरिया चरित्तर
जरा सा किसी ने लाईन
दी फौरन पट गयी
कुछ मामलों में ऐसा हुआ
कि पिता भाई समाज के
डर से जब दोनो पकङे गये
तो लङकी ने इलजाम धर
दिया लङके पर कि ये मुझे
छेङ रहा था लङके
की धुनायी हुयी लङकी की मरम्मत
और जबरन अवाँछित
शादी हो गयी
दंड
दोनो को मिला लेकिन
ये है तिरिया चरित्तर
परंतु जब लङका बङे आराम
से कह देता है मै तो इसे
लिफ्ट तक नही दे
रहा था ये ही मेरे पीछे
पङी थी और मुसकरा के चल
गे
देता है तब कौन
सी गाली है
अकसर रेप के प्रयास वाले
केस में एक लचर
सा बहाना होता रहा है
वह खुद
ऐसा चाहती थी उससे
संबंध थे वह बदचलन थी वह
कई लोगो के साथ संबंध
बना चुकी
जबकि
कानून साफ साफ कहता है
अगर
लङकी नाबालिग है तब
उसकी इच्छा से भी बनाये
गये संबंध रेप की श्रेणी में
आते है
चाहे वह पत्नी ही क्यों न
हो
लेकिन
क्या हमारा समाज इसे
मानता है??
एक चालीस वर्ष का पुरूष
आराम से बहका लेता है
नाबालिग कन्या को और
उस लङकी को ही बदचलन
कह कर मारपीट कर
किसी बेमेल वर के साथ
खोटे सिक्के की तरह
ब्याह देते है
ये
था उसका तिरिया चरित्र
कल एक लङकी जिसके साथ
कार खीच कर गैंग रेप हुआ ने
आत्म हत्या कर ली एक
माह बाद कटिंग
की फोटो मैने लगायी है
क्यो ये दोहरे मानदंड??
क्योंकि
ये संहिताये सब
स्वार्थी पुरूषों ने लिखी
इनका पुनर्लेखन हो
इतिहास के काले सफे
ही बांचना क्या ठीक है ?
एक लकड़ी से
सभी को हांकना क्या ठीक
है ?
बेशक ठीक है क्योंकि आज
भी
सबको सीता की तमन्ना है
और भारतीय नारी
होने
का ठीकरा 70%ॆआबामहिललाओं
की सहन शक्ति के दम
पकरखा है
एक नया नारी धर्म सर्व
स्वीकृत जब तक नही बनेगा
तुलसी दास रे दोहे
हर स्च्स्त्रपरस्यत्री पर
पत्थर मारते रह्गे
नया रोल मॉड पप
पुरूष को स्वीकृत
नहूी होगा
वो ताज महल बचायेगा वेद
पर इच
तरायेगा और नारी पकर
वही पुराने पैमाने
दुहरायेगा लेकिन
मौका लगते
ही अत्याचार से बाज
वही आयेगा
आज अगर जो नही उठोगे
आँगन भी जल जायेंगे
कल का सूरज
काला होगा
हम न बुलाने
आयेगें
आज अगर जो डर गये सोचो
कौन बचाने आयेगा
बेटी बहिन
माँओं का कातिल
हर कायर कहलायेगा
ज़र्रा जर्रा माँग रहा है
आधी आबादी का सच
तू व कहे पर वक़्त एक
तुझको भी थर्रायेगा
आज दामिनी और
कामिनी कल किस किस
की बारी है
क्या जाने किस
गली का कुत्ता किसे
फाड़कर खायेगा
बेटी बहिनों पर लाठी है
ज़ुल्म सितम है
पहरे हैं
अत्यारी जेल में सुख से
बिरयानी फरमायेगा
संसद राजभवन में छिपकर बैठे
रावण दुर्योधन
लोकतंत्र में लोक रो रहा
तंत्र क़हर बरसायेगा
पर्दे और ज़ुल्म देखे है
देखी आग चिताओं की
अरे!!! कापुरूष
क्या गोली से ये
सैलाब बहायेगा
ज़ौर ज़ुल्म की टक्कर से
संघर्ष का नारा
गूँजा है
अब इंसाफ छीन कर लेगे
दौर ये बदला जायेगा
सुधा सर्द रातों में पानी
पानी हो गयी ग़ैरत भी
जब औरत बंदूक उठा ले
मर्द
तो क्या कहलायेगा ©®
SudhaRaje
पुलिस रक्षक भी है माना
लेकिन
एक बडे
परिवर्तन की जरूरत है
क्योंकि
अकेली औरत थाने
कोतवाली पीडित होने
की दशा मे
नही जाना चाहती
हजारो अच्छे पुलिस
वालो मे सैकडो बुरे लोग
जो छुपे है
उनका जब तक
विभागीय इलाज
सख्ती से नही होगा जब
तक पुलिस
वाली नौकरी परोक्ष
लाभ का परिभाषक
बनी रहेगी ये विश्वास
बहाल नही होगा
मेरे मित्र जो कानून और
पुलिस से साबका रखते है
समझ सकते है विश्वास
बहाली के मायने
क्या है????
महिला पुलिस का खुद
पुलिस वाले मजाक बनाते
है
मेरी एक दोस्त ने तंग आकर
इस्तीफा दे दिया था और
मुझे पुलिस मे जाने
की इजाजत नही मिली
अक्सर तर्क होता है अरे ये
क्या अपराधी पकडेगी
इनकी रखवाली को हमे
जाना पडतै है
ओह ओह ओह
महिला पुलिस पुरूष
अपराधी पकडने को नही है
आज जिनपर अपराध
का इल्जाम है उन औरतो के
साथ कोई पुरूष हाथापाई
ना करे
कोई पुरूष तलाशी ना ले
कोई पुरूष मारपीट ना करे
कोई बयान
लिया जानावहो तब पुरूष
के सामने अगर ना कहने
वाली बात
हो तो महिला पुलिस से
कही जा सके
लाठी डंडा गिरफ्तारी महिला ही करे
महिला की
माफ करे
लेकिन मुझसे खुद एक
वरदीधारी का कहना था कि महिला पुलिस
से मन लगा रहता है
सब नही
पर बहुत सारे लोग गलत चल
रहे हो तब कर्तव्य है
कि जो जानता है वो कहे
लिखे बोले डर डर कर
ही सही
सच को स्वाकार
तो करो इलाज
भी हो लेगा
स्वप्न टूट फिर फिर जुरै जुरै
न मन के भाव
काया पर दिखते नही
मन के दुखते घाव
मन की तीखी पीर सा
नयन नयन ये नीर
अक्षर में कैसै भरे
हरे घाव गंभीर
शब्द भरी अतिवेदना
अर्थ निरर्थक आश
रस नीरस आँसे सुधा
अश्रु भये परिहास©®
SudhaRaje
हमारे
एक महान्
पत्रकार मित्र
का सही बयान आया
बहुत बढिया बात
लिखी बधाई
लेकिन
एक अलंकृत भाषा --+--IPC KI
DHARAAYEN TO IN POLICE
WALON KI RAKHAIL HOTI
HAIN
रखैल
हम पहले ही कह रहे है
कि जडे नारी के
प्रति विकृत सोच की
बहुत गहरी है
उपमायें कहाँ है मुहावरे
कहाँ है
कल एक विद्वान
जी का कमेंट था
ओम थानवी साब ले बयान
पर कि
कई लोगो को सस्पेंड
किया इसे कहते है --
रंडी का दंड फकीर को--
माफ करे यही आम भाषा है
जो संस्कृति कू वाहक है
ये
विद्वज्जनो की भाषा है
तो आम की कैसी होगी
जब देश नशे की गिरफ्त में है
सुनना हे तो मेरठ के बस
अड्डे पर सात बजे बाद खडे
हो जाना
एक समग्र क्रांति
नहीं
दोगला
मतलब जिसकी माँ के
दो पुरूष की भोग्या हो
और ये पता न हो कि ये
किस का पुत्र है
जिसमें
दोनो पृथक जाति से हों
ये
गाली भी स्त्री को ही लगती है
क्योंकि बनायी पुरूषों ने है
लङकियो!!!!!!!!
लग रहा है
हिंदुस्तानी मर्द की गैरत
जाग रही है
चिन्ता मुक्त हो जाओ
अब डरने की क्या बात
है????????
जहाँ कोई पागल
भेङिया बस्ती में घुस
जाता है तो गाँव वाले
आज।भी लाठी बल्लम
भाला लेकर झुंड बनाकर
पीछा करते है मार डाले
बगैर कोई घर नही लौटता
आग जलाके रात भर
पहरा देते है बारी बारी
लगता है
अब पौरूष जागा
देश का
अब कोई तुम पर गंदे फिकरे
नहीं कसेगा
अब कोई अश्लील मैसेज
नही करेगा
अब कोई भी
गंदे लैटर नही लिखेगा
अब कोई भी ब्लैक मेल करने
को धोखे से और कम्प्यूटर से
गंदी मूवी नहीं बनायेगा
और हाँ
अब तुझे भी सेहत बनाने
का मौका मिलेगा
अब काहे का डर?????
हर गली में रक्षक भी तो हैं
हा हा हा हा ही ही ही
अब भारतवासी
जाग चुके है
जलन टसन दहन क्या कहू
बोलो
इन मगरमच्छों में कितने
ही भेङिये भी है
तमाश बीन जो घर में
बेटी बीबी बहिन
को पीटते है बाहर गर्ल्स
कॉलेज की छुट्टी के वक्त
खङे हो जाते हैं
तुलसी उस काल मे आये जब
बौद्ध जैन शैव शाक्त
कापालिक और अघोर पंथ
के उदय के साथ इस्लाम
भी पाँव पसार
रहा थी वैष्णव धर्म खतरे में
कठोर यज्ञ और संस्कृत के
शिक्षण की कमी के कारण
पिछङने लगा था
पूरी निष्ठा से तुलसी ने
अद्भुत कविता में रामायण
का रोचक अनुवाद
किया और सार नैतिक
सामाजिक राजनैतिक
नियमों को स्मरणीय
दोहो चौपाईयों में लिख
डाला
जबकि
जायसी इसी काव में
प्रेमाश्रयी निर्गुण
रहस्यवादी भक्ति पर
पद्मावत लिख चुके थे
बेशक महान् लेखन जिसे
मार मार कर राम
कहाया जाकर
रामलीला और अखंड।पाठ
नवान्ह पाठ से घर घर
पहुचाया
और
हुआ यूँ कि संस्कृत से बिछुङ
चुकी
जनता भाषा बद्ध सरस
गीत महाकाव्य
को आसान रोचक
महसूस कर घर घर गाने लगी
वरना योग
ध्यान
जप
तप
कानून की एक एक मज़बूरी
अङियल
समाज
को स्वार्थी ठेकेदारों की देन
है
डॉ.राजेन्द्र प्रसाद
तलाक़ की व्यवस्था के
कट्टर खिलाफ थे
पंडिता रमाबाई
और रमाबाई रानाडे
का जीना हराम कर
दिया था ढकोसला वादियों ने
जब उन्होने
कन्या शिक्षा की मुहिम
जगायी
पं केशव धोंदो कर्वे
जो पूरी उम्र विधवाओं
को सती होने बचाकर
उनको आश्रम और विधुर से
पुनर्विवाह की मुहिम
चलाते रहे
अंत में
अपनी विधवा बेटी का विवाह
करने का साहस
नही जुटा पाये
पं बालकृष्ण जैसे तमाम
बुद्धिजीवी पत्रकार
विधवा विवाह के कट्टर
खिलाफ थे
आज भी लोग
विधवा का मुँह देखकर
अपशकुन।मानते है
बाँझ के हाथों शुभकार्य में
स्पर्श नही कराते
जबकि विधुर
या निसंतान पुरूष पर
इतना मानसिक
अत्याचार नही होता
आज
भी रजस्वला स्त्री लाखों घरों में
आटा चावल
पानी का घङा वही छू
सकती
आज भी
नाक कान औरत के
बिंधवाये जाते है
जबकि
वैदिक युग के बाद पुरूष ने ये
प्रथा त्याग दी कुछ
राजपूतों में कर्ण बेधन
का संस्कार है सो हीरे
सोने से
जबकि
केवल पूर्वाँचल की दलित
लङकियाँ नाक में कोई
गहना नही पहनती
वरना सारे हिंदुस्तान में ये
कीलें पहनना अनिवार्य है
दक्षिण में तो तीन।कीलें
और चाहे इसे ब्रेनवॉश
कहो या गुलामी का प्रतीक
आज भी कई कई कीलें कान
में पहनने की शौकीन
महिलायें कम नही
यूरोप में ये मर्जी है और पुरूष
स्त्री का कोई मजबूर
करारनामा नही
अफ्रीका में पुरष भी एक से
वस्त्र गहने पहनते है
क्या
आपमें
साहस है कि
बेटी के बालिग होने तक
उसके नाक कान
ना बिंधवाओ???
ये फैसला उसपर ही छोङ
दो
ये
गुलामी की निशानियाँ कुछ
तो कम हों
हमने जब ये मुहिम छेङी थी
तो क्या आलम था
शराब का माफिया औऱ
बस कुछ अनपढ़ औऱतों के दम
पर हम
लेकिन
कारवाँ बढ़ता गया लोग
आते गये
किन किन तरीकों से
हिम्मत तोङी जाती है
एक साफ सकारात्मक
अभियान की
सोचकर कोई भी पीछे हट
जाये
कन्यादान
महादान
?????????
दान किस चीज
का होता है???????
जो वस्तु
आपकी संपत्ति हो????
वैदिक
संस्कृति युवती को वर चुनने
का अधिकार देती थी।
किंतु बाद के।
स्वार्थी मीमांसको ने
नैसर्गिक प्रेम
का गला घोंट दिया
और
आज।
भी पिता को कन्यादान
करनी पङती है
पीले हाथ करके
ये घोषणा करनी पङती है
कि आज से तुम इसके
स्वामी हुये
जब।समय बदलता है
सबकुछ।बदलता है
किसी भी धर्म में
कन्या दान नहीं।होता
दो आत्माओं
देहों का परिवार चलाने के
लिये मिलन होता है ईश
साक्षी करके कसम
उठायी जाती है निभाने
की
अब रही बात
नाता निभान् की
तो वो किसी भी व्यक्ति की अपनी सोच
पर है टूटे हुये रिश्ते ढोना
और
मरी हुयी जिंदगी जीना कोई
भारतीय घरों में घुस कर देखे
सब नही
परंतु लाखो है
फर्क इतना है दूसरे मुल्कों में
वे लोग रिश्ते घसीटते नही
रही विवाहेत्तर संबंध
तो
ये ढकोसला आसपास
जरा नजर पसारिये आज
भी मिल
जायेगा मध्यकाल
तो बहुविवाह का था ही
वे लोग बस्ती में
भेड़िया घुस जाये?????
कुत्ता पागल होकर
काटने लगे?????
कोई आदम खोर जानवर
आ जाये???
तो क्या करते????
उस बाप
को वो लुटी पिटी बच्ची भी मिल
जाती
जिन्दा बच जाती
अब क्या मिलेगा
इंसाफ़??????
कब??? क्या अपनी आबरू
की रक्षा के सिर्फ़
नारी की जिम्मेदारी है??????
क्या ये सिर्फ़
नारी की लड़ाई है????????
तो क्यों नहीं इस
आक्रोश की गूँज सब
की आवाज़
नहीं होनी चाहिये??????
जो इस वक्त गुस्से में नहीं
वो मूक समर्थक ह