Friday 10 January 2014

कहानी-झमक्को

Sudha Raje wrote a new note:
28--06--2013//11:22AM//
**झमक्को**कहानी******★★★★★***************मेम
मेम !क्या है फ़रहान क्यों घबराया...
28--06--2013//11:22AM//
**झमक्को**कहानी**
****★★★★★***************मेम मेम !
क्या है फ़रहान क्यों घबराया हुआ है?
मैडम! वो पङौस के मुहल्ले की मीना आंटी हैं न उन्होने आज रात
स्युसाईड कर लिया!
व्हाट!!
तुम होश में तो फरहान!!!
मैम मैं सही कह रहा हूँ अभी ऑफिस की ओर आ
रहा था तो दरवाज़े पर भीङ लगी थी । पुलिस भी थी । और
उनके चारों बच्चे बुरी तरह चीख चीख कर एंबुलेस पीट रहे थे ।
बॉडी को पोस्टमार्टम को ले गये । ""
ओ माय गॉड!!!
मीना? वो झमक्को?
हाँ मैम वो ही मीना आंटी जिनको आप झमक्को कह के
चिढ़ाती रही ।
उफ्फ!!
अब लङकियों का क्या होगा? तीन जवान बेटियाँ ऊपर से
नादान नन्हा बेटा और चिढ़ने वाले कुटुंबी ।
हाँ मैम मैं भी यही सोच रहा था ।
मीना आंटी तो इतनी जिंदादिल थीं ।
हमेशा खिलखिलातीं रहती थी ।
वही तो कितना सज धज के रहती थी हमेशा। चटक
रंगों की साङी । बङे बङे झुमके । घुँघरू वाली बाजनू पायल । हर
वक्त रंगबिरंगी चूङियाँ । एक कदम भी रखे तो छन छन छन खन
खन खन बोलती रहती।तभी तो हमने नाम रखा था झमक्को ।
लाली बिंदा काजल सिंदूर पाउडर इत्र कुछ भी कभी कम नहीं ।
पिछली बार चुनाव में वोट माँगने गये तो देखा घर में भी बस
ऐसी सजी धजी बैठी मानो अभी पार्टी में जा रही हो ।
हाँ मैम बातें भी तो हर वक्त मज़ाक । कौन है किस उमर का है
इसकी भी परवाह नहीं सबको हँसा देती ।
हाँ फ़रहान! उस दिन तो तुम्हारी भी क्लास ले ली थी जब
मंगेतर को चुपके से सिनेमा दिखाते झमक्को ने तुम्हें
रॉक्सी टॉकीज में देख लिया था।
जी मैम मैं फिर कभी नहीं ले गया ।
फरहान सकुचाया ।
वो तो सुसाईड कर ही नहीं सकती ।उसका वो हलवाई मोटू
शौहर कहाँ हैं?
वो भी वहीं ज़मीन पर लोट लोट के विलाप कर रहा था मैम देख
नहीं गया मुझसे तो बरबाद हो गया हँसता खेलता परिवार ।
हाँ फ़रहान इसी को कहते है पानी का बुलबुला फ़ानी दुनियाँ।
मैम पता नहीं क्यों मुझे यक़ीन नहीं कि मीना आंटी ने स्युसाईड
किया होगा ।
मुझे भी फ़रहान । हालाँकि हम चार महीनों से उससे नहीं मिले
थे । मग़र इंसान की आदतें उसके इरादे तो कहती ही रहती हैं ।
झमक्को को तो जब देखा यही लगा ज़ीना इसी का नाम है । अरे
वो तो मुझे डाँटती रहती थी कि कैसा भेष कर रखा जिज्जी?
लोगों से मिलो बोलो हँसो खेलो कूदो । ये मई का कैलेण्डर
बनी क्यों बैठी रहती हो ।
निष्ठा ने एन जी ओ का दफ्तर बंद किया और फरहान को साथ
लिया । पैदल ही रास्ते में ढाबे से रोटी दाल और चाय पैक
कराती हुयी लेकर जा पहुँची । खाना बगल वाले पङौसी के घर
रखवाया और ताकीद कर दी कि बच्चों को बुलाकर
खिला देना ।
सात साल का बच्चा और क्रमशः बीस अठ्ठारह सोलह की उमर
की तीनों बेटियाँ चैनल गेट के सामने ही गैलरी में चटाई पर
बेहाल पङे थे ।
डैडबॉडी अस्पताल से आकर बाहर बरामदे में
रखी गयी थी नहलाकर सजाकर अंतिम दरशन को ।
वही श्रंगार जो उसे हमेशा प्रिय था हल्दी मले बदन पर सुर्ख
जोङा और पतले दुबले पीली रंगत के एकदम पतले चेहरे पर
वही रौनक । लग रहा था सो रही है । लाल कफन ओढ़े ।
लोगों ने अरथी उठायी और पैसे फूल बरसने लगे तो अधमरे से पङे
चारों बच्चे चीख कर फिर पीछे पीछे दौङे औरसङक पर धूल
मिट्टी में लोटने लगे । मम्मी मम्मी मम्मी का चीत्कार
सुना नहीं जा रहा था । कुछ औरतें आदमी हिम्मत करके आगे बढ़े
और बच्चों को खींचकर भीतर ले गये ।
निष्ठा से वहाँ रूका नहीं जा रहा था।
फ़रहान भी एक तरफ खङा खङा आँसू बहा रहा था ।
तभी मीना की माँ बिलखती हुयी बोली
""इन बालकों का भी मुँह नहीं देखा तैंने मुन्नी यो क्या करा ।
अब इनन कौन रोट्टी देबैगो । कौन करैगो हरदी जोङे कौन के
कौधै लगकें रोबेंन्गी मैया मैया कहके मेरी लाल जे तैंने का करौ ।
जैसे इत्ती कट गयी ती औरु सबुर कर लेत्ती मेरी मुनियाँ ।मैं
बैठी जे देखबे तैं चल गयी मोकूँ छोङ कें ।वृद्धा ने सिर पीछे
दीवार में दे मारा ।
घूँघट में औरतें बुरी तरह रो रहीं थीं ।
निष्ठा का दिमाग रोने धोने से ज़्यादा जिस बात पर था वह
थी वज़ह । कोई यूँ ही तो नहीं मर जाता ।
धीरे धीरे औऱतें सामान्य हो गयीं औऱ नहाने धोने में लग गयीं ।
निष्ठा बच्चों के सिर पर हाथ फेरकर वापस आ गयी ।
बाहर बगीचे पर नहाया औऱ थाने जा पहुँची फ़रहान की बाईक
से ।
वहाँ जाकर पता चला कि मीना ने कीटनाशक
खा लिया था रात को दो बजे । कोई सुसाईड नोट नहीं है ।
मगर जब हालत खराब हुयी तो निकट के डॉक्टर के घऱ ले गये
वहाँ उसने कहा कि वह अपनी बीमारी से परेशान थी इसलिये
जहर खा लिया । पति और ससुराल वालों की कोई
ग़लती नहीं । वहाँ मौजूद दस लोगों ने यही बयान दिया है ।
बच्चों की हालत अभी ठीक नहीं बयान बाद में लेगें अगर
जरूरी हुआ तो ।
थाने से लौटकर निष्ठा दुबारा मीना के घर
पहुँची वहाँ बच्चों को मना मनाकर चाय बिस्किट खिलाये ।
बङी बेटी ने तो कुछ नहीं लिया परंतु उसीकी मदद से
छोटों को खिलाया शाम हो गयी थी । मीना का पति बाहर
लोगों के बीच रह रह कर रो रहा था । औऱ अपने बरबाद होने
का स्यापा कर रहा था ।
निष्ठा को बङी बेटी ने बताया कि मम्मी को पापा रोज
शऱाब पीकर पीटते रहते थे । मम्मी जब शहर किराये
का कमरा लेकर बच्चों सहित रहने लगीं क्योंकि सबके स्कूल
वहीं थे तो पापा वहाँ भी हंगामा करने पहुँच जाते । ननिहाल
में मम्मी और मौसी अकेली बहिनें थी मामा अभी एक ही है
नौकरी करते हैं बैंकाक में । नाना के मरने के बाद
बङी मौसी मौसा ननिहाल में रहते थे
मौसा ही नाना की किराने की दुकान चलाते हैं ।
पापा हिस्सा माँग रहे थे ।दोनो बहिनों की शादी तय कर
दी थी । वो दोनो लङके कारें माँग रहे है । पापा ने पैसे इकट्ठे
कर लिये थे परंतु कम पङ रहे थे । मम्मी ने कहा रिश्ता तोङ
दो ये लोग आगे फिर चुप नहीं बैठेंगे । अभी एक छोटी बहिन औऱ
भाई बकाया हैं । फिर तब तो सबको होङ लगेगी माँगने की ।
हम लोगों को पापा ने चाँटा जङ दिया मना करते ही ।
नानी को मम्मी ने सारी बात बतायी । छोटे
मामा को नानी बेहद प्यार करतीं हैं जबकि वे बैंकाक से बस
साल दो साल में एक बार आते हैं ।
मौसी मौसा को भी बहुत मानती हैं । मम्मी से नाराज़
रहतीं थीं क्योंकि मम्मी ने लव मैरिज की थी ।
मम्मी पापा की दुकान पर प्रसाद की मिठाई लेने आतीं थीं और
जिद करके एक दिन आर्य समाज मंदिर में पापा से शादी कर
ली । सब कुछ सही था लेकिन बाबा दादी को पोता चाहिये
था । हम दो बहिनों के जन्म के बाद से पापा शराब पीने लगे थे
। हमारी दुकान अच्छी चलती रही सो घर अच्छा बन गया ।
लेकिन जब छोटी तीसरी बहिन हुयी तो पापा ने
मम्मी को दादी बाबा की तरह ताने देने और जाल में फँसाने तक
की गालियाँ देनी शुरू कर दी थीं । फिर नौ साल तक
पापा मम्मी से बोलते ही नहीं थे । बस कहते रहते जब दहेज
नहीं मिला तो बाप का हिस्सा क्यों नहीं ले लेती । पापा ने
बुआओं के लिये आधी जमीनें बेचकर गिरवी रखकर दहेज दिये थे ।
दोनो करोङपति परिवारों में हैं ।
नानी तो माँ को मौसा मामा मौसी के डर से कभी बुलाती तक
नहीं । साफ साफ कहके गयीं थीं जब तूने
हमारी नहीं सोची थी तो अब हम तेरी क्यों सोचें । फिर
दादी बाबा दूसरी शादी को झगङने लगे पापा इकलौते हैं
तो बार बार कहते वंश बुझा दिया ।
पापा को गुस्सा था तो नानी पर और किस्मत पर मगर
उतरता मम्मी पर था ।
फिर मम्मी का एबॉर्शन कराने से मम्मी बीमार रहने लगीं ।
छोटू जब सात साल पहले हुआ तो फिर नानी ने कुछ नहीं भेजा ।
मम्मी बहुत रोयीं । मगर मम्मी ने प्रायवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू
कर दिया था और छोटू के होने के बाद दादी बाबा मर गये
तो कलह कम हो गया।
अबकी बार हम दोनों को मम्मी पढ़ाना चाहतीं थीं ।
पापा कहते तुम्हारी तरह काला मुँह करके भाग गयीं तो? मैं
तेरी माँ की तरह बेगैरत नहीं जो बेटी का हिस्सा रख लूँ । ठाठ
से दहेज देकर शादी करूँगा ।रिश्ते बुआ ने बताये और अबकी बार
पापा ने कह दिया कि या तो भाई माँ से मुक़दमा लगा कर
हिस्सा ले लो या फिर मुझसे तलाक़ । मम्मी तब से बस रात दिन
रोतीं रहतीं थीं ।
उस दिन भी मम्मी तैयार होकर स्कूल पढ़ाने जा रहीं थीं तब
पापा ने गंदी गालियाँ देकर कहा कि वहाँ किस किस को ये रूप
सिंगार दिखाकर रिझाने चल पङी । ये चवन्नी की कमाई से
तेरी ये काया का क़फन तक पूरा नहीं आयेगा । अब हर कोई मेरे
जैसा बे वकूफ नौज़वान अनाङी तो नहीं तो इन लंबे बालों पर
मर मिटे और साँपिन से डँसा जाये । अच्छी खासी दहेज की रकम
गाङी औऱ बिरादरी की लङकी मिल रही थी मगर
अंधा हो था मैं मति मारी गयी जो सफेद हथिनी गले बाँध ली।
ये खसमों को रिझाना बंद कर और कचहरी चल । मम्मी ने
नानी को फोन करके सब बताया तो नानी ने
मम्मी को ही खरी खोटी सुना डाली नककटावन अब
क्या धरा किस मुँह से वगैरह।
मम्मी फिर स्कूल नहीं गयीं रोती रहीं । फिर हम
सबको समझाया कि अगर कुछ हो जाये तो शादी मत टालना और
छोटू का छुटकी का बकाबर ध्यान रखना ।
रात में शराब पीकर पापा ने फिर मम्मी को पीटा और
सबको गालियाँ बकीं ।मम्मी को चीखते सुनकर रात "में जब हम
दोनों बहिनें पापा के कमरे में गये तब पापा ने
मम्मी का गला दबोच रखा था । पापा ने मम्मी से मुकदमे के
कागजों पर दस्तखत करवाना चाह रहे थे । और मम्मी कागज
फाङना चाह रहीं थी । इसी बीच मम्मी का गला ज्यादा दब
जाने से मम्मी बेहोश हो गयीं । हम दोनों पापा के पैरों से
लिपट गये । पापा नशे में थे हम दोनों को पीट दिया । हम
लोग मम्मी को कमरे में ले आये । मम्मी को होश आया तब हमसे
चिपटकर सो गयीं । सुबह हम लोग जल्दी उठ गये जब
देखा कि घर में भीङ है । सब चीख रहे हैं ।
निष्ठा चुपचाप घूँट घूँट उस हँसते जिंदादिल चेहरे के पीछे
की स्याह सच्चाई की कङवाहट महसूस कर रही थी ।
कुछ प्रत्यक्षदर्शी औरतों ने बताया कि रात में एक बजे
मीना उठी और पति के कमरे में जाकर मुक़दमे की दरख्वास्त फाङ
दी । तभी उसके पति की नींद खुली और उसने
मीना को घसीटकर घर से बाहर निकाल दिया और चैनल गेट बंद
कर लिया । ठंड से मीना काँप रही थी और दरवाज़ा पीट
रही थी । जब तीन घंटे तक दरवाज़ा नहीं खुला तब मीना ने
बाहर अहाते के बरामदे में रखे कीटनाशक
की पूरी शीशी पी ली और तङपकर चीखने लगी ।
मीना का पति जब चौंककर बाहर निकला तब
हमारा दरवाजा खटकाया और एक की गाङी से लेकर करीब के
नर्सिंग होम पहुँचे । वहाँ मीना का पति रो रोकर एक
ही बात कह रहा था मुझे जेल
हो गयी तो चारों बच्चों का क्या होगा ।
मीना को दवाई से जरा सा होश आया तो हम सबको स्टाफ
सहित सुनाकर विनती की बच्चों की खातिर बच्चों के बाप
को बचा लेना ।बयान दिया कि वह बीमारी से परेशान
थी सो मरना चाहती है "कोई गुनहगार नहीं ।
निष्ठा भरी भरी आँखों से याद करने लगी मीना की बात -
""जिज्जी देखना मैं मरूँगी भी तो यूँ ही सज धज कर
झमक्को बनकर हाँ । जो लाया वही रवाना करेगा आग देकर यूँ
ही छना छन्न करती चली जाऊँगी झमकती ।""
मीना की माँ चीखी"मार दई रे मोरी पुतरिया'
किसने मारी?
निष्ठा ने कङवाहट से पूछा।
सन्नाटा
Jul 4, 2013

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