लेख: :हिंदू पर आक्रमण! !!नदियों की गंदगी के जिम्मेदार मिल, नाले, बूचड़खाने, प्लास्टिक, क्यों नहीं

लोग ""हिंदुओं ""के नेवेद्य और कर्मकांड को नदी गंदी करने की वजह मानते है """

आज बङी जनसंख्या के संदर्भ में तो है भी """

किंतु महानगरीय सीमित मानसिकता से बाहर निकल कर देखने की जरूरत है कि ",
जाली और रैलिंग केवल महानगरों की नदी किनारे तो लगाये जा सकते है "
दूर दूर तक फैले गाँव कसबों और छोटे नगरो जंगलों तक तो कदापि नही,

फिर
देखें कि पिछले ""सत्तरसाल होने को आये और ""अब तक बजाय पुराने ""नाले ड्रेनेज और सीवरेज को ""नदियों में नहरों में तालाबों में गिरना रोकने के बजाय ",

हर साल हर नगर गाँव कसबे और महानगर की सीमा पर बने मिल फैक्ट्री बूचङखाने स्लॉटर हाऊस कारखाने और नगरपालिका होटल अस्पतालों के """"भारी भरकम नाले,,, किसी छोटी नहर कुल्या ""के बराबर प्रतिदिन मल मूत्र जहरीले रसायन ""खून हड्डी माँस और नगर भर की नालियों शौचालयों सेप्टिक टैंकों की बहाव गंदगी """विषैले ठोस द्रव गंदे कचरे सब """"

इन नालों से ""नदियों में लाकर डालते है ।
नदियों की धारा में दूर दूर तक नहरों में भी नगर गाँव किनारे दूर दूर तक ये ""नाले ""साफ साफ दिखत् है खून मल मूत्र कैमिकल और शौच कचरा मिलाते हुये ""
गजबनाक सच है कि "नये नालों का बनना जारी है "
नहरे निकल जाने से नदी का प्रवाह धीमा है और वहाँ ये कचरा """ठहरकर आसपास बीमारी बदबू सङन रोग और जहर फैलाता है!

जिन चीजों को मछलियाँ मगरमच्छ नहीं खा सकते वे सब गंदगियाँ ""नदी
में कौन डाल रहा है???

राख हड्डी फूल बाल पैसे ''''डालने वाले हिंदू भी दोषी हैं ।

तो सरकार भी दोषी है जो """इन नालों को ""पैंसठ साल में बंद नहीं कर पायी बल्कि हर वह नगर पालिका दोषी है जिस नगर गाँव का """नाला ""नदी में गिरता है ।
गर मिल मालिक
कारखाना मालिक
फैक्ट्री मालिक
गैराज मालिक
होटल मालिक
और बूचङखाने वाले
कसाईघर वाले
स्लॉटर हाऊस
हत्थाखटका माँस वाले
डंपिग करने वाले ""
सब के सब

,,,अपराधी है ""

कोई सख्त कदम की जरूरत है पश्चिमी यूपी में तो हर नगर नदीं का हाल इन नालों की वजह से बेहाल है!
पहले ""बङे ""अपराधी रोको ""
छोटे तो अपने आप रूक जायेगे
स्वच्छ गंगा यमुना सरयू नर्मदा बेतवा चंबल पहूज गोमती गंडकी गोदावरी हुगली सतलज क्षिप्रा रावी चिनाव ताप्ती झेलम कुआनों खो मालन लक्मण गंगा राम गंगा """"कावेरी कृष्णा तुंगभद्रा ब्रह्मपुत्र """
देश की धमनियाँ है "इनमें गंदगी डालने वाले देश के अपराधी और नाले सीवरेज पाईप ड्रेनेज छोङने वाले महापापी "उनको न रोकने वाले "कायर और कृतघ्न ""

हरिद्वार से ही गंगा में """होटलों केड्रेनेज"""मिलों की पुलिया मिलनी प्रारंभहो जाती है """बिजनौर मुरादाबादमेरठ सहारन पुर के """गाँवों किनारेतमाम कैमिकल पेपर गत्ता और शुगर मिलेहै """"सबके इशूज""खो नदी यमुना रामगंगा और मालन""में डाले जाते हैं """तीर्थ?? केवल गिनेचुने है """वहाँ भी लोग ""अधजल् शव राखसमेत नदी में पटक देते है """मुंडन के बालबहाते है """तमाम '''घरों के ""पूजन हवनकथा का ""कूङा भी ''सिलाने जाते है ""

पूरे जले शव से नुकसान नहीं है क्यों राखहड्डी अंततः मिट्टी कंकङ """बन जाते हैं""चना परमल लाई मछलियाँ खा जाती हैं"""""लेकिन निरंतर बहने वाले """"नाले"""नगरपालिका कसाईखाने और मिल""""के बहाव """लगातार जारी रहकरधारा को हर समय ""जहरीला बनाते है"""आप पशुओं के खून और नागरिकों केमलमूत्र मिलों के कैमिकल में """पवित्रस्नान कर रहे हैं ""घरों में रखकर पूज रहेहैं ""ये पूरा यूपी जानता है बिहार भी

विद्युत शवदाह गृह """तीर्थों परउपलब्ध करा दिये जायें तो ""हिंदू""सहज ही अपने आपको प्रगतिवाद मेंढालने वाले है और ये समय बचना उनपरिवारों के लिये भी भला है जो तीर्थपर ले जाते है अपने बुजुर्गो को

सैकङों बीघे उपजाऊ जमीने""""लाखो हैक्टेयर पर """केवल मरे हुओंकी ""इमारते हैं पक्की और आलीशान"""जहाँ जिंदे को फुटपाथनहीं """""""बदलाव जरूरी है हर मजहबमें वैज्ञानिक सोच के साथ कि कैसे जमीनबचे जल बचे जंगल बचे """"नदी साफ रहे औरजिंदों को घर मिले

सबसेज्यादा """"गंदगी बूचङखानों """औरमिलों के नालो """और होटलों के ड्रेनेज"""और कारखानों के धोवन """और कैमिकलइंडस्ट्रीज की सीवरेज से होता है""""""किसान जब इस पानी को खेत मेंसींचता है तो """"बंजरपन और साईडइफेक्ट ''जहरीली फसल पैदा होती है"""मालन नदी का यही हश्र मिलों के कैमिकल ने कर दिया है

नगरपालिकायें """अधिकतर ""अनपढ़ कम पढ़े लिखे लोगों के संगठ हैं """नगर साफ करने की एक ही ""सूझबूझ दिखती है ""चेयरपरसन मेंबर्स को """सारे कचरे भरवाये और नगर से दूर """किसी सुनसान जगह डाल दिये """"ये सुनसान जगह अकसर नदी के जंगल किनारे होते हैं """"और ""एक से दूसरा नगर शुरू होते ये ""गंदगियों के अंबार ""रेलयात्री बस यात्री ""बखूबी देख सकते है """"""कचरा पीसने निबटाने और बीनकर रिसाईकिल करने की """महती जरूरत है """वरना """कचरा पहाङ भर कचरा ""कहीँ तो नगरपालिका फेंकेगी??? कहाँ??? ये बताने की जरूरत है .

नगरपालिकायें """अधिकतर ""अनपढ़ कम पढ़े लिखे लोगों के संगठन हैं """नगर साफ करने की एक ही ""सूझबूझ दिखती है ""चेयरपरसन मेंबर्स को """सारे कचरे भरवाये और नगर से दूर """किसी सुनसान जगह डाल दिये """"ये सुनसान जगह अकसर नदी के जंगल किनारे होते हैं """"और ""एक से दूसरा नगर शुरू होते ये ""गंदगियों के अंबार ""रेलयात्री बस यात्री ""बखूबी देख सकते है """"""कचरा पीसने निबटाने और बीनकर रिसाईकिल करने की """महती जरूरत है """वरना """कचरा पहाङ भर कचरा ""कहीँ तो नगरपालिका फेंकेगी??? कहाँ??? ये बताने की जरूरत है

गंगोत्री से दिल्ली तक """भौगोलिक स्तेपी है ""ढाल ""और ढूहे बङे बङे जिनको ढाँग कहते हैं """"बाढ़ से नदियाँ स्वयं को साफ करती हैं """जब भयंकर बरसात होती है समग्र खादर भांबर """धुल जाता है """परंतु ये सब धुलकर ढाल के हिसाब से पहाङ से नीचे मैदान को भागता है """"दिल्ली जाकर जमुना ठहर जाती है क्योंकि """हथिनीकुंड पर बाँध है """और मेरठ तक गंगा ठहर जाती है """ये ठहरना न हो धारा अविरल बहती रहे तो """हर साल बाढ़ से नदियाँ सब साफ कर लें

तीरथों पर बारह महीने तो भीङ रहती ही है ।नगर नगर गाँव गाँव तमाम मेले थले और स्थानीय लोक देवताओं के आयोजन भी होते है ।ये लगभग साल के तीन सौ पैंसठ दिन ""कहीं न कहीं ""नदी किनारे के नगर गाँवों में चलते ही रहते हैं """तब जबकि बङी भीङ जुङती है ""चाहे नासिक प्रयाग उज्जयिनी हरिद्वार हो या मथुरा काशी गंजदारानगर अयोध्या गया हो ।वहाँ के स्थानीय प्रशासन की सबसे बङी चुनौती होती है ""कचरा निबटाना ""जिसके हद दरजे की लापरवाही का नमूना है कि """वह अब तक सत्तर साल में भी नदी घाट पर """प्लास्टिक रबङ लेटेक्स नायलॉन टैरीलिन और """नॉनडिग्रेडेबल उत्पादों का बेचना रोक नहीं पाया """!!!!क्यों?? क्योंकि नदी किनारे गुटखा पुङिया कुरकुरे नमकीन बिस्किट शैंपू साबुन पाऊच थैली """बेचने वाले लोगो से ही तो """फङ लगाने दुकान ठेली लगाने के अतिरिक्त ""दाम ""ठिया पर बैठने के लिये जाते हैं ।ये रिश्वत खोर प्रशासक मेला पर्व खत्म होने पर ""खोया पाया ""की भी बङी आमदनी बनाते है ।किंतु ""मनुष्यों की भीङ का छोङा तमाम अवशेष और विसर्जन """नदी से दूर ले जाकर """समाप्त ""करने की कोई भूमिका अब तक ""तीरथ नगरों के प्रशासन की सामने नहीं आयी """कचरा निपटाना ""नदी में न जाने पाये ऐसे निपटाना ""ये कभी किसी तीरथ नगर के प्रशासन की पहल नहीं है ।जहाँ जहाँ तीर्थ नहीं है वहाँ वहाँ वहाँ भी नदी किनारे जमकर कचरा ""डालते है ""नगर पालिका वाले ""

"""बूचङ खाने?? कैमिकल ड्रेनेज?मिलों की धोवन ""???नगरपालिका केकचरे? नदी किनारे बसे गाँवों केकिनारे मरे ढोरों के शवावशेष ""?प्लास्टिक ""रबङ?टैरिलीन?नायलॉन"""ये सब कौन डालते है? डंपिंग क्षेत्र को रीसाईक्लिंग करने की जरूरत है न!ये डंप नदी किनारे क्यों हैं, रोकेगा कौन?
हिंदू धर्म प्रगतिवादी है और लचक के साथ नवीन अविष्कारों को अपनाता जाता है """"अब बारी है सरकार की ""जहाँ मीलों तक फैली भूमि पर मुरदे सोते हैं वहीं "सत्तर सालों में नदी किनारे के हर नगर में एक दो विद्युत शवदाह गृह नही लगवाये जा सके?
हम कई साल से देखते आ रहे हैं लोग अपने बुजुर्गों को बैराज गंगा पर ले जाते है या हरिद्वार या दारानगर या अयोध्या वगैरह जिनकी साधनहीनता आङे आती है वे ""नगर गाँव में ही किसी नदी किनारे चार पाँच बीघे में बने श्मशान में शवदाह करते है ""फिर छानकर अस्थियाँ बीनकर राख को जल में बहा देते है और अस्थिया फूल तीर्थ पर जाकर विसर्जित करते है ""सदियों तक पाँच बीघे से ही काम चलता रहता है!! फिर भी अब जरूरत है कि शवदाहगृह हर नगर में बने "
हिंदुओं के """विकृत दोष है """प्लास्टिक पॉलिथीन को नदी में बहाना """मल मूत्र कर देना धोना """ढोरों को नहलाना """घर की पूजा नदी में सिलाना """रैपर पन्नी कपङे प्लास्टिक रबङ में प्रसाद भेंट और मुंडन के बाल ""डाल देना ""अब बहुत समझ आ रही है लोग चेत रहै हैं फिर भी """और जागना जरूरी है

तब शैंपू के पाऊच नहीं थे """"""तब गुटखे नहीं थे """"तब कुरकुरे नहीं थे """""तब मैगी नहीं थी """"""तब प्लास्टिक कोई रखता नहीं था घरों में """बरतन ताँबे पीतल काँसे चाँदी के होते थे

प्रारंभ अपने गाँव कसबे से "जहाँ सस्ते मजदूरों के लालच में पेपर शुगर मिलें गत्ता फैक्ट्रियाँ और कच्चा माल तैयार करने के "उपक्रम उद्यम संयंत्र लगे धुँआ छोङ रहे है ""बॉयलर रे लिये जंगल मिटा रहे और नदी नहर तालाब में "रक्त मांस मृतपशु अवशेष डाल रहे हैं ""कॉग्रेस नहीं रोक पायी "क्या भाजपा नदियो नहरो तालों को ""मुक्ति दिलायेगी??? क्या ""जिन के नाले गिर रहे है ""चुपचाप मान जायेंगे??
©®सुधा राजे

Comments