कविता बुन्देली गीत: हा गरीब की कारी बिटिया

Sudha Raje
एक तौ चौथी बिटिया
तई पे भई गरीब कैं भोरे
तई पै सबसे कारी गुनिया
हाथ कौन के जोरे
हा गरीब कें बिटिया स्यानी
रङुआ लखें निहोरें

कारी बिटिया कब की स्यानी
भरे खेत अलसी अर्रानी
तीन बरस से करी बटाई
अबके पिसी हती गर्रानी
सोचे पलटू अबके काढ़ूँ
पर गये बैरी ओरे
हा गरीब
की करिया बेटी
रङुआ करे निहोरे

पर कें ब्याह बङी के कीन्हें
दो बीघा गिरवीं धर
दीन्हें
चार चीज बनिया कें बेची
कुछ उधार साढू ने दीन्हे
अबकें छठी और दशटोनी
आगहने की जोरें

पलटू जागे रात रात भर
पानी भर गओ हाथ हाथ भर
कलप कलप घरबारी रोबे
ठिठुर मेङ की ठोरे
पर गये बैरी ओरे
हा गरीब
की करिया बेटी
रङुआ करे निहोरे

दो हर
की खेती बाबा की
कुटुम बँटी भई सात
अँवा की
पाँच बैल थे बिक गये साझे
भादों में पछीत गिर बैठी
अबकें पौर झकौरे
हा गरीब
की करिया बेटी
रङुआ करे निहोरे
पर गये बैरी औरे

हलदी चंदन क्रीम लगायी
जा ने जैसी करी बताई
ओढ़ दुपट्टा करी मढ़ा में
घाम खेत दये कुआँ छुङाई
सिगरे ब्रिस्पत करे मतारी
बिटिया माथो फोरैं
हा गरीब
की करिया बेटी
रङुआ करे निहोरे
पर गये बैरी ओरे

गाँव गली की सबरी बिटियाँ
ब्याही गयीं लरकौरी हो गयीं
हँसी उङाबें पाँत बुलऊआ
कित्ती बूढी मौङी हो गयी
क्वाँरे कोऊ सेंट रये नईयाँ
अब रङुअन कें दौरे
हाय गरीब की करिया मौङी
रङुआ लखें निहोरे
©®¶©®Sudha
Raje
Datia★bjnr
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