Monday 30 June 2014

शास्त्रार्थ करें मूल्यहीन हठ और प्रदर्शन किसी परिणाम पर नहीं पहुँचते

जो कोई भी हो आदरणीय शंकराचार्य
जी से शास्त्रार्थ और तर्क वितर्क
किया जाना समीचीन है ',
किंतु जो शंकराचार्य का अपमान करे
तसवीरें जलाये कालिख मले
वह भी "एक नये फकीर को भगवान न
मानने की बात पर ",,!!!!!
वह सनातन हिंदू वैदिक धर्मी कैसे
हो सकता है?
क्या पोप या इमाम के पुतले
जलाना किसी ""विवादास्पद बयान
पर मान्य है?
क्या ये विवाद के पीछे ' साबित करने
को पर्याप्त नहीं कि ''भगवान
बनाकर एक फकीर को लोग अपने
ही धर्म का मखौल बना रहे हैं?
संसार हँसी उङा रहा है,
मदर टेरेसा जैसी परम
सेवाभावी महिला को ""संत
""घोषित करने से पहले वेटिकन ने
सैकङो प्रमाण माँगे """"""
क्या किसी को ""अवतार या भगवान
घोषित ""
यूँ ही कर देना बुद्धिमानी है?
लोग अपने अपने मन माफिक दरगाह
मजार गुरुद्वारे मंदिर समाधि थले
आश्रम डेरे पर तो ""जाते ही हैं न "
कौन किसे रोक रहा है कि मत
मानो अपना पीर पैगंबर गुरू और
देवता,
खूब मानो
लेकिन
किसी भी फकीर या साधु
को परमात्मा का भक्त और दास पुत्र
और संदेशवाहक कहने से बढ़कर
स्वयं भगवान कह देना अतिशयोक्ति है

और
अस्सी प्रतिशत गांव हैं भारत में
जहाँ कोई "किसी फकीर
को नहीं जानता न मानता है ।
शहरी धनिकों का नया नया शगल और
नयी नयी भगती है तो करो कौन
रोकता है ।
लेकिन
प्राचीन
मंत्रों को तोङना मरोङना गलत है ।
अब कोई " साधु सट्टे का नंबर
दिलवा दे पुजारी के माध्यम से
या मैच फिक्स करा दे फिल्म
को फायवेंसर दिलवा दे तो ""सेठ
''जी का वही "भगवान हो गया "
मातृ देवो भव पितृ देवो भव आचार्य
देवो भव,
तीस प्रकार के देवता हैं ।
परंतु "देवता है "
ईश्वर नहीं "
वेद पुराण पढ़ें या न पढ़ें ।
किंतु "उनके
मंत्रों को कोरी ""स्वार्थ सकाम
उपासना के लिये तोङ मरोङ कर नये
न गढ़ें "
ये सब कालांतर में इतिहास की भयंकर
भूल साबित होगें ।
साधु गुरू फकीर अनेक हैं ।
किंतु "परमब्रह्म अजर अमर
अविनाशी है "
सकाम भक्ति से परे हटकर सोचें "
प्रतिमायें केवल ध्यान भटकने से रोकने
का माध्यम हैं ।
मन्नतें तो "कोई प्रेत भी पूरी कर
सकता है ।
मोक्ष और सृजन कर्म दंड और पुरस्कार
केवल परमेश्वर
परमपिता परमात्मा के ही वश में हैं
जिसे मातृ रूप में "अजानंतालक्ष्या
जैकानैकेति "
कहा गया है
कोई "बहस करें तर्क करें किंतु
यदि हिंदू सनातन धर्मी होने
का दावा करते हो तो स्मरण रहे
शंकराचार्य का अपमान जघन्य पाप है

कदाचित जिस फकीर की मूर्ति के
लिये कर रहे हो वह स्वयं ऐसा कभी न
करता ।
व्यक्ति रूप में बर्खास्त
राष्ट्रपति भी कई प्र्कार के
विशेषाधिकार रखता है ।
जनेऊ
शिखा
तिलक
तुलसी
शालिग्राम
शंख
गीता
गंगा
गौ
गायत्री
वेद
हवन
और सोलह संस्कार केवल
जुबानी जमाखर्च नहीं।
पहचान हैं सदियों की शोध के।
ये तेवर "गंगा साफ करने
को क्यों नहीं? गौ रक्षा के लिये
क्यों नहीं
जीर्ण मंदिरों के उद्धार हेतु
क्यों नहीं।सनातन मत के मूल
सिद्धांत "दीन हितार्थ "क्यों नहीं
सत्य और शांति के लिये क्यों नहीं
रहा मीडिया
उसे टीआरपी के लिये मुद्दा चाहिये
शंकराचार्य व्यक्ति नहीं,
विधि विधान से सृजित पद है।
जब तक कोई देह उस पद पर है श्रद्धेय
है
विचार पसंद न आने पर कोई
पिता को पीटे जैसा गलत है
शंकराचार्य का अपमान
किसी भी सनातन वैदिक हिंदू को ये
शोभा नहीं देता ।
विरोध सांई का कब है? विरोध है
प्राचीन वैदिक मान्यताओं
का मनमानीकरण करने से । मस्जिद
या चर्च में सांई की फोटो तक
लगानी मना है । तब मंदिर
सांईद्वारा बनाओ कौन रोकता है?
लेकिन सांई उन्नीस सौ सोलह
की जीवित देह ""एक मुअज्जन सादा लौह
भला फकीर को नमन से किसे एतराज?
किंतु वह अवतार या भगवान नहीं ""साधु
संत फकीर है एक चमत्कार तो गाँव के
तमाम ओझा भी करते हैं ।
उनको प्रायोजक मिलजायें
तो देखो ""कमाल "
हम कभी बाबा मौलवी के दरबार
नहीं गये "सुनते पढ़ते रहते है
""""उसको बेटा हुआ फलां बापू की मेहर
""उसको इंजीनियर दमाद
मिला फलां साधु की ताबीज का कमाल ये
क्या ""भक्ति है?
अरबों खरबों की """प्रॉपर्टी सन
अस्सी से आज तक में ""तमाम बाबाओं के
नाम पर खङी हो गयी ""इतने अस्पताल
क्यों नहीं? लोग """फटाफट मुराद
पूरी करने को ""शैतान प्रेत पिशाच तक
पूज रहे हैं '''

आदमी "गुण को नहीं ""चमत्कार
को पूजता है ""जो सांप को रस्सी और
लकङी को सांप बनादे ""वह जादूगर
होता है ""भगवान नहीं ""भगवान
तो अजन्मा है अवतार उसकी शक्ति के
विग्रह रूप है "मूर्ति भगवान नहीं हम
उसमें भगवान को बुलाकर मानते है।
©®सुधा राजे

शास्त्रार्थ करें मूल्यहीन हठ और प्रदर्शन किसी परिणाम पर नहीं पहुँचते

जो कोई भी हो आदरणीय शंकराचार्य
जी से शास्त्रार्थ और तर्क वितर्क
किया जाना समीचीन है ',
किंतु जो शंकराचार्य का अपमान करे
तसवीरें जलाये कालिख मले
वह भी "एक नये फकीर को भगवान न
मानने की बात पर ",,!!!!!
वह सनातन हिंदू वैदिक धर्मी कैसे
हो सकता है?
क्या पोप या इमाम के पुतले
जलाना किसी ""विवादास्पद बयान
पर मान्य है?
क्या ये विवाद के पीछे ' साबित करने
को पर्याप्त नहीं कि ''भगवान
बनाकर एक फकीर को लोग अपने
ही धर्म का मखौल बना रहे हैं?
संसार हँसी उङा रहा है,
मदर टेरेसा जैसी परम
सेवाभावी महिला को ""संत
""घोषित करने से पहले वेटिकन ने
सैकङो प्रमाण माँगे """"""
क्या किसी को ""अवतार या भगवान
घोषित ""
यूँ ही कर देना बुद्धिमानी है?
लोग अपने अपने मन माफिक दरगाह
मजार गुरुद्वारे मंदिर समाधि थले
आश्रम डेरे पर तो ""जाते ही हैं न "
कौन किसे रोक रहा है कि मत
मानो अपना पीर पैगंबर गुरू और
देवता,
खूब मानो
लेकिन
किसी भी फकीर या साधु
को परमात्मा का भक्त और दास पुत्र
और संदेशवाहक कहने से बढ़कर
स्वयं भगवान कह देना अतिशयोक्ति है

और
अस्सी प्रतिशत गांव हैं भारत में
जहाँ कोई "किसी फकीर
को नहीं जानता न मानता है ।
शहरी धनिकों का नया नया शगल और
नयी नयी भगती है तो करो कौन
रोकता है ।
लेकिन
प्राचीन
मंत्रों को तोङना मरोङना गलत है ।
अब कोई " साधु सट्टे का नंबर
दिलवा दे पुजारी के माध्यम से
या मैच फिक्स करा दे फिल्म
को फायवेंसर दिलवा दे तो ""सेठ
''जी का वही "भगवान हो गया "
मातृ देवो भव पितृ देवो भव आचार्य
देवो भव,
तीस प्रकार के देवता हैं ।
परंतु "देवता है "
ईश्वर नहीं "
वेद पुराण पढ़ें या न पढ़ें ।
किंतु "उनके
मंत्रों को कोरी ""स्वार्थ सकाम
उपासना के लिये तोङ मरोङ कर नये
न गढ़ें "
ये सब कालांतर में इतिहास की भयंकर
भूल साबित होगें ।
साधु गुरू फकीर अनेक हैं ।
किंतु "परमब्रह्म अजर अमर
अविनाशी है "
सकाम भक्ति से परे हटकर सोचें "
प्रतिमायें केवल ध्यान भटकने से रोकने
का माध्यम हैं ।
मन्नतें तो "कोई प्रेत भी पूरी कर
सकता है ।
मोक्ष और सृजन कर्म दंड और पुरस्कार
केवल परमेश्वर
परमपिता परमात्मा के ही वश में हैं
जिसे मातृ रूप में "अजानंतालक्ष्या
जैकानैकेति "
कहा गया है
कोई "बहस करें तर्क करें किंतु
यदि हिंदू सनातन धर्मी होने
का दावा करते हो तो स्मरण रहे
शंकराचार्य का अपमान जघन्य पाप है

कदाचित जिस फकीर की मूर्ति के
लिये कर रहे हो वह स्वयं ऐसा कभी न
करता ।
व्यक्ति रूप में बर्खास्त
राष्ट्रपति भी कई प्र्कार के
विशेषाधिकार रखता है ।
जनेऊ
शिखा
तिलक
तुलसी
शालिग्राम
शंख
गीता
गंगा
गौ
गायत्री
वेद
हवन
और सोलह संस्कार केवल
जुबानी जमाखर्च नहीं।
पहचान हैं सदियों की शोध के।
ये तेवर "गंगा साफ करने
को क्यों नहीं? गौ रक्षा के लिये
क्यों नहीं
जीर्ण मंदिरों के उद्धार हेतु
क्यों नहीं।सनातन मत के मूल
सिद्धांत "दीन हितार्थ "क्यों नहीं
सत्य और शांति के लिये क्यों नहीं
रहा मीडिया
उसे टीआरपी के लिये मुद्दा चाहिये
शंकराचार्य व्यक्ति नहीं,
विधि विधान से सृजित पद है।
जब तक कोई देह उस पद पर है श्रद्धेय
है
विचार पसंद न आने पर कोई
पिता को पीटे जैसा गलत है
शंकराचार्य का अपमान
किसी भी सनातन वैदिक हिंदू को ये
शोभा नहीं देता ।
विरोध सांई का कब है? विरोध है
प्राचीन वैदिक मान्यताओं
का मनमानीकरण करने से । मस्जिद
या चर्च में सांई की फोटो तक
लगानी मना है । तब मंदिर
सांईद्वारा बनाओ कौन रोकता है?
लेकिन सांई उन्नीस सौ सोलह
की जीवित देह ""एक मुअज्जन सादा लौह
भला फकीर को नमन से किसे एतराज?
किंतु वह अवतार या भगवान नहीं ""साधु
संत फकीर है एक चमत्कार तो गाँव के
तमाम ओझा भी करते हैं ।
उनको प्रायोजक मिलजायें
तो देखो ""कमाल "
हम कभी बाबा मौलवी के दरबार
नहीं गये "सुनते पढ़ते रहते है
""""उसको बेटा हुआ फलां बापू की मेहर
""उसको इंजीनियर दमाद
मिला फलां साधु की ताबीज का कमाल ये
क्या ""भक्ति है?
अरबों खरबों की """प्रॉपर्टी सन
अस्सी से आज तक में ""तमाम बाबाओं के
नाम पर खङी हो गयी ""इतने अस्पताल
क्यों नहीं? लोग """फटाफट मुराद
पूरी करने को ""शैतान प्रेत पिशाच तक
पूज रहे हैं '''

आदमी "गुण को नहीं ""चमत्कार
को पूजता है ""जो सांप को रस्सी और
लकङी को सांप बनादे ""वह जादूगर
होता है ""भगवान नहीं ""भगवान
तो अजन्मा है अवतार उसकी शक्ति के
विग्रह रूप है "मूर्ति भगवान नहीं हम
उसमें भगवान को बुलाकर मानते है।
©®सुधा राजे


--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117

Saturday 28 June 2014

सुधा राजे का लेख - चिकित्सकीय वैज्ञानिक भाषा में हो बाल यौन शिक्षा ।

व्यक्तिगत तौर पर हम भी यही मानते है कि ""कक्षा में यौन शिक्षा भारतीय
सामाजिक पारिवारिक ताने बाने को देखते हुये केवल बच्चों को बर्बादी की ओर
ही धकेलने वाली है क्योंकि ★घर से बाहर तक हर तरफ अब इतनी अश्लीलता परोसी
जा रही है कि बच्चे जो कभी स्कूल नहीं गये वे सबसे ज्यादा यौन विष्यों पर
बातचीत करते है और उनके खेल कूद में भी कई बार यौन विष्यों पर केंद्रित
हो जाते हैं "
टीवी रेडियो इंटरनेट पर सचित्र सामग्री चलचित्र सहित अब इफरात में हर
वक्त मौजूद है और पाँचवी कक्षा पार करते करते बच्चों को मोबाईल चलाना और
दसवीं तक आते आते लैपटॉप चलाना अकसर आने लगा है ।
घरों में प्रसव शादियाँ और दूल्हे दुल्हनों के पलंगचार कमरे सजाना आदि तो
है ही सबसे बढ़िया शिक्षा तो """"बाप भाई दादा नाना काका चाचा मामा मौसा
जीजा फूफा देते आ रहे हैं """

तेरी माँ का #*#$%&**‡
तेरी बहिन का, ‰::5:

अकसर नन्हें बच्चे सबसे पहले ""गाली का मतलब ही पूछते हैं फिर पूछते है
"""नन्हा भाई बह्न या भतीजा भांजा कैसे आया कहाँ से आया,,,,,,, वे दिन
गये जब माँयें कह देती थी अस्पताल से खरीदा है या भगवान जी ने बनाकर पेट
में रख दिया और पेट काटकर नर्सों ने निकाल दिया,,, आज के बच्चों के सामने
"""टीवी है ""नेट है और हर तरफ पार्क होटल मंच मुशायरे कविगोष्ठी पार्टी
जयमाला पर ""नशे में धुत्त गीतों की बरसात पर बिजली का झटका दार डांस
करते भाई चाचा पापा और रिश्तेदार हैं ।
फिर टेबल पर रोज अखबार है न!!!!! हर रोज कहीं न कहीं कुकर्म बलात्कार और
लङकी लङकों के ऑनर किलिंग के समाचार ।

हॉलीवुड और वॉलीवुड की फिल्में तो हैं ही अब तो लगभग हर ""कार्टून
कैरेक्टर की गर्ल फ्रैंड बॉयफ्रैंड हैं चाहे ""डोरेईमॉन हो चाहे हैरी
पॉटर या पोपाय द सेलरमेन या मिकी माऊस या फिर टॉम एंड जेरी """"""सबमें
प्रेमिका पटाना और गर्ल फ्रैंड रखना जरूरी है """"अभी बाकी है """कमीने
नाते रिश्तेदार जो बच्चों को जगह बे जगह छू कर नोंचकर और टॉफी चॉकलेट
मिठाई पैसा मेला देकर यौन शोषण करने की फिराक में रहते है ।
फिर सीनियर सहपाठी भी तो हैं जो उन पर बीती वही बताने को ।

"""""""इसी पर कोई अंजान ग्रह का प्राणी अगर धरती पर आ जाये तो??

कहेगा कि हर तरफ यौन शिक्षा यौन विचार यौनोत्तेजक गीत कहानियाँ और मसाला
बिखरा पङा है फिर भी ""ग़जब हैं भारतीय यौन विषय को बातचीत से वर्जित
रखने का दावा करते हैं?


होता क्या है,, जब एक सांगरूपक प्रेम गीत तक का अर्थ बताते समय "पूजनीय
गुरुजी भावनाओं में बहकर ""खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघ वन बीच गुलाबी
रंग ""को समझाते समझाते ""कामदेव के तीर से पीङित होने लगते हैं तब '

अबोध बच्चों का क्या कहें?
वे सबसे पहले आपस में बातें करते हैं और यौन विषय पर वार्तालाप सहपाठियों
का सबसे प्रिय विष्य होने लगता है फिर दैहिक उत्सुकतायें सबकुछ,,
प्रैक्टिकल कर लेने को आतुर करतीं हैं और नतीज़ा आता है और जानकारी की
इच्छा फिर नेट छाने जाते और पोर्न फिल्मों से यौनविकृत "दृश्य दिमाग दिल
दैहिक संयम को विवेकरहित कर डालते हैं ।


सच तो यही है कि ।

अश्लीलता पर हर तरह से रोक लगाने के साथ साथ ""स्कूल के क्लास रूम में
यौन शिक्षा देने की बजाय "एक अप्रत्यक्ष तरीका चाहिये एक स्वस्थ पाठ्य
पुस्तक और डॉक्टर की नजर से लिखी गयी भाषा चिकित्सकीय जीव वैज्ञानिक ढंग
से दिये गये पपेट डेमो और अस्पाल का सा वातावरण जो ""एक पिता और माता
अपने बच्चों को हाथ में देकर उनके हर सवाल का जवाब दे सके और साथ ही
जिसमें ""नैतिक सामाजिक नियम संयम के पाठ भी शामिल हों,,,
ये कार्य शिक्षक का नहीं चिकित्सक और वैज्ञानिक का है । इसके लिये भारतीय
परिवेश के मुताबिक ढलना होगा ।

लङकियों को एक अलग क्लास में स्त्री डॉक्टर और लङकों को एक अलग क्लास में
पुरुष डॉक्टर ये "सब सवाल जवाब का विज्ञान और मनोविज्ञान की दृष्टि से
पाठ्यक्रम से पृथक पढ़ाई करा सकते हैं ।

समाज को ""अब जरूरत है तकनीकी नजर से नयी पीढ़ी को चौकन्ना किंतु मैतिक
मनोवैज्ञानिक नजरिये से मजबूत बनाने की ।

आम बीएड एमएड शिक्षक इस तरह नहीं समझा सकते इससे केवल ''अति उत्सुकता से
स्कूलों में चरित्र विचलन बढ़ेगा ।
एक किताब और एक पपेट वीडियो से डॉक्टर की वैज्ञानिक बोली में सारे सवालों
का जवाब ज्ञान विज्ञान की नजर से पढ़ाने में कोई एतराज किसी को नहीं होगा
। क्योंकि अबोध बच्चों पर हैवानों की नजर रहने लगी है उनको सिखाना है देह
के अर्थ और समाज के संस्कार भी ।
©®सुधा राजे
क्रमशः"""""""

--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117

सुधा राजे का लेख - " एड्स का हौवा या चरित्रहीनता का प्रचार??"

एड्स का हौआ?
या
फ्री सेक्स का बढ़ावा?
एक परिचित की बहिन को विवाह के
तीन साल बाद ही सदा सदा के लिये
घर लौटना पङा "।
कारण, उसके शौहर का निजी ट्रक
था जिसपर वह फल और ब्रुश
आदि लेकर उत्तराखंड से मुंबई तक
का सफर करता था ।
साल के गिने चुने दिन घर रहता और
उसी इक्का दुक्का छू छई में
दो बच्चों की माँ बन गयी वह
""सुहागिन बेवा "।
फिर एक बार शौहर के घर आकर
बीमार पङने पर जाँच
करायी तो पता चला "एड्स
"हो चुका था ।
इसके बाद ज़ुल्म करने
की इंतिहा हो गयी वह
चाहता था कि बीबी उसकी है
तो हर हाल में उसका हक़ है वह
मरेगा तो बीबी को जीवित रहकर
क्या करना है । बंद कमरे के बलात्कार
से बचने के लिये वह मजबूर होकर
मायके लौट आयी और बच्चों का बोझ
उनके मामा पर पङ गया ।
शौहर घर से फरार हो गया ।
मामा विवश होकर मस्कट जाकर
मजदूर बन गया और विवाह
नहीं किया क्योंकि दीदी और उसके
दो बच्चों को पालना था या यूँ कहे
वह बहिन को छोङ
नहीं सकता था इसी वजह से कोई
लङकी वाला तैयार नहीं हुआ ।
उस मजबूर स्त्री का पति ट्रक बेचकर
टैक्सी चलाने लगा टैक्सी भी बेच
दी और देहरादून में एक किराये के
कमरे पर जब मरने लगा तब खबर
दी 'गुमशुदा शौहर एक दशक बाद
मिला और दो चार दिन में मर गया ।
क्या कहती है ये सत्यकथा?
आपने कभी
विज्ञापन गौर से देखे हैं?
#DrHarshvardhan
ने क्या ग़लत कहा है!!!!
(माफी बुजुर्गों से बेअदबी के लिये)
किंतु जब जब ये कंडोम के विज्ञापन आते
हैं लगता है प्रचार किया जा रहा है
जमकर अय्याशी करो अब डरने
की जरूरत नहीं क्योंकि कंडोम है
तुम्हारे पास । और हर वक्त कंडोम
रखो करीब क्योंकि रता नहीं कब
कहीं भी लङकी मिल जाये और कंडोम
जेब में ना होने से हाथ से मौका निकल
जाये ।लङकी जैसे हर तरफ रात दिन
सङक पहाङ समंदर कहीं भी मिल
सकती है लेकिन कंडोम वक्त पर साथ
नहीं तो सुनहरा मौका गँवाना पङ
सकता है ।""
ये सब अंतर्निहित संदेश है
हर विज्ञापन की भाषा कहती है
कि जेब में कंडोम मतलब कोई परवाह
नहीं । जमकर
मस्ती करो लङकियाँ पटाओ और ऐश
करो!!!!
जबकि
न तो पत्नी को पति और
पति को पत्नी के प्रति हर हाल में
वफ़ादार तन मन से रहने का कोई
संदेश है ।
न ही कोई संदेश है कि बच्चों में अंतर
रखने के लिये ये एक सुरक्षित उपाय है

न ही यह संदेश है कि एड्स से बचना है
तो चरित्ररवान रहें एक पत्नीव्रत
का पालन करें अप्राकृतिक सेक्स
ना करें और नशे ड्रग्स आदि से दूर रहें
और दूर रहे सङकछाप टैटू गोदने और
नाक कान बिंधवाने वालों से ।
एक दूसरे के अंडरपेंट्स इस्तेमाल ना करें
ना ही एक दूसरे के "लिप्सटिक
ट्वीजर प्लकर और सेफ्टीरेजर
इस्तेमाल करें कंघी और नेलकटर
भी निजी ही रखें ।
कंडोम भले ही एक हद तक यौन
संक्रमण से बचाता हो ।
किंतु बाजारू औरतों या पुरुष वेश्याओं
का एड्स से
बचाया जाना जरूरी नहीं है क्या????
वेश्यायें किन्नरों गे और
गिगेलो मानव नहीं क्या ????
क्या एड्स संक्रमित वेश्या के साथ
बिना यौन संबंध के अन्य प्रकार से
किसी इंन्फेक्शन से एड्स
नहीं हो सकता?
शरीर का कोई भी इंटरनल इश्यूज
एड्स संक्रमण कर सकता है यहाँ तक
कि मासिक श्राव । दूध की बूँदे । मुँह
के छाले मसूङों से रक्तश्राव और कटे फटे
होठों से एक ही सुई से ड्रग्स लेने से
और अप्राकृति यौनाचार से!!!!!!
क्या केवल एक कंडोम का जमकर
विक्रय करके लोगों के दिमाग में यह
बात नहीं ठूँस ठूँस भर दी गयी है
कि कंडोम इस्तेमाल करो और जमकर
सेक्स करो अब तो एड्स से डरने
की कोई जरूरत ही नहीं!!!!
हमने अनेक वर्षों तक बोल्ड विवरण
देकर स्कूलों कॉलेजों में जाकर
समझाया कि एड्स क्यों कब कैसै
हो सकता है और क्या क्या बचाव है ।
आज दुख होता है जब एड्स
रोगी की मौत
की घटना दबा दी जाती है ।
किसी को एड्स हो जाता है
तो तत्काल उसे चरित्रहीन मान
लिया जाता है जबकि एक
बङा प्रतिशत तो पैथोलॉजी प्रसव
और संक्रमित इंजेक्शन से फैलता है
कंडोम है ना एड्स
नहीं हो सकता क्या यही कहना नहीं चाहता विज्ञापन
मीडिया??बाकी प्रकार के
संक्रमणों को दबा दिया जाता है ??
ब्यूटी और मसाजपार्लर तक खतरनाक
हैं ।
भारतीय संस्कृति का आदर्श पत्नी के
प्रति वफादारी है ।
तवायफ प्रथा मुगलकाल की देन है तब
भी वे अकसर "गाने बजाने से मनोरंजन
करतीं थीं "
वेश्यागामी को नर्कगामी कहा गया है

और
देवदासी प्रथा का अर्थ केवल बाद में
बिगङा तब भी यह एक
प्रथा थी जिसकी पत्नी मर
गयी जो कुरूप और अन्य कारणों से
विवाह नहीं कर सका वही अकसर
कोठों पर जाता था ।
परिवार के प्रति वफादारी ही सब
तरह से संस्कृति में प्रधान
रहती थी ।
लोग नाच गाना जरूर देखते किंतु
दैहिक संबंध बनाने वाले
को """बुरा ही कहा जाता रहा ""बुजुर्ग
और महिलायें अंकुश रखते कि कोई
चरित्रहीन न हो जाये ।
आज??
कुंमार बेटे को बाप कंडोम
थमाता है??
तो
कुँवारी लङकियों को कहो कि माँओं से
बर्थ कंट्रोल और कंट्रासेप्टिव पिल्स
दिया करें!!!!!!!!!
क्योंकि
ये हर जगह मौजूद बिछने को तैयार
लङकियाँ का जन्नत और इंद्रलोक से
बरसेंगी???
हर वह व्यक्ति जो स्वयं रो समाज के
प्रति जरा भी जिम्मेदार समझता है
हम चाहते हैं कि अब वक्त है उठकर
बात करे पहल करे हर जगह बस ट्रेन
स्कूल चौराहे पर "
पच्चीस साल ब्रह्मचर्य
का कठोरता से पालन करो और
विवाह करके अपनी पत्नी के
प्रति वफादार रहो और दो संतान के
बाद पुरुष नसबंदी करवा लो ।
पचास के बाद पुनः कठोर ब्रह्मचर्य
का पालन करो और
अपनी सारी योग्यतायें समाज
सेवा पर लगा दो ।
पचहत्तर के बाद अपनी समस्त
संकलित वस्तुयें जरूरत के सामानों के
सिवा संतानों में बाँट दो और अपने
ज्ञान को संसार के उद्धार हेतु
लगा दो ।
बिना आत्मसंयम के विष्टा खाने वाले
जीव और मानव में कोई अंतर नहीं ।
संस्कृति बचाईये
हर समस्या का समाधान
यहीं मिलेगा ।
copy right ©®सुधा राजे

--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117

Friday 27 June 2014

सुधा राजे का लेख - " कागज़ों का अंधाधुंध इस्तेमाल खतरनाक है मनुष्य और प्रकृति के लिए।"

क्या आप चाहते हैं कि आपके शव जलाने
की बजाय खाईयों में फेंक दिया जाये?
क्या आप चाहते हैं कि आपके बच्चे और
उनके बच्चे केवल तसवीरों में देखें आम
कटहल जामुन बरगद पीपल पाकङ?
क्या आप चाहते हैं कि धरती एक
तपता हुआ रेगिस्तान बन जाये?
क्या आप चाहते हैं कि फिर न
कभी किताबें रहें न पालने?
क्या आप चाहते हैं कि बकरियाँ गायें
बैल भैंस भेङें ऊँट खत्म हो जायें?
क्या आप चाहते कि आगे
वाली पीड़ियों को फल सब्जी न मिले
बस स्वाद का कैमिकल फ्लेवर कैपसूल
या दवा के रूप से मिले???????????
तो क्यों नहीं समझते कि आप एक पेङ
रोज खत्म करते हैं लेकिन लगाते एक
भी नहीं!!!!!!!
तो?
टिशू पेपर बंद कीजिये ', रूमाल एक
ही रूमाल हजारों बार धोकर
इस्तेमाल किया जा सकता है ।
कागज के दोने पत्तल बंद कीजिये
''थालियाँ माँज कर बार बार
इस्तेमाल करें और अगर संभव
हो तो ""पत्तों "की पत्तल इस्तेमाल
करें जो वापस खाद बनकर पेङों के
काम आती हैं ।
टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल बंद कर दें
। भारतीय तरीका ज्यादा सही है
और प्रकृति मित्र भी ।
कागज के बने लिफाफे अगर
रिसाईकिल्ड कागज के
हों तभी इस्तेमाल करें ।
फ्रेश पेपर बैग बनाना बंद करायें ।
इनकी जगह एक दरजन घर से
ही थैला थैली झोला आदि लेकर
बाजार जायें और घर के पुराने मजबूत
कपङों से ही सुंदर शॉपिंग सैचल बैग
थैले झोले तैयार करें ।
नर्सरी और केजी कक्षाओं का अभ्यास
कार्य स्लेट और पाटी पर बार बार
कराकर याद करायें । क्योंकि तब
कोई रिकॉर्ड
तो रखना नहीं होता केवल
वर्णमाला गिनती पहाङें एल्फाबेट
ही सिखानी होती है ।
हम #भारतसरकार से निवेदन करते हैं
कि ""कक्षा नर्सरी से कक्षा दस तक
के पाठ्यक्रम में
"""राज्यभाषा राष्ट्रभाषा अंतर्राष्ट्रीय
भाषा की एक एक पुस्तक रखकर ""एक
रूपता लायी जाये पूरे ही हिंदुस्तान
के सेलेबस में जो प्रतिवर्ष जीके और
विज्ञान के अविष्कार की नवीनीकृत
जानकारी की एक अपटूञेट पुस्तक
रखकर
"""पाँच साल """पर ही किताबें
बदलने
की अनिवार्यता जारी की जाये ।
इससे तरह तरह
की ""रंगबिरंगी किताबें अंधाधुंध
छपनी बंद होंगी । और "समाचार
वाचनालय प्रथा फिर चालू करके
बच्चों को अपटूडेट
जानकारी दी जा सकेगी । और तमाम
किताबें जो हर साल
रद्दी हो जाती हैं ""सेकेंड हैंड थर्ड
हैंड और फोर्थ फिफ्थ हैंड ""तक
पढ़ी जा सकेगी इससे कागज बचेगा पेङ
बचेगे ""माँबाप
का पैसा बचेगा ""प्रकाशकों की गलाकाट
मनमानी और निजी स्कूलों की ठगई से
बच्चे बचेगे और एकरूपता रहेगी पूरे
भारत की शिक्षा में ""पढ़ो चाहे
किसी स्कूल में एक ही कोर्स
रहेगा एक कक्षा होने पर
सबका ""और गरीब
बच्चों को सस्ती किताबें मिल
सकेगी । बच्चे किताबें सहेजने की आदत
डालेंगे । शिक्षकों के पढ़ाने में
गुणात्मक सुधार होगा और माँबाप
को अपने बङे बच्चे की किताबें छोटे
बच्चे के लिये काम आनी है यह पङौस
तक के काम आनी है यह ""बजट राहत
मिलेगी ""
सबसे बङा कदम होगा ""कागज
की बरबादी आधे से भी कम
हो जायेगी ।
सरकारी दफ्तरों में ""रिसाईकिल्ड
पेपर ही इस्तेमाल करने के निर्देश
दिये जायें ।
और कागज मिलों पर कङे नियम लागू
हों कि ""हरे पेङ इस्तेमाल न करें ""
लोगों में सामाजिक चेतना लायी जाये
कि ""बजाय बङा सा ग्रीटिंग
या निमंत्रण पत्र भेजने के ""डाक
पोस्टकार्ड को निमंत्रण पत्र मैटर
लिखकर या छापकर पोस्ट किये जायें
और डाक विभाग ऐसी योजना चलाये
जिसमें सस्ते खुले पोस्टकार्ड शॉर्ट
मैटर के साथ डाकघर प्रिंट कर दे
ताकि लोग शुभकामना और निमंत्रण
पत्र भेज सकें ।
मोबाईल और इंटरनेट के भेजे
संदेशों को ही कुटुंबी परिजन
मित्रजन ""निमंत्रण पत्र
""की मान्यता दें और सूचना मिलने
की बिना पर उनको आगंतुक मान
लिया जाये ।
परिचय पत्र पासबुक रसीदबुक और
तमाम बहीखाते रजिस्टर
""रिसाईकिल्ड पेपर से बनाये जायें ""
घरों में "वुडनवर्क ना करायें "और
लकङी के फर्नीचर की बजाय "केनवुड बाँस
बींङ के मूढ़े कुर्सियाँ आदि इस्तेमाल करें
""

नेताओं के ""पेपर परचे बैनर फ्लैक्स
होर्डिंग की बजाय ""टीवी नेट और डोर
टू डोर प्रचार """अनिवार्य कर दिये
जायें """हैंडबिल पर रोक लगायी जाये।
पेपर मिलें ""जितना पानी बरबाद
करतीं है उतना तो बूचङखाने भी मांस
धोने में पानी बरबाद नहीं करते इसलिये
उनपर दवाब डालक """वाटर
रिसाईक्लिंग प्रोजेक्ट लगवाये जायें

लोगों को बढॉवा दिया जायें
कि घरों की बाहरी दीवार ""प्रचार
कार्य के लिये लिखित दिनांक तक
किराये पर दें ताकि दीवार लेखन से
प्रचार हो और """परचाबाजी में कागज
बरबाद न हो "
©® सुधा राजे


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Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117

Thursday 26 June 2014

तुझ सा नहीं है कोई

Sudha Raje
होंठों पे बाँसुरी के सधे सुर ठहर गये।
माथे पे भाद्रपद के मेघ ज्यूँ बिखर गये

आनन उजास जैसे
पूर्णिमा का चंद्रमा ।
लोचन विशाल नीली झील
की परिक्रमा ।
गोरा गुलाबी रंग नयन मत्त मदभरे
विस्मृत करें तो कैसे प्रथम दर्श बावरे

तुझ सा नहीं है कोई कहीं मेरे साँवरे ।
©®सुधा राज

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Sudha Raje
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सुधा राजे का व्यंग्य लेख- ''मासूम"भारतीय और "गंदे" रेल वाले।

घर की साफ सफाई औरतें न करें
तो???????? और शहर केवल नगर
पालिका की जिम्मेदारी????? रेल
की सफाई भी तो बस बसअड्डा और
प्लेटफार्म
ही नही """कसबो गाँवों के
किनारे पटरियों का खुड्डी की तरह
इस्मेमाल करते लोग??????
बढ़िया लेखक
तो मिलते ही टॉयलेट भित्तिलेखन
कार्य
के क्या कहने,???? और छत के पंखों पर
जूते
चप्पल?? सीट के नीचे ""सब कुछ
अधिकतर ""डिरेलमेंट के एक्सीडेंस
किसलिये?? क्योंकि मासूम जनता के
मासूम लोग पटरी से
जलेबी यानि 'लिंक्स "उखाङ ले जाते हैं
और पटरियों को भी ।
महान भारतीयों को बस रेल तोङफोङ
चक्काज़ाम ""का पहले
ही चस्का पङा है ।और
सरकारी संपत्ति उन के बाप
दादा की है सो टोंटियाँ शीशे घर ले
जाना उनका हक है ।
और भी महान चीजें है
जो रेलगाङी को """सुंदर बनाने के
लिये भारत की मासूम जनता करती है
""
'''
बेचारे भारत के निरापद लोग
जो """साफ सुथरी रेल चाहते हैं
दयनीय !!
अद्भुत हैं "अबोध बेचारे भारतीय "बस में
जब सारी सवारियाँ उतर जायें
तो ''''मूँगफलियाँ और फलों के छिलके
ही नहीं ""गुटखे पान भी शान से थूके जाते
है 'गांधी के बाद देश की सबसे
बङी पहचान "गुटखा और पान ।।
बेचारी सुघङ अबला भारतीय सुशील
गृहणियाँ घर को हर अमावस
पूर्णिमा पर भले ही दीवाली सा झाङ
पोंछ करें किंतु रेल गाङी और बसों में
बच्चों के डायपर तक सीट के नीचें मिलते
हैं टॉयलेट का अब तक इस्तेमाल
करना आता नहीं बेचारियों को सो ""फर्श
पर ही नौनिहालों की सजावट
बिखेरती हैं ।

टॉयलेट लेखन में तो जैसे माहिर हैं
""वात्स्यायन के वंशज
युवा "क्योंकि उनको सबसे जरूरी छाप
लगता है कि ""भारतीय युवा साक्षर
हो चुके है "यह कैसे पता चले
सबको ''यहाँ तक कि टॉयलेखन के माहिर
बौद्धिक युवा साक्षरों के ""तमाम
निबंध कविता कहानियाँ चित्र और
परमवचन ""भारत के सबसे साफ कहे जाने
वाले अस्पतालों तक में देखे गये '' #जयपुर
संतोकबा दुर्लभजी की चौथी मंज़िल पर
सीरियस हड्डी न्यूरोलॉजी केस के
मरीजों के वार्ड में """ज़ाहिर है बेडपेन
इस्तेमाल करते हिल डुल न सकते
मरीजों का तो कार्य
होगा नहीं ",,तो तीमारदारी को पहुँचे
बंधु बांधव ही ये """परम लेखन
वहाँ भी उकेर आये होंगे ।
©®सुधा राजे

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Sudha Raje
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Sunday 22 June 2014

सुधा राजे की गज़ल " कोई भी न मिल पाया मुझे "।

ज़िंदग़ी ले
जो दिया था मैंने
लौटाया तुझे

बस गुनहग़र रूह का अपनी हूँ
याद आया मुझे

थे वो "पुतले अक़्ल के"
मैं सादग़ी समझे गया
मैं परायी पीर
रोया बंदगी समझे
गया
मैं समंदर रेत को
मीठी नदी समझे गया
मौत
थी हँसती किलकती ज़िदगी
गया।

पिसरे सल्बी
कहके मक्तल
ज़ोरावर
लाया मुझे
हूँ गुनहग़र रूह अपनी ही याद
आया मुझे


थे बहाना मुझको रस्ते से
हटाने
के लिये
झूठ के रिश्ते बने थे बस
ज़माने के
लिये
सारी बातें
ही थीं नकली एक दाने
के लिये
आसमाँ धरती की बातें
थीं दिखाने
के लिये

जब जले तो फिर कोई
साया न
मिल पाया मुझे
हूँ गुनहग़र रूह
का अपनी ही याद
आया मुझे


क्या कहा था ज़िन्दगी भर
साथ देंगे हाथ वो
वो बयांबांमांदगी
को छोङ गये इक रात जो
दर्द से ज़मकर बरफ हो गये
नरम ज़ज्बात वो
वो जो लाये थे दिखाने
सावनी बरसात को

हाँ उन्हीं हाथों ज़हर
का ज़ाम फिर आया मुझे ।
बस ग़ुनहग़र रूह का अपनी हूँ याद आय़ा मुझे।

कितनी मासूमी से
सहला कर रखे पाले शज़र
सींचते ख़्वाबों में नींदों में
जो रस्ते उम्र भर
कोई मंज़िल
थी तो क्या थी भूल
गयी ठंडी सहर
गर्म
धरती आसमां जलता भटकता हर
शहर

कितनी आवाज़ें दी कोई
भी न मिल पाया मुझे
हूँ गुनहगर--रूह का अपनी ही याद आय़ा मुझे ।

---—-
क़त्ल होते रह गये मासूम
अरमानों के दिल
रात थी बेदार सारे दिन
थे तन्हा संग़दिल
हर तरफ़ गिर्दाब साहिल
डूबते क़श्ती में पल
रह गयी अदनी सी हिम्मत
जलज़लों से यूँ दहल

नाख़ुदा वो ग़म
"सुधा "जिसमें
ख़ुदा लाया मुझे
हूँ ग़ुनहग़र रूह
का अपनी ही याद
आया मुझे
copy Right
लेखिका
सुधा राजे
Sudha Raje


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Saturday 21 June 2014

सुधा राजे द्वारा कटहल की रेसिपी।

माँसाहारी हैं या नहीं हैं तो क्या, मुर्गा मीट भूल जाईये और कँटहल की
सब्जी खाईये ।शाकाहारी व्यञ्जन और माँसाहारी स्वाद।

कँटहल
जिसे पश्चिमी उत्तरप्रदेश में बङहल कहते हैं जबकि बङहल आम जैसा एक पककर
पीला होने वाला मीठा फल होता है । और कँटहल काँटोदार छिलके वाला बङे आकार
का एक सब्जी में प्रयोग किया जाने वाला फल है जिसके पकने पर बीजों के आस
पास जो कवर होता है वह "कोया "केले की तरह स्वाद वाला मीठा हो जाता है ।
इसलिये "कँटहल जब भी सब्जी बनाना हो "दूध निकलता हुआ कच्चा फल ही हरे रंग
का तोङ कर लाया हुआ खरीदें और यथा संभव उसी दिन सब्जी बना ले पकने पर
सब्जी का स्वाद खराब हो जाता है ।
लगभग (एक किलो कँटहल)
1-
सब्जी की विधि ।

इसको काटने से पहले हाथों पर और चाकू पर तेल मलिये । फिर काटकर काँटे
हटने तक की परत छील कर अलग कर दें ।
लगभग दो दो इंच तक के टुकङें तिकोने साईज के काट लें और गुनगुने पानी से
धोकर पानी निथार लें ।
अब कङाही में एक चमचा तेल डालकर कटहल के टुकङे डालकर हल्के सुनहरे भूरे
होने तक तलें और हींग का चूरन डालकर चलायें । उतार कर प्लेट में निकाल
लें ।
अब दुबारा एक चमचा तेल डालकर गरम करें ।
एक पत्ती रतनजोत गरम तेल में डालें
पूरे एक बङे लहसुन गाँठ की कलियाँ छीलकर पीसा गया लहसुन पेस्ट डालकर
सुनहरा होने तक चलायें ।
फिर पूरी दो बङी प्याज का पेस्ट डालकर भूने एक बार एक चमचा पानी डालकर
फिर दो टमाटर पिसे हुये डालकर भूने '.
फिर एक छोटी चम्मच अदरक पेस्ट डालकर भूनें और चलाते रहें ।
अब एक बङा चम्मच गाढ़ा दही डालकर भूने ।
मसाला तली में लगना नहीं चाहिये ।
अब पिसी हुयी लाल मिर्च पिसी हुयी सूखी धनिया पिसी हुयी हल्दी ।
एक एक चम्मच चाय के बङे चम्मच से डालकर चलायें ।
थोङा सा मिक्स गरम मसाला डाले
जिसमें हो
काली मिर्च पाँच से दस तक दाने पाँच लौंग दो बङे तेजपत्ता एक मटर के दाने
बराबर जायफल का टुकङा एक जरा सा टुकङा जावित्री चुटकी भर काला जीरा थोङा
सा दगङफूल और तीन कालीइलायची या डोंढ़ाइलायची और चुटकी भर काली राई ।
सब पीसा हुआ हो ।
या किसी अच्छी कंपनी का मिक्स गरम मसाला लेकर एक बङा चम्मच डालकर पानी
डालकर चलायें ।
हर बार पानी सूखने पर आधा कप पानी डालकर चलायें ।
लगभग चार बार पानी सूखने के बाद मसाला फटकर तेल मसाला अलग अलग हो जायेगा ।
अब कँटहल के तले हुये टुकङे डालकर चलायें और पाँच मिनट के लिये गैस बंद
करके ढँक दें ।
दूसरे बर्नर पर घर में अगर मकई का आटा हो तो या ना हो तो केवल एक चाय का
चम्मच बराबर बेसन लें और तवे पर कुछ बूँदें तेल की डालकर भून लें कषार या
पंजीरी की तरह ।
अब कँटहल के बरतन के नीचे दुबारा आग जलायें और भुना हुआ बेसन या मकई का
आटा डालकर चलायें ।
अगर सूखी सब्जी बनानी है तो आँच धीमी करके दस मिनट भारी बरतन से ढँक दें
। या कुकर में एक सीटी ले लें ।
और उतार कर बारीक कतरी हुयी धनिया और अगर पसंद हो तो सूखी पत्ती पोदीने
पालक मैथी की चूरचूर कर दो चम्मच डालकर चला दें ।
सूखी कँटहल सब्जी तैयार है

अगर रसेदार सब्जी पसंद है तो दो बङे गिलास या छह कप पानी डालकर एक सीटी
लें और कुकर उतार कर फिर धनिया कतरन डालकर गरमा गरम चपाती चावल पुलाव के
साथ ""शाकाहारी मसालेदार "व्यञ्जन का स्वाद लें ।

ज्यादा चटक पसंद है तो कतरी हुयी हरी मिर्च का तङका बनी बनाई सब्जी में लगा दें ।

अंडा खाने वाले लोग इसकी ग्रेवी के रस में उबाल कर छीलकर तलकर अंडा मिला
लें और अंडाकरी का लुत्फ उठायें ।

अगली विधि अगली किश्त में
क्रमशः जारी '



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Sudha Raje
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Thursday 19 June 2014

सुधा राजे द्वारा करेले की रेसिपीज़।

परदेश में बसी एक भतीजी की फ़रमाईश
पर """करेले बनाने की कुछ विधियाँ""
कङवे नहीं लगेंगे आजमा कर देखें
करेला पोषक तो है ही पेट साफ ऱखता है
रक्त शोधक है और भूख बढ़ाता है पेट के
साधारण कृमि अकसर करेले खाने से खत्म
हो जाते हैं ।
मधुमेह के रोगियों के लिये करेला एक
औषधि है और चना गेंहूँ मिश्रित आटे
की रोटी के साथ खाने पर रक्त
शर्करा को नियंत्रित रखता है । अकसर
पुरुषो बच्चों को करेले पसंद नहीं आते
क्योंकि कङवे बनते हैं । तो रेसिपी बदल
कर देखें ।
1-करेले ताजे हरे और छोटे आकार के लें ।
उनको हल्का सा छीले खुरच कर धोकर
पानी सुखा लें और गोल
या अर्द्धचंद्राकार चिप्स की तरह
बारीक काट लें ।
अब कटे हुयें करेलों पर नमक छिङक कर
मिला दें और प्लेट को भारी ढक्कन से
दबाकर तिरछा करके रख दें ।
आधा घंटे बाद कङवा पानी निकल कर बह
चुका होगा और दबा दबा कर निचोङ लें ।
अब जितने करेले लिये हैं उतने ही वजन में
प्याज लें जैसे य़दि आधा किलो करेले लिये है
तो आधा किलो मोटे परत वाली प्याज लें

प्याज के बारीक लच्छे कर ले स्लाईसर
या छुरी से काटकर ।
फिर एक कच्चा आम ले और छीलकर कद्दूकस
कर लें ।
आम जब न मिले तो अमचूर पिसा हुआ ले लें
एक बङा चम्मच ।
सामग्री
एक चम्मच खङा साबुत धनिया
चार पाँच लाल साबुत मिर्चें
एक छोटा चम्मच मैथी दाना
चुटकी भर राई दाने
लेकर जरा सा तेल तवे पर रखकर भून ले
कि हल्के कुरकुरे हो जायें ।
और फिर पीस लें सब चीजें एक साथ ।
अब
लहसुन कतरा हुआ बारीक
और सौंफ दाना एक बङा चम्मच लेकर
कड़ाही में तेल गरम करें ।
एक पत्ती रतन जोत डालकर सौंफ लहसुन
छोङकर आधा मिनट चलायें और करेले प्याज
एक साथ छोङ दें ।
चलाकर नमक डालें याद रहे अंदाज से
आधा ही नमक डालें ।
और अब पिसी हुयी सादी धनिया पाउडर
हल्दी मिर्च पाऊडर और गरम
मसाला मिक्स पाऊडर डालकर चलाकर
ढँक दें ।
दस मिनट बाद जो मैथी राई
मिरची धनिया भूनकर पीसे थे उनको बुरक
कर चलायें ।
एक मिनट बाद कतरा हुआ आम या अमचूर
डालकर फिर ढँक दें और आँच बंद कर दें ।
दो मिनट बाद फिर चलाकर आँच
धीमी करके चलायें और उतार कर ।
चाहे
तो कसूरी मैथी 'सूखा पोदीना पत्ती पाउडर
और हरी धनिया कतर कर डाल सकते हैं ।
स्वादिष्ट करेले तैयार है ।
आप अरहर की छोकी गयी दाल चावल
बेसन की रोटी के साथ करेले खाकर देखें ।
दूसरी विधि अगली किश्त में
©®सुधा राजे


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Sudha Raje
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Monday 16 June 2014

सुधा राजे की कहानी ::भाभी की नई साङी ''

कहानी ""भाभी की नई साङी ""
'''''''''27-3-2014-/-6:28AM./(सुधा राजे)
,,,,,,:::::::::::::
अरे जौ का भैन जी '! अपुन फिर दो धुतियाँ लिआयीं!

रख लो 'भब्बी 'साब ' अपुन पै जौ पीरौ हरौ रंग भौतई नौनौ लगत!

कहते तो बङी भाभी के शब्द इनकार थे किंतु चेहरे पर खुशी थी नया कीमती
उपहार पाने की ।
सोने की नथ और भतीजी को पायल दोनों भतीजों को पैन्ट शर्ट और भतीजी को कई
जोङी सलवार सूट बूट घङी भाभी के लिये स्वेटर शॉल और भाभी के किचिन के
लिये तमाम बर्तन डिब्बे प्रेशर कुकर छोटी भाभी के किचिन के लिये डिनर
प्लेटें गैस सिलेंडर और साङी कपङे सब करने के बाद जब "सृष्टि " वापस
लौटने लगी तो ', स्टेशन पर बङे भैया भेजने आये
छोङने साथ में बङी भतीजी और भतीजा भी ।


"मैं माँ की एक साङी ले जा रही हूँ ये साङी मैंने ही माँ को गिफ्ट की थी
एक दर्जन साङियों के साथ "

कौन सी वाली बुआ जी?
मुक्ति 'के चेहरे से साफ दिख रहा था कि उसे पसंद नहीं आया 'दादी के सामान
को बुआ छू लें 'वह अब खुद को हर चीज की मालिक और बुआ को दूर की मेहमान
समझने लगी थी ।
बच्चों का दोष क्या घर के बङों से जो सुनते देखते हैं वही समझते हैं । कल
तक यही मुक्ति बुआ के लिये सबकुछ थी ।

और हाँ ""एक हाथ का पंखा भी जो माँ ने बनाया था अधूरा ही रह गया ""

अबकी बार भैया को लगा कि अतिक्रमण उनके हक पर किया गया है । माँ के बर्तन
गहने कपङे जेवर घर जमीन और सब कुछ रखने के बाद माँ की दो निशानियाँ तक
"नाग़वार "गुजर रहीं थीं जिन लोगों को बाँटनी वे कल तक "सृष्टि के अपने
थे 'सोचकर वह मन ही मन हँस पङी ।

उसे याद आया """"""""""तब उसने इंटरमीडियेट किया था """"""

गोरखपुर वाले काका के लङके की शादी थी । तब बङे भैया की एक कलीग से लङाई
के चक्कर में नौकरी छूट गयी थी । भाभी तब कहीं उदास न हों इसलिये सुलेखा
हर बार कॉलेज से आते समय कुछ न कुछ सामान खाने पीने पहनने या मेकअप वगैरह
का भाभी के लिये खरीद लाती थी । मुक्ति और मुन्ने के लिये भी हर तरह के
सामान लाती । बापू जो पॉकेटमनी देते जो पैसा तीज त्यौहार पर मेहमान दे
जाते वह सब केवल भाभी और भतीजों पर ही खर्च कर देती थी ।
भाभी को शादी में जाना था बापू ने सबको बराबर पैसे दिये कपङों के लिये
'लेकिन सृष्टि अपने लिये सिर्फ दो सूट लायी और वह भी सस्ते वाले जबकि
भाभी के लिये पाँच साङियाँ चूङी बिंदी मैचिंग सहित लाई ।
बारात वापस आने का समय था और काकी ने अचानक फरमान सुना दिया कि सब बहिनें
साङी पहिन कर तिलक करेगी लौटने वाले भाई और बारातियों को शरबत पिलाने
जायेंगी ।

कदाचित काकी और बुआ का विचार था अपने कुटुंब की धाक जमाना । रहन सहन और
परंपरा की । ताई चाहतीं थी कि उनकी बेटी को बारात में बनारस के बाबू साहब
पसंद कर लें । और? लङकी लङके को पता भी न चले अनजाने में देख दिखा ले ।

सृष्टि ने भाभी से कहा भाभी 'वह क्रीम कलर की साङी निकाल दो जरा काकी
कहतीं है सब साङी पहनो मेरे पास तो केवल सूट हैं ।

भाभी, अनसुनी करके चली गयी । सृष्टि ने सोचा सुना नहीं वह पीछे पीछे गयी
और हाथ पकङ कर बोली 'भाभी साङी निकाल दो न "। भाभी बोली, चाभी नहीं मिल
रही है जब मिल
जायेगी निकाल दूँगी ।
थोङी देर बाद सब लङकियाँ तैयार हो गयीं । सृष्टि सबको साङी पहनने में
मदद करती रही और ',सब की सब लङकियाँ थाली शरबत आरती सजाने में लग गयीं
।तभी काकी आकर डपटती हुयी बोली "अरे सृष्टि बेटा तुम तैयार नहीं हुयीं
अब तक?
जी काकी वो चाभी नहीं मिल रही है भाभी की वही ढूँढ रही हैं "साङी तो भाभी
के संदूक में ही है न!
कौन सी चाभी 'फूलमती की? वह तो अभी खुद पहिन ओढ़कर तैयार हुयी है बहू
आगमन के लिये जेठानी है न वही तो लायेगी नयी बहू को भीतर ।

सृष्टि लगभग भागती हुयी कोने वाले कमरे में पहुँची जहाँ भाभी सजधजकर
तैयार खङीं थी विशेष रूप से वही क्रीम कलर की साङी पहिन कर ।

भाभी तो आप दूसरी कोई साङी निकाल दो देर हो रही है । पहली बार साङी
पहिननी है तो देर तो लगेगी न काकी गुस्सा कर रहीं हैं ।


""तो काकी से जाकर ले लो 'मैं तो नहीं
देती अपनी नई की नई साङी ''


भाभी ने जैसे चबाकर शब्द बोले । पीछे काकी खङीं थीं सृष्टि की हिलकी भर
उठी "सब लङकियों को उनकी भाभी सजा रहीं थीं और वे लङकियाँ वे थीं जो रात
दिन केवल पढ़ने और हुकुम चलाने में रहतीं थी ।सृष्टि ने ग्यारह साल की
उमर से भाभी की सेवा की थी भतीजी की परवरिश माँ बनकर की थी और एकदम देहात
की भाभी को रहन सहन सिखाकर सुंदरता सँवारने में कोई कसर नहीं छोङी थी ।

सृष्टि पलट कर चली गयी । बारात बाहर आ चुकी थी । वह काकी के अनाज वाले
कमरे में जा बैठी गला दुख रहा था 'आँसू भरभरा रहे थे । काश माँ साथ आयीं
होतीं और भाभी का ये रूप देखतीं ।
तभी काकी आयीं उनके हाथ में हरी सी सुंदर साङी थी और साथ में जेवरों का डिब्बा ।

काकी!!
मैं नहीं पहनूँगी ये बहुत कीमती है ।
पहन ले अपनी छोटी माँ की है न, तेरी माँ से मैंने बहुत गिफ्ट वसूल करे हैं ।

सृष्टि ने काकी का मन रखने के लिये साङी पहिन तो ली । लेकिन मन बुझने से
चेहरा बुझ चुका था । लौटकर आयी बारात में भाईयों का तिलक करते आँखे छलछला
पङीं ।

भईया ने कभी नहीं जाना क्या हुआ । लेकिन सृष्टि को याद आता रहा कि वह
"कहीं भी पार्टी में जाने से पहले नाईन को बुलाकर लाती थी कि भाभी का
उबटन कर देना कहीं जाना है ।भाभी को लेकर ही अपनी हर सहेली की पार्टी में
जाती थी । भाभी को मंदिर मेले बाज़ार ले जाना सब उसे अच्छा लगता था कितनी
खुश थी भाभी पाकर ।


फिर कभी उसने भाभी की साङी नहीं पहनी न ही कोई छोटी बङी चीज इस्तेमाल की
एक अदृश्य दीवार खङी हो चुकी थी, सवाल साङी का नहीं था भावना थी अपने
पराये पन की ।

जब लङके वाले देखने आये तब माँ ने कहा कि साङी पहिननी पङेगी परसों तो
साफ कह दिया 'खरीद सको तो पहनूँगी "किसी की साङी नहीं पहिननी मुझे । और
माँ खुद दिलवा लायीं गुजराती साङी ।


जब भी मायके आती भाभियों के लिये साङी जरूर लाती और जिस साङी को देखती कि
भाभी को ज्यादा ही पसंद है जानबूझकर भूल जाती और भाभी के कमरे में छोङ
देती ।

अबकी बार "माँ की तेरहवीं पर आयी थी "और शायद अब आने जाने का बहाना भी
नहीं रह गया ।

माँ थीं तो हर हाल में आना था तब भी दो साल में एक बार आना हो पाता था ।
क्योंकि एक साल की छुट्टी में वह अपनी ननदों को बुलाकर आव भगत करती ।
सबसे पहले आलमारी खोल देती लो दीदी अपने कपङे इसमें रख दो और जब तक यहाँ
रहो अपने कपङे नहीं पहिनना मैंने साङी ब्लाऊज गाउन सब तैयार करके रख दिये
हैं ।

जब दीदियाँ जाती तो अपनी पसंद से शॉपिंग करके जातीं ।
एक दिन जब सुना कि "दीदी अपनी चचेरी भाभी से कह रही है '''हमारी सृष्टि
है तो हमसे बीसियों साल छोटी मगर कभी कहीं ताले नहीं लगे देखे उसके राज
में अम्माँ की जगह सँभाल ली उसने ।


सृष्टि को महसूस हुआ ''कहीं गहरा घाव था जिसपर आज मरहम लग गया और ज़ख्म
भरने लगे हैं।

©सुधा राजे
पूर्णतः मौलिक रचना

--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117

Wednesday 11 June 2014

सुधा राजे के कुछ टिप्स :- बचे रहें लू से

घर से निकलते समय हैंडलूम
का सूती कपङा मुँह पर बाँधें सिर पर
भी ।
क्योंकि मिल का कपङा लगता बारीक है
किंतु "हवा के लिये
खिङकियाँ नहीं होती और बारीक होने
से
धूप नहीं रोकता ।
पानी पीकर निकलें । एक छोटी बोतल
हर
हाल में पर्स या बैग या जेब में
पानी की रखें हर समय ।
नींबू और प्याज जेब में रखें ।प्याज से लू
प्याज को लगेगी आपको नहीं । नींबू
"जब कहीं जी मितलायें या लू लग जाये
नमक पानी चीनी घोलकर पी लें ।
यानि नमक चीनी की एक
छोटी डिब्बी पर्स में रखें ।
खाना आधा पेट खाये ।
बाकी खीरा तरबूज ककङी खरबूज
मूली टमाटर प्याज नीबू
मट्ठा दही छांछ
आम का पनहा और
मौसमी गन्ना या अन्य जूस विशेष कर
बेल का जूस ले या डाभ पियें ।
रस साफ हाईजिनिक हो तभी लें
सुबह खाली पेट न निकले घर से ।
मेंहदी असली सिर पैर पर लगायें ।
मिट्टी और चंदन की पट्टियाँ लपेटे माथे
चेहरे पर ।
पोदीना हरा धनिया डालकर सलाद
पर
दही डालकर खांयें ।
कोल्ड ड्रिंक कतई मत पिये । शर्बत लें
आयुरवेदिक ।
पानी लगातार थोङा थोङा पीते रहें ।
कांच वाले ग्लास का धूप
का चश्मा लगायें ।
टोपी छाता और बङे स्कार्फ
तौलिया गमछा लपेटें ।
पानी में गुलाब नींबू डालकर नहायें ।
मसाले में लाल मिरची और गरम मसाले
यूज न करें । हरे मसाले इस्तेमाल करें ।
घर में सदाबहार पौधे रखें ।
बच्चों को दिन में धूप में न जाने दें ।
कोई भी फल तत्काल खरीदते ही न खायें
बल्कि पहले धोकर पूरा एक
घंटा पानी में
डुबोकर रखें तब खायें ।
ग्लूकोज और ओ आर एस के पैकेट घर
पर रखें । सौंदर्य साबुन की बजाय
औषधीय आयुरवेदिक साबुन लें ।
हाथ के बने सूती कपङे पहने । नायलॉन
पॉलिस्टर टेरिलीन रेशम प्लास्टिक
टेरीकॉट से सर्वथा बचें ।
लू लगने पर घोल कर हाथ पाँव
हरी पत्तियाँ रखें या मिट्टी ।और तुरंत
डॉक्टर की मदद लें ।
©सुधा राजे

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Sudha Raje
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Tuesday 10 June 2014

सुधा राजे का संस्मरण-" चिरकुटई करते क्यों हैं भलमनई।"

!!! कई साल पहले हम इलाहबाद संगम
पर थे "बापू और हमारे साथ कुछ
ऋषिकेश के ऑफिसर परिवार।

"""""""हम कोई बङे तैराक नहीं "तब
लॉ ग्रेजुएशन और आईएएस ''छात्रा थे

"""हम सब लङकियों को बोट मैन ने
एक चौकी पर नहा लेने को कहा, हम
लोग बङों के घेरे में नहा रहे थे,
चौकी के पाये पकङ कर ।
धार तेज बहुत
तेज "थी ।
""""""""कुछ स्थानीय बङी आयु के
लङके, नहाती लङकियों के अरीब
करीब नहाने को और ऊटपटाँग हरकते
करने को तैरने लगे "
हम लोगों ने
बङी महिलाओं को चारों तरफ
किया और नहाकर बोट पर क्रमशः
चढ़ने लगे और कपङे बदलने की बजाय
शॉल ओढ़ लिये ।

''''मल्लाह और
पुजारी ""बराबर चीख रहे थे
कि "''बाबू जी जमुना के जल में मत
नहाना ""वहाँ गहराई कीचङ और
खाई है ''केवल गंगा में नहाओ ।
डुबकी संगम की वहाँ पुरुषों के लिये
चौकी है उधर मिली धार में ले लो ।"""


लेकिन लङकियों को स्टंट दिखाने और
करीब से करीब बद्तमीजी करने
को तैराकी करने लगे और
""बहादुरी दिखाने के लिये ""जमुना में चले
गये ''
केवल एक मिनट और मल्लाह चीखे -

""ओह्ह्हो डूबत
बा sssssदौङा हो """"


चार पाँच कङियल तरुण काले मल्लाह कूदे
और सब अवाक्
हम प्रार्थना कर रहे थे कि "हे
गंगा माँ ये लङके हैं तो बहुत बदतमीज किंतु
सबक सिखाने को प्राणदंड न
देना हमारी आँखों के सामने
नहीं तो फिर कभी गंगा नहीं नहाय़ेंगे
हम """""

एक से दो मिनट के बाद दोनो लङके
ऊपर लाकर
मल्लाह हुक हुक करके दबा रहे थे और
लङके पानी भुल भुव कर उगल रहे थे ।
लङके बच गये
सबने
जयकारा लगाया ""बोलो गंगा मैया की जय
बोलो जमुना मैया की जय
बोलो सरस्वती मैया की जय
बोलो हर हर महादेव,,,,,,,
हम सब उन ""देव दूतों को झुक गये मन
ही मन । पूछा "भैया "ऐसे हादसे
कितने होते हैं??
मल्लाहों ने चमकते सफेद दाँत निकाल
कर कहा """बहिनी ई त हमार रोज
का कार बा ""ई बाबू लोग
पढ़ा लिखा बङमनई आवे लें गंगा नहाये
करे लगलैं महरकट चिरकुटई त
गंगा माई दयालु बाङीं बखस
दिहेली तब जमुना माई रोष करेली औ
डूबो दिहेली
न ई इहाँ "गंद मचाबैं । न संगम कै
देउता इनके डुबौबैं ।
ई एहि लायक बाङैँ "
बकि हमार काज बा डुबले मनई
बचावा ।

उन सब मल्लाहों ने बारह पंद्रह
की आयु से हजारो ""पढ़े लिखे
चिरकुटों की जान बचाई """

सवाल है "नदियों पर चिरकुटई करते
क्यों हैं?पढ़े लिखे भलमनई?

और नमन उन जीवन
दाता नाविकों को ।

जो किसी पुरस्कार के बिना जीवन बाँटते हैं ।


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Sudha Raje
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सुधा राजे का लेख :-" नियमों की अवहेलना करते नौजवान।

कल कोई "कुमार पत्रकार न्यूज प्रेस
पर बङा चीख चीख कर आरोप
लगा रहा था ""इस देश की संसद मौन
है चौबीस
इजीनियरों का हत्यारा कौन है ।
उसने "राष्ट्रपति पर भी व्यंग्य
किया कि ""लिखे हुये भाषण पढ़ने के
बीच कोई कुछ नहीं बोला और चौबीस
छात्र डूबते रहे ""
साफ समझ में आ रहा था कि पत्रकार
सारा आरोप "भाजपा और
मोदी सरकार पर मढ़ रहा था ।
जबकि दूसरे चैनल देखने पर ये बात
सामने आयी की वे छह लङकियाँऔर
उन्नीस लङके ""गाँव वालों के रोकने
के बाद भी ""एडवेंचर की धुन में
नदी में उतरे
और साफ साफ दिख रहा है
कि शहरी आराम तलब युवक
युवतियों ने जरा भी गौर
नहीं किया कि नदी में बङे बङे गोल
पत्थर है जो ढुलकते है तलहटी में
भी बोल्डर और बङे पत्थर
दरकी चट्टाने है ।
ऐसी नदी में न तो तैरना संभव है न
नाव चलाना ।
चाय की दुकान से नीचे गहराई पर
उतरने पर भी गाँव वालों ने
रोका कि ""डैम का पानी छूटने
वाला है नीचे मत जाओ ""
फिर ""हूटर
""बजाया गया ऐसा कहना है डैम
कर्मचारियों का ।
जबकि आप और हम ये जानते हैं कि लङके
लङकियाँ नौजवान बालिग और स्वस्थ
युवक युवती थे कोई ""दूध पीते बच्चे
नहीं """
पानी में किलोलें
अठखेलियाँ फोटोग्राफी और पहाङ
नदी आग पानी जंगल सङक कार बाईक
पर ""लङकियों और दोस्तों पर
"बहादुरी गाँठने
"की खिलंदङी "ऐसी ही आयु
की जबरदस्त
भूलें होती है ।
फोटो में साफ दिख रहा है कि लङके
लङकियाँ बढ़ते पानी को भी मजाक में
लेते रहे और रिस्क उठाते रहे कि बस
अभी कूद कर बाहर आ जायेगे ।
ये रिस्क आप कहीं भी देखे ।
सङक पर मोबाईल के गीत सुनते और
ईयर प्लग लगाकर बतियाते
बिना हैलमेट के जुल्फे लहराते स्टंट
करते लङके ।लङकियाँ पीठ पर
चिपकी हुयी ।
कॉलेज में मुँडेर पर चढ़ते ।
नगर में टावर पर चढ़ते बसंती के
आशिक ।
क्या डैम
कर्मचारियों की नौकरी पीकर उनके
परिवार को भूखा मारकर उस भूल पर
परदा डाला जाना सही है?
कि आज के लङके लङकियाँ न
तो चेतावनी मानते सुनते है ।
न ही बङे के टोकने पर कोई ध्यान
रखते है ।
न ही चौकन्ने चुस्त दुरुस्त और संकट से
निबटने में सक्षम!!!!!
गजब तो है कि "सैनिक की आयु सोलह
से पच्चीस और वह जान
की बाजी लगाकर युवको को बचाये
',जबकि उसके हम उम्र और बङे युवक
मस्ती मौज के सिवा न तैर सकने में
निपुण न कोई ""आपदा से निपटने में
""
स्विमिंग पूल के ""बाबा बेबियो,,
हिमालय और
यहाँ की नदिया आराधना की शक्तियाँ है

मौज मस्ती से पहले याद रखें
कि यहाँ पहाङ है
किसी भी सूखी जमीन पर भी अचानक
पानी । भू स्खलन । बादल
फटना बरऱबारी । बाढ भूकंप
हो सकता है ।
कुदरत का सम्मान करो दर्शन
करो उसे चुनौती मत दे ।
हमें दुख है किंतु महसूस करें
कि गलती किसकी है,
नदी के हजारो मील दूर तक
भी कहाँ कहाँ सरकार जाल बिछाये??
लोग स्वयं क्यों नहीं कुदरत के नियम
मानते,,,
ये हर समय शोर करते और मोबाईल
पर गीत सुनते चीख कर बतियाते लङके
""किसी की सुनते कब हैं """
और कब तक ""ये निहित विरोध के
लिये विरोध ""
पत्रकार चीख रहा था ""जब लङके
डूब रहे थे सांसद मेजे थपथपा रहे थे!!!
क्या खबर है?
तब न जाने कितने लोग जल रहे थे न
जाने कितने कब्र में उतारे जा रहे थे न
जाने कितनी लङकियाँ मार
खा रही थी? जबकि वे ""न शोर में
चेतावनी अनसुनी रही थीं न
ही जानबूझकर ढुलकते पत्थरों पर चढ़
रही और रिस्क ले कर अपने आप
को नदी के हवाले कर रही थी
ऐसे लोगो के लिये "पत्रकार शब्द, कुछ
ज्यादा नहीं हो गया?
समाचार निष्पक्ष होना चाहिये और
पत्रकार को न्यायधीश
की भाषा नहीं बोलनी चाहिये ।
दोषी कौन ये तय पत्रकार नहीं कर
सकते ।
अभिनति पेशे से गद्दारी है ।
माना कि अब तक हर जगह विकास
नहीं हुआ है ।
लेकिन ग्रामीण रोज कहीं न
कहीं हादसे के शिकार होते है तब ये
पत्रकार कहाँ चले जाते है ।
क्या ग्रामीणो की मौत की कोई
कीमत नहीं?
और हाँ सङक पर जब ईयर प्लग
लगाकर स्टंट और रेस लगाते
बिना हैलमेट वाले ""बच्चे ""कब
दिखायेगे??
क्यों नहीं स्कूलों में आपदा स् निपटने
के लिये इंटर तक अनिवार्य एन
सी सी कर दी जाये???
लङको को लङकियों को ""नियम
पालन भी सिखाओ और खुद
की रक्षा करना भी ।
देश की नादान प्रतिभाओ ।
काश कोई सबक ले पानी आग जंगल से
मत खेलो ।
उत्तराखंड बाढ़ के समय भी देखा कि तीस
साल के जवान को ""पच्चीस साल
का सैनिक पीठ पर लाद कर ला रहा है!!!!
वे बच्चे नहीं थे "उनको पता था कि वे
ऊँची पहाङी से नीचे खड्ड में बहती खंड
खंड चट्टानों से अँटी पङी नदी में उतर
रहे हैं ""बाँध
का पानी नहीं आता तो भी खतरा था ही """पत्थर
खिसकते हमने खुद देखे हैं हिमालय के
""अरररररर के साथ
कहीं भी कभी भी """""वह रेत
की नदी नगरिणी वहीं """"व्यास है
""""जहाँ ग्रामीण तक नहीं तैर पाते
आसानी से """"
आज की पीढ़ी की मानसिकता बन ही बन गयी है सिगनल तोङना 'अगर पार्क में
लिखा है फूल न तोङें तब तो जरूर ही तोङना है ।
अनुशासन कैसे सिखायें ये चुनौती है।
©®

--
Sudha Raje
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Thursday 5 June 2014

सुधा राजे की कविता :- वो महुये का पेङ ।

वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे!!!!
क्या क्या कहें कि उससे
क्या नाता है भतीजे!!!
आमों के उस बाग से
ज्यादा प्यारा था वो
जामुन के अनुराग से
ज्यादा न्यारा था वो
बेरी खटमिट्ठी मन भर
जाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
उस पर तेरे बापू के हाथों
के झूले
झूलों पर टपके वे महुये रस के
फूले
उन फूलों का रस मादक
गाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
महुये के पत्तों में जब मैं लुक
छिप जाती
जब
तेरी दादी ऊँची आवाज़
लगाती
भाई बहिन को लुक छिप
मन भाता है भतीजे!!
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
महुये के नीचे
सखियों की दावत होती
नर्म पत्रकों पर
गुलियों की चमक सँजोती
गौर बिठा महुये मन भर
जाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
हलछट तेरी माँ करती महुये
से पूजा
दर्द
कभी जो उठा सेंकती तन
भी
सूजा
छोटा था तो तू
इनको खाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
तुझको बहलाने
पंछी दिखलाने लाती
तीतर हुदहुद मोर देख मैं
भी खो जाती
बाबा तेरा खोज में
चिल्लाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
इन पत्तों को तोङ पत्तलें
नाई बनाता
महुये की डाली से मँङवे
छप्पर छाता
तेज धूप में पंथी सुस्ताता है
भतीजे!!!!!
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
गुलियों की गोटी से
अष्टा चंगा खेले
भाई और भाभी संग कितने
रंग सुनहले
इसी डाल का पलना घर
आता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
मेरे ब्याह में मंडप बढ़ई
बना के लाया
महुय़े ने मधुमान ब्याह
का खांब सजाया
हरि कंज़र मध्वासव
पी गाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
वनवासी बालाये
बीनती मधुक सुरा को
डुबरी वाली खीर
बनी मन थाके चाखो
बालमंडली गोट
बङा ताँता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
तूने कटवाया बस केवल काठ
समझकर!!!
फर्नीचर
की लकङी वाला ठाठ
समझकर
वो था मेरा भाई ताऊ
माता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
©®Sudha RAJE
511/2, पीताम्बरा आशीष
फतेहनगर
शेरकोट-246747
बिजनौर
उ.प्र.
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Wednesday 4 June 2014

सुधा राजे का लेख - "" समाज और परंपराएँ।""

समाज की ""वैज्ञानिक आवश्यकताओं
को पुराने वैज्ञानिकों ने जब व्यापक
समाज के आवश्यक समझा तब उसे धर्म
से जोङ दिया """"
कालान्तर में ऋषियों के स्थान पर
ढोंगी साधु रहने लगे जो वही सम्मान
चाहते थे किंतु न शोध करते थे न
ज्ञानार्जन और वितरण """""
परिणामस्वरूप भारतीय स्वस्थ
परंपरायें वैदिक रीतियाँ """विकृत
""होतीं गयीं """"स्वार्थी शोषक
कुटुंबियों ने उसे घृणित
बना डाला """"
यथा """
रजस्वला स्त्री से मिट्टी के घङे न
छुआना
रसोई न छुआना
परोसना पकाने धोने और पूजा के
कार्य न कराना """""
यह एक स्वस्थ परंपरा थी """"
उसे घृणा में बदल दिया गया """"
आज सब जानते हैं कि """"दूषित
सामान छूने से टीबी फैलती है """
दैहिक स्राव से संक्रमिक रोग फैलते हैं
"
दैहिक स्पर्श से स्वाईन फ्लू
"""हेपेटाईटिस फैलते हैं ।
खसरा और तमाम रोगों के कीटाणु ।
स्पर्श साँस और भोजन जल बिस्तर से
फैलते हैं ।
अब लोग तनिक सा चिकित्सकों पर
दृष्टिपात करे ""
नाक मुँह दवा से धुले कपङे से ढँके हैं ।
हाथों पर दास्ताने है । औऱ देह पर
एप्रिन है ।
ये सब वे घर जाने पर चिकित्सालय में
ही छोङ जाते हैं ।
और अदर के वस्त्र सब कीटाणु नाशक
तरल में धुलवाते हैं """"
क्यों???
एक गृहिणी का भी चिकित्सक
जैसा ही दायित्व है घर परिवार में
सबके प्रति और चुनौती है स्वयं के
लिये भी स्वस्थ रहने की """
सहायता मिलती रही ऋषियों के
बनाये नियमों से """"""
आज किसी भी महिला चिकित्सक के
पास जाईये ""बहुत
सी स्त्रियाँ """""केवल मासिक धर्म
की गङबङी के निदान की औषधि के
लिये आती हैं """""
यह तथ्य है कि "बारह से सोलह के
बीच की आयु में लगभग सब
लङकियों को रजस्वला होना है ।
प्रतिमाह तीन से पाँच दिन ।
ये लङकियाँ बच्चियाँ हैं नादान और
पढ़ने लिखने वाली खेल कूद में रूचि लेने
वाली ।
लगभग पचपन साल से साठ साल तक
स्त्रियाँ रजस्वला होने से
मुक्ति पाती हैं ।
ये वे स्त्रियाँ हैं
जो प्रायः नाती पोतों वाली हैं ।
परिवार में दिन हो या रात ।
शीत ग्रीष्म हो या पीवस हेमंत बसंत
',
स्त्रियाँ हर आयु की स्त्रियाँ ही तब
"""पनघट से पानी लाना 'आटा घर
पर चक्की से पीसना "तालाब
नदी पर जाकर वस्त्र धोकर
लाना 'चरखा करघा चलाकर वस्त्र
बुनना "खरल बट्टे ओखली मूसल से
मसाले अनाज कूटना, सिलबट्टे से
पीसना ।लकङी काटकर लाना ।चूल्हे
पर पकाना ।काले बरतन राख रेत से
माँजना ।गोबर
लीपना मिट्टी चढ़ाना ।चूल्हे
घङौँची बनाना ।
ढोरों की कुट्टी गोबर
सानी करना दूध
निकालना दही बिलौना। सिलाई
कढ़ाई बुनाई कताई "रफू और
कथरी गुदङी रजाई तागना।
बुआई कटाई
उङावनी फटकना किराना परोरना बीनना करना ।
सब स्त्रियों के हवाले थे ।
रजस्वला स्त्री "पेट पेङू
पिंडलियों कमर के दर्द से परेशान ।
रक्ताल्पता मितली मूड चिङचिङापन
अनिद्रा मंदाग्नि से परेशान ।
शरीर थका और मन डिप्रेशन अवसाद
में दुखी।
बार बार अंतः वस्त्र बदलना हाथ
धोना।नमी और बेतरतीब
दिनचर्या हो जाना।
यदि "कहते कि हर महीने सात दिन
कार्य पुरुष करेंगे
तो झगङा हो जाता।
किंतु ये बात कमजोर इम्युनिटी के
दौर से गुजर रही स्त्री को बचाने के
लिये थी।परंतु पुरुष अहं को बनाये
रखने के लिये नियम
बनाया कि ""ऋतुमती को स्पर्श करने
और उसकी बनायी रसोई का भोजन
लेने से "सेवा कराने से बल बुद्धि आयु
क्षीण हो जाते हैं।
हमें याद इन "सात
दिनों "की छुट्टियों की भाभियाँ प्रतीक्षा करतीं जब
घर के पुरुष रसोई में या फार्म पर
पिकनिक मनाते ।
घृणा ही नहीं होती हर बार स्पर्श
न करने का कारण
स्वास्थ्य भी होता है
अब सब दिन वर्किंग डेज
©®सुधा राजे
511/2, पीताम्बरा आशीष
फतेहनगर
शेरकोट-246747
बिजनौर
उ. प्र.
मोबाइल नं- 9358874117
ईमेल - sudha.raje7@gmail.com

Tuesday 3 June 2014

रेसिपीज़:- लौकी पसंद नहीं? ?रेसिपी बदल कर देखें।

1.
गरमियों लौकी का रायता भी बना लें
""बारीक लच्छे हल्की आँच पर जीरे घी से
छौंक दें और अधपका होने पर दही में
मिला दें ""सूखा जीरा तवे पर भूनकर
पीस लें और दही में मिला दें नमक
दोनों प्रकार के काला सफेद डालें
""प्याज पसंद हे तो बारीक
कतरी प्याज
हरी मिरची धनिया पोदीना डाले और
लौकी का रायता चावल के साथ खायें
खिलायें """पौष्टिक निरापद और
शीतलकारी ""
अगर छौंक पसंद हैं तो मिट्टी के दिये
को गरम करके सरसों के तेल में राई
लाल मिरची और जीरे का छौंक लगाकर
दही में डुबो दें ।
2. लौकी कद्दूकस करके आम कद्दूकस करें
बेसन में फेंटकर हरे मसालों की कतरन
मिला लें पकौङियाँ बनालें ""सॉस के
साथ बच्चे खायेगे ""
3-
पकौङियाँ बच जायें तो सब्जी बना ले।
जैसे आलू की सब्जी का मसाला भूनते हैं वैसै
ही गरम तेल में लहसुन अदरक
प्याज मिरची धनिया हलदी पेस्ट
भूनकर पानी डाल दें पानी उबलने पर
पकौडिंयाँ डाल कर ढँक दें
ग्रेवी गाढ़ी होने पर
हरी धनिया करीपत्ता और
पोदीना डालकर उतार दें । चावल
रोटी से खायें ।
4-अथवा पकौङियाँ ""दही डालकर
रखे और खायें खिलायें फुलकी " ये भूख
बढ़ाती है और ताकत भी ।
5- गरमी में लौकी वरदान है ।
बच्चे मुँह बिचकाते हैं ।
तो
रेसिपी बदल कर देखें ।
लौकी के बारीक गोल स्लाईस
पर बेसन मसाला लगाकर तल लें
और
टौमैटो केचअप
या पोदीने की हरी चटनी के साथ
परोसें ।
याद रखे लौकी पर रोंयें
हो तभी तोङ लें या नरम
छोटी लौकी खरीदे जो सफेद न
हो छिलका मुलायम हो बीज में
छिलके ना बने हो

6. लौकी को कद्दूकस करें गाढ़े किये गये
उबलते दूध में पकायें ।
चीनी इलायची कतरे हुये बारीक मेवे
बादाम डालें और ठंडा करे
""लौकी की लौच ""व्रत उपवास में
भी पौष्टिक
7. लौकी को कद्दूकस करके देशी घी से छौंक
दे ""चिरौंजी और खसखस डालकर """जब
पक जाये तो "मावा 'खोआ डालें और
गाढ़ा होने पर
पिसी हुयी चीनी या बूरा डालकर
घी लगी थाली में फैला दें ""काटकर
बरफी परोसे ""चाहे तो चाशनी बना कर
चार तार की फिर मावा और
लौकी की भुनी हुयी पिट्ठी डालकर
गाढ़ा करे घी लगी थाली में फैलाकर कतरे
हुये नारियल और मेवे चिपका कर चोकोर
टुकङे काटकर बरफी रखे ठंडी होने पर
खायें """"यह सबसे स्वादिष्ट बरफियों में
से एक है ।
8. लौकी कद्दूकस करके पानी निचोङ लें
जिससे या तो आटा गूँथ लें या दाल में डाल
लें ।।अब लौकी के लच्छों को नमक डालकर
बेसन में कङक गूँथें और हाथ पर तेल लगाकर
गोले बना ले ""पानी उबालकर कुकर में ये
गोले गरम पानी में छोङ दें दो सीटी ले लें
।उताकर ठंडा करके गोले आलू की तरह
काट लें कटे हुये टुकङे हलके से तेल में भूनकर
निकाल लें """""अब आलू की तरह
मसाला पेस्ट दही डालकर भून ले ।।।
लौकी के गट्टे डालें और दो मिनट चलायें
फिर पानी डालकर एक सीटी लें
"""ग्रेवी गाढ़ी होने पर उतार कर
'''बारीक कतरी धनिया और
हल्का सा पिसा गरम मसाला बुरक दें ''

recipe by सुधा राजे
511/2, पीताम्बरा आशीष
फतेहनगर
शेरकोट-246747
बिजनौर
उ. प्र.
मोबाइल नं- 9358874117
ईमेल - sudha.raje7@gmail.com

सुधा राजे का लेख :"नदियाँ देश की धमनियाँ ''हिंदू कर्मकांड "दोषी या छद्म सेक्युलरवादी नेताग़ीरी::::::

लोग ""हिंदुओं ""के नेवेद्य और
कर्मकांड को नदी गंदी करने की वजह
मानते है """
जबकि हिंदू कर्मकांड सबसे अधिक वैज्ञानिक है ।
जो न जगह घेरते हैं न शेष रहते हैं
किंतु
आज बङी जनसंख्या के संदर्भ में तो है
भी """
किंतु महानगरीय सीमित
मानसिकता से बाहर निकल कर देखने
की जरूरत है कि ",
जाली और रैलिंग केवल
महानगरों की नदी किनारे तो लगाये
जा सकते है "
दूर दूर तक फैले गाँव कसबों और छोटे
नगरो जंगलों तक तो कदापि नही,
फिर
देखें कि पिछले ""सत्तरसाल होने
को आये और ""अब तक बजाय पुराने
""नाले ड्रेनेज और सीवरेज
को ""नदियों में नहरों में तालाबों में
गिरना रोकने के बजाय ",
हर साल हर नगर गाँव कसबे और
महानगर की सीमा पर बने मिल
फैक्ट्री बूचङखाने स्लॉटर हाऊस
कारखाने और नगरपालिका होटल
अस्पतालों के """"भारी भरकम नाले,,,
किसी छोटी नहर कुल्या ""के बराबर
प्रतिदिन मल मूत्र जहरीले रसायन
""खून हड्डी माँस और नगर भर
की नालियों शौचालयों सेप्टिक
टैंकों की बहाव गंदगी """विषैले ठोस
द्रव गंदे कचरे सब """"
इन नालों से ""नदियों में लाकर
डालते है ।
नदियों की धारा में दूर दूर तक
नहरों में भी नगर गाँव किनारे दूर
दूर तक ये ""नाले ""साफ साफ दिखत्
है खून मल मूत्र कैमिकल और शौच
कचरा मिलाते हुये ""
गजबनाक सच है कि "नये
नालों का बनना जारी है "
नहरे निकल जाने से नदी का प्रवाह
धीमा है और वहाँ ये कचरा """ठहरकर
आसपास बीमारी बदबू सङन रोग और
जहर फैलाता है!
जिन चीजों को मछलियाँ मगरमच्छ
नहीं खा सकते वे सब गंदगियाँ ""नदी
में कौन डाल रहा है???
राख हड्डी फूल बाल पैसे ''''डालने
वाले हिंदू भी दोषी हैं ।
तो सरकार भी दोषी है जो """इन
नालों को ""पैंसठ साल में बंद नहीं कर
पायी बल्कि हर वह नगर
पालिका दोषी है जिस नगर गाँव
का """नाला ""नदी में गिरता है ।
गर मिल मालिक
कारखाना मालिक
फैक्ट्री मालिक
गैराज मालिक
होटल मालिक
और बूचङखाने वाले
कसाईघर वाले
स्लॉटर हाऊस
हत्थाखटका माँस वाले
डंपिग करने वाले ""
सब के सब
,,,अपराधी है ""
कोई सख्त कदम की जरूरत है
पश्चिमी यूपी में तो हर नगर
नदीं का हाल इन नालों की वजह से
बेहाल है!
पहले ""बङे ""अपराधी रोको ""
छोटे तो अपने आप रूक जायेगे
स्वच्छ गंगा यमुना सरयू
नर्मदा बेतवा चंबल पहूज
गोमती गंडकी गोदावरी हुगली सतलज
क्षिप्रा रावी चिनाव ताप्ती झेलम
कुआनों खो मालन लक्मण गंगा राम
गंगा """"कावेरी कृष्णा तुंगभद्रा ब्रह्मपुत्र
"""
देश की धमनियाँ है "इनमें
गंदगी डालने वाले देश के अपराधी और
नाले सीवरेज पाईप ड्रेनेज छोङने
वाले महापापी "उनको न रोकने वाले
"कायर और कृतघ्न ""
प्रारंभ अपने गाँव कसबे से "जहाँ सस्ते
मजदूरों के लालच में पेपर शुगर मिलें
गत्ता फैक्ट्रियाँ और कच्चा माल
तैयार करने के "उपक्रम उद्यम संयंत्र
लगे धुँआ छोङ रहे है ""बॉयलर रे लिये
जंगल मिटा रहे और नदी नहर तालाब
में "रक्त मांस मृतपशु अवशेष डाल रहे हैं
""कॉग्रेस नहीं रोक
पायी "क्या भाजपा नदियो नहरो तालों को ""मुक्ति दिलायेगी???
क्या ""जिन के नाले गिर रहे है
""चुपचाप मान जायेंगे??

हरिद्वार से ही गंगा में
"""होटलों केड्रेनेज"""मिलों की पुलिया मिलनी प्रारंभहो जाती है
"""बिजनौर मुरादाबादमेरठ सहारन पुर
के """गाँवों किनारेतमाम कैमिकल पेपर
गत्ता और शुगर मिलेहै """"सबके
इशूज""खो नदी यमुना रामगंगा और
मालन""में डाले जाते हैं """तीर्थ?? केवल
गिनेचुने है """वहाँ भी लोग ""अधजल् शव
राखसमेत नदी में पटक देते है """मुंडन के
बालबहाते है """तमाम '''घरों के ""पूजन
हवनकथा का ""कूङा भी ''सिलाने जाते है
""

पूरे जले शब से नुकसान नहीं है
क्यों राखहड्डी अंततः मिट्टी कंकङ
"""बन जाते हैं""चना परमल लाई
मछलियाँ खा जाती हैं"""""लेकिन निरंतर
बहने वाले """"नाले"""नगरपालिका कसाईखाने और मिल""""के बहाव
"""लगातार जारी रहकरधारा को हर
समय ""जहरीला बनाते है"""आप पशुओं के
खून और नागरिकों केमलमूत्र मिलों के
कैमिकल में """पवित्रस्नान कर रहे हैं
""घरों में रखकर पूज रहेहैं ""ये
पूरा यूपी जानता है बिहार भ

सैकङों बीघे उपजाऊ
जमीने""""लाखो हैक्टेयर पर """केवल मरे
हुओंकी ""इमारते हैं पक्की और
आलीशान"""जहाँ जिंदे
को फुटपाथनहीं """""""बदलाव जरूरी है
हर मजहबमें वैज्ञानिक सोच के साथ
कि कैसे जमीनबचे जल बचे जंगल बचे
""""नदी साफ रहे औरजिंदों को घर मिल

विद्युत शवदाह गृह
"""तीर्थों परउपलब्ध करा दिये जायें
तो ""हिंदू""सहज ही अपने
आपको प्रगतिवाद मेंढालने वाले है और ये
समय बचना उनपरिवारों के लिये
भी भला है जो तीर्थपर ले जाते है अपने
बुजुर्गो को

सबसेज्यादा """"गंदगी बूचङखानों """औरमिलों के
नालो """और होटलों के ड्रेनेज"""और
कारखानों के धोवन """और
कैमिकलइंडस्ट्रीज की सीवरेज से
होता है""""""किसान जब इस
पानी को खेत मेंसींचता है तो """"बंजरपन
और साईडइफेक्ट ''जहरीली फसल
पैदा होती है"""मालन
नदी का यही हश्र मिलों केकैमिकल ने कर
दिया है

नगरपालिकायें """अधिकतर ""अनपढ़ कम
पढ़े लिखे लोगों के संगठ हैं """नगर साफ
करने की एक ही ""सूझबूझ दिखती है
""चेयरपरसन मेंबर्स को """सारे कचरे
भरवाये और नगर से दूर """किसी सुनसान
जगह डाल दिये """"ये सुनसान जगह अकसर
नदी के जंगल किनारे होते हैं """"और ""एक
से दूसरा नगर शुरू होते ये ""गंदगियों के
अंबार ""रेलयात्री बस
यात्री ""बखूबी देख सकते है
""""""कचरा पीसने निबटाने और बीनकर
रिसाईकिल करने की """महती जरूरत है
"""वरना """कचरा पहाङ भर
कचरा ""कहीँ तो नगरपालिका फेंकेगी???
कहाँ??? ये बताने की जरूरत है।
गंगोत्री से दिल्ली तक """भौगोलिक
स्तेपी है ""ढाल ""और ढूहे बङे बङे
जिनको ढाँग कहते हैं """"बाढ़ से
नदियाँ स्वयं को साफ करती हैं """जब
भयंकर बरसात होती है समग्र खादर
भांबर """धुल जाता है """परंतु ये सब
धुलकर ढाल के हिसाब से पहाङ से नीचे
मैदान को भागता है """"दिल्ली जाकर
जमुना ठहर जाती है
क्योंकि """हथिनीकुंड पर बाँध है """और
मेरठ तक गंगा ठहर जाती है """ये
ठहरना न हो धारा अविरल बहती रहे
तो """हर साल बाढ़ से नदियाँ सब साफ
कर लें

गंगोत्री से दिल्ली तक """भौगोलिक
स्तेपी है ""ढाल ""और ढूहे बङे बङे
जिनको ढाँग कहते हैं """"बाढ़ से
नदियाँ स्वयं को साफ करती हैं """जब
भयंकर बरसात होती है समग्र खादर
भांबर """धुल जाता है """परंतु ये सब
धुलकर ढाल के हिसाब से पहाङ से नीचे
मैदान को भागता है """"दिल्ली जाकर
जमुना ठहर जाती है
क्योंकि """हथिनीकुंड पर बाँध है """और
मेरठ तक गंगा ठहर जाती है """ये
ठहरना न हो धारा अविरल बहती रहे
तो """हर साल बाढ़ से नदियाँ सब साफ
कर लॆं।

तीरथों पर बारह महीने तो भीङ
रहती ही है ।नगर नगर गाँव गाँव तमाम
मेले थले और स्थानीय लोक देवताओं के
आयोजन भी होते है ।ये लगभग साल के
तीन सौ पैंसठ दिन ""कहीं न
कहीं ""नदी किनारे के नगर गाँवों में
चलते ही रहते हैं """तब जबकि बङी भीङ
जुङती है ""चाहे नासिक प्रयाग
उज्जयिनी हरिद्वार
हो या मथुरा काशी गंजदारानगर
अयोध्या गया हो ।वहाँ के स्थानीय
प्रशासन की सबसे बङी चुनौती होती है
""कचरा निबटाना ""जिसके हद दरजे
की लापरवाही का नमूना है कि """वह
अब तक सत्तर साल में भी नदी घाट पर
"""प्लास्टिक रबङ लेटेक्स नायलॉन
टैरीलिन और """नॉनडिग्रेडेबल
उत्पादों का बेचना रोक
नहीं पाया """!!!!क्यों??
क्योंकि नदी किनारे
गुटखा पुङिया कुरकुरे नमकीन बिस्किट
शैंपू साबुन पाऊच थैली """बेचने वाले
लोगो से ही तो """फङ लगाने दुकान
ठेली लगाने के अतिरिक्त ""दाम
""ठिया पर बैठने के लिये जाते हैं ।ये
रिश्वत खोर प्रशासक मेला पर्व खत्म
होने पर
""खोया पाया ""की भी बङी आमदनी बनाते
है ।किंतु ""मनुष्यों की भीङ
का छोङा तमाम अवशेष और विसर्जन
"""नदी से दूर ले जाकर """समाप्त
""करने की कोई भूमिका अब तक ""तीरथ
नगरों के प्रशासन की सामने
नहीं आयी """कचरा निपटाना ""नदी में
न जाने पाये ऐसे निपटाना ""ये
कभी किसी तीरथ नगर के प्रशासन
की पहल नहीं है ।जहाँ जहाँ तीर्थ
नहीं है वहाँ वहाँ वहाँ भी नदी किनारे
जमकर कचरा ""डालते है ""नगर
पालिका वाले ""

"""बूचङ खाने?? कैमिकल ड्रेनेज??
मिलों की धोवन ""???
नगरपालिका केकचरे??? नदी किनारे बसे
गाँवों केकिनारे मरे ढोरों के शवावशेष
""??प्लास्टिक ""रबङ?? टैरिलीन??
नायलॉन"""ये सब कौन डालते है??
डंपिंग?

हिंदू धर्म प्रगतिवादी है और लचक के
साथ नवीन
अविष्कारों को अपनाता जाता है
""""अब बारी है सरकार
की ""जहाँ मीलों तक फैली भूमि पर मुरदे
सोते हैं वहीं """सत्तर सालों में
नदी किनारे के हर नगर में एक
दो विद्युत शवदाह गृह नही लगवाये
जा सके???

हम कई साल से देखते आ रहे हैं लोग अपने
बुजुर्गों को बैराज गंगा पर ले जाते है
या हरिद्वार या दारानगर
या अयोध्या वगैरह
जिनकी साधनहीनता आङे आती है वे
""नगर गाँव में ही किसी नदी किनारे
चार पाँच बीघे में बने श्मशान में शवदाह
करते है ""फिर छानकर अस्थियाँ बीनकर
राख को जल में बहा देते है और
अस्थिया फूल तीर्थ पर जाकर विसर्जित
करते है ""सदियों तक पाँच बीघे से
ही काम चलता रहता है!! फिर भी अब
जरूरत है कि शवदाहगृह हर नगर में बने "

हिंदुओं के """विकृत दोष है """प्लास्टिक
पॉलिथीन को नदी में बहाना """मल
मूत्र कर
देना धोना """ढोरों को नहलाना """घर
की पूजा नदी में सिलाना """रैपर
पन्नी कपङे प्लास्टिक रबङ में प्रसाद भेंट
और मुंडन के बाल ""डाल देना ""अब बहुत
समझ आ रही है लोग चेत रहै हैं फिर
भी """और जागना जरूरी है

कचरे दो प्रकार के है """डिग्रेडेबल और
नॉन ड्ग्रेडेबल """तथा कैमिकल
""""तो जो जो खाद बन जाता है """वह
"ऱफा दफा """बाकी ""खतरनाक जहर है
"""पैंसठ साल ये जहर नदियों में
जाना रोका क्यों नहीं गया??

©सुधा राजे
511/2, पीताम्बरा आशीष
फतेहनगर
शेरकोट-246747
बिजनौर
उ. प्र.
मोबाइल नं- 9358874117
ईमेल - sudha.raje7@gmail.com
यह रचना पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित है ।

Monday 2 June 2014

सुधा राजे की कविताएँ:- काँच की कलाइयों वाले लोग ।

1. एक दिन सारे बबूल भर जायेगे
बबलियों की लंबी सुराहीदार
खूबसूरत गरदनों के चारों तरफ
लिपटे फटे दुपट्टों के ऐंठ कर काले
हो चुके रक्त वाले हारों से
और तब तक सब "शरीफ "खोज चुके
होगे माँदे खिङकियाँ खाटों के तले
टाँड छप्पर दुछत्ती छिपकर
""बबलियों की चीख पुकार मदद
की टेर सुनते रहकर उठ न पाने के
लिये,,
चोटी घसीटते हाथ, तबदील हो चुके
होंगे काँच की कलाईयों में
चूङियाँ टूटकर अपनी जरूरत खत्म
कर चुकीं होगी
दरवाजे धकियाकर बबलियाँ खीच
ली जायेगी और तेजाब ही तेजाब
बेईन्तिहा खूबसूरती पर
जलता सङता भभकता रहेगा और
हर तरफ होगी ""रूहें ""चीख कर दम
तोङ चुके मादा जिस्मों की ।
""भले ""लोग"" न गवाही दे पायेगे न
गुनहगार को पहचान पायेगे और
गालियाँ बनकर रहचुकीं औरतें
मादा होने का नर्क
भोगती हुयी प्रेतात्माओं में तबदील
हो चुकीं होगी ।
तब सिर उठने से पहले काट दिये
जायेगे और रस्सियाँ बुनकर झूले में
रखने लगेंगी पिशाच मादायें
ताकि बबूलों पर दुपट्टों की जरूरत
ही न रहे सारे पेङ काटकर तखतों में
बदल दिये जायेगे जिन पर बैठे होंगे
लंबे कपङों वाले झक सफेद लोग
और पाये रख दिये जायेगे "शरीफ
लोगों के पौरुष पर
तब सिर्फ दो ही नस्ले रह
जायेंगी प्रेत मादा रूहें और
रक्तपायी जीव ।
तब तक गाँव के गाँव सन्नाटे रहेगे ।
जंगलों में खींचकर ले
जायी गयीं मादायें दूसरे दिन खाने
बरतने के लिये तखतों के छपरखट पर
टाँग दी जायेंगी """""""
ईश्वर करे ऐसा कभी न
हो """""लेकिन काश ऐसा होना कोई
ईश्वर रोक सके """"
अब सब औरतों को ""न राखियों में
भरोसा है न संदल और सिंदूर पर """
वे जो प्रेत बन चुकी है जिंदा और
मुरदा मादायें
""""वही जलती लकङियाँ उठाकर
थमा सकतीं हैं जिंदा बच
गयी लङकियों के हाथों में वे रूहें
जो चूङी नहीं पहनती क्योंकि
काँच में तबदील हो चुके है सब भले
लोग
और शरीफों की बस्ती में उनके
कपङों से झाँकती आँखों से छोटे
सुबूत उनकी नग्न लाशों पर कफन
डालने को ही निकलते हैं
बाहर खाटों के नीचे किवाङों के पीछे
दुछत्ती और टाँड पर से
फूलती पिचकती साँसों के साथ
कहीं "मादा होने का कर्ज वसूलते
""शरीफ लोग
"कमजोर हाथों से अब
कभी उठा नहीं पाते चूङियों का बोझ
इसलिये जंगलों की तरफ से
चीखती आवाजे बस्ती के बीच से
उठने पर भींच लेते है आँखे
लंबे सफेद कपङों वाले लोग "तखत
पर साफ करने को दुपट्टों के टुकङे
पाँव पोश बनाये जाने लगे हैं ।
घर घर जहर गमलों में उगाने लगीं है
मादायें "ताकि फिर बबूलों के पेङ न
मिलें तो बबलियाँ बियारी करके
चुपचाप सो जायें ।
और जला सकें लाल कपङे सबके
सब मेंहदी के पेङ """"
"कोई डरना मत
खाईयों तालों नदी नालों सब जगह
मादा रूहें पहरा देने लगीं है
कुचले हुये जिस्मों से निकलकर
सभ्यताओं का इतिहास लिये ।
"काँच की कलाई वाले भले
लोगों को अब जरूरत नहीं दुबकने
की न अपनी जगहों से निकलने
की ""




2. मानती है अब तक 'बबली 'शहर में
सब भले लोग रहते हैं और हर दिन
हठ करती है बाबा दादा से शहर
चलने की अपने लिये गाँव
की मङैया में ताला लगाकर गाय भैंस
बेचकर पढ़ाने लिखाने और किराये
की खोली में रहकर मेहनत
मजूरी करके "नर्स "बनने
की "चाहती है "गोलू को मास्टर
बनाना ',
पर बाबा नहीं मानते
क्या खायेंगे कहाँ रहेगे और
क्या होगा गाँव के खेत
मङैया गेंवङा चौंपों का ',
बबली पाठशाला नहीं गयी इसलिये
गोलू जाता रहा ।और अब
बबली कभी कहीं नहीं जायेगी ।
जा रहें हैं बाबा दादा और अम्माँ ।
खेत बटाई पर देकर मङैया और चौंपे
बेचकर ।
रहेगे किराये की खोली में ।
पढेगा गोलू और रिक्शा चलायेंगे
बाबा ।
दादा कारखाने में चाय बनायेंगे
अम्माँ बरतन माँजेगी ।
बबली अब कभी नर्स नहीं बन
सकती क्योंकि चंद रोज पहले कुछ
भले लोग छिपकर रुक गये थे
किवाङों के पीछे ।
जब बबली छुङा रही थी काँच
अपनी कलाई के टप टप टपकते लहू
की धार के बीच माँस में
धँसी "उम्मीद "के साथ "
कि वह गाँव के भले
लङकों की मुँहबोली बहिन लगती है
और मुँहबोली बेटी लगती है उन
औरतों की जो लौट गयीं उलटे पाँव
चारा लेकर आतीं '
उसे देखकर "सहेलियाँ बुलाने "
नर्सों ने रख लिये है अवशेष और
मास्टर जी ने नाम काट दिया है
रजिस्टर से कब का ।
जिनका वे सब 'पहले 'से ही बुरे लोग
थे गाँव में चरचा है ।
लेकिन "गोलू "पूछना चाहता है
कि इतने भले लोगों के बीच चंद बुरे
जानवर "बिना बाँधे डाँटे कैसे बच
रहते हैं ।
वह अब मास्टर नहीं बनना चाहता "
उसके हाथ में टूटे काँच का एक
टुकङा है ।
और
किसी लोहे पर जङना चाहता है वह
ये रक्त भरा टुकङा ।
ताकि
रोज याद कर सके "
गोलू भईया
खावे लईया
चना चबैना
मैं तेरी बहिना
""""
एक भी भला आदमी गोलू से
बोलता नहीं है और
सब लोगों ने पिलखन वाली नहर के
किनारे जाना छोङ दिया है ।
बबली
की आवाज़ गूँजती है ''काका बचाओ
भईया मैं तुम्हारे गाँव की बहिन हूँ
मुझे जाने दो """"
"""""शहर में एक दीवार पर पोस्टर
लगा है """जब एक लङकी मार
दी जाती है तब एक सभ्यता एक
गाँव एक पूरे नगर की आबरू आँख
का पानी मर जाता है यह
स्त्री का निजी मसला नहीं समाज
की हत्या का अपराध है "
©®सुधा राजॆ
address -
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
u.p.
mob- 9358874117
7669489600
email- sudha.raje7@gmail.com
education:- m.a., l.l.b., m.j.m.c.
सहस्त्राधिक लेख कहानियाँ गीत कविताएँ यत्र तत्र प्रकाशित
उपन्यास प्रकाशनाधीन
सम्प्रति :- लेखक एवं फ्रीलांस पत्रकार

यह रचना पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित है ।