Sunday 26 January 2014

कहानी :शोणित के बिंब

सामने बरफ की नुकीली चट्टानें थीं और पीछे शिकारी खूँख्वार कुत्ते
वह रास्ता न याद कर पा रही थी न भूल पा रही थी कि पाँव में जख्म है और
रक्त की बूँदें उसका पता देती रहेगी चाहे वह कहीं भी छिप जाये ।
उसने नुकीली हिमशिलाओं पर पाँव जमाये और ठंडी झील में कूद गयी ऱक्त जमने
लगा था किंतु बर्फ की चोटियों पर हुहुआते भेड़िये कहीं पीछे न कूद पङे वह
तैर कर बढ़ती रही ।
हाथ फटने लगे और धङ बेज़ान हो गया रह गयीं सासें और धङकने वह रेत पर
मुरदे की तरह आँख बंद करे पङी थी कोई उठा ले जा रहा था ।
वह सोच रही थी भेङिया?
या शिकारी कुत्ते?
सुन्न देह को कोई स्पर्श नहीं हो रहा था ।
आकृति की कोई पहचान नहीं
उसके पाँव की संवेदना खत्म हो चुकी थी ।
वहाँ उस गुफा में अँधेरा था और वह आकृति पाँव के जख्म को जीभ से चाट रही
थी रक्त सूखकर काला हो चुका था ।
घुप्प अँधेरे में उसे कुछ भी नहीं दिख रहा था ।
घाव चाटते चाटते जब भी वह उस जीव प्राणी को रोकने के लिये दूसरे पाँव की
मदद से सुन्न हो चुका पाँव हटाने की जरा सी भी कोशिश करती वह और जकङ लेता
कसकर और जोर का प्रहार पीठ पर करता कभी पाँव पर ।
उसने दोनों पाँव पकङ लिये ।
इस दुरदशा में भी सुमति को भूख का अहसास हुआ और सूखते गले ने कहा पानी ।
लेकिन सिर्फ एक गुर्राहट सुनायी दी वह कोहनियों के बल उठी और आँखें फाङकर
देखा वहाँ सिर्फ कचरे का अंबार था सुमति ने दाँत पर दाँत भीचकर कचरे में
से एक अधखाया फल उठा लिया और खाने की कोशिश की मगर उबकाई सी आ गयी एक कौर
भरते ही ।
वह प्राणी पाँव चाटना छोङकर फल की तरफ झपटा और छीनकर खाने लगा सुमति ने
अँधेरे में बदबू महसूस की और प्राणसंकट। वह बाहर की तरफ खिसकी तभी सिर पर
जोश का पत्थर लगा और सुमति ने होश खोने से

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