नज्म :सुधा कुछ भूल जाती है

Sudha Raje wrote a new note: एक
धीमा सा नशा बारिश पिलाती है.
Sudha Raje
Sudha Raje
किसी को याद
सा करती हुयी जब शाम
आती है
हवा कुछ थम सी जाती है
फ़िज़ां कुछ गुनगुनाती है
ये हदशिक़नी मेरे ग़म की
सितारों को रूलाती है
ये ज़ीदारी चुनांचे शाम
तक यूँ टूट जाती है
कहीँ साज़े-तरब की छेङ
सी इन सब्ज़ पत्तों से
कहीँ वो शायरी मेरे
लङकपन की सुनाती है
ये चुपके से करे
सरगोशियाँ जाते
परिंदों से
मेरे आँगन में
दाना देख
चिङियाँ चहचहाती हैं
मेरी नज़रे बचाकर सामने
वाली मुँडेरों से
वो लङका मुस्कराता है
वो लङकी खिलखिलाती है
कभी मेरे बगीचे में
गुलाबी फूल लेने को
गुलाबी सर्दियों में
वो बहाना लेके आती है
ये बादल बर्क़ ये बिजली
कोई किस्सा सुनाते हैं
ये बारिश हौले से धीमा नशा
जैसे पिलाती है
ये शामें ये धुआँ ये ज़ाम ये
तन्हा शज़र मिलकर
अज़ब मंज़र बनाते
सुधा कुछ भूल जाती है ©®
\©®¶SudhaRaje
Jan 19, 2013
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