कविता :सैनिक

किसी को उस सैनिक की परवाह है जो गरीब किसान मजदूर का बेटा है घर पर
मासूम बच्चे और नवेली दुलहन छोङकर बारूद के नरक को पीठ पेट पर बाँधे ढोता
है मौत हर पल हथेली पर????

जिसकी कोई निजी जाती व्यक्तिगत दुशमनी नहीं है किसी इसलामवादी या हिन्दू
वादी से क्योंकि सेना में है माईक थॉमसन अशफाक खान और रंजीत सिंह पंडित
किशोर और जाट गूजर सब
कशमीरी पंजाबी मराठी द्रविङ सब
सुबह को जैसे तैसे कुछ खाया और सीमा पर रात भर बंदूकों को सीने से सटाकर
बरफ पर चक्कर लगाया ।
कैसे अचानक तबदील हो गयी हँसती खेलती कङियल काया लाश में???
सैनिक जब भी मरा देश पर अपने अटूट विश्वास में ।
ताबूत में आती हैं सिरकटी फटी जली बिखरी लाशें और नोंच ले जाती है
चूङियाँ सपने और बचपन बुढापे की चीखती साँसे
दोनों तरफ है दुश्मन और अपनी ओर तो हथियार बंद से भी खूँख्वार कलमबंद ।
कौन समझेता तिरंगे पर बिखरा लहू और सीने में दम तोङता
जयहिन्द!!!!!!!!
©®सुधा राजे

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