गद्यगीत:वे लोग जो गिने गये सगों में, चीह्ने गए परायों में मिले

वे  लोग
जो जब बिलकुल करीब थे आसपास थे ,न हमारी खुशी में खुश थे न दुख में उदास थे ,वही लोग जब जब हम उठ कर चलने लगे जूते चुरा ले गए ,और राह में कांच काँटे कीले अंगारे बिखेरते रहे ,वही लोग जब हमने गाना गुनगुनाना चाहा कि शोर मचाने लगे ,चीखने लगे और धमकाने लगे ,गले की आवाज जब रुदन में भर्राने लगी तो ,हमें गूँगा कह दिया ,आँसू से भरी थी आँखें तो अंधा बता दिया ,जब हमने कर्कश क्रूर शब्दों की कर्णभेदी चीखों से बचने के लिए कान हथेलियों से मूँदे तो बहरा बता दिया ,नोंच डाले सारे कोमल पर स्वर और संयम संकल्प और धैर्य ..........दूर दूर दूर बेतहाशा भागते चले जाने के बाद दूर बहुत दूर थक बैठ जाने के बाद ....केवल अपनी छवि बचाने के लिये अपराध छिपाने के लिये ग्लानि बोध दबाने के लिये ............हालचाल पूछने लगे तो ......तो कैसे अपने ?कौन सगे ?
©®सुधा राजे

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