सुधा राजे की कविता :- वो महुये का पेङ ।

वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे!!!!
क्या क्या कहें कि उससे
क्या नाता है भतीजे!!!
आमों के उस बाग से
ज्यादा प्यारा था वो
जामुन के अनुराग से
ज्यादा न्यारा था वो
बेरी खटमिट्ठी मन भर
जाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
उस पर तेरे बापू के हाथों
के झूले
झूलों पर टपके वे महुये रस के
फूले
उन फूलों का रस मादक
गाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
महुये के पत्तों में जब मैं लुक
छिप जाती
जब
तेरी दादी ऊँची आवाज़
लगाती
भाई बहिन को लुक छिप
मन भाता है भतीजे!!
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
महुये के नीचे
सखियों की दावत होती
नर्म पत्रकों पर
गुलियों की चमक सँजोती
गौर बिठा महुये मन भर
जाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
हलछट तेरी माँ करती महुये
से पूजा
दर्द
कभी जो उठा सेंकती तन
भी
सूजा
छोटा था तो तू
इनको खाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
तुझको बहलाने
पंछी दिखलाने लाती
तीतर हुदहुद मोर देख मैं
भी खो जाती
बाबा तेरा खोज में
चिल्लाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
इन पत्तों को तोङ पत्तलें
नाई बनाता
महुये की डाली से मँङवे
छप्पर छाता
तेज धूप में पंथी सुस्ताता है
भतीजे!!!!!
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
गुलियों की गोटी से
अष्टा चंगा खेले
भाई और भाभी संग कितने
रंग सुनहले
इसी डाल का पलना घर
आता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
मेरे ब्याह में मंडप बढ़ई
बना के लाया
महुय़े ने मधुमान ब्याह
का खांब सजाया
हरि कंज़र मध्वासव
पी गाता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
वनवासी बालाये
बीनती मधुक सुरा को
डुबरी वाली खीर
बनी मन थाके चाखो
बालमंडली गोट
बङा ताँता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
तूने कटवाया बस केवल काठ
समझकर!!!
फर्नीचर
की लकङी वाला ठाठ
समझकर
वो था मेरा भाई ताऊ
माता है भतीजे
वो महुये का पेङ याद
आता है भतीजे
©®Sudha RAJE
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