गज़ल: आखिरी वादे की वो कीमत चुकानी है अभी

Sudha Raje
आख़िरी वादे
की वो कीमत चुकानी है
अभी ।।।
पुर्ज़े पुर्ज़े
हो चुकी दुनिया जलानी
अभी ।
इन बहकती सी हवाओं पर
वो भटकी रूह का ।
इक तराना गूँजता है धुन
बनानी है अभी
कब की दफ़ना दी भरोसे
की जली वो लाश पर ।
हर बरस बीते वो मातम
नौहाख्वानी है अभी ।
सारी हूरें उङ गयी जब
चाँद पहुँचा आदमी ।
अब कहाँ सैरे-क़मर तारों में
पानी है अभी।
तेरे मेरे बीच कुछ
था जो भी था क्या अब
भी है ।
दर्द की रेतों पे गीली कुछ
निशानी है अभी।
कटते कटते कट
ही जायेगी जरा सी रह
गयी ।
दिल में कुछ
पिघला सा आँखों में
ज़वानी है अभी ।
शाम हो और ज़ाम
ना हो अब न
बीतेगी सुधा ।चश्मे तर में
अक़्श यादें हैं भुलानी है
अभी।
©¶
सुधा राजे
Sudha Raje

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