1. दुनियाँ डुबो दें आज ये हम
भी शराब में
रख्खा ही क्या है इस
दिले-ख़ाना ख़राब मे
तू ज़ाम उठा और मैं नक़ाब
उठाऊँ
देखें कि नशा ख़ुम में
छिपा या हिज़ाब में
तरदामनी पे रश्क़ करें
आज रिंद भी
लिपटा है चाँद भी लगे
भीगे ग़ुलाब में
नश्शा है वो नशा
कि उतरने पे औऱ् चढ़े
साहिब हुज़ूर हाज़िरे-हुस्ने निक़ाब में
ऐ इश्क़ ज़रा होश तो ले लूँ आये हैं
मुद्दत के बाद ख़्वाबग़ाह में
ऱूआब में
बर्ख़ाश्त कीजिये कि अंज़ुमन में हम नहीं
आयेगे सुधा आपके ज़लालो ताब में
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just for change
2. Sudha Raje
आह ज़िदगी वाह ज़िदग़ी
जैसे नेक ग़ुनाह ज़िदगी
इक कहार सा तन मन
ढोता
थकती एक कराह ज़िदगी
हिम्मत ही को खाकर
पलती
जलती आतशगाह जिंदगी
हज़ल कभी तो नज्म अधूरी
कभी ग़जल बेचाह जिंदगी
किलक रही चंदा को देखे
बेटी की परवाह जिंदगी
बिछुङ गयी निकहत नसीम
सी एक सहेली माह
ज़िदगी
मिली नींद तो चादर
गीली
ऐशगाह की चाह जिंदगी
मजदूरों की भूख अमीरों के
रोजे जर्राह जिंदगी
आहें बाँहे राहें छाँहे
चाहे और पनाह जिंदगी
जिसे होश है मर मर मारे
बेहिस लापरवाह जिंदगी
कागज़
की नैया की खुशियाँ
और नाख़ुदा दाह जिदगी
सुधा अभी तो आया जीना
छोङ चल पङी बाँह
जिंदगी
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3. Sudha Raje
Sudha Raje श्रंखलायें टूटी भी तो कब
जब पैरों में घाव बन गये
टूटे पंख अजेय आश के
मन के मूक दुराव बन गये
कभी ललक कर गीत हो गये
कभी हिलक कर भाव बन
गये
रह गयी एक कूल कालिंदी
दूजे गंग प्रभाव बन गय
यूँ पीङा के गाँव बन गये
यूँ पीङा के गाँव बन गये
क्रंदन मौन कहाँ तक ढोता
हृदय नयन बिन
कितना रोता
महाआरती के गुँजन में
हाहाकार निलय
का खोता
छल के पाखंडी परिजन
तीरथ अक्षय वट छाँव बन
गये
एक छोर तीरथ कर पूछे
दूजे नाविक नाव बन गये
य़ूँ पीङा के गाँव बन गये
यूँ पीङा के गाँव बन गये
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4. Sudha Raje
इतना आहिस्ता छुओगे तो बिखर जायेंगे
ख्वाब पलकों में नये फिर से
सँवर जायेंगे
तश्नग़ी चाँद
को आवारा किये
जायेगी
क़हकशा में ग़ुलाब भीग के
शरमायेंगे
आपके ज़ाम हमारे नशे पे
तारी हैं
मयक़दे रास्ते भूले तो किधर
जायेंगे
आबज़ू गुफ्तग़ू दिल के
सितार छेङेगी
रोकिये रोकिये इस प्यार
से मर जायेंगे
एक मुद्दत हुयी कि आप ने
नहीं देखा
इस तरह ग़ौर देखोगे तो डर
जायेंगे
धङकने देखिये बेकाबू
हुयी जाती हैं
दम बचेगा कहाँ जो आप
मुस्क़ुरायेंगे
हम तो ग़म खाने में
तन्हा उदास बैठे थे
क्या पता था कि यूँ
सरकार इधर आयेगे
बस भी ऐ दिल कि ये
सरगोशियाँ रूला देगीं
हम
सुधा आपकी आपकी बाँहों में
ठहर जायेंगे
आज किस बात पे हुजूर यूँ
फ़िदा या रब
और अब कुछ भी कहेंगे
तो नज़र जायेंगे
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5.
नींद खुली और तुम याद आये यादों में कई मौसम थे
कहीं तुम्हारी बातें
मीठी कहीं सितम थे औऱ्
ग़म थे
बेशुमार वो दीवानापन
अब्रो-बर्क़ वो बरसातें
मिलन बिछोङे वे दिल
तोङे वस्लो-हिज़्र
वो मुलाक़ातें
अश्को तबस्सुम में डूबे जब
तनहाई के आलम थे
नींद खुली और तुम याद
आये ,यादों में कई मौसम थे
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Datia--Bijnor