Wednesday 23 April 2014

रही बेइन्तिहां नफरत

रही बेइन्तिहां नफरत उसीसे औऱ् अदावत
भी ',
मगर वो दोस्त जो सबसे अलग
सा था कि याद आए ',
अभी तक हैं ज़ेहन में उसकी ''बातें और
तक़रीरे ',
तकाज़े भी ग़ुनाहों के कि कोई भूल
क्या जाये ',
©®सुधा राज

शाम कहती है

शाम कहती है कि साँसों की जरूरत
क्या है ',
औऱ् ज़रूरत ये बताती है कि ज़ीना है
अभी ',
जाओ सो जाओ तुम्हें नींद अगर आ जाये ',
दर्द साक़ी है नया मुझको तो पीना है
अभी ',ये रिदा है कि क़फ़न है कि है
रूपोशी ये ',
बेसवाहिल है सुधा
ख़स्ता सफ़ीना है अभी
©®सुधा राज

Tuesday 22 April 2014

स्त्री और समाज: गुन पारखी या मांस पारखी???

किसी स्त्री को ""मोटी ""कहना शर्मिन्दा करने
के आशय से एक भयंकर दोष है अपमान है
और सामाजिक बुराई है ।
देखा कि विवाह समारोह में आये
तमाम पुरुषों की तोंदें काबू से बाहर
थीं और सिर पर गिने चुने बाल थे
अकसर तीस तक आते आते ""खिज़ाब
""की शरण में थे ', चालीस तक आते आते
अनेक महानुभावों की दो या दो से
अधिक दाढ़े ''डेन्टिस्ट
को प्यारी ""हो चुकीं थी और पचास
तक के बहुत सारे महाशय ""मधुमेह
""की छत्रछाया में शक्कर आलू चावल
पत्नी से सन्यास ले चुके थे ',
फिर भी ""बहुत ""कम सत्य सज्जन ऐसे
थे जिन्होंने ""दावत में भोज कर
रही महिलाओं के मोटापे "आयु "मेकअप
"खुराक "बातचीत "और पति पत्नी के
मैच "
को तौहीन व्यंग्य कटाक्ष और भद्दे
मज़ाक का विषय नहीं बनाया!
ये है भारतीय सोच मध्यमवर्गीय उच्च
मध्यमवर्गीय और संपन्न समाज की ।
स्त्री?
मतलब ता ज़िन्दग़ी "एक काँच
की गुङिया सी नाज़ुक छुई मुई
षोडशी भर है क्या??????
विवाह के पूर्व और पच्चीस की आयु
तक या ""माँ ""ना बनने तक अकसर
स्त्रियाँ ''छरहरी ही रहतीं है
"मीठी आवाज और फुर्तीला बदन ',
किंतु विवाह होते ही
भारतीय "विवाहिताओं को जिस
तौर तरीक़े से जेल की तरह ससुराल में
ठूँस कर ""कैदे बामश्क्कत मुफ्त कराई
जाती है और अमूमन स्त्री चार से
पाँच बार तक गर्भ धारण करती है
भले ही दो या तीन संतान रहें गिनने
को फिर बार बार गप्भपात और
प्रसवोपरान्त पूरे नब्बे दिन
का विश्राम दिये बिना ही चूल्लहे में
झोंक दिया जाना ना कभी जिम जाने
की मोहलत ना कभी घर में दो घंटे
सुबह शाम टहलने जाने की संग साथ
इज़ाजत ', दिनभर बच्चे पति ससुराल
वालों की ही साधने में यौवन
की सुबह शाम बीत जाती हैं और जब
बच्चे हाईस्कूल तक पहुँचते है
तो बचता है ""रोटियाँ बेलने झाङू
पोंछा बरतन कपङे सिलाई बुनाई
कढ़ाई गेंहू चावल मालिश पानी पौधे
करते करते हो चुका ""सर्वाईकल
सपॉण्डुलाईटिस "कमर
पिंडली तलवों के दर्द और मासिक
की गङबङियाँ बच्चेदानी की समस्यायें
', माईग्रेन ऑस्टियोपोरोसिस
या ऑर्थॉराईटिस या गाऊट्स
या स्लिपडिस्क
या एनीमिया "डिप्रेशन
या हाईपरटेंशन या थायराईड्स
टांसिलाईटिस ',
और अल्जाईमर आदि ',
बज़ाय बढ़ती आयु के मुताबिक
स्त्री की यथा स्थिति का सम्मान
करने के "साशय '"फूहङपन से उसके
कैशोर्य यौवन ', की खोज प्रौढ़
या वृद्ध शरीर में करके
तुलना करना ', क्रूर अपराध है ',ये
विवश करता है स्त्री को सामाजिक
समारोह से ज़ी चुराने या अनावश्यक
तनाव पालकर खुद को फिट और सुंदर
बनाने के निर्थक श्रम के लिये!
कवि लेखक पत्रकार तक ""खुद
की तोंद टांट सलवटें "नहीं देखते
बस मोटी स्त्री का "भैंस "तक से
साम्य करके मज़ाक बनाने लगते हैं ।
ये घटिया मानसिकता है ।
है क्या कि ""छटाक "भर की औरत रहे
तो किशोर प्रोढ़ बूढ़े जवान किसी के
भी काबू में रहे ',लेकिन "बलिष्ठ
य़ा भारी स्त्री सस्ता शिकार
नहीं हो सकती ',सो एक हौआ बनाये
रखा जाता है "तन्वंगी "पतली नाज़ुक
कमज़ोर स्त्री बनो और सुंदर कहलाओ!
स्त्री के वजन बढ़ने मोटे हो जाने और
अकसर फिटनेस दुबारा हासिल
ना कर पाने की सैकङों वज़ह हैं
बाज़िब और विवशतायें भी ।
किंतु पुरुष तो अकसर मोटे होते
ही ""आलस और ओवर ईटिंग शराब और
बैठे रहने की वज़ह से हैं।
रहा भोजन तो पीठ पर कोई
नहीं बाँधता सब पेट में डालते हैं ।
पुरुष भी कम चटोरे पेटू खाऊ गपोङे
और चुगलखोर नहीं होते।
बात सिर्फ इतनी है
कि स्त्रियों पुरुषों की खिल्ली उङाने
का समय नहीं ।
बेचारी लक्ष्मीभाभीजी रुआँसी होकर
भीतर जा बैठी।
भूखप्यास नींद तो काया की जरूरत
है।
कोई मोटू तोंदू महीने भर उपवास करे
तो मर भले जाये इक्कीस
सालिया बदन तो नहीं ही मिलेगा।
भारी शरीर की स्त्री भी अगर
दो जून भोजन ना करे तो अशक्त
हो जाये।
हम निन्दा करते हैं ऐसे
असभ्यों की जो स्त्री की काया पर
व्यंग्य या बदज़ुबानी करते हैं
©®सुधा राजे

Friday 11 April 2014

लेख :-( स्त्री और समाज) जकङन संस्कारों की।

बङी अज़ीब है भारतीय
स्त्री की सोच जिस तक
जा पाना किसी पत्रकार या रिपोर्टर
के वश की बात नहीं "कई उदाहरण
हमारे अपनों के हैं ', आप
भी ऐसी कुछ स्त्रियों को जानते
ही होंगे ""जिनका विवाह पिता भाई
काका ने जहाँ जिसके साथ कर
दिया चुपचाप विदा हो गयीं "भय "के
साथ भरोसा लेकर ईश्वर मानकर
पति और तीर्थ मानकर ससुराल
को "सब सहा "और जब किसी दिन
पति चुपचाप छोङ गया
या साथ रहकर
भी ठुकरा दिया तो भाग्य मानकर
पीङा को चुपचाप पी लिया ', ताने
सहे परिवार के लेकिन समाज के बीच
हँसती मुसकराती सिंदूर भरे सुहागिन
के सब व्रत उपवास
पूजा करतीं रहीं ',अकेली रह
गयीं तो भी, ' अनिन्द्य ""रूप यौवन
सब होते हुये भी अखंड
समाधि की तरह समाज में रहकर
भी कमल पत्र सा वैराग धर
लिया जिसे न कोई
जाना ना समझा ""कई
स्त्रियाँ ऐसी हैं जिन्होंने
गरीबी काटी दुख उठाये कठोर श्रम
किये और खुद ""कमाकर
"अपना जीवन पाला "कई
स्त्रियाँ ऐसी हैं जो उपेक्षा त्याग के
बाद एक ही परिसर में पति के साथ
रहतीं रहीं बिन ब्याही सुहागिन और
ब्याहता कुमारी रहकर ""सुहागिन
परित्यक्ता ""पति की परिवार
की समाज की सब सेवायें
करतीं रहीं और कई बार तो अपने
ही ""पति ""के बच्चों की सेरोगेट
मदर रहकर कुँवारी माता बनी और
सबकी नजर में पति का मान रखे
रहकर तनहा जीवन काट दिया गोद
में बच्चे देखकर किसी के सामने
कोई सवाल ही नहीं ""कई
स्त्रियाँ ऐसीं जिनके
पति "दूसरी "स्त्री ले आये और
पहली ने दूसरी के लिये घर
का कोना खोज कर खुद को पति से
अलग कर लिया नाम भर
की सुहागिन बनी रही । हम खुद
ऐसी अनेक स्त्रियों को जानते है
हाथ की हथेली की तरह, '
न उनको मायके वालों ने मजबूर
किया न ससुराल वालों ने । वे
चाहतीं तो खुद दूसरा विवाह कर
सकतीं थीं । किंतु नहीं किया । न
पति ने रोका न ही वे मोहताज़
रहीं पति की "स्वावलंबी पढ़ी लिखी स्त्री जब
ठान ले कि मुझे दूसरा पुरुष जीवन में
नहीं आने देना है तो कोई लाख
कोशिश कर ले टस से मस
नहीं होगी । ये अपने मन
आत्मा संस्कार की बात है
"महानगरीय मॉडर्न परिवारों तक में
स्त्री अनेक ऐसी हैं ",न वे कहेगी न
कोई यकीन करेगा ', ये कोई
विरला ही करीबी समझे
कि कितनी ""जसोदाबेन ""तो पति के
साथ एक ही परिसर में रहतीं हैं ""ये
हिन्दुस्तान है ""मांडवियों का देश
""च्यवन की धरती ।
जसोदाबेन को ""किसने
रोका था कि दूसरा विवाह मत
करो???????? शिक्षिकायें तमाम ऐसी हैं
जो बच्चे लेकर तलाक़ लेकर
दूसरी शादी करती हैं ', ', ये मूल बात है
""कि न जसोदाबेन ने
दूसरी शादी की ना नरेन्द्र भाई ने फिर
भी ""फेरों का नाता न जसोदा नकार
सकी ""न नरेंद्र!!!!!!! ये ज़ुल्म न
मारपीट था न कोई घर से
निकासना ""नाबालिग
दंपत्ति का ""अलगाव ''''और ""विवाह
का भारतीय संस्कार """अन्याय हुआ
और सहने वाले ने ""उपचार खुद ही ।
सक्षम होकर नहीं किया ",हर गाँव नगर
दो चार जसोदा हैं हो सकता आप
की जानपहचान में हों और आपको सच
पता न हो ये हिंदुस्तान है
ऐसे अनेक विवाह ""लङकों ''के परिवार
वाले करा देते है ""हमारे ही कुटुम्ब
परिजन और पङौस के दो दशक पूर्व के
अधिकांश विवाह ऐसे हुये जिनमें
"""लङके लङकी ने विवाह से पहले एक
दूसरे की ""तसवीर तक
नहीं देखी थी """दयानंद
सरस्वती विवाह तय होने पर भाग गये ',
भगत सिंग भी "और ', ये
तानाबाना ""एक व्यक्ति नहीं एक
समाज की ""बुनाई है ""जहाँ स्त्री मन
पर जंजीरों से ज्यादा ""धर्म संस्कार
मान मर्यादा के बंधन है और वह उँह
आँह करे बिना ये वेदना "शांति से
पीती रहती है ',दुआयें
करती पति की लंबी उम्र की "
साहसी महिलायें दुस्साहसी और
स्वावलंबी भी ""सुहाग ""सतीत्व और
पति व्रत के लिये """पाषाणवत् ',दुःख
स्वेच्छा से वहन करतीं हैं ""कोई जान
तक नहीं पाता
किंन्तु ""समाज ""में शुचिता बनाये
रखने और ""स्त्री के पुनर्विवाह
पुनर्जीवन ""स्वयंवर "की जरूरत
को समझे बिना ही जब जब कुटुंब
परिवार जाति और सामाजिक
प्रतिष्ठा धार्मिक कर्त्तव्य स्वर्ग
नर्क का डर ""सतीत्व ""का अहंकार
और महिमामंडन जब सामने रहता है, '
तब संस्कार वश "तनहा "और स्वयं पर
क्रूरता से खुद ही हर खुशी से वंचित
रहकर एकाकी मरुस्थलीय जीवन
"सबसे बिना कहे बल्कि सबको खुश
और दांपत्य में दर्शाकर जीने
वाली लाखों स्त्रियाँ आज भी हैं ।

कई स्त्रियाँ ऐसी हैं जिनके
पिता माता परिवार पति और ससुराल
वाले तक "न सही सहर्ष परंतु
पारिस्थितीय समझौते के तहत कह देते
हैं कि ""स्त्री दूसरी शादी कर ले, ' परंतु
स्त्री मन भावना बुद्धि अहं और
संस्कार की जकङन छोङकर
किसी भी तरह दूसरे को "स्वीकार कर
ही नहीं पाती "ना ही करना चाहती है
वह खुद में एक कठोर
"सती "देखना चाहती है और यही "वजह
है कि ऐसी अनेक स्त्रियाँ मर खप
जातीं हैं किंतु एक टूटे विवाह से बाहर
कभी बाहर
नहीं निकलती विवाहिता बनी रहती हैं।
©®सुधा राजॆ

लेख :- (श्रंखला :- स्त्री और समाज) स्त्री के प्रति हिंसा के मायने और मुखियागीरी के सस्ते शिग़ूफे "

""कभी कभी ""लङके
""गलतियाँ करते हैं!!!!!!!!!!!
रेप, '
किसी ""नेता ""मुख्यमंत्री ""पार्टी लीडर
की बेटी पोती धेवती भांजी बहिन
बेटी का ', हो ',
या
', किसी गरीब मिडिल क्लास मजदूर
दुकानदार की परिजन
लङकी का """"ऐसा बयान
सिवा क्रूर लैंगिग हिंसा भेदभाव
स्त्री के ""दैहिक अधिकार
की ""क्रूर हत्या ""
का समर्थन के सिवा कुछ भी नहीं ''
कोई भी "मानव " ऐसे विचार
का समर्थन नहीं कर
सकता कि ""लङके रेप करते हैं
तो ""लङकपन की भूल है ""
नाबालिग बच्चियों दुधमुँही कन्याओं
से लेकर बूढ़ी औरतों तक के क्रूर
बलात्कार तेजॉब हमले और ऑनर
किलिंग जिस प्रांत में सबसे अधिक
हो जहाँ ', सांप्रदायिक दंगे में सबसे
पहला शिकार ""लङकियाँ ""और दंगे
की वजह तक लङकियाँ हों ",
वहाँ ""आधी आबादी के खिलाफ
ऐसा बयान!!!!!!
चुनाव परिणाम जो भी एक मानव
होने के नाते हम ऐसे बयान
की "भर्तस्ना करते हैं ',
लङकियाँ समझे कि ""देश के नेताओं
की "सोच " कैसी है ""उनके ऊपर
हो रहे ""जुल्म के प्रति '
प्रेम विवाह ', घर से
भागना ', अन्य मजहब जाति में विवाह ',
लङके लङकियों के ""परस्पर
सहमति के अफेयर '''''इत्यादि भूल
गलती आदि हो सकते हैं
वहाँ ""लङकी ""भी बराबर की ग़ुनहग़ार
है ''किंतु जहाँ ""किसी भी आयु
की स्त्री का जीरो से अस्सी नब्बे तक
की आयु में दुर्दान्त रेप
'हो जाता हो कहीं भी कभी भी, 'उस देश
का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने
वाला ''कोई लीडर ""आधी दुनियाँ पर
ज़ुल्म को ""लङकों की भूल गलती कैसे
कह सकता है!!!!! और कहा है
तो """आधी आबादी ""जवाब माँगे ',
कोई "लङकी " अपना जीवन पवित्र
रहकर गुजारना चाहती है '''तब कोई
पुरुष ताकत और जोर जबरदस्ती से बल
प्रयोग करके उसकी मर्यादा भंग
करता है तो चाहे वह लङका हो या प्रौढ़
बूढ़ा हो या जवान """"कठोर और
अधिकतम दंड मिलना ही चाहिये """"ये
संस्कार समाज दे माँ बाप दें
कि ""बलात्कार मतलब ""सजाये मौत
या आजीवन कारावास
जोर जबरदस्ती गैंग रेप ', दंगों में रेप
'कम्युनल हिंसा में रेप प्रतिशोध में रेप
',', ये रोती कलपती दया भीख
माँगती ईश्वर और रिश्तों की दुहाई
देती विवश भयभीत स्त्री पर अधिकतम
टॉर्चर है "मौत और बलात्कार में
"स्त्री के लिये कोई अंतर नहीं '''ये सब
लङकपन की भूल नहीं ""जो ऐसा कहते
समझते हैं """वे सब नेता या पत्रकार
लेखक या व्यक्ति स्त्री या पुरुष
"""हिंसक सोच वाले अन्यायी हैं
जहाँ तक ये सूचना पहुँचेगी हर
लङकी ""खौल उठेगी ""हर संस्कारवान
भाई पिता काका मामा और ""मानव
""आग बबूला हो उठेगा """ऐसा कोई
कैसे सोच सकता है जिसके अपने घर में
""बहू बेटियाँ पोतियाँ है!!!!!
अपराध को """रोकने """और
पीङितों को न्याय देने की बजाय
""""जो जुल्म और अत्याचार को ""भूल
गलती क़रार दे ""वह कोई भी हो ""हर
स्त्री की निन्दा का पात्र है
नेता? मतलब
"""लङकियों का नेता नहीं क्या?
सुरक्षा कमजोर को मिले और
प्रतिभा को अवसर कमजोर
को सहारा और पीङित को न्याय
""इसीलिये """राजनीति सरकार और
मुखिया ""संस्था की स्थापना हुयी ताकि ""मत्स्य
न्याय न हो '
लाखों दामिनियाँ हैं हिन्दोस्तान में
""दोयम दरजे के ही नागरिक
सही """किंतु लानत्त है हर बेटी वाले
को हर बेटी को जो ऐसे
""नेता अभिनेता और व्यक्ति की सोच
को "मोमबत्ती से न जला दे ""भाङ में
जायें दल चुनाव सरकार और आरक्षण
""""लैंगिक हिंसा के समर्थक "हाय हाय
"
आप ही कहिये """बजाय
सामाजिक जागरुकता बढ़ाने और
स्त्री शिशु से वृद्धा तक """सम्मान
सुरक्षा न्याय की गारंटी देने के ""कोई
अपराधियों को बचाने और भूल
गलती मानकर ' बख्शने की बात करे
तो """स्त्रियों को धिक्कार और
निन्दा क्यों नहीं करनी चाहिये?
जो ऐसा ""सोच सकता है वह ""बहू
बेटी को क्या मान देगा?? दया की पात्र
हैं ऐसे परिवार की बहू बेटियाँ ',
यही बात है ""ऐसे लोग ',या बचे रहे
अपराधी हैं या अपराधी के सगे
या हिमायती " वरना ""भारतीय
कभी स्त्री की अस्मत पर हाथ डालने
वाले को क्षमा नहीं करते
यही ""संस्कार है ""वैश्विक लॉ के
मुताबिक भी लैंगिक हिंसा ज़ुर्म हैं
सवाल ये नहीं है
कि ""बलात्कारी """को सज़ा क्या दी जाये,,
सवाल ये है ""कि स्त्री को अपने तन
मन पर पूरा स्वतंत्र एकाधिकार है
कि नहीं ""अगर है '''तो कोई
सवाल ये
नहीं कि """सज़ा फाँसी हो या बीस साल
कैद या आजीवन कारावास
या ""बधियाकरण ""।सवाल है """सभ्य
जगत में राष्ट्र और कानून
की अवधारणा की उत्पत्ति के पश्चात
भी ""अगर स्त्री को खुद अपने
ही शरीर पर अनन्य अधिकार
नहीं मिला है तो """""ये दरिनिदगी है
क्रूरता है अन्याय है जुल्म है घोर
हिंसा है """"""फाँसी का विरोध करने
वाले ढोंगी उस """हिंसा ''''को जायज
कैसे ठहरा सकते है जो अपनी आबरू
बचाने और बलात्कार गैंग रेप झेलने के
दौरान से लेकर अदालत अस्पताल
समाज के बीच बलात्कार हुआ
प्रमाणित करने में
""स्त्री """झेलती है?????? सेक्स??
राजी खुशी प्रेम और विवाह या अफेयर
के अलावा कहीं भी जबरन हिंसा है!!!!
सामाजिक ताने बाने में वेश्या और
कुलटा की जब जगह
नहीं '''तो बलात्कारियों से
हमदर्दी करने की जगह क्यों है????

कुछ तथाकथित
अति बुद्धिजीवियों को लगता है
कि मानव जीवन में पशुवत मुक्त
यौनाचार स्वछन्द होना चाहिये
ताकि कोई भी कभी भी कहीं भी किसी के
साथ भी कुछ भी कर सके और ये सब
प्राकृतिक है ।प्राकृतिक तो शौच और
मलमूत्र त्याग भी है तो जब जहाँ जिसे
हाजत हो वही बैठ जाये??बेडरूम किचिन
सङक बाजार गली चौराहे पर??कुछ
लोगों को लगता है कि ', मादा नर संबंध
केवल दैहिक आधार पर ही टिकते हैं उन
लोगों की समझ में ये कभी नहीं आ
सकता कि ऐसे लाखों जोङे हैं जिनके
बीच बच्चे हैं दैहिक रिश्ते हैं परिवार है
और धन संपत्ति किंतु फिर भी नहीं है
तो ""प्रेम अपनापन और सिंक अहसास
एक होने का "जबकि ऐसे लाखों लोग
मिलेगे कि जिनके दैहिक रिश्ते नहीं और
नहीं परस्पर दैहिक स्पर्श तक
की भावना फिर भी मन से मन का तार
जुङा दुख में दुख और सुख में सुख है
',मानव जीवन में "सेक्स है किंतु ये
सबकुछ नहीं है । स्त्री देह में पंद्रह
वर्ष तक ये सब बातें नहीं रहती पुरुष
देह में भी लगभग चौदह से पंद्रह वर्ष
तक ये सब बातें नहीं रहतीं । फिर
भी ""भारत में लाखों ""अबोध
लङकियों की बलात्कार के बाद
हत्या कर दी जाती है ।हजारों अबोध
लङके कुकर्म करके बच्चाबाज़ी में मार
डाले जाते हैं ''''''''''ये सेक्स डिजायर
पूरी करने का कौन सा रूप है????
लाखों लङकियाँ मासूम आयु में चुराकर
वेश्यालय में बेच दीं जातीं हैं और बर्बर
बलात्कार के बाद
वेश्या बना दीं जाती है ",अभी गत
सप्ताह महाराष्ट्र में दो लङकियों ने
पेशा करने से इनकार
किया तो उनको जलाया गया और
छातिया काट दी गयी ', ये सेक्स
डिजायर पूरी करने का कौन
सा प्राकृतिक रूप है?ऐसा कहने वाले
क्या अपने घऱ की बेटी बहिन
बीबी माँ को भी ""स्वछंद सेक्स
डिजायर पूरी करने की छूट देगें?वे
क्यों सोचते हैं कि वे सब एक ही पुरुष
की वफ़ादार बनकर रहें?
सभ्यता का मूलमंत्र है जियो और जीने
दो "तुम्हारी आजादी वहाँ बंद है
जहाँ दूसरे की आजादी को हिंसक तरीके
से छीना जाये "
©®सुधा राजे
""कभी कभी ""लङके
""गलतियाँ करते हैं!!!!!!!!!!!
रेप, '
किसी ""नेता ""मुख्यमंत्री ""पार्टी लीडर
की बेटी पोती धेवती भांजी बहिन
बेटी का ', हो ',
या
', किसी गरीब मिडिल क्लास मजदूर
दुकानदार की परिजन
लङकी का """"ऐसा बयान
सिवा क्रूर लैंगिग हिंसा भेदभाव
स्त्री के ""दैहिक अधिकार
की ""क्रूर हत्या ""
का समर्थन के सिवा कुछ भी नहीं ''
कोई भी "मानव " ऐसे विचार
का समर्थन नहीं कर
सकता कि ""लङके रेप करते हैं
तो ""लङकपन की भूल है ""
नाबालिग बच्चियों दुधमुँही कन्याओं
से लेकर बूढ़ी औरतों तक के क्रूर
बलात्कार तेजॉब हमले और ऑनर
किलिंग जिस प्रांत में सबसे अधिक
हो जहाँ ', सांप्रदायिक दंगे में सबसे
पहला शिकार ""लङकियाँ ""और दंगे
की वजह तक लङकियाँ हों ",
वहाँ ""आधी आबादी के खिलाफ
ऐसा बयान!!!!!!
चुनाव परिणाम जो भी एक मानव
होने के नाते हम ऐसे बयान
की "भर्तस्ना करते हैं ',
लङकियाँ समझे कि ""देश के नेताओं
की "सोच " कैसी है ""उनके ऊपर
हो रहे ""जुल्म के प्रति '
प्रेम विवाह ', घर से
भागना ', अन्य मजहब जाति में विवाह ',
लङके लङकियों के ""परस्पर
सहमति के अफेयर '''''इत्यादि भूल
गलती आदि हो सकते हैं
वहाँ ""लङकी ""भी बराबर की ग़ुनहग़ार
है ''किंतु जहाँ ""किसी भी आयु
की स्त्री का जीरो से अस्सी नब्बे तक
की आयु में दुर्दान्त रेप
'हो जाता हो कहीं भी कभी भी, 'उस देश
का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने
वाला ''कोई लीडर ""आधी दुनियाँ पर
ज़ुल्म को ""लङकों की भूल गलती कैसे
कह सकता है!!!!! और कहा है
तो """आधी आबादी ""जवाब माँगे ',
कोई "लङकी " अपना जीवन पवित्र
रहकर गुजारना चाहती है '''तब कोई
पुरुष ताकत और जोर जबरदस्ती से बल
प्रयोग करके उसकी मर्यादा भंग
करता है तो चाहे वह लङका हो या प्रौढ़
बूढ़ा हो या जवान """"कठोर और
अधिकतम दंड मिलना ही चाहिये """"ये
संस्कार समाज दे माँ बाप दें
कि ""बलात्कार मतलब ""सजाये मौत
या आजीवन कारावास
जोर जबरदस्ती गैंग रेप ', दंगों में रेप
'कम्युनल हिंसा में रेप प्रतिशोध में रेप
',', ये रोती कलपती दया भीख
माँगती ईश्वर और रिश्तों की दुहाई
देती विवश भयभीत स्त्री पर अधिकतम
टॉर्चर है "मौत और बलात्कार में
"स्त्री के लिये कोई अंतर नहीं '''ये सब
लङकपन की भूल नहीं ""जो ऐसा कहते
समझते हैं """वे सब नेता या पत्रकार
लेखक या व्यक्ति स्त्री या पुरुष
"""हिंसक सोच वाले अन्यायी हैं
जहाँ तक ये सूचना पहुँचेगी हर
लङकी ""खौल उठेगी ""हर संस्कारवान
भाई पिता काका मामा और ""मानव
""आग बबूला हो उठेगा """ऐसा कोई
कैसे सोच सकता है जिसके अपने घर में
""बहू बेटियाँ पोतियाँ है!!!!!
अपराध को """रोकने """और
पीङितों को न्याय देने की बजाय
""""जो जुल्म और अत्याचार को ""भूल
गलती क़रार दे ""वह कोई भी हो ""हर
स्त्री की निन्दा का पात्र है
नेता? मतलब
"""लङकियों का नेता नहीं क्या?
सुरक्षा कमजोर को मिले और
प्रतिभा को अवसर कमजोर
को सहारा और पीङित को न्याय
""इसीलिये """राजनीति सरकार और
मुखिया ""संस्था की स्थापना हुयी ताकि ""मत्स्य
न्याय न हो '
लाखों दामिनियाँ हैं हिन्दोस्तान में
""दोयम दरजे के ही नागरिक
सही """किंतु लानत्त है हर बेटी वाले
को हर बेटी को जो ऐसे
""नेता अभिनेता और व्यक्ति की सोच
को "मोमबत्ती से न जला दे ""भाङ में
जायें दल चुनाव सरकार और आरक्षण
""""लैंगिक हिंसा के समर्थक "हाय हाय
"
आप ही कहिये """बजाय
सामाजिक जागरुकता बढ़ाने और
स्त्री शिशु से वृद्धा तक """सम्मान
सुरक्षा न्याय की गारंटी देने के ""कोई
अपराधियों को बचाने और भूल
गलती मानकर ' बख्शने की बात करे
तो """स्त्रियों को धिक्कार और
निन्दा क्यों नहीं करनी चाहिये?
जो ऐसा ""सोच सकता है वह ""बहू
बेटी को क्या मान देगा?? दया की पात्र
हैं ऐसे परिवार की बहू बेटियाँ ',
यही बात है ""ऐसे लोग ',या बचे रहे
अपराधी हैं या अपराधी के सगे
या हिमायती " वरना ""भारतीय
कभी स्त्री की अस्मत पर हाथ डालने
वाले को क्षमा नहीं करते
यही ""संस्कार है ""वैश्विक लॉ के
मुताबिक भी लैंगिक हिंसा ज़ुर्म हैं
सवाल ये नहीं है
कि ""बलात्कारी """को सज़ा क्या दी जाये,,
सवाल ये है ""कि स्त्री को अपने तन
मन पर पूरा स्वतंत्र एकाधिकार है
कि नहीं ""अगर है '''तो कोई
सवाल ये
नहीं कि """सज़ा फाँसी हो या बीस साल
कैद या आजीवन कारावास
या ""बधियाकरण ""।सवाल है """सभ्य
जगत में राष्ट्र और कानून
की अवधारणा की उत्पत्ति के पश्चात
भी ""अगर स्त्री को खुद अपने
ही शरीर पर अनन्य अधिकार
नहीं मिला है तो """""ये दरिनिदगी है
क्रूरता है अन्याय है जुल्म है घोर
हिंसा है """"""फाँसी का विरोध करने
वाले ढोंगी उस """हिंसा ''''को जायज
कैसे ठहरा सकते है जो अपनी आबरू
बचाने और बलात्कार गैंग रेप झेलने के
दौरान से लेकर अदालत अस्पताल
समाज के बीच बलात्कार हुआ
प्रमाणित करने में
""स्त्री """झेलती है?????? सेक्स??
राजी खुशी प्रेम और विवाह या अफेयर
के अलावा कहीं भी जबरन हिंसा है!!!!
सामाजिक ताने बाने में वेश्या और
कुलटा की जब जगह
नहीं '''तो बलात्कारियों से
हमदर्दी करने की जगह क्यों है????

कुछ तथाकथित
अति बुद्धिजीवियों को लगता है
कि मानव जीवन में पशुवत मुक्त
यौनाचार स्वछन्द होना चाहिये
ताकि कोई भी कभी भी कहीं भी किसी के
साथ भी कुछ भी कर सके और ये सब
प्राकृतिक है ।प्राकृतिक तो शौच और
मलमूत्र त्याग भी है तो जब जहाँ जिसे
हाजत हो वही बैठ जाये??बेडरूम किचिन
सङक बाजार गली चौराहे पर??कुछ
लोगों को लगता है कि ', मादा नर संबंध
केवल दैहिक आधार पर ही टिकते हैं उन
लोगों की समझ में ये कभी नहीं आ
सकता कि ऐसे लाखों जोङे हैं जिनके
बीच बच्चे हैं दैहिक रिश्ते हैं परिवार है
और धन संपत्ति किंतु फिर भी नहीं है
तो ""प्रेम अपनापन और सिंक अहसास
एक होने का "जबकि ऐसे लाखों लोग
मिलेगे कि जिनके दैहिक रिश्ते नहीं और
नहीं परस्पर दैहिक स्पर्श तक
की भावना फिर भी मन से मन का तार
जुङा दुख में दुख और सुख में सुख है
',मानव जीवन में "सेक्स है किंतु ये
सबकुछ नहीं है । स्त्री देह में पंद्रह
वर्ष तक ये सब बातें नहीं रहती पुरुष
देह में भी लगभग चौदह से पंद्रह वर्ष
तक ये सब बातें नहीं रहतीं । फिर
भी ""भारत में लाखों ""अबोध
लङकियों की बलात्कार के बाद
हत्या कर दी जाती है ।हजारों अबोध
लङके कुकर्म करके बच्चाबाज़ी में मार
डाले जाते हैं ''''''''''ये सेक्स डिजायर
पूरी करने का कौन सा रूप है????
लाखों लङकियाँ मासूम आयु में चुराकर
वेश्यालय में बेच दीं जातीं हैं और बर्बर
बलात्कार के बाद
वेश्या बना दीं जाती है ",अभी गत
सप्ताह महाराष्ट्र में दो लङकियों ने
पेशा करने से इनकार
किया तो उनको जलाया गया और
छातिया काट दी गयी ', ये सेक्स
डिजायर पूरी करने का कौन
सा प्राकृतिक रूप है?ऐसा कहने वाले
क्या अपने घऱ की बेटी बहिन
बीबी माँ को भी ""स्वछंद सेक्स
डिजायर पूरी करने की छूट देगें?वे
क्यों सोचते हैं कि वे सब एक ही पुरुष
की वफ़ादार बनकर रहें?
सभ्यता का मूलमंत्र है जियो और जीने
दो "तुम्हारी आजादी वहाँ बंद है
जहाँ दूसरे की आजादी को हिंसक तरीके
से छीना जाये "
©®सुधा राजे

Tuesday 8 April 2014

कस्तूरी सी प्रीती विदेहि

""""काव्य कथिका"""

समय अहेरी नित ही खोजे वन पशु सुख नादान

धीरे-धीरे हुए प्रेम के सब जंगल वीरान

कुछ खाए,कुछ मार गिराए , कुछ
को रखा वितान

गहन गहनतम से निर्जनतम करते गए प्रयान।

--निर्यात मंदारिन पकड़ नचावे मर्कट रति के पंथ
भाग मधुकरी घर-घर मांगे बांचे आशा ग्रन्थ


धीरे -धीरे छीजे मन-तन-जन निर्गुण पवमान
कुछ छल ने कुछ बल ने मरे कुछ मारे अभिमान।

--इन्हीं वनों के भीतर रहती हिरणी कंचन काय
कस्तूरी मादल कुण्डलिनी सुरभित अनल बसाय


धीरे धीरे मत्त मलय से सुरभित नित्य विहान
कछु खोजे चमड़ी कछु दमड़ी ,
कछु कस्तूरी छान



उन्हीं वनों में रजत काय
जा पहुंचा हिरना एक

प्रणय केलि रति कर किलोल थी हिरनी संग अनेक


धीरे धीरे कंचन हिरनी लुक - छिप देखे गान
रजत हरिण ने देखा रीझा मिलन
चढ़ा परवान।


समय,अहेरी धर्म - धनिक- अनुशासक के आदेश
कस्तूरी कंचन मृग छाला खोजे विजन प्रदेश


धीरे धीरे
मृगा मृगी की प्रीती बनी रसखान
कीरति "वात" सुरभि ले पहुंची मृगया हेतु मचान।


विष-लेपित शर तीक्ष्ण धरे ताके नित
रैना भोर
कलि किसलय तृण यत्र तत्र फैलावे जाल कठोर


धीरे धीरे कंचन हिरनी नित आती बागान
कभी किलकती कभी चरे तृण कभी तके
दिनमान।


"उस रजनी " मृग से मिल
लौटी मृगी कंचना हाय!!!

ताक अहेरी छाती में मारा शर रक्तिम काय

धीरे धीरे श्वाँस थमी औचक ही निकले प्राण
रजत हिरन की छवि नयनों में ह्रदय
लगा विष बाण।


कस्तूरी मृगछाला दोनों बेच अहेरी नगरी
धनिक प्रशासक ने छाला से बनवाई इक खँजरी

धीरे धीरे उस खँजरी पर
कन्या करती गान
कस्तूरी से वस्त्र महकते मृगा चकित
अनजान।


मरण मृगी का जान
गया हूका रोया चिक्कार
प्रीति न करियो -प्रीति न करियो करे
विजन गुंजार


धीरे धीरे मृगी छाल की ढपली की वो तान
कस्तूरी की गंध ह्रदय में गयी हरिण के कान।


विकल मृगा नगरी की ऊँची दीवारों के बीच
सम्मोहित जा पहुंचा कन्या गाती किसलय सींच


धीरे धीरे भूमि गिरा वन
का हिरना नादान
नागरि कन्या चकित देखती रजत हरिण
की शान।


दौड़े प्रहरी निठुर
समाजी बाँधो रे हलकारो!!

ठिठक रोकती करुणा कन्या कहे -"इसे मत मारो"
धीरे धीरे
करुणा बाला मृगा मित्र भये ज्ञान


मृगी छाल की ध्वनि सुनने को नित्य मिलन उद्यान।

मृगा सुने छाला में ध्वनियाँ प्रिय प्रियतम प्रिय प्रीत

कस्तूरी की गन्ध निभावे श्वांस संग की रीत

धीरे धीरे अमर प्रेम का यही मिला वरदान
हिरणा हिरणी हो विदेह नित मिलें व्यथा दालान।

एक कथा ये सत्य कथा मन गुनी सुधा रस गीत
प्रीति अमर है सत्य सदा आखेटक लेती जीत


धीरे धीरे सुधा ह्रदय में गूंजे वो रस गान
प्रीति विदेही अमर अजर है
मृगी मृगा की आन।


कई तके स्वर्णिम मृगछाला मांस कछुक संधान

कोऊ ताके कस्तूरी यौवन कोऊ प्रेम की आन

धीरे धीरे प्रेम अमर है बनी ह्रदय में तान

अश्रु भरे मन कलम लिखे नित सुधा पीर हिय गान
cOPY RIGHT"

Monday 7 April 2014

संसद जाने को तङपे है

संसद जाने को तङपे है हर """"ला खद्दर
वाला
कौन बिका कितने में कैसे किसके दल
बदला पाला
टिकिट मिला जिस दल से उसके 'भेद "बेच
कर मुँह काला
खुली धङल्ले से घर दफ्तर वोट पटाने
मधुशाला ''''''
©सुधा राज

Sunday 6 April 2014

दोस्तों ने संभाला मुझे

जब कभी मेरे अपनों ने धोके दिये
अजनबी दोस्तों ने सँभाला मुझे
दर्द की झोपङी थे पलक पाँवङे
जब ख़ुशी ने महल से निकाला मुझे
©®सुधा राजे