Saturday 11 January 2014

लघुकथा:तलाकनामे का इंतिज़ार

Sudha Raje wrote a new note:
तलाक़ के पेपर साईन करने के बाद अयूब
जहाँ गाङी में बैठकर भाभी के साथ
मुस्कराता चला गया था । फरहीन
सुब...
तलाक़ के पेपर साईन करने के बाद अयूब
जहाँ गाङी में बैठकर भाभी के साथ
मुस्कराता चला गया था । फरहीन सुबक
सुबक कर रो रही रही थी । पाँच साल
से इस मुक़दमे को जीतने के लिये
पूरी ताक़त दोनों ने लगा रखी थी ।
मुस्लिम रिवायत के मुताबिक तीन
तलाक़ कहने को अयूब तैयार
ही नहीं था ।और फरहीन अब
दुबारा उस नर्क में
लौटना नहीँ चाहती थी । अयूब एक पैसे
वाला गैराज और ब्रुश
फैक्ट्री का मालिक था । जबकि फरहीन
के पिता सरकारी अस्पताल में बार्ड
बॉय होकर रिटायर हो चुके थे । दूर के
रिश्ते से मौसेरे भाई बहिन थे वैसे
तो दोनों लेकिन धोखा क़िस्मत का कहें
कि आदमी की फितरत का ।
अयूब के बङे भाई का मस्कट (अरब देश)में
हार्टफेल हो गया और हमउम्र जवान
बेवा भाभी के नाम सारे खाते और
लाखों के बीमे थे । इद्दत पूरी होते
ही मायके वाले ले गये और ममेरे भाई से
रिश्ते की बात चला दी । तीन
बच्चों की अम्माँ सहला अभी फरहीन से
कई गुना ज्यादा गोरी सुंदर और जवान
लगती थी । अच्छे खाते पीते घर
की थी और शौहर भी मस्कट से जेवर कपङे
मेकअप के सामान मेवे भर भर कर लाते
रहते ।
अयूब के अब्बू अम्मी दोस्तों सबने एक
ही राह सुझायी कि भाभी से निक़ाह
कर लो घर का माल घर में रहेगा ।
दो बीबी पर
सहला राज़ी ही नहीं हुयी । लेकिन
दिल से वह भी देवर से ही निकाह
करना चाहती थी क्योंकि जो ऐश आराम
बना बनाया घर यहाँ था ममेरे भाई के
पास कहाँ ।
फरहीन को शादी के पाँच महीने बाद
घर छोङना पङ गया ।
उसने एक प्रायवेट स्कूल में नौकरी कर
ली । जब घर छोटा तो दो माह
का बच्चा पेट में था । अयूब ने लाख
समझाया कि रह ले साथ मगर
नहीं मानी । मेहर दहेज और
बेटा तीनो खोकर पाँच साल बाद जब
तलाक़ मिला तो वकील के बस्ते पर
बैठी वह भरभरा कर रो पङी अब
तो अब्बू भी नहीं रहे अम्मी बेवा औऱत
बेटों के बंधन में । स्कूल की नौकरी से
काफी पैसे मिलते जो वह भाई के
बच्चों पर खर्च करती और कभी कभी बेटे
के स्कूल मिल आती । एक रात तेज प्यास
लगी तो फ्रिज से पानी लेने बैठक में
गय़ी । पाँव ठिठक गये भाभी कह
रही थी कि उसके विधुर भाई
को फरहीन पसंद है कहै तो बात चलायें ।
भाई कह रहा था पङी रहने दो कुछ साल
माँ बेटी को अम्मी की पेंशन और फरहीन
की सेलरी से हमारे
दोनो बेटों की डॉक्टरी की पढ़ाई
का खर्चा निकलता है । पाँच साल
की बात है । वो कौन
सी बूढ़ी होयी जा रही कि भागी जा
रही । फिर तुम्हें भी रसोई और सफाई से
छुट्टी जो मिली है ।
फऱहीन
बिना पानी पिये लौट
आय़ी अम्मी को जगाया । और पूरी रात
दोनों जाने क्या बतियातीं रही ।
एक सप्ताह बाद जब फरहीन के भाई
भाभी बाजार से लौटे तो बच्चों ने
बताया दादी और फूफी बङी फुफ्फो के
घर गयीं
दो दिन बाद फरहीन किसी नौजवान के
साथ गाङी से उतरी तो सबके मुँह खुले रह
गये । ये तो फरहीन का सह
कर्मी शिक्षक सुहैल था पीछे
अम्मी मिठाईय़ों के टोकरे उतरवा कर
बङी बेटी के नौकर से बोलीं सारे मुहल्ले
में बँटवा दो जुमरात को फरहीन सुहैल के
निकाह की दावत भी देते आना ।
अभी तो हम सामान उठाने आये हैं दावत
सुहैल मियाँ के घर "हसरत मंज़िल"में
होगी ।
बहू बेटे अवाक् खङे थे
तभी बेटा बोला फुफ्फो कितनी सुंदर लग
रही हैं लो अब्बू रसगुल्ले खाओ
©सुधा राजे।
सत्यकथा
May 23, 2013

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