Sunday 3 February 2019

लेख: नशा निषेध, प्रारंभ स्वयं से परिवार से

#तंबाकूनिषेधदिवस
आदर्शों का युद्ध घर से प्रारंभ होता है ,यदि सबके हस्ताक्षर ले पाते तो आज तक लगभग पाँच अंकों तक के लोगों से बीड़ी सिगरेट तंबाकू माँसाहार शराब छुड़ाया है हमने ,
क्षत्रिय को शराब चलती है का "अहंकारी मिथक बहुत सुना सहा और जिद सी चढ़ी कि हम सबसे न सही कुछ से तो लड़ ही सकते हैं ,तो कुटुंब परिवार में केवल गिने चुने लोग बचे जिनको हम तक नहीं समझा पाये ,अन्यथा तो ,कोतवाली के सामने बैठे धरने पर सैकड़ों लड़के और राखी का दिन बहुत सी लड़कियाँ जाना तो चाहतीं थीं परन्तु सबको राखी नहीं बाँध सकतीं थी ,हम अंतत:इकलौती आत्मा चयनित हुए और बाल्टीभर जलेबियाँ लेकर जा पहुँचे भवानी पार्क गोविंदपार्क ,सबको राखी बाँधी रुपये देने लगे तो नेग में "तंबाकू माँग ली "बीड़ी माँग ली सिगरेट माँग ली .........बहुत बेईमान कुछ बड़े सख्त भाई थे नहीं माने ,बाकी सबने पाँवों पर सिर रखकर त्याग दी ,
,
कई बरसों बाद जब देखा कि ,
सच है तो बहुत सुकून मिला ,
शाम और ज़ाम वाले सामंती परिवार में ,
शाम और चाय शर्बत चलाने का जोखिम उठाया बहुत दाँतों पसीने आने तक की लड़ाई थी चार दिन अनशन किया ,
और बैठक से बार वाली आलमारी का सब काँच तोड़ डालने की आज्ञा मिल ही गयी ,वहाँ लायब्रेरी लग गई ,
हर सप्ताह की शिकार प्रथा पर भी बहुत संघर्ष से विराम लगा पाये ,और परिवार में दूज दशहरा का बलिदान भी बंद कराया नारियल बरफी कद्दू की खीर बनने लगी ।
महलाओं के मांसाहार बंदी से प्रारंभ मिशन सबको शाकाहारी बनाकर पूरा हुआ ,हालांकि कुछ लोग नहीं बदले ,परंतु 100%से उनका प्रतिशत 10%तंबाकू शराब मांस पर रह गया ।
सासरे आए तो ,
हालात बद से बदतर थे ,
शराबखानों की पूरी ठेकेदार लाॅबी से ही टकराना पड़ा और 300गाँवों तक हट्टी हटाओ गाँव बचाओ मुहिम चलानी पड़ी ,थाने में गिरफतारी दी शराब की दुकानों पर रैनबसेरे किए और बस्तियों से घर घर घुसकर अवैध शराब बंद कराई ,लोगों को 10%तक ही सही सुधारने का सुकून पाया ,
तंबाकू
शराब
मांस
हक नहीं विलासिता है ,
लेखक पत्रकार कवि कहानीकार उपन्यासकार नेता अभिनेता .......पुलिस सैनिक ....कोई भी बहाना बनाता है ,
,पहला भाषण अंग्रेजी के अपने अध्यापक "प्रेमबहादुरसिंह जी सीसौदिया "अजय"के सामने 11वर्ष की आयु में मद्यनिषेध पर ही दिया था ,जो तब के भास्कर स्वदेश में खबर भी बना था ,
तब घर में बड़े लोग शाम को गोल मेज के ऊपर रोज कलेजी की रकाबी और रम जिन मार्टिनी ब्लडीमैरी या स्काॅच पर ठहाके लगाते ,हम लोगों का बैठक या सर्किट हाऊस तक जाना मना था ,
हमें यह सब बुरा लगता था ,
सहेली के पापा उसे देसी पीकर नाली में पड़े मिलते या घर में उसकी माँ को पीट देते "ऊषा भदौरिया "बहुत मन दुखता ,वही सब यथार्थ पहले भाषण का ब्यौरा बना ,
सीसौदिया गुरूजी को बीस वर्ष बाद सोनागिरि के मेले में देखा ,
वे स्वयं सिगरेट पी रहे थे शराब भी पीयी ,
तब के सुंदर विद्वान अंग्रेज जैसे चिट्टे गोरे मेधावी गुरूजी ...पतले हड़बड़े और कम आत्मविश्वासी लग रहे थे ,उनका देहांत हो गया है ऐसा अभी कुसमय पहले सुना ,वे कवि थे यह सोनागिरि मेले में हमारे द्वारा कवि सम्मेलन "लूटने जैसा वक्तव्य देने पर पता चला ,उन्होंने वहाँ वीरकविता पढ़ी थी ,आयोजक हरिविष्णु सिंह डीएम जी थे ।
तब दुख ही हुआ था ।
सोमठाकुर जी के साथ बार बार मंच साझा किया ,उनकी बहुत सुगंधित तंबाकू मन ललचाती रंगीन कढ़ाईदार बटुए से गोरी पतली हथेली पर रखी बहुत महकती तंबाकू की गंध ,जी करता हम भी चख लें ,और कवि के हाथ से उस पर कटी हुयी छाली कई बार उठाकर खाई ,
सोम जी नहीं रहे ,
यह भी अभी कुछ समय पहले सुना ,
मन में शंका हुई "तंबाकू ?तो नहीं ?
नशा तो अपने भावभरे जुनून को बनाईये 100वर्ष की आयु तक आप युवा रहेंगे ,और परिवार समाज सब जगह सम्मानित भी ©®सुधा राजे

No comments:

Post a Comment