कहानी :-एक और दक्ष यज्ञ

Sudha Raje wrote a new note:
14--06--2013--//2:25Pm.कहानी **एक और
दक्ष यज्ञ
**÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷तो तुम
आयी ही क्यों???त...
14--06--2013--//2:25Pm.
कहानी **एक और दक्ष यज्ञ **
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
तो तुम आयी ही क्यों???
तुम्हें बुलाया किसने था??
एक तो बिना बुलाये मुँह उठाये चली आती हो!!!!
फिर हर काम में दखलंदाज़ी करती हो!!!
विशालकाय आँगन के बीच खङी अपनी बेटी पर
गरज़ते उस हृष्टपुष्ट प्रौढ़ पिता के सामने सिर
झुकाये तुलसी चौरे की टेक लिये एक हाथ में
पूजा की थाली पकङे सौदामिनी की आँखों में
लरज़ते उबलते आँसू सँभल नहीं रहे थे । वह रूलाई
रोकने की ज़द्दो ज़हद में काँप उठी । जब कुछ
नहीं सूझा तो धम्म से ज़मीन पर बैठ गयी ।
ये वही घर है क्या???
जिसे बचपन से रँगोली से सबसे ज्यादा हुलसकर
वही सजाती थी!!!जब
दीवाली होली राखी गणपति और तमाम
त्यौहार आते ही वह पत्थर के चबूतरे गाय के
गोबर से लीपकर।फूल दूब अक्षत
रोली हलदी गुलाल आम अशोक की मंजरियों केले
के पत्तों मौली कलावा सिंदूर से सारे
देहरी दरवाजे खिङकी रोशनदान सजा धजा कर
कलश रखती ।
मकान की दूसरी मंजिल जब बन रही थी तब
किशोरी सी उम्र में कितनी ईँटे ढोयीं!!! नन्हें
हाथों की उंगलियों के पोर छिल छिल जाते खून
रिसने लगता लेकिन सौदामिनी का जोश
नहीं रूकता ।
तुलसी गुलाब मेंहदी मनी प्लांट फर्न
डहेलिया और कितने ही फूल पौधे उसने
सहेलियों स्कूल कॉलेज बाजार से ला लाकर
गमलों क्यारियों में लगाये थे ।
मकान जब पुताई होती तो पूरे दो सप्ताह वह
हर सामान रगङ रगङ कर साफ
करती धोती पोंछती और
चूना रगङती हथेलियों पर छाले पङ जाते । आज
भी उसके काढ़े कुशन तकिये चादरें मेजपोश परदे बे
मिसाल नमूने की तरह हर खास मौके पर निकाले
और सहेज कर रख दिये जाते हैं ।
हर कमरे में उसके बनाये चित्र अब भी टँगे है ।
काँच का शो केस अब भी उसके लाये हुये
सजवटी सामानों से भरा पङा है । उसके जीते
इनाम और संकलित गीत गजलों की कैसेट्स अब
भी रखी हैं और बजायी जातीं हैं । पीले
बल्बों की जगह हर कमरे में सी एफ एल उसने
ही अपनी छोटी छोटी बचतों से लगवायीं थीं ।
बस एक झटके में इस घर से
उसका रिश्ता हमेशा को ख़त्म?????
इस घर में घुटनों के बल चलकर बङी हुयी ।
इसी आँगन में तुलसी की आरती के दीप धरते वह
एक दिन दूसरे घर चली गयी । ये दीवारें ये छत
ये आँगन ये चबूतरे उसके लिये केवल भौतिक पदार्थ
या सामान मात्र नहीं थे । यहाँ की हर चीज
एक रिश्ता रखती थी । स्टेशन पर उतरते
ही वह सबसे पहला काम
करती थी भूमि को प्रणाम् । घर पर टैक्सी से
उतरते ही देहरी पर दोनों और माथा टेकती और
स्वर्गवासी माँ को नमन्
करती जहाँ आखिरी बार माँ को देखा था पलट
कर जाते छलछलाती आँखों से ।
भतीजी की शादी थी । वह निमंत्रण पाये
बिना ही चली आयी थी । जब भतीजी ने फोन
पर कहा कि बुआ जी आप जल्दी आ
जाना क्योंकि यहाँ कोई दूसरा मदद को नहीं है
। कार्ड तो अभी छपे नहीं हैं और
पापा को छुट्टी अभी नहीं मिली ।
माँ के मरने के पूरे तीन साल बाद आयी थी वह ।
आ ही नहीं पाती थी । ससुराल में
भरा पूरा संयुक्त परिवार था और हजारों तरह
की ज़िम्मेदारियाँ थीं ।
आयी तो देखा माँ की तसवीर
हटा दी गयी थी । हर तरफ
अफरा तफरी मची थी । सारे गमले पौधे सूख चुके
थे और अब सब हटाकर छत पर कबाङ में पङे थे ।
तुलसी घरूआ तोङा जा रहा था । क्योंकि मँझले
भाई बँटवारा चाहते थे । आँगन के ठीक बीच में
कभी उसने नन्हें
हाथों मिट्टी का तुलसी चौरा बनाया था ।
कुछ साल बाद माँ ने उसके चारों तरफ सीमेंट
लगाकर पक्का करा दिया था । काले पत्थर के
सालिगराम एक बार स्कूल टूर पर जाते वक्त वह
नदी से निकाल लायी थी । रोज चंदन
लगाती और परिवार के लिये दुआयें
माँगती माँ यहीं ।
पिताजी तो बस तनख्वाह सौंप कर
बरी हो जाते । माँ खटती रहतीं एक एक पैसे
को । ऊपरी कमाई तन्ख्वाह से ज्यादा थी और
शराब कबाब शबाब पर पिताजी उङाते रहे थे ।
माँ कुछ कहतीं नहीं थी मगर
कुढ़ती घुटतीं रहतीं वेतन से अलग एक
पैसा नहीं लेती पिताजी से ।
उन्हीं पैसों को जोङ जोङ कर माँ ने बीस साल में
एक कच्चे घर को विशालकाय कोठी में तब्दील
कर दिया था तीन बेटों के तीन बङे बङे कमरे
बनवाये थे और अपने लिये रसोई के बगल
वाली कच्ची कोठरी रख छोङी थी जिसे अबके
इसी को पक्का कराना है कहते कहते माँ कच्चे
कमरे में ही चल बसीं थीं ।
माँ के मरते ही बङे ने कोठरी पक्की कराके
अपनी जवान हो रही बेटी को पृथक कमरा सौंप
दिया था ।
सौदामिनी और कामिनी दोनों बहिनों के कमरे
छोटे और मँझले ने बाँट लिये थे । सबके हिस्से
दो दो कमरे और एक एक टॉयलेट किचिन
आया था जो माँ ने पहले ही बनवा छोङा था ।
बङी सी विशाल बैठक पोर और बाहरी मेहमान
खाने के तीनों कमरों से तीन दरवाज़े अलग अलग
कर लिये गये थे । मुख्य
दरवाजा जहाँ माँ को आखिरी बार
देखा था सौदामिनी ने मँझले के हिस्से आया ।
सौदामिनी ने सिर्फ़
इतना कहा था कि कामिनी और
भतीजी मिलाकर परिवार की तीन
ही बेटियाँ है छोटे और मँझले के बेटी नहीं है
तो आँगन में दीवार मत खङी करो । इसे
बेटियों का खेल खिलौना आना जाना समझ के
खुला रहने दो सबके लिये क्या फर्क पङता है!!!!
आखिर बाहर ग़ैरों से बस ट्रेन
ऑटो रिक्शॉ पब्लिक टॉयलेट बैंक डाकघर
प्लेटफॉर्म अस्पताल दफ्तर कचहरी और मंदिर
हम सब साझा करते ही रहते हैं ।
कौन से ग़ैर हैं सब!!!! वही तो तीन बच्चे हैं
जो कभी एक ही पेट से निकले थे!!! एक
ही माँ का दूध पी कर पले!!! सब एक ही बेड पर
माँ से चिपके पङे रहते थे!!!! एक ही स्कूल कॉलेज
और कमरे में बङे होते रहे।
तीन बेटियाँ गयीं तो तीन आ
गयीं माँ गयीं तो मेहमान भी अब नहीं आते ।
पिताजी के कमरे में काफी जगह है
जो आयेगा वहाँ ठहर जायेगा ।
तुलसी घरुआ रहने दो । इसे देखकर माँ के होने
का अहसास होता है । बङे तो कुछ नहीं बोले
चुपचाप दफ्तर निकल गये । लेकिन आखिरी बार
तुलसी पूजती सौदामिनी बेबसी से बिलख
पङी सालिगराम के पत्थर पर सिर रख कर । अब
तुम किसके हिस्से जाओगे सालिगराम जी??? वह
जानती थी कि आखिरी बार ये जल चढ़ा रही है
। जैसे तमाम सामान बँट गया और बेचकर दाम
बँट गये । बाकी अभी छत पर तिमंजिले के
टीनशेड के नीचे पङा है ये भी कहीं किसी दूसरे
ठौर हो जायेंगें ।
कबाङे में माँ के बनाये हाथ के दो पंखे
बिना डंडी के पङे थे उसने बङी भाभी से पूछकर
माँ की निशानी के तौर पर रख लिये । कूलर ए
सी के कमरों में इनकी जरूरत ही कहाँ थी ।
पिताजी को पेंशन मिलती है ज़िस्म में ताक़त है
हजारों काम अनजाने में करते हैं । सो हर
लङका चाहता है पिताजी मेरे हिस्से में आ जायें
तो वह कमरा और सालाना लाखों की पेंशन के
साथ मुफ़्त का रखवाला और नौकर भी मिले ।
चटोरे पितजी खुद भी बाजारू चीजें खाते और
पोतों को भी लाते रहते । माँ के जाने के बाद
पङौस की बेवा आंटी का आना जाना भी बढ़
गया था । भतीजी जयंती और बङे के अलावा अब
किसी को सौदामिनी का आना पसंद नहीं था ।
कामिनी करोङपति घर में थी सो जब आती तब
छोटे के साथ रूकती मँझले के घर खाती और बङे के
घर मनोरंजन करती । जाते हुये कीमती तोहफे
रख जाती । बङी सी मँहगी विदेशी कार
दरवाजे पर खङी होती तो शान से तीनों बहुँयें
नगर भ्रमण कर डालतीं । बच्चे होटलों में
छोटी बुआ से पार्टी लेते । सब
कामिनी की सेवा में जुट जाते ।
कामिनी को घर या घरवालों की बजाय पुराने
दोस्तों सहेलियों और रईस रिश्तेदारों से मिलने
और पति पर मायके का इम्प्रेशन जमाने
का ज्यादा फितूर सवार रहता । कामिनी के
जाते ही सब आलोचना करने बैठ जाते घमंडी है
चालू है स्वार्थी कंजूस हृदयहीन ।
सौदामिनी का वज़न अज़ीब था ।
उसकी उपस्थिति में सब संयत हो उठते । वह जैसे
माँ के स्थान पर आ खङी होती सबको एक पल
को भुला देती कि अब चूल्हे बरतन अलग हैं । वह
भतीजी के कमरे में रूकती और आँगन में तुलसी के
पास बैठकर सबको मजबूर कर देती साथ खाने
को । बङे न भी आयें तो इन दिनों बच्चे औरतें सब
साथ खाते ।
अपना खरचा कभी नहीं डालती किसी पर ।
मगर आज दिल टूट गया था ।
पिताजी कठोर हैं सदा से ये तो पता था लेकिन
इतने निर्मम भी हो सकते हैं उसने
नहीं सोचा था ।
पङौस वाली भाभी ने
इशारा दिया तो था कि तुम ऑटोरिक्शॉ से
आती हो सस्ते सूती कपङों में दो टके
की अटैची लिये बिना गहनों के
तो भाभियों भाईयों की इन्सल्ट होती है ।
बुलाते तभी हैं जब घर में
फ्री की मजदूरनी चाहिये होती है या बात
कोर्ट कचहरी से बाहर सुलझाने की नौबत
हो तब ।
पिताजी का वश चले तो बुढ़ापे में दूसरी रख लें ।
तुम्हारे आने से भतीजों के गुरछर्रों पर भी लगाम
हो जाती है । बहुओं के चाट मेले ठेले बंद तो कान
भरती है पिताजी और भाईयों के ।
सौदामिनी ने चुपचाप तुलसी के बीज आँचल के
छोर में बाँधे । कुछ पत्ते तोङे । मोबाईल से
ठाकुर जी तुलसी और माँ की तस्वीर की तस्वीरें
लीं । तुलसी की जङ से मुठ्टी भर मिट्टी रूमाल
में बाँधी । माँ वह साङी पहनी हुयी भतीजी से
पूछकर खोजी और ऱख ली जो वह माँ को दे
गयी थी परंतु मँहगी होने से माँ पहनती कम
थीं । सामने वाले घर से लङके को कुछ रूपये
एक्स्ट्रा देकर रिक्शॉ बुलाया । और चल पङी ।
शादी तीन हफ
बाद थी । भतीजी को हाथ से एक अँगूठी उतार
कर पहनायी चार साङियाँ रखीं माथा चूमकर
सुहागिन होने का आशीष दिया।
मोबाईल से पति को सूचना दी स्टेशन पर
लिवाने आ जाना ।
उसे लगा एक सती दहन आज फिर हुआ ।
दक्ष के महल में सती की भस्म बिखरी पङी है ।
एक साल बाद उसके घर के आँगन में
तुलसी सालिगराम का विवाह
था देवोत्थानी एकादशी पर । माँ की तस्वीर
सास की तस्वीर के बगल में बिन डंडी बाले
हथपंखे के फ्रेम पर जङी मुस्कुरा रही थी ।
बिटिया आँगन में
आरती गा रही थी """वृन्दा वृंदावनी
विश्वपूजिता विश्वपावनी --------
सौदामिनी ने दुपट्टे से आँखें पोंछ ली । ये आँगन
हमेशा तेरा रहेगा मेरी लाडो तू कहीं भी आये
जाये ।
©®©®©®¶
Sudha Raje
सुधा राजे ।
Jun 14, 2013
Unlike · Comment
· Edit Privacy · Edit · Delete
You like this.
Sudha Raje
सुधा राजेएडवोकेटएमजेएमसीएम
एएलएलबीएमटी511/
3पीतांबरा आशीषबङी हवेली फतेहनगरशेरकोटबि
जनौर246747उप्रमो76694896
Like · Edit · Nov 29, 2013

Comments