लेख :-( स्त्री और समाज) जकङन संस्कारों की।

बङी अज़ीब है भारतीय
स्त्री की सोच जिस तक
जा पाना किसी पत्रकार या रिपोर्टर
के वश की बात नहीं "कई उदाहरण
हमारे अपनों के हैं ', आप
भी ऐसी कुछ स्त्रियों को जानते
ही होंगे ""जिनका विवाह पिता भाई
काका ने जहाँ जिसके साथ कर
दिया चुपचाप विदा हो गयीं "भय "के
साथ भरोसा लेकर ईश्वर मानकर
पति और तीर्थ मानकर ससुराल
को "सब सहा "और जब किसी दिन
पति चुपचाप छोङ गया
या साथ रहकर
भी ठुकरा दिया तो भाग्य मानकर
पीङा को चुपचाप पी लिया ', ताने
सहे परिवार के लेकिन समाज के बीच
हँसती मुसकराती सिंदूर भरे सुहागिन
के सब व्रत उपवास
पूजा करतीं रहीं ',अकेली रह
गयीं तो भी, ' अनिन्द्य ""रूप यौवन
सब होते हुये भी अखंड
समाधि की तरह समाज में रहकर
भी कमल पत्र सा वैराग धर
लिया जिसे न कोई
जाना ना समझा ""कई
स्त्रियाँ ऐसी हैं जिन्होंने
गरीबी काटी दुख उठाये कठोर श्रम
किये और खुद ""कमाकर
"अपना जीवन पाला "कई
स्त्रियाँ ऐसी हैं जो उपेक्षा त्याग के
बाद एक ही परिसर में पति के साथ
रहतीं रहीं बिन ब्याही सुहागिन और
ब्याहता कुमारी रहकर ""सुहागिन
परित्यक्ता ""पति की परिवार
की समाज की सब सेवायें
करतीं रहीं और कई बार तो अपने
ही ""पति ""के बच्चों की सेरोगेट
मदर रहकर कुँवारी माता बनी और
सबकी नजर में पति का मान रखे
रहकर तनहा जीवन काट दिया गोद
में बच्चे देखकर किसी के सामने
कोई सवाल ही नहीं ""कई
स्त्रियाँ ऐसीं जिनके
पति "दूसरी "स्त्री ले आये और
पहली ने दूसरी के लिये घर
का कोना खोज कर खुद को पति से
अलग कर लिया नाम भर
की सुहागिन बनी रही । हम खुद
ऐसी अनेक स्त्रियों को जानते है
हाथ की हथेली की तरह, '
न उनको मायके वालों ने मजबूर
किया न ससुराल वालों ने । वे
चाहतीं तो खुद दूसरा विवाह कर
सकतीं थीं । किंतु नहीं किया । न
पति ने रोका न ही वे मोहताज़
रहीं पति की "स्वावलंबी पढ़ी लिखी स्त्री जब
ठान ले कि मुझे दूसरा पुरुष जीवन में
नहीं आने देना है तो कोई लाख
कोशिश कर ले टस से मस
नहीं होगी । ये अपने मन
आत्मा संस्कार की बात है
"महानगरीय मॉडर्न परिवारों तक में
स्त्री अनेक ऐसी हैं ",न वे कहेगी न
कोई यकीन करेगा ', ये कोई
विरला ही करीबी समझे
कि कितनी ""जसोदाबेन ""तो पति के
साथ एक ही परिसर में रहतीं हैं ""ये
हिन्दुस्तान है ""मांडवियों का देश
""च्यवन की धरती ।
जसोदाबेन को ""किसने
रोका था कि दूसरा विवाह मत
करो???????? शिक्षिकायें तमाम ऐसी हैं
जो बच्चे लेकर तलाक़ लेकर
दूसरी शादी करती हैं ', ', ये मूल बात है
""कि न जसोदाबेन ने
दूसरी शादी की ना नरेन्द्र भाई ने फिर
भी ""फेरों का नाता न जसोदा नकार
सकी ""न नरेंद्र!!!!!!! ये ज़ुल्म न
मारपीट था न कोई घर से
निकासना ""नाबालिग
दंपत्ति का ""अलगाव ''''और ""विवाह
का भारतीय संस्कार """अन्याय हुआ
और सहने वाले ने ""उपचार खुद ही ।
सक्षम होकर नहीं किया ",हर गाँव नगर
दो चार जसोदा हैं हो सकता आप
की जानपहचान में हों और आपको सच
पता न हो ये हिंदुस्तान है
ऐसे अनेक विवाह ""लङकों ''के परिवार
वाले करा देते है ""हमारे ही कुटुम्ब
परिजन और पङौस के दो दशक पूर्व के
अधिकांश विवाह ऐसे हुये जिनमें
"""लङके लङकी ने विवाह से पहले एक
दूसरे की ""तसवीर तक
नहीं देखी थी """दयानंद
सरस्वती विवाह तय होने पर भाग गये ',
भगत सिंग भी "और ', ये
तानाबाना ""एक व्यक्ति नहीं एक
समाज की ""बुनाई है ""जहाँ स्त्री मन
पर जंजीरों से ज्यादा ""धर्म संस्कार
मान मर्यादा के बंधन है और वह उँह
आँह करे बिना ये वेदना "शांति से
पीती रहती है ',दुआयें
करती पति की लंबी उम्र की "
साहसी महिलायें दुस्साहसी और
स्वावलंबी भी ""सुहाग ""सतीत्व और
पति व्रत के लिये """पाषाणवत् ',दुःख
स्वेच्छा से वहन करतीं हैं ""कोई जान
तक नहीं पाता
किंन्तु ""समाज ""में शुचिता बनाये
रखने और ""स्त्री के पुनर्विवाह
पुनर्जीवन ""स्वयंवर "की जरूरत
को समझे बिना ही जब जब कुटुंब
परिवार जाति और सामाजिक
प्रतिष्ठा धार्मिक कर्त्तव्य स्वर्ग
नर्क का डर ""सतीत्व ""का अहंकार
और महिमामंडन जब सामने रहता है, '
तब संस्कार वश "तनहा "और स्वयं पर
क्रूरता से खुद ही हर खुशी से वंचित
रहकर एकाकी मरुस्थलीय जीवन
"सबसे बिना कहे बल्कि सबको खुश
और दांपत्य में दर्शाकर जीने
वाली लाखों स्त्रियाँ आज भी हैं ।

कई स्त्रियाँ ऐसी हैं जिनके
पिता माता परिवार पति और ससुराल
वाले तक "न सही सहर्ष परंतु
पारिस्थितीय समझौते के तहत कह देते
हैं कि ""स्त्री दूसरी शादी कर ले, ' परंतु
स्त्री मन भावना बुद्धि अहं और
संस्कार की जकङन छोङकर
किसी भी तरह दूसरे को "स्वीकार कर
ही नहीं पाती "ना ही करना चाहती है
वह खुद में एक कठोर
"सती "देखना चाहती है और यही "वजह
है कि ऐसी अनेक स्त्रियाँ मर खप
जातीं हैं किंतु एक टूटे विवाह से बाहर
कभी बाहर
नहीं निकलती विवाहिता बनी रहती हैं।
©®सुधा राजॆ

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