लेख -::: परदेशी कमाई और कङवी सच्चाई ।

परिवार अच्छा खासा खाता पीता कमाता है लगभग चार पाँच लाख सालाना कमाई
निजी मकान दुकान और ब्रुश कारखाना है । खेती पशुधन और अच्छा रहन सहन है।
मगर नगर में खाङी देशों मस्कट अबूधाबी ओमान अरबदेशों में गये लङकों के
परिवार जिस तरह से केवल पाँच साल में कारों बंगलों महल और सोने से लद
जाते है वह देखकर ललचाये हुये माँ बाप भाई बहिन हिहिषा करते है ईर्ष्या
और होङ में लङके को अरब भेजने की तैयारी हो जाती है । विकास राजू सतपाल
किशन सलीम आतिश प्रदीप कोई हो धकेल ठेलकर अरब भेजे जाते है । बहिन आशा
लगाती है कि अब उसकी शादी मतीना मूनू संतोषी बबली की तरह मोटे दहेज कार
और सोना चाँदी देकर बङे घर में हो जायेगी और वह ससुराल में दबंगई से
रहेगी । माँ को पङौसन की तरह बुढ़ापे में जंजीर अंगूठी टॉप्स पायल और
अरबी कपङे का शौक है । भाभी को अरबी क्रीम पाउडर लिप्स्टिक सुरमा सेंट
सूट और कंबल चादर परदे तो बङे छोटे भाई को अरब का कैमरा कंप्यूटर मोबाईल
सनग्लास बैटरी टॉर्च इमरजेंसी लाईट । बाबूजी को नकद रुपिया चाहिये ताकि
लङकियाँ बङे घर में भेजकर मोहल्ले पर दावत जलसा करके धौंस जमा सके । और
कारोबार में मोटी पूँजी लगा सकें । किसी को परवाह नहीं कि जवानी निकल रही
है लङके की धूप गरमी अकेलेपन और परिवार की याद में रो रो कर हाङ तोङ
मेहनत लगातार करके कुशल को पथरी की समस्या हुयी तो भारत से दर्द नाशक
दवायें भेज दीं और जब ज्यादा हालत बिगङी तो देहरादून आकर ऑपरेशन करवा कर
वापस भेज दिया बहिनों की शादी हो गयी मगर उम्मीदें बरकरार है मामा के
भेजे खिलौने कपङे फिर मामा के पैसों से इंजीनियरिंग की तैयारी । हर
परिवार एक या दो लङके अरब खाङी देशों में भेजकर कुरबान करके धनवान होना
चाहता है । औरतें बातें करतीं हैं अब तो मौज ही मौज है दो दो बेटे अरब
कमा रहे हैं । लङका बहिन की शादी पर फोन पर रोता है । पिता माता की आवाज़
सुनकर भावुक होता है । भाई की बारात की याद करके किलसता है । दोस्तों की
तसवीरें रखकर रोता है । जवानी निकल रही है दिन भर बहुमंजिली इमारतों की
रस्सियों पर लटक कर चिनाई करके आग के नरक में भोजन पकाते । धूल की धूप की
आँच आँधी में ट्रकों पर से पीठ पर बोरे डिब्बे उतारते । होटलों में बरतन
माँजते पोंछा लगाते । शो रूम में सामान तह करते बेचते लगाते । सङके
नालियाँ शौचालय साफ करते । उमर बीत रही है नल बिजली टंकी पाईप तार टोंटी
की फिटिंग करते । उमर बीत रही है काफतान बुरके सलवार कमीज चोगे सिलते
कपङे छाँटते काटते धोते प्रेस करते । उमर बीत रही है गोश्त से हड्डियाँ
अलग करते ।
परिवार को बस पैसा भेजना है एक दीनार मतलब मतलब ढेर सारे भारतीय रुपये ।
एक रियाल मतलब ढेर सारे भारतीय रुपये ।
भले घरों के लङके जो यहाँ भारत से जाते वहाँ कुशल कारीगर बनकर धनवान बनने
का सपना लेकर वहाँ जाकर पता चलता है खाना पानी रहना बेहद मँहगा है । और
कई कई लङके एक एक कोठरी में रहकर एक साथ खाना पकाना करने लगते है अपने
कपङों और रहन सहन पर कम से कम खर्च करके घर भेजते है हर सदस्य के जन्म
दिन पर उपहार हर शादी दिवाली होली ईद राखी शुबरात पर उपहार क्रिसमस लोहङी
न्यूयीयर पर उपहार ।
भारत पैसा भेजना है । कोई सीमा नहीं परिवार की हवस की । मकान चार पाँच
मंजिला हो चुका मारबल ही मारबल बिछ गया बाथ रूम मोजेक टब फव्वारों से लैस
और हर पुरुष सदस्य की निजी कार हो गयी । हर लक्जरी घर में है पार्टियों
पर जमकर खरचा होता है ।
लङका प्रौढ़ हो चला है चार साल पर भारत आया है स्वागत में सब दिल्ली
पहुँचकर अगवानी करते है । कस्टम पर तीस हजार की रिश्वत ली गयी सामान पास
कराने को कार्गो से बाक़ी सामान गुजरात या मुंबई होकर आयेगा वहाँ भी दस
बीस हजार कस्टम को रिश्वत देनी होगी । लाखों रूपया आने जाने में लग चुकता
है ।
लङका सिर उठाकर चलता है जो कभी दिल्ली नहीं जा सकता था खरचे के डर से
मसूरी शिमला होकर आया । सब नयी नयी डिश खिलाते हैं माँ रोज नजर उतारती है
बहिन लिपट लिपट कर रोती है ।
सबकी चिंता दूर है तनाव है तो बस इतना कि लङके ने बङी भाभी को कितने
तोले का हार दिया और छोटी को कितने का माँ चिढ़ती है कि चाची और बुआ को
जंजीर क्यों दी बेटा तो मैंने जना पाला पोसा । बहिन को लगता है कि अब
बहिनोई को भी अंगूठी मिलनी चाहिये ।
लङके के दोस्त दारू शारू पार्टी शार्टी की दावत के बाद कोई लंगोटिया यार
चुपके से कह देता है --""यार शादी कर ले "-
लङका सोच में पङ जाता है । परिवार चिंता में । बहू आ गयी तो भाभी को आई
फोन कौन देगा । भांजे भतीजों की फीस कौन अदा करेगा । जीजा के कारोबार में
पूँजी कौन लगायेगा । अभी जो बीमे की रकम माँ के नाम नोमिनी है वह बीबी
स्वाभाविक कानूनी हकदार हो जायेगी ।
कहीं लङका मोह मुहब्बत में फँस कर भारत ही ना रहने लगे । अभी तो दस
पंद्रह साल की मेहनत का दम बाकी है ।
अपनी बीबी अपनी औलादें हो गयीं तो? न्यारा घर करेगा । हिसाब माँगेगा ।
और बँटवारा भी । सबकुछ तो इसी लङके की कमाई से खङा है कहीं वापस तो वहीं
माँग लेगा । फिर तो बस अपनी औलाद अपनी बीबी को ही लाकर दिया करेगा । कहीं
आईन्दा से सब उपहार मिलने बंद तो नहीं हो जायेगे । साले सालियाँ सलहज सास
ससुर की तरफ मन ढल गया तो ।
और अब एक षडयंत्र चालू हो जाता है कि लङके की शादी टालो अभी तो पाँच साल और ।
लङका वापस अरब देशों में लौट जाता है ।
लेकिन अबकी बार अपने लिये पैसा कमाने और जब ठान लेता है तो अंधाधुंध काम
करता है आत्मसम्मान परे रखकर निर्धारित काम से अलग ओवर टाईम एक्स्ट्रा
काम करता है। रात दिन हर रोज । भारत में अलग पैसा जोङना चाहता मगर ये
पैसा फिर भी परिवार वाले दलाली खाते हैं ।
कुशल की शादी हो ही नहीं पायी । राजू की शादी पैंतीस की उमर में हुयी ।
किशन की शादी हुयी तो मगर लङकी समकक्ष परिवार से नहीं है बस समझौता कर
लिया ।
अब दुबारा जाना चाहता है शरीफ अरब देश क्योंकि जो कुछ कमाया था खतम हो
गया मकान बनाने और विवाह करके गृहस्थी जमाने में दो बच्चे हो गये है ।
बीबी बच्चों की खातिर अबके जाकर मोटी पूँजी लाना चाहता है । चंदू मुन्ना
अमन और कालिया । सब चले गये । बीबी पर ससुराल वालों के ज़ुल्म वाचिक
शाब्दिक और ईर्ष्यायें बढ़ती जाती हैं । उसके खिलाफ अब लङके के कान भरे
जाते हैं । परायी जायी अपनी कैसे हो सकती है । लङका रात दिन मेहनत करके
पूँजी लेकर वापस आता है बच्चे अब बङे हो चले । दुकान डाल ली कार मकान ए
सी जनरेटर सब हो गया । मियाँ बीबी सेकेंड हनूमून पर हो आये । मगर अब फिर
लगता है कि मजा नहीं आ रहा है । अब भी जान बाकी है और बेटी सयानी हो चली
है । लङका होस्टल पढ़ कर डॉक्टर बनना चाहता है । बीबी का अकेले जीवन
बिताने से बच्चेदानी के कैंसर का ऑपरैशन होना है । अबकी बार और बस फिर
फिनिश आ ही जाना है । प्रौढ़ अमज़द अबरार रामकुमार शंकरलाल वापस अरब
देश चले जाते हैं। अब आदत हो गयी हो चुकी है सब अपमान कष्ट और चालाकियाँ
सहने की । अबकी बार पाँच साल पर आकर सब सपने पूरे हो गये ।
लङकी ससुराल गयी । दामाद को कार दी मोटे दहेज के साथ ।
सलीम का बेटा चाहता है वह भी अब्बू की तरह अरब कमाये क्योंकि भारत में
बीस हजार रुपये महीने की नौकरी में बात वह नहीं होने की जो अब्बू ने बीस
साल में घर ही नहीं कुनबे भर का सारा दलिद्दर निकाल कर कर दिया। आज सलीम
ब्याज पर पैसा चला रहा है नैनीताल दिल्ली और गाँव में जमीन खरीदी है ।
लङका फिर नौकरी दुकान छोङकर अरब चला गया । अम्मी को चिंता है लङके की शादी कर दी ।
बेवा सी रहती सुहागिन इंतजार में है। शौहर के । तीन साल बाद आया है लङका
और सब खुश है मोटी पूँजी ढेरों उपहार । बीबी गहने पहनकर इतरा रही है ।
मगर ये विरहा बरदाश्त नहीं माँ चाहती है बस कर बेटा अब घर कारोबार सँभाल
। कैफ और कन्हैया के पापा लोग हर तीन साल पर आते हैं । पापा मतलब पैसे
देने वाला आदमी । वहाँ परदेश में औरत चाहिये और रहमान ने एक अस्थायी
निकाह कर लिया है ।
षडयत्र करके शीबा का तलाक करा दिया ससुराल वालों ने क्योंकि जब शादी हुयी
तब दोनों परिवार मामूली लोग थे । अब लङके वाले अमीर और लङकी वाले दरिद्र
हैं लङका सारा पैसा लङकी के खाते में भेजने लगा था लङकी के मायके वाले
जुगाङ में थे कि लङकी अपने छोटे भाई को भी अरब काम दिलवा दे और छोटी बहिन
की शादी में पैसा लगाये । तलाक
फोन पर हो गया चिट्ठी में तसदीक हो गयी ।
अब भाभी माँ बाप भाई सुखी और लङका पाँच साल पर आकर प्यार पाकर अभिभूत है
। ये मेरे अपने हैं इनपर जान कुरबान ।
वहीं छोटा भाई का परिवार है बीबी है बच्चे है अलग गृहस्थी है ।
शाम को खाने पर गया तो आँख भर गयी । सब खुश हैं छोटी सी दुकान पर निर्भर
सुखी परिवार ।
रात भर करवटे बद लते बीती ।
अब कौन करेगा पैंतालीस की उमर में शादी ।
बचा ही क्या है न देह में न मन में।
दुकानों और ट्रांसपोर्ट से पैसा आ जाता है ।
अब वह सोच रहा है कोई लङकी मिल जाये सुना है बिहार नेपाल बंगाल पहाङ से
लङकियाँ मोल लेकर शादी की जा सकती है ।
एक महीने में दलाल मिल जाता है और दूसरे महीने सफेद बाल रँगकर शादी कर लाया वह ।
अब तो ताऊ की अलग गृहस्थी हो गयी ।
सब रूठे है आधी उमर की साँवली लङकी हूर से कम नहीं लगती उसको । पचास की
उमर ही सही मगर अपना परिवार तो है ।
कुशल को अब अफसोस हो रहा है वह भी चाहता तो करामत की तरह लङकी खरीद कर
शादी कर लेता ।
सुबह सुबह मुहल्ले में स्यापा मचा है फौजिया के बेटे को सजाये मौत मिली
है और अगले जुमे को सरेआम सर काटा जायेगा।
रिजवाना का बेटा पच्चीसवीं मंजिल की पेङ पर से गिरकर अपाहिज होकर वापस आया है ।
और रमजानी के पोते को तो मरने के बाद कंपनी वालों ने वहीं दफनाया है।
सुरजीत की लाश आयी है ताबूत में जितना कमाया था डैड बॉडी मँगाने में चला गया ।
उधर चमनलाल का बेटा परदेश की जेल में बंद है। माँ और बीबी का रो रो कर
बुरा हाल है ।
दलालों ने धोखा देकर झूठे कागज पर भेजे थे जो लङके उनके माँ बाप फरियाद
करते फिर रहे हैं थाने कचहरी में घर गिरवी रखा है और साहूकार चढ़ चढ़ आ
रहा है लङकों को काम तो मिला ही नहीं है ऊपर से कागज उधर जब्त है और देश
वापसी के लाले पङे हैं।
कौन समझाये --""अपने घर में भी है रोटी -""

दौलत की हवस जो न कराये सो थोङा। मगर इस चक्रव्यूह ने कईयों को कहीं का नहीं छोङा।
राधा ने साफ मना कर दिया बहू को कि मेरा बेटा परदेश नहीं जायेगा जो तकदीर
में है बूते से यहीं अपने देश में कमायेगा ।
बहू नाराज़ है क्योंकि पङौसवाली के घर में ऐशो आराम का हर साज़ है ।
रही बात जवानी अकेले बितानी की तो कुछ बङा पाने के लिये कुछ बङा खोना भी पङता है ।
लेकिन ससुर का क्या करें जो कतई नहीं है बेटा परदेश भेजने को तैयार ।
भाई कहता है कहता है अपने भी देश में कमाकर जी सकते हैं संतोष से यार!!!!!!!!!
©®सुधा राजे
दतिया मप्र
बिजनौर उप्र

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