Friday 10 January 2014

कहानी :सावन के झूले 16-3-2012

Sudha Raje wrote a new note:
कहानी: सावन के झूले।
Sudha Raje
सब लङकियाँ झूले पर झुंड बनाये
खङीं थीं । दो लङकियाँ झूले पर थीं एक
बैठी एक खङी मिचकी पींग
बढ़ाती जातीँ और रोमांचक होङ
भी सबसे ऊँची टहनी से पत्ते तोङकर
लाने
की होङ ।
गीतों की आवाजें
पंछियों के शोर के साथ घुलमिलकर नीम
को हँसा रहीँ थीं और ऊँचा कङवा नीम
बालिकाओं की मिठास से हुलस
रहा था ।
तभी जोर की आवाज़ लगी
--चलो बिन्नू राजा हरो ।
भौत अबेर हो गयी अब चलबो होय
बालिकायैँ ठुनकने नहीँ "दाउसाब" नेंक
और
अबै हमायी बज्जू तौ आईयई नईयाँ
और एक किशोर अपनी बहिनों और
उनकी सखियों का ठुनकना देखकर हँस
पङा अच्छा चलो हम झुलायें देत
चलो दसई
दस झोंका बस और एकऊ ऊपरे नहीँ
बच्चियाँ खुशी खुशी चार चार
की संख्या में पटरे पर बैठती किशोर
झूले
को फेंकते थक चुका था मगर
बच्चियों का मन नहीँ भरा था
फिर भी कुदकती फुदकती चिङियाँ और
लङकियाँ साँझ होते ही बङे मंदिर के
प्रांगङ से घर की ओर चल पङीं
दरवाजे पर पिता को देखा तो झुंड में से
दो बच्चियाँ किलक उठीँ "कक्काजू"
और
तख्त पर बैठे गौरवर्ण
तेजस्वी व्यक्ति ने
दोनों को गले
लगा लिया बाकी सखियाँ भी "जै जै"
कह के एक तरफ
खङीं हो गयी सबको पता था
मीनाक्षी और नलिनाक्षी के पिता जब
भी लंबी यात्रा के बाद आते हैं सबके
लिये
कुछ न कुछ लाते हैं
उस दिन भी ऊँचे चबूतरे पर
बङा सा झोला खुला और बताशे
खङपुरी गजक रेवङी गोलमिठाई गट्टे
लट्टे शकरघुल्ले और ढेर सारे रंगबिरंगे
रिबिन
चूङियाँ कङे लाख और काँच के
हँसती खिलखिलाती बच्चियों के पैर छूते
जाते कक्काजू और प्रार्थना करते--
जै होय जगदंबा भली करियो
मीनाक्षी
टोली की सबसे चंचल साहसी और बेहद
सुंदर बालिका मात्र ग्यारह वर्ष
की आयु और पूरे कुनबे की रौनक सबके
लिये
तारों का समूह वे बच्च्यियाँ और चाँद
मीनाक्षी
****
तीर कमान चलाना कभी किसी के
बालों में चोटियाँ बना देना ।कभी गुड्डे
गुङियाँ तो कभी गीतों का झरना ।
हाँ वह एक झरना ही थी जैसे हर समय
हँसता किलकता शरारतें करता ।
होली मैं सबको टोली बनाकर भूत
की तरह चौंका चौंकाकर डरा देती ।
दीवाली पर नन्हें हाथों पूरे घर
को चौक
चितेऊर से रँगोली बना डालती ।
भाईयों की लाडली माँ की दुलारी ।
माँ टोकती ही रह जाती ----बिन्नू
हरयेँ
कैँ चलो
मगर मोती से दाँत चमकाती बिन्नू
भाभियों को उल्लू बनाने के नये नये
उपाय
खोजती कुनबे में रोज हँसी की हाट
लगाती
****एक दोपहर
गुङियोँ का अभी ब्याह चल
रहा था नन्ही नन्ही रोटियाँ शीशी के
ढक्कन से काटकर बारातियों को भोजन
परोसा जा रहा था बेर के मिष्ठान्न थे
और विदायी में मिट्टी के बरतन
कि सारा मुहल्ला एक चीखपुकार
हाहाकार से गूँज उठा
---बच्चियाँ आवाज की दिशा में भागी
विशाल आँगन में मीनाक्षी की माँ अचेत
पङीँ थी
पिता दीवार से सिर फोङकर लहूलुहान
हो चुके थे
भाई यंत्र की तरह सिर पटक और चीख
रहे थे कुछ औरते दोहत्थङ पीटकर
छाती पर चीख रहीँ थी और
लङकियों को देखकर बहुओं का झुंड
हाहाकारी स्वर में रोता हुआ
मीनाक्षी की तरफ झपटा वह कई कदम
पीछे हट गयी
और सबको रोता देख लङकियाँ रो पङीँ
एक ही आवाज़
हाय मोरी पुतरिया
हाय मोरी लाल
हाय मेरी बिन्नू
हाय मेरी चंदा
बिन्नू रोते हुये माँ को उठा रही थी
नन्नाजू!!!!!
नन्नाजू?!! उठो हमें कछू नई भओ
देखो हम तौ नौने हैँ
माँ एक अचेत कराह में
चीखी मेरी पुतरियाँ हाय मेरी लाल!!!
और फिर अचेत हो गयी
कक्काजू!!!!!
कक्काजू!!!
अपुन औरेँ काय रो रये???
रोती हुयी मीनाक्षी पिता को झिंझोङ
रही थी लहू से भीगा कुरता और चीखने
से
फट गयी आवाज़ के साथ कक्काजू ने
बेटी को गले से भीँच लिया जैसे कोई उसे
छीन लेगा
बाहर दरवाज़े के नाई बिलखकर
रो रहा था
हाय अभी तो गौना भी न हुआ था
दिवान साब के जँवाई कुँवर को साँप ने
डँस लिया
अभी तो बिन्नू राजा खौँ जोई
पतौ नईयाँ कै विनको ब्याव कबै भऔ
की के संगै भऔ
*****
कुछ महीने बाद सावन
का झूला वहीँ था और लङकियाँ घरों में
थी सफेद घाघरा कुरता ओढ़नी पहने
बिन्नू चुपचाप अपने ठाकुर
जी की कोठरी में एकटक दीवार देख
रही थी उसे नहीँ मालूम था कि तब और
अब में अंतर क्या है लेकिन ये जरूर
समझ
गयी थी कि ये होली सावन और
दीवाली गीत और खेलकूद उसके लिये
नहीँ है
दूर कहीँ किसी दूसरे मुहल्ले के नीम पर
से
आवाजें कजरी गा रही थी
डँस लयी मोरे महाराज
फुलवा चुनत नागिन डँस लयी
बिन्नू!!!!
झूला क्यों नहीं झूल सकती कक्काजू??
बौ जरूर जैहै झूलबे हम घालह हैं झूला देखत
को को रोकत पाउत हमाई बैन खौं झूलबे
सें ।
लो बिन्नू हमने पीसी हैं
सारी माओंदी की पत्तियाँ ताल पे ।
देवल बाग की माउंदी रूलकैं । खबासन ने
तो पीसबे सें मना कर दई थी । पर
हमारी बहिन हमें मेंहदी लगाकर
ही राखी बाँधेगी हमने भी कह
दिया था ।
बिन्नू कऊँ नईँ जै हैं रजऊ!!!
अब जिन चीजन सें उनको कछू
नातो नईयां कुँवर जू!!
बिन्नू की तयेरी भाभी पल्लू
सँभालती चौखट की आङ से बोली।
काये भाभीसाब!!! जा झूला माओंदी और
गाबै से बा मासूम
पुतरिया जैसी मोङी को काये
नातो नईयां जब सबरी बिटियन को है
तो बिन्नू काये कोने आंतरे में दुक छिप के
अँसुआ ढरकाउती रैबैं । इतैक बज्जुर
को करैजो काये है अपुन औरन
को भब्भी हरौ!!!
का बताईयत कुँवरजू भाग
फूटो बिचारी अभागन कौ ।
इत्ती सी उमर में
रँडापौ बदौ तौ भुगतबै
खौं हमारी राजा खौं ।
ऐ विंधवासन माई ऐ कुंडेसुर महादे
जौ का दिखा रये ।
भाभियों काकियों ने हर बार की तरह
फिर आँसू भरकर दुःख दर्शाया।
खबरदार!!!!!!!
खबरदार जो आज के बाद कभऊँ हमाई बैन
खों अभागन और बिचारी कही तौ।
मताई बाप भैया भौजाई सबरो कुटुंब
का भाङ भूँजबे खौं है!!!!!
चूल्हे में पबरन दो बियाओ खौं ।
हमारी बिन्नू भैया के घरै रै हैं
नौनो(नया और सुंदर) पैरहैं
(पहनेगी)नौनो खैहैं ।
आज सें हमाई बियारी और कलेऊ(डिनर
ब्रेकफास्ट) बैन की ठाठी(थाली) में
लगईयो अपुन औरें ।
दाऊ की बातों से बेखबर बिन्नू अब
भी चुपचाप ।
दूर झूले के गीतों को सुन रही थी।
बाबुल तुम चले परदेश हमको कौन
बुलायेगा ।
बेटी वीरन हैं हुशियार तुम्हें घोङे पर
लायेंगे ।
चल बिन्नू चल ।दाऊ ने छोटी बहिन
का हाथ खींचा ।
कहाँ दाऊ?
झूलेंगे और कहाँ पगली!!!
सच दाऊ????
भब्बासाब कुछ नहीं कहेंगीं??
बकने दो उन्हें तुम चलो राजा!!
लङकी की आँखों में कौंधती चमक एकदम
बुझ गयी ।
नहीं दाऊ फिर आप जाओ । बाद में सब
टोकते हैं हमें अच्छा नहीं लगता ।
ओ हो!!! चलो भी जंगल जलेबी मकोर बेर
करोंदे सब तोङेंगे जामुन और कैरी भी ।
नहीं दाऊ आप जाओ । हम तो अभागन हैं
हमें ये खेलकूद झूले मेहदी नहीं करने
चाहिये पाप लगता है न!!!
लङका चला गया ।
रात को आँगन में सब बैठे हैं बिन्नू कमरे में
है ।
केवल उस किशोर की आवाज गूँज रही है।
"""आप सब साफ साफ सुन लो ।
कक्काजू बङे दाऊ साब भाभी साब
काकी साब और फुफ्फू हरौ (वगैरह).
कि जब तक बिन्नू मेंहदी झूला खेल कूद और
रंग त्यौहार से वर्जित
करी जाती रहेगी । हम भी न तो ब्याह
शादी करायेंगे न झूलेंगे न कोई त्यौहार
मनायेंगे ।न रंगीन कपङे पहनेंगे।
सन्नाटा छाया हुआ है । सब चुप है ।
कक्काजू उठकर बैठक में चले गये ।
बाकी सब रो रहे हैं ।
जाने कब ये सिर्री लङका समझेगा कुछ
रस्मों को नहीं तोङा जा सकता ।
भब्बा (दादी)साब बोली.
भब्बा साब जो रस्में बे वज़ह दुख ही दुख
देती रहें वे तोङ देनी चाहिये
। किशोर ने अभी ठीक से भीग भी न
पायीं मसों पर ताव दिया।
कौन तोङेगा कुँवर
सबने बङे दरवाजे की तरफ देखा ।ये कुँवर
के होनेवाले मामा ससुर थे ।
जो रिश्ता लेकर चार घंटे पहले आये थे ।
और कुँवर की दहाङती जिद सुनकर बैठक
में बैठे से आँगन के दरवाजे तक आ खङे हुये थे

ये रंगीन कपङे झूले खिलौने गीत
ही तो नहीं है जीवन??
पाँच साल दस साल के बचपने की जिद
नहीं नब्बे और सौ साल तक की उमर
का सारा लेखा जोखा है । कोई ऊँच नीच
हो गयी तो कौन जिम्मेदार होगा???
इस बेचारी को पहाङ सा जीवन
काटना है । एक आपके कहने से
सारा समाज नहीं बदल जायेगा ।
वो एक विधवा है । विधवा को न मंडप
में खङे होने का हक है न
किसी का भी विवाह देखने का । न
ही सज सँवर कर रहने का । कल कोई
उसके चरित्र पर कीचङ उछालने
लगेगा तो कैसे सह पाओगे कुँवर?? कोई
उसके रूप यौवन पर फिदा हो मर
मिटा तो कैसे रोकोगे कुँवर?? कैसे सहन
होगा उसपर पङती निगाहों का ताप
आपसे ।
आज वह बच्ची है कुछ नहीं समझती कल सब
समझेगी । और टूटटूटकर रोज तङप तङप
कर मरती रहेगी । आज इसे जहर दे दो ।
कोई कुछ नहीं पूछेगा क्यों मर गयी। कल
इसके बीमार पङने तक पर लोग मतलब
निकालेंगे तब किसे किसे धमकाते मारते
फिरोगे आप?? कल अगर इसने
फाँसी लगा ली तो भी लोग पूरे कुनबे
को जीने नहीं देगे ।
बस बस बस बस करो मामासाब बस
करो । हमें बताओ हम क्या करें? हमसे
अपनी नन्हीं सी गुङिया की ये हालत
नहीं देखी जाती मम्माजूसाब।
कुँवर!!! होश में आओ ।
ये वक़्त है चैतन्य होकर बहिन का जीवन
सँवारने का ।
बिन्नू का पुनर्विवाह
ही इसका एकमात्र हल है ।
क्या कह रहे हो बङेदाऊसाब!!!!बिन्नू
की माँ चौंककर खङी हो गयीं । चौखट के
पीछे बहुओं ने चीख रोकने के लिये मुँह में
कपङा ठूँस लिया ।
भब्भासाब तख्त पर लेटी थीं उठ बैठीं ।
आप होश में तो हैं दिमान साब!!!
आप ये सब क्रांतिकारी बातें भर भर कर
अपने भांजे दामाद का ही नहीं ।
पूरी संस्कृति और समाज
का भी तमाशा बना रहे हैं ।
हमारा परिवार पहले ही दुखी है । आप
के कहने से हम ऐसा सोच भी लें तो कौन
देगा इस बेक़स को पनाह? रहने दीजिये
जैसी भी है पराये घर पर दासी और
लाचार दयनीय बनकर रहने से
वो यहीं काट ले अपना शापित जीवन ।
यहाँ कम से कम हम सब तो हैं । दुख महसूस
करने को । कोई काबिल
क्यों किसी अभागन का हाथ
थामेगा????
किशोर जैसे किसी धुन में
सपनों की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जा रहा
था ।
कोई काबिल क्यों किसी अभागन
का हाथ थामेगा???
कोई काबिल क्यों किसी अभागन
का हाथ थामेगा
कोई काबिल क्यों किसी अभागन
का हाथ थामेगा ।?????
मामासाब!!!!
हम आपकी छोटी नहीं बङी भांजी से
विवाह करने को तैयार हैं।इस
गारंटी और वचन के साथ कि उनको कोई
कष्ट नहीं होगा कभी जब तक हम
जीवित हैं ।
ये क्या कह रहे हैं आप!!
कुँवर वो विधवा हैं!!
और आपसे आयु में एक साल बङी भी!!
यूँ ही छह साल की उम्र में लुट
गया था उसका भी संसार।आज सत्रह
वर्ष की हो गयी उसकी लाश।हमने
सारी दुनियाँ ही छान मारी पर कोई
हिम्मत न कर सका।
आप तो छोटी के लिये चुने गये हैं "
भावुकता मत कीजिये।
नहीं मम्माजूसाब!
हम अब विवाह करेंगे
तो आपकी बङी भांजी से वरना आप
सादर प्रस्थान करें!
और हमारी भूल चूक माफ करें ।
अगर आप राजी हो तो आपकी बिन्नू के
लिये हम अपने बङे बेटे का प्रस्ताव रखते
हैं।
उनकी भी पत्नी का गौने से पहले
ही देहान्त हो गया था।
मूर्ति की तरह खङे रह कुँवर ने फिर बाँहें
फैलायीं।और मामाससुर ने छाती से
कसकर भींच लिया।।
आँसू थे कि रुक ही नहीं रहे थे। भीतर
भाभियाँ परस्पर गले से चिपक कर
रो पङीं ।
भब्बा सा की माला छूट गयी।
कक्काजू ने आँखें पोछकर आसमान की ओर
देखा ।माँ मेंहदी की कटोरी लेकर बिन्नू
के कमरे की दौङी।
और सारी हथेलियाँ भर दीं बिन्नू यूँ
ही घबरा गयी ।
माँ रो भी रहीं थीं हँस भी रही थी
Mar 19

No comments:

Post a Comment