Monday 30 June 2014

शास्त्रार्थ करें मूल्यहीन हठ और प्रदर्शन किसी परिणाम पर नहीं पहुँचते

जो कोई भी हो आदरणीय शंकराचार्य
जी से शास्त्रार्थ और तर्क वितर्क
किया जाना समीचीन है ',
किंतु जो शंकराचार्य का अपमान करे
तसवीरें जलाये कालिख मले
वह भी "एक नये फकीर को भगवान न
मानने की बात पर ",,!!!!!
वह सनातन हिंदू वैदिक धर्मी कैसे
हो सकता है?
क्या पोप या इमाम के पुतले
जलाना किसी ""विवादास्पद बयान
पर मान्य है?
क्या ये विवाद के पीछे ' साबित करने
को पर्याप्त नहीं कि ''भगवान
बनाकर एक फकीर को लोग अपने
ही धर्म का मखौल बना रहे हैं?
संसार हँसी उङा रहा है,
मदर टेरेसा जैसी परम
सेवाभावी महिला को ""संत
""घोषित करने से पहले वेटिकन ने
सैकङो प्रमाण माँगे """"""
क्या किसी को ""अवतार या भगवान
घोषित ""
यूँ ही कर देना बुद्धिमानी है?
लोग अपने अपने मन माफिक दरगाह
मजार गुरुद्वारे मंदिर समाधि थले
आश्रम डेरे पर तो ""जाते ही हैं न "
कौन किसे रोक रहा है कि मत
मानो अपना पीर पैगंबर गुरू और
देवता,
खूब मानो
लेकिन
किसी भी फकीर या साधु
को परमात्मा का भक्त और दास पुत्र
और संदेशवाहक कहने से बढ़कर
स्वयं भगवान कह देना अतिशयोक्ति है

और
अस्सी प्रतिशत गांव हैं भारत में
जहाँ कोई "किसी फकीर
को नहीं जानता न मानता है ।
शहरी धनिकों का नया नया शगल और
नयी नयी भगती है तो करो कौन
रोकता है ।
लेकिन
प्राचीन
मंत्रों को तोङना मरोङना गलत है ।
अब कोई " साधु सट्टे का नंबर
दिलवा दे पुजारी के माध्यम से
या मैच फिक्स करा दे फिल्म
को फायवेंसर दिलवा दे तो ""सेठ
''जी का वही "भगवान हो गया "
मातृ देवो भव पितृ देवो भव आचार्य
देवो भव,
तीस प्रकार के देवता हैं ।
परंतु "देवता है "
ईश्वर नहीं "
वेद पुराण पढ़ें या न पढ़ें ।
किंतु "उनके
मंत्रों को कोरी ""स्वार्थ सकाम
उपासना के लिये तोङ मरोङ कर नये
न गढ़ें "
ये सब कालांतर में इतिहास की भयंकर
भूल साबित होगें ।
साधु गुरू फकीर अनेक हैं ।
किंतु "परमब्रह्म अजर अमर
अविनाशी है "
सकाम भक्ति से परे हटकर सोचें "
प्रतिमायें केवल ध्यान भटकने से रोकने
का माध्यम हैं ।
मन्नतें तो "कोई प्रेत भी पूरी कर
सकता है ।
मोक्ष और सृजन कर्म दंड और पुरस्कार
केवल परमेश्वर
परमपिता परमात्मा के ही वश में हैं
जिसे मातृ रूप में "अजानंतालक्ष्या
जैकानैकेति "
कहा गया है
कोई "बहस करें तर्क करें किंतु
यदि हिंदू सनातन धर्मी होने
का दावा करते हो तो स्मरण रहे
शंकराचार्य का अपमान जघन्य पाप है

कदाचित जिस फकीर की मूर्ति के
लिये कर रहे हो वह स्वयं ऐसा कभी न
करता ।
व्यक्ति रूप में बर्खास्त
राष्ट्रपति भी कई प्र्कार के
विशेषाधिकार रखता है ।
जनेऊ
शिखा
तिलक
तुलसी
शालिग्राम
शंख
गीता
गंगा
गौ
गायत्री
वेद
हवन
और सोलह संस्कार केवल
जुबानी जमाखर्च नहीं।
पहचान हैं सदियों की शोध के।
ये तेवर "गंगा साफ करने
को क्यों नहीं? गौ रक्षा के लिये
क्यों नहीं
जीर्ण मंदिरों के उद्धार हेतु
क्यों नहीं।सनातन मत के मूल
सिद्धांत "दीन हितार्थ "क्यों नहीं
सत्य और शांति के लिये क्यों नहीं
रहा मीडिया
उसे टीआरपी के लिये मुद्दा चाहिये
शंकराचार्य व्यक्ति नहीं,
विधि विधान से सृजित पद है।
जब तक कोई देह उस पद पर है श्रद्धेय
है
विचार पसंद न आने पर कोई
पिता को पीटे जैसा गलत है
शंकराचार्य का अपमान
किसी भी सनातन वैदिक हिंदू को ये
शोभा नहीं देता ।
विरोध सांई का कब है? विरोध है
प्राचीन वैदिक मान्यताओं
का मनमानीकरण करने से । मस्जिद
या चर्च में सांई की फोटो तक
लगानी मना है । तब मंदिर
सांईद्वारा बनाओ कौन रोकता है?
लेकिन सांई उन्नीस सौ सोलह
की जीवित देह ""एक मुअज्जन सादा लौह
भला फकीर को नमन से किसे एतराज?
किंतु वह अवतार या भगवान नहीं ""साधु
संत फकीर है एक चमत्कार तो गाँव के
तमाम ओझा भी करते हैं ।
उनको प्रायोजक मिलजायें
तो देखो ""कमाल "
हम कभी बाबा मौलवी के दरबार
नहीं गये "सुनते पढ़ते रहते है
""""उसको बेटा हुआ फलां बापू की मेहर
""उसको इंजीनियर दमाद
मिला फलां साधु की ताबीज का कमाल ये
क्या ""भक्ति है?
अरबों खरबों की """प्रॉपर्टी सन
अस्सी से आज तक में ""तमाम बाबाओं के
नाम पर खङी हो गयी ""इतने अस्पताल
क्यों नहीं? लोग """फटाफट मुराद
पूरी करने को ""शैतान प्रेत पिशाच तक
पूज रहे हैं '''

आदमी "गुण को नहीं ""चमत्कार
को पूजता है ""जो सांप को रस्सी और
लकङी को सांप बनादे ""वह जादूगर
होता है ""भगवान नहीं ""भगवान
तो अजन्मा है अवतार उसकी शक्ति के
विग्रह रूप है "मूर्ति भगवान नहीं हम
उसमें भगवान को बुलाकर मानते है।
©®सुधा राजे

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