Sudha Raje
अब मेरे एकांत रास मात्र
एकांत
ये विलीन करता मुझे पीर
पीर में शांत
शांति पलायन की नही
एक थकी सी शाम
सागर में सो जाये
ज्यों मंदाकिनि उद्दाम
मैं सरिता मरूथल बही
बिन तीरथ बिन कूल
मेरे जल से फूलते नागफनी के
फूल
बागी मेरे घाव से रेतों के
विस्तार
तपी धूप में प्यास सा
क्षत्राणी का प्यार
पिया कहे पर ना कहे
मन की कोरी बात
गर्व करे और जा मरे
संन्ध्या सी परभात
सुधा समंदर पीर का
धीरज की बरसात
काटी तो पै ना कटी
व्यर्थ व्यथा सी रात
आते आते रह गयी
सुरा सुधा मुख माँहि
जाते जाते ना गयी
व्यथा सिरानी छाँहि
कीकी कीसे बूझिये
जीकी जीमें राख
सुधा वेदना वेद सी मख चित जगहित भाख
©®¶¶SUDHA RAJE
Sunday 3 February 2019
दोहे: सुधा दोहावलि
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment