लेख :बँट गये शब्द

Sudha Raje
आकाशवाणी छतरपुर ।।ग्वालियर ।।
नज़ीबाबाद ।।
से जब किसान मजदूर पंचायत
चलती तो सब राम राम कहते ।।
हिंदू ही नहीं
सिख सिंधी दलित मुसलमान तक आपस में
राम राम कहने में कोई भेदभाव
नहीं करते

फिर आडवाणी का रामरथ चला ।।
और मंदिर वहीं बनायेगे का नारा ।
उस साल हम टैगोर टाऊन इलाहबाद में
रहकर IASके सपने देख रहे थे प्रिलिम
टेस्ट पास कर लिया था और मेन का सेंटर
अटाला मस्जिद चौक का इंटर कॉलेज
था ।और कदाचित् पहली बार
IASकी परीक्षा लेने के बाद पहली बार
रद्द हुयीं ।।
जय श्रीराम ।
अब केवल एक खास पार्टी का नारा रह
गया था ।
और वन्देमातरम को एक पार्टी ने सबसे छीन लिया ।
जो जय श्रीराम कहे या वन्दे मातरम वह संघी कहकर दुत्कारा जाने लगा ।जो
खुदा हाफिज खुदा खैर करे की जगह अल्लाह हाफिज
अल्लाह खैर करे
कहने लगे वे कट्टरवादी समझे जाने लगे ।अब समीना शाकिर आकर बापू के पाँव
नहीं छूते सलाम कहते हैं
नमस्ते नहीं ।और ना ही अब अरमान आलिया को विदा करते वक्त भाभी हल्दी पैसे
रूमाल में बिटिया मानकर बाँधती है न कोई कहता है खुदा हाफिज शब ब खैर

उस वर्ष
जब घबरायी हुयी लङकियों से हॉस्टलखाली कराया गया तो ।।सपने टूट चुके
थे।
बार बार रिस्क कोन लेता है
छोरियों की कैरियर का????
मैंने फिर कभी राम राम
नहीं कहा किसी से वनवास
जो हो गया था जीवन से
ये राम किसी एक राजनैतिक दल
का नारा कैसे हो गया ।
खुदा हाफिज़ सब कहते थे गाते भी ।
तब फारसी लफ्ज़ ज्यादा थे ।
फिर अल्लाह हाफिज़ कहाँ से आ
गया अरबी निकटता और ये
संघवादी फासिज्म हमें कितना बाँट
रहा है


कभी कोई राह निकलेगी क्या जो एक
का मजहब दूसरे की नफरत की वजह न बने
गुण दोष पर ध्यान दें जाति पर नहीं ।
पंचो राम राम ।
सलाम भाईज़ान
खुदा हाफिज़
माशाअल्लाह
सुभान अल्लाह
खुदा ख़ैर करे
©Sudha Raje
Apr 30
2013

Comments