जंगली हैं हम

जंगली है हम दिल से 
स्वभाव से गँवार (सुधा राजे )

~सूरन ,सुथनी ,रतालू ,जिमीकंद ,कन्दौरा ,कान्दू ,टेपियोका ,
को 
प्राय: लोग एक ही सब्जी समझ लेते हैं ये सब अलग अलग हैं । 
प्रजाति एक है । ये घुईयाँ के भाई बहिन हैं 
 बिहार मिथिला नेपाल और आसपास के क्षेत्रों में ""छठ "जो दीवाली के बाद आती है पर ""सूर्यपूजा का त्रिदिनात्मक व्रत होता है ,जिसमें जल स्रोतों के किनारे सूर्य वेदी बनाकर उसपर उस ऋतु की सब चीजें सूर्य को अर्पित करके आरोग्य संतान सौभाग्य समृद्धि की कामना की जाती है । 
उस टोकरी सूप डलिया में ,सिंघाड़ा ,पूरा नारियल ,गन्ना ,आदि हरिद्रा ,बेलफल ,और ""सुथनी ""अनिवार्य रूप से अन्य अनेक फल सब्जियों के साथ प्रसाद में लगाते हैं ।
सुथनी की सब्जी ,चोखा ,पकौड़ी पूरी ,कचौरी ,बनाते है ,यह आकार में आलू जैसा होता है ,इसकी बेलें पौधे छोटे होते हैं 
जबकि 
""कन्दौरा जो ऊपर से नारियल जैसा कत्थई भीतर रानी रंग गुलाबी ,और फिर सफेद होता है ,की बेलें जैसी हमने गृहवाटिका में लगाकर अनुभव लिया बहुत लंबी होती हैं 20 से 30 मीटर तक फैलतीं है बरसों चलतीं हैं हम जड़ में से 5 से 7 किलो तक कंदौरा निकालते थे ,
कई तो 4 किलों तीन किलो के होते थे ।
रतालू सफेद निकलता है 
सूरत कुछ पीलापन लिये 
कान्दू तो बड़ी अरबी जैसा होता पत्ते भी अरबी के ही जैसे होते हैं 
जिमीकंद पत्थर जैसा कत्थई कठोर दिखता है 
जबकि टेपियोका का रंग सफेद आकार बड़ा ।
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आज ये सुथनी है 
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मांसाहारियों के लिए वैकल्पिक शाकाहार है 
शाकाहारियों के मजेदार मांसाहार जैसा हर स्वाद परन्तु है सब्जी ।
.........(सुधा राजे )

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