Wednesday 29 January 2014

लेख :नफरत मत घोलो

दंगे?मीडिया की तोङमरोङ कर फेंकी गयी सूचनाओ अफवाहों से ही भङकते है । और
दंगों में घाव लेकर पुनर्जीवित समुदायों को ये तोङफोङकारी मीडिया भूलने
नहीं देता । बार बार कुरेदकर नमक छिङकना इसे कहते हैं ।
खालिस्तान आंदोलन के पागलपन के दौरान चरमपंथियों आतंकियों ने पंजाब में
कितनी हत्यायें की किसी को याद है?कितने गरीबों शांतिप्रिय किसानों
मजदूरों दुकानदारों ने पंजाब छोङकर देश के अजनबी गाँवों नगरों में डेरे
बनाकर जिंदगी फिर खानाबदोशी से शुऱू की? कितने पंजाबी नौजवान जबरन
खालिस्तानी चरमपंथी अलगाव वादियों ने जबरन घरों से निकालकर बारूद में
लपेट डाले नफरत भरकर? बुरी यादें उफ डरावनी यादें।
हर दिन सन अट्हत्तर से चौरासी तक ।
रोज सिखिस्तान के पागलपन में आज के कश्मीर छत्तीसगढ़ से भी ज्यादा भयानक हालात थे ।
शेष भारत के लोग सिखिस्तान की माँग करने वाले कत्ल कर रहे थे बसें जलायीं
जा रहीं थीं ।बम गुरूद्वारों में जमा करके गाँव गाँव हिंसक जत्थे बनाकर
किसान पंजाबियों को भारत के खिलाफ भङकाया जा रहा था ।
एक दशक पूरा एक दशक लोग डर जाते थे जहाँ भी पगङीवाला कोई रेलगाङी बस ट्रक
सङक वेटिंग रूम में दिखा लोग दहशत में आ जाते थे ।
तभी इंदिराजी की दृढ़इच्छाशक्ति की बदौलत आतंकवाद समाप्त हुआ और पंजाब
बरबादी के तीसरे दौर से निकला पहला विदेशी आक्रमणकारी औऱ सिखपंथ का उदय
दूसरा दौर देश का बँटवारा और दो टुकङे पंजाब तीसरा दौर पंजाब में
पाकिस्तानी अमेरिकी चीनी हथियारों का जखीरा और गैर सिखों की हत्यायें
मासूम पंजाबियों को मारडराधमकाकर आतंकवादी बनाना ।
जब इंदिराजी की हत्या हुयी राहुल औऱ प्रियंका अबोध बालक थे ।
सोनियागांधी एक अजनबी माहौल में फँसी डरी सहमी युवती ।
फिर राजीवगाँधी तो पायलट थे जो विदेश पले बढ़े और राजनीति से सर्वथा दूर रहे ।
अगर उनकी जगह संजयगांधी होते तब तो चेहरा दूसरा होता कॉग्रेस का ।
मगर राजीव को मना चुना कर जबरदस्ती माँ की जगह बिठा दिया गया ।
उस समय माधवराव सिंधिया राजेशपायलट जगदीशटाईटलर अरजुनसिंह विद्याचरणशुक्ल
प्रणवजी मनमोहनसिंहजी फाऱूखअब्दुल्लाह और तमाम कद्दावर नेता ही कॉग्रेस
का चेहरा थे ।
नेहरूगांधी परिवार हिंसा का शिकार हुआ था ये सिखिस्तानवादियों की चरम काररवाही थी ।
लोगों में इंदिराजी की छवि उस समय घर की दादी नानी जैसी थी भले ही
इमरजेन्सी को लेकर बङे मीडिया वाले उनसे सख्त नाराज थे औऱ वे लोग भी जो
उन्नीस सौ इकहत्तर से अटहत्तर के बीत मीसाएक्ट और तमाम देशरक्षा कानूनों
में बंद कर के राजनीतिक कार्रवाहियों से रोक दिये गये थे ।
किंतु इंदिराजी की निर्मम हत्या से देश का युवा और बङा प्रौढ़ वर्ग नाराज
था हृदय विदारक दुख से स्कूलों में बच्चे तक रो रहे थे हम भी रोये थे फूट
फूट कर ।
क्योंकि आज की तुलना में देखें तो इंदिराजी जैसा नेता पैदा ही नहीं हुआ।
देश को उनहोने कोई नुकसान नहीं पहुँचाया । भले ही मीसा में जेलों में बंद
छोटे बङे नेता कालाकानून कहें या कालासमय या तानाशाही ।मगर बांगलादेश की
जीत रूस की मैत्री कशमीर में आतंकवाद पर काबू राजाओं के प्रिवीपर्स बंद
करना बैंकों के राष्ट्रीयकरण और भारत को विश्वमंच पर शक्तिशाली देश बनाना
रेडियो का विस्तार टेलीविजन का विस्तार और गरीबों को ध्यान में रखकर
बनायी गयी परियोजना के लिये आज भी इंदिराजी के सामने कोई भी नेता बच्चा
ही है ।
उस समय सिखों के साथ जो मारपीट दुर्व्यवहार हुआ उसकी वजह में खिसियानी
बिल्ली खंबा नोचे वाली मानसिकता तो थी ही ।
साथ साथ आग भङकाने का काम अलगाववादी देशविरोधी सिखआतंकियों की जश्न मनाने
और आतंकियों इंदिराजी के हत्यारों को महिमामंडित करके शहीद का दरजा देने
की मैलीदुर्भावना भी थी ।
दुखी नेतृत्वविहीन देश का कितना नुकसान हुआ यह अंदाजा लगाना मुश्किल था।
लोग आज तक कॉग्रेस मुक्त भारत चीखते तो है किंतु दिल पर हाथ ऱख कर कहें
तो । इंदिराजी का विकल्प आज तक नहीं खोज पाये ।
सिखों पर जो हिंसा हुयी वह नेहरूगाँधी परिवार ने नहीं आदेश दिया था कि जाओ मारो ।
वह भी कुछ छोटे बङे तीसरी कतार के नेताओं और मीडिया की तोङफोङ अफवाहों और
मानो या नहीं शेष भारत के लोगो का ""सलवा जुडूम था ।जिसमें अफसोस कि बङी
संख्या में निर्दोष बरबाद हुये ।
बङी संख्या में गुंडा तत्व शामिल होकर अराजक देश के नेतृत्वविहीन प्रबंध
का लाभ उठाते रहे ।
राजीवगांधी ने पंजाब को आतंकवादियों के चंगुल ने ना निकाला होता तो पंजाब
भी छत्तीसगढ़ बन चुका था ।आज राहुल क्या जवाब दें?? जवाब तो खुद सवाल
करने वालों के पास हैं कि आतंकवादी खुद अपनी ही कौम के बरबादी के कारण
हैं चाहे वे कशमीरी हो या नक्सली या खालिस्तान के कट्टरवादी ।निर्दोष तो
कब तक मरेगा एक दिन बगावत पर उतर ही आयेगा ।
वे लोग जो दूसरों के घऱ बहिन बेटियाँ जान माल आबरू लूटने में हर दंगे में
लग जाते हैं कोई बच्चे बूढ़े या तनखैया सिपाही नहीं होते। वे जनसाधारण
में सामाजिक सम्मान से रहते नागरिक पीङितों के पङौसी परिचित दोस्त कस्टमर
सहपाठी सहकर्मी होते हैं ।आज कोई नेता कह दे जाओ सब देशद्रोही खोजकर मार
दो तो क्या लोग गद्दारों नक्सलियों आतंकियों को चुनचुनकर मारने लगेगे??
नहीं
बिलकुल नहीं ।
किंतु किसी बहाने जरा सी अराजकता नेतृत्वविहीनता प्रशासनिक गैरहाजिरी और
मजहबी दुरभावना भङक जाये तो? मारकाट चालू!!
ये वे लुटेरे ठग चोर लुच्चे उठाईगीरे नफरत के पुतले होते है जो दिलों में
जहर नफरत दबाये मजबूरन अनुशासित रहते हैं और मौका पङते ही लोगों को डराना
भङकाना धमकाना लूटना चालू कर देते हैं।
नफरत की तह पर तह जमती रहती है और कमजोर मजबूर लोग जब शिकार होते हैं
निर्दोष तब बरबाद आहत शांतिप्रिय भी प्रतिशोध और रक्षा के लिये विवश लङने
लगते है।
कशमीर के लोग जब आतंकवादियों को मारना शुरू कर देगे वहाँ भी बगावत
छत्तीसगढ़ की तरह ही हो जायेगी सलवाजुडूम । मीडिया को किसी एक व्यक्ति या
दल को जिम्मेदार घोषित करने से पहले सारे हालात का बारीकी से निरीक्षण
करना चाहिये तब आरोप लगाना चाहिये । कई कांड अफवाहें भय दुख में हो जाते
हैं ।
अपराधी दंडित हों और जखमों पर दवा लगायी जाये किंतु दुबारा कन्फ्यूजन ना
फैलाया जाये साशय राजनीतिक अभिनति से पहले सच को समझो फिर सवाल करो ।
©®™सुधा राजे

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