Saturday 29 September 2012

कस्तूरी सी प्रीती विदेहि

समय अहेरी नित ही खोजे वन पशु सुख नादान 

धीरे-धीरे हुए प्रेम के सब जंगल  वीरान 
कुछ खाए,कुछ मार गिराए , कुछ को रखा मकान
गहन गहनतम से निर्जनतम करते गए प्रयान। 

निर्यात मंदारिन पकड़ नचावे मर्कट रति के पंथ 
भाग मधुकरी घर-घर मांगे बांचे आशा ग्रन्थ 
धीरे -धीरे छीजे मन-तन-जन निर्गुण पवमान
कुछ छल ने कुछ बल ने मरे कुछ मारे अभिमान। 

इन्हीं वनों के भीतर रहती हिरणी कंचन काय 
कस्तूरी मादल कुण्डलिनी सुरभित अनल बसाय 
धीरे धीरे मत्त मलय से सुरभित नित्य विहान 
कछु खोजे चमड़ी की दमड़ी , कुछ कस्तूरी छान 


उन्हीं वनों में रजत काय जा पहुंचा हिरना एक 
प्रणय केलि रति कर किलोल थी हिरनी संग अनेक 
धीरे धीरे कंचन हिरनी लुक - छिप देखे गान 
रजत हरिण  ने देखा रीझा मिलन चढ़ा परवान।

समय,अहेरी धर्म - धनिक- अनुशासक  के आदेश 
कस्तूरी कंचन मृग छाला खोजे विजन प्रदेश 
धीरे धीरे मृगा मृगी की प्रीती बनी रसखान 
                                                                   
कीरति "वात" सुरभि ले पहुंची मृगया हेतु मचान। 
विष-लेपित शर तीक्ष्ण धरे ताके नित रैना भोर 
कलि किसलय तृण यत्र तत्र  फैलावे जाल कठोर 

धीरे धीरे कंचन हिरनी नित आती बागान 
कभी किलकती कभी चरे तृण कभी तके दिनमान।

उस रजनी मृग से मिल लौटी मृगी कंचना हाय!!!
ताक अहेरी छाती में मारा शर रक्तिम काय
धीरे धीरे श्वाँस थमी औचक ही  निकल गए प्राण 
रजत हिरन की छवि नयनों में ह्रदय लगा विष बाण।

कस्तूरी मृगछाला दोनों बेच अहेरी नगरी 
धनिक प्रशासक ने छाला से बनवाई इक खँजरी 
    धीरे धीरे उस खँजरी पर कन्या करती गान 
    कस्तूरी से वस्त्र महकते मृगा चकित अनजान।


मरण मृगी का जान गया हूका रोया चिक्कार 
प्रीति  न करियो -प्रीति  न करियो करे विजन गुंजार 
धीरे धीरे मृगी छाल की ढपली की वो तान 
कस्तूरी की गंध ह्रदय में गयी हरिण के कान।

विकल मृगा नगरी की ऊँची दीवारों के बीच 
सम्मोहित जा  पहुंचा कन्या गाती किसलय सींच 
धीरे धीरे भूमि गिरा वन का हिरना नादान 
नागरि कन्या चकित देखती रजत हरिण की शान।

दौड़े प्रहरी निठुर समाजी बंधो पकड़ो हलकारो 
ठिठक  रोकती करुणा कन्या कहे -"इसे मत मारो"      
              धीरे धीरे करुणा बाला मृगा मित्र भये मान 
मृगी छाल की ध्वनि सुनने को नित्य मिलन शमशान।

मृगा सुने छाला में ध्वनियाँ प्रिय प्रियतम प्रिय प्रीति 
कस्तूरी की गन्ध निभावे श्वांस संग की रीति 
धीरे धीरे अमर प्रेम का यही मिला वरदान 
हिरणा  हिरणी हो विदेह नित मिलें करुण  दालान।

एक कथा ये सत्य कथा की सुनी सुधा रस प्रीति 
प्रीति अमर है सत्य सदा आखेटक लेती जीत 
धीरे धीरे सुधा ह्रदय में गूंजे वो रस गान 
प्रीति विदेही अमर अजर है मृगी मृगा की आन।

कोऊ ताके स्वर्णिम मृगछाला मांस कछुक संधान 

कोऊ ताके कस्तूरी यौवन कोऊ प्रेम की आन 
धीरे धीरे प्रेम अमर है बनी ह्रदय में तान 
अश्रु भरे मन कलम लिखे नित सुधा पीर रस गान 
   

     

Sunday 16 September 2012

नीले सुरमई अक्षर-अक्षर गीले भीगे गीत

स्वर्ण भोर हीर की दोपहर
मदिर सुरमई शाम,
मणि मन चन्दन तन 
घन कुंतल सब तेरे घनश्याम 

मुक्त अश्रु, हास नवरतनी
छीजे पद्म-राग रस चुनरी,
मूंगे अधर, फटिक नख-शिख ये,
नयन दीप कंचन तव डगरी

किन्तु कहाँ तुम जहाँ
भेज दूं सारावली सन्देश,
तिर्यक चन्द्र चन्द्रिका सिसके,
गीले तुहिन प्रदेश

पीर प्रतीक्षा, शीत वादियाँ,
श्वेत ठिठुरती प्रीत,
आश हिमालय, हिम-ही-हिम
गूंजे विरहा का गीत

कस्तूरी मृग प्रणय न खोजे
प्रिय परिमल का स्रोत
गह्वर गहन छिपा निर्जन वन
तनहा मिलन कपोत

कहीं दूर बिछुड़ा पंखी
पिऊ करता छाती चीर
कुहू गूंजता सन्नाटे में
किसे पुकारे कीर ??

अनजाने अनगिन प्रवास पर
वय यायावर हाय,
साँवरी सुधि हुई निपट बावरी,
साँवरिया ना आए 

नयन पलक जल पनघट सपने
कलश डुबोते रोज़
अजपा 'पी-पी' रटे स्वाँस हिय
स्वजन प्रणय की सोज

थके उनींदे हार चले रंग
पाँव प्रतीक्षा छूट,
दो बाहें दो नयन रो दिए
उम्मीदों से रूठ

 घायल मोहन मानसर हंसा
जरे पंख मृत गात
आये ना मानस श्याम चम्पई
रात सिसकती वात 

चटख जली इक चिता 
सो गयी मंदाकिनी तट वाम
आये न घन, ना श्याम , न चैना
हुई साँस की शाम 

प्रणय वधु ढो रहा, थका
ये मन कहार वन-पंत
कहाँ बसे सांवरिया साजन ?
कहाँ वीथि का अंत ??
पीर बसीठी अश्वारोही,
परिकल्पित अविराम
पत्र-पत्र नित नील सुरमई
लिखे श्याम के नाम 

सुधा-सुरा विष वारुणि पीती
शब्द चषक हर शाम
गीले-भीगे गीत श्याम ये
सभी तुम्हारे नाम