Friday 11 April 2014

लेख :- (श्रंखला :- स्त्री और समाज) स्त्री के प्रति हिंसा के मायने और मुखियागीरी के सस्ते शिग़ूफे "

""कभी कभी ""लङके
""गलतियाँ करते हैं!!!!!!!!!!!
रेप, '
किसी ""नेता ""मुख्यमंत्री ""पार्टी लीडर
की बेटी पोती धेवती भांजी बहिन
बेटी का ', हो ',
या
', किसी गरीब मिडिल क्लास मजदूर
दुकानदार की परिजन
लङकी का """"ऐसा बयान
सिवा क्रूर लैंगिग हिंसा भेदभाव
स्त्री के ""दैहिक अधिकार
की ""क्रूर हत्या ""
का समर्थन के सिवा कुछ भी नहीं ''
कोई भी "मानव " ऐसे विचार
का समर्थन नहीं कर
सकता कि ""लङके रेप करते हैं
तो ""लङकपन की भूल है ""
नाबालिग बच्चियों दुधमुँही कन्याओं
से लेकर बूढ़ी औरतों तक के क्रूर
बलात्कार तेजॉब हमले और ऑनर
किलिंग जिस प्रांत में सबसे अधिक
हो जहाँ ', सांप्रदायिक दंगे में सबसे
पहला शिकार ""लङकियाँ ""और दंगे
की वजह तक लङकियाँ हों ",
वहाँ ""आधी आबादी के खिलाफ
ऐसा बयान!!!!!!
चुनाव परिणाम जो भी एक मानव
होने के नाते हम ऐसे बयान
की "भर्तस्ना करते हैं ',
लङकियाँ समझे कि ""देश के नेताओं
की "सोच " कैसी है ""उनके ऊपर
हो रहे ""जुल्म के प्रति '
प्रेम विवाह ', घर से
भागना ', अन्य मजहब जाति में विवाह ',
लङके लङकियों के ""परस्पर
सहमति के अफेयर '''''इत्यादि भूल
गलती आदि हो सकते हैं
वहाँ ""लङकी ""भी बराबर की ग़ुनहग़ार
है ''किंतु जहाँ ""किसी भी आयु
की स्त्री का जीरो से अस्सी नब्बे तक
की आयु में दुर्दान्त रेप
'हो जाता हो कहीं भी कभी भी, 'उस देश
का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने
वाला ''कोई लीडर ""आधी दुनियाँ पर
ज़ुल्म को ""लङकों की भूल गलती कैसे
कह सकता है!!!!! और कहा है
तो """आधी आबादी ""जवाब माँगे ',
कोई "लङकी " अपना जीवन पवित्र
रहकर गुजारना चाहती है '''तब कोई
पुरुष ताकत और जोर जबरदस्ती से बल
प्रयोग करके उसकी मर्यादा भंग
करता है तो चाहे वह लङका हो या प्रौढ़
बूढ़ा हो या जवान """"कठोर और
अधिकतम दंड मिलना ही चाहिये """"ये
संस्कार समाज दे माँ बाप दें
कि ""बलात्कार मतलब ""सजाये मौत
या आजीवन कारावास
जोर जबरदस्ती गैंग रेप ', दंगों में रेप
'कम्युनल हिंसा में रेप प्रतिशोध में रेप
',', ये रोती कलपती दया भीख
माँगती ईश्वर और रिश्तों की दुहाई
देती विवश भयभीत स्त्री पर अधिकतम
टॉर्चर है "मौत और बलात्कार में
"स्त्री के लिये कोई अंतर नहीं '''ये सब
लङकपन की भूल नहीं ""जो ऐसा कहते
समझते हैं """वे सब नेता या पत्रकार
लेखक या व्यक्ति स्त्री या पुरुष
"""हिंसक सोच वाले अन्यायी हैं
जहाँ तक ये सूचना पहुँचेगी हर
लङकी ""खौल उठेगी ""हर संस्कारवान
भाई पिता काका मामा और ""मानव
""आग बबूला हो उठेगा """ऐसा कोई
कैसे सोच सकता है जिसके अपने घर में
""बहू बेटियाँ पोतियाँ है!!!!!
अपराध को """रोकने """और
पीङितों को न्याय देने की बजाय
""""जो जुल्म और अत्याचार को ""भूल
गलती क़रार दे ""वह कोई भी हो ""हर
स्त्री की निन्दा का पात्र है
नेता? मतलब
"""लङकियों का नेता नहीं क्या?
सुरक्षा कमजोर को मिले और
प्रतिभा को अवसर कमजोर
को सहारा और पीङित को न्याय
""इसीलिये """राजनीति सरकार और
मुखिया ""संस्था की स्थापना हुयी ताकि ""मत्स्य
न्याय न हो '
लाखों दामिनियाँ हैं हिन्दोस्तान में
""दोयम दरजे के ही नागरिक
सही """किंतु लानत्त है हर बेटी वाले
को हर बेटी को जो ऐसे
""नेता अभिनेता और व्यक्ति की सोच
को "मोमबत्ती से न जला दे ""भाङ में
जायें दल चुनाव सरकार और आरक्षण
""""लैंगिक हिंसा के समर्थक "हाय हाय
"
आप ही कहिये """बजाय
सामाजिक जागरुकता बढ़ाने और
स्त्री शिशु से वृद्धा तक """सम्मान
सुरक्षा न्याय की गारंटी देने के ""कोई
अपराधियों को बचाने और भूल
गलती मानकर ' बख्शने की बात करे
तो """स्त्रियों को धिक्कार और
निन्दा क्यों नहीं करनी चाहिये?
जो ऐसा ""सोच सकता है वह ""बहू
बेटी को क्या मान देगा?? दया की पात्र
हैं ऐसे परिवार की बहू बेटियाँ ',
यही बात है ""ऐसे लोग ',या बचे रहे
अपराधी हैं या अपराधी के सगे
या हिमायती " वरना ""भारतीय
कभी स्त्री की अस्मत पर हाथ डालने
वाले को क्षमा नहीं करते
यही ""संस्कार है ""वैश्विक लॉ के
मुताबिक भी लैंगिक हिंसा ज़ुर्म हैं
सवाल ये नहीं है
कि ""बलात्कारी """को सज़ा क्या दी जाये,,
सवाल ये है ""कि स्त्री को अपने तन
मन पर पूरा स्वतंत्र एकाधिकार है
कि नहीं ""अगर है '''तो कोई
सवाल ये
नहीं कि """सज़ा फाँसी हो या बीस साल
कैद या आजीवन कारावास
या ""बधियाकरण ""।सवाल है """सभ्य
जगत में राष्ट्र और कानून
की अवधारणा की उत्पत्ति के पश्चात
भी ""अगर स्त्री को खुद अपने
ही शरीर पर अनन्य अधिकार
नहीं मिला है तो """""ये दरिनिदगी है
क्रूरता है अन्याय है जुल्म है घोर
हिंसा है """"""फाँसी का विरोध करने
वाले ढोंगी उस """हिंसा ''''को जायज
कैसे ठहरा सकते है जो अपनी आबरू
बचाने और बलात्कार गैंग रेप झेलने के
दौरान से लेकर अदालत अस्पताल
समाज के बीच बलात्कार हुआ
प्रमाणित करने में
""स्त्री """झेलती है?????? सेक्स??
राजी खुशी प्रेम और विवाह या अफेयर
के अलावा कहीं भी जबरन हिंसा है!!!!
सामाजिक ताने बाने में वेश्या और
कुलटा की जब जगह
नहीं '''तो बलात्कारियों से
हमदर्दी करने की जगह क्यों है????

कुछ तथाकथित
अति बुद्धिजीवियों को लगता है
कि मानव जीवन में पशुवत मुक्त
यौनाचार स्वछन्द होना चाहिये
ताकि कोई भी कभी भी कहीं भी किसी के
साथ भी कुछ भी कर सके और ये सब
प्राकृतिक है ।प्राकृतिक तो शौच और
मलमूत्र त्याग भी है तो जब जहाँ जिसे
हाजत हो वही बैठ जाये??बेडरूम किचिन
सङक बाजार गली चौराहे पर??कुछ
लोगों को लगता है कि ', मादा नर संबंध
केवल दैहिक आधार पर ही टिकते हैं उन
लोगों की समझ में ये कभी नहीं आ
सकता कि ऐसे लाखों जोङे हैं जिनके
बीच बच्चे हैं दैहिक रिश्ते हैं परिवार है
और धन संपत्ति किंतु फिर भी नहीं है
तो ""प्रेम अपनापन और सिंक अहसास
एक होने का "जबकि ऐसे लाखों लोग
मिलेगे कि जिनके दैहिक रिश्ते नहीं और
नहीं परस्पर दैहिक स्पर्श तक
की भावना फिर भी मन से मन का तार
जुङा दुख में दुख और सुख में सुख है
',मानव जीवन में "सेक्स है किंतु ये
सबकुछ नहीं है । स्त्री देह में पंद्रह
वर्ष तक ये सब बातें नहीं रहती पुरुष
देह में भी लगभग चौदह से पंद्रह वर्ष
तक ये सब बातें नहीं रहतीं । फिर
भी ""भारत में लाखों ""अबोध
लङकियों की बलात्कार के बाद
हत्या कर दी जाती है ।हजारों अबोध
लङके कुकर्म करके बच्चाबाज़ी में मार
डाले जाते हैं ''''''''''ये सेक्स डिजायर
पूरी करने का कौन सा रूप है????
लाखों लङकियाँ मासूम आयु में चुराकर
वेश्यालय में बेच दीं जातीं हैं और बर्बर
बलात्कार के बाद
वेश्या बना दीं जाती है ",अभी गत
सप्ताह महाराष्ट्र में दो लङकियों ने
पेशा करने से इनकार
किया तो उनको जलाया गया और
छातिया काट दी गयी ', ये सेक्स
डिजायर पूरी करने का कौन
सा प्राकृतिक रूप है?ऐसा कहने वाले
क्या अपने घऱ की बेटी बहिन
बीबी माँ को भी ""स्वछंद सेक्स
डिजायर पूरी करने की छूट देगें?वे
क्यों सोचते हैं कि वे सब एक ही पुरुष
की वफ़ादार बनकर रहें?
सभ्यता का मूलमंत्र है जियो और जीने
दो "तुम्हारी आजादी वहाँ बंद है
जहाँ दूसरे की आजादी को हिंसक तरीके
से छीना जाये "
©®सुधा राजे

No comments:

Post a Comment