Monday 27 January 2014

अकविता:कौन लगाये इस ठठरी पर पैसा

Sudha Raje
बीमार पङी है फरहाना कई महीनों से
चौथा हमल गिर गया ।
और महीनों से खाँस रही है तुलजा ।
जब तक गाल गुलाबी थे आँखें भी शराब
शराब थीं ।
चढ़े बदन पर शौहर क्या ज़माने भर
की नीयत ख़राब थी
सत्रह के रिश्ते ठुकराकर
अट्ठारवीं लङकी पसंद कर जिद करके बहू
बना लाया था सुमित्रा को होरी और
रीझ रीझ गया था शानू
अपनी नवेली पर ।
फूल झरे फल आये शराबें रीत गयीं और
शबाब बीत गये ।
अब?
अब कौन इस बीमार ठठरी पर
पैसा लगाये?
खूब रगङती है साबुन उबटन
गाजा सुरमा मगर सानिया उदास है
आजकल वह नहीं कोई चढ़ता शबाब
आसपास ख़ास है।
कौन लगाये इस खाँसते हाँफते कराहते
ज़िस्म पर पैसा??
मायके से बूढ़े अब्बा ने
मजबूरियाँ जता दीं और ससुराल में शौहर
ने परिवार के लिये
उसकी अनुपयोगिता जता दीं
नहीं
जता बता पायी तो वह
कि
ईँधन की कमी से चूल्हा फूँकती
और
ठंडे पानी से बरतन कपङे फर्श
धोती नहाती पकाती ठंडा बासी उच्छि
खाती वह हो गयी बीमारी और कुपोषण
की शिकार पिछले दस साल से आ रहा है
मरा मरा बुखार ।
जचगी के
वक्त किसी ने नहीं पिलाया दूध
हलदी हरीरा न मैथी के लड्डू न
पकवा पानी ना गुङ घी बादाम जीरा
जचगी के ही वक्त
दाई ने डाल दिया था नंगे बदन ठंडे फर्श
पर और नहीं की किसी ने बाद में परवाह

हाङ हाङ का दर्द है उसके बदन पर हुये
अत्याचार का गवाह ।
बच्चा पैदा करने पेट में रखने में पोर पोर
दुखता है
मगर नब्बे दिन के आराम के
की छोङो नौ दिन भी कौन आराम
को रुकता है?
अब
दुखती है हर साँस
बची है तो केवल किशोर बेटे के जवान
होने की आश
खुदा खैर करे ।
कभी तो चढ़ेगा परवान ।
शौहर ने तो जी भऱ रुलाया बेटे के राज
में शायद पूरे हो जायें आराम के अरमान
मगर लीला का वाकया डराता है
सुना है अम्माँ बेटी के घर रहती है और
बेटा तो बस कभी कभी मिलने आता है।
©®सुधा राज

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