लेख: भीख मांगना बन्द करें, औरत होने से भीख मांगने का हक़ नहीं बन जाता न

(औरत होने भर से भीख माँगने का हक क्यों हो )
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~(सुधा राजे )
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कहीं ये टेरर फंडिग के स्रोत तो नहीं ?
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कमा कर खिला नहीं सकतीं तो इतने बच्चे करती क्यों हो ?
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जवान बेटियाँ काम काम मजदूरी क्यों नहीं कर सकतीं ?
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कुछ वर्ष पहले एक पत्रकारिता सम्मेलन में मेरठ गये ,बेगम ब्रिज से बस स्टैंड तक बार बार ,कोई न कोई काले कपड़ों में पूरी तरह बंद औरत चढ़ती ,सब यात्रियों की गोद में एक परचा चुपचाप रखती जाती ,जिसमें लिखा होता कि उसकी 7जवान बेटियाँ हैं झोपड़ी में रहती है कमाने वाला कोई नहीं ,मदद करो ,.....वह औरत एक मिनट में फिर पीछे से आगे तक आती परचे संकलित करती जाती लोग जब तक रुपया ना पकड़ा देते डटी अड़कर हाथ अड़ाये रहती ,जो न देता हिकारत से परचा खींचती कि बेईज्जती लगे कंगले कहीं के ;हट्टी कट्टी स्वस्थ औरत !!!!!अगर 7जवान बेटियाँ किसी ग्रामीण हिंदू की होतीं तो ??देखना है तो देखो आकर गन्ना छीलती लड़कियाँ गोबर पाथतीं लड़कियाँ सिलाई करतीं लड़कियाँ ,दूध दुहती भैंस नहलातीं ,रेत भरने नदी पर जाती ,माटी कूटतीं लड़कियाँ ,खुरपी फावड़ा कुदाल गेंतीं चलाती लड़कियाँ ,चैत काटतीं लड़कियाँ ,चाय चुनतीं ,धान छेततीं लड़कियाँ ,निराई गुड़ाई कटाई फल फूल बीनती लड़कियाँ ,लकड़ी काटतीं घास काटतीं ,करघा ,चरखा चलातीं लड़कियाँ ,चाक मिट्टी दरी चटाई कथरी गुदड़ी चादर फुटमैट बनातीं लड़कियाँ ,
सब्जी बेचतीं बूढी स्त्रियाँ ,
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उसपर फिर स्कूल जातीं पढ़तीं और बाद में ट्यूशन पढ़ाकर अपना व्यय निकालतीं लड़कियाँ ,प्रौढ़ या बूढ़ी गांव की हिंदू स्त्री तक हजार से पाँच हजार तक की मजदूरी या हुनर कौशल का काम करके या पशुपालन से कमाती है ।
कंजर बंजारे मोगिया पारदी घुमंतू लोगों के सिवा वनवासिनी भी वनोपज लकड़ी फल बेचकर भी कमातीं हैं ,
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तो 7 से 17 तक बच्चे जन्मने के सिवा कुछ और जो नहीं करतीं ,और जो उन को जन्म देने पर उनको विवश करता है ,वह कमाना खाना मेहनत मजदूरी हुनर भी सिखाये ,या तो इतने जने जन्मे कोख भरे ही क्यों कि भीख माँगनी पड़े ?
या तो जात बिरादरी समाज उनको बढ़कर निकाह कर ले न !!अपना ले ,4बीबियाँ तक तो एक रख ही सकता है ,
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बाद में पता चला चला कि ,
आतंकियों को रुपया भेजने को ऐसे भी जुटायी जाती है रकम !!
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तो आईन्दा भीख न दें ,भिखारी अब होने का कोई काम नहीं जब ,सैकड़ों तरह की योजनाएँ हैं पूर्ण विकलांग तक के लिए ,
,अच्छा ये परचे छापने को कौन मिल गया ?
,दूसरी तरह की भीख
माँगतीं परदे में काले कपड़ों में ,
रिक्शा चालक उसे ढो रहा है ,बैटरी पर रिकाॅर्डेड आवाज में करुण अपील में कोई पुरुष की आवाज रिकाॅर्ड है औरत रिक्शे पर ही बैठी रहती है ,
लोग आकर रुपया पैसा देते जाते हैं ,
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बोलने दुआ देने तक का कष्ट नहीं उठाना पड़ता ,
रिक्शे वाले की दिहाड़ी ,बैटरी का दाम 5हजार के आसपास रिकाॅर्ड कराने का पैसा ,यंत्र और दिन भर नगर कसबों में घूमने का समय है ?
?
किसी घर में बरतन माँजने की भी दिहाड़ी आज 100से 300 रुपये रोज प्लस रोटी चाय कपड़ा त्यौहारी हो गयी है ,तो भी भूखों नहीं मरेगा ,5से 7बेटियों वाला परिवार !!!!
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आवाज लाऊडस्पीकर पर चलती है ,
शादी के लायक 7बेटियाँ हैं कमाने वाला कोई मनहीं ?लड़कियाँ क्या नमक की बनी हैं जो काम मेहनत मजूरी नहीं कर सकतीं ?या इतनी बदसूरत हैं कि उनको कोई ब्याहकर न ले जायेगा ,शादी नहीं हुई तो भी क्या गजब हो जायेगा ?भीख माँगना इन मुद्दों पर सही कैसे हैं ?
हमने देखीं हैं जवान बेटियाँ ,8से 18घंटे काम करके कमाने वालीं ,3000 से 30000तक तक अनपढ़ लड़की कमा लेती है ,मेहनत कश बेटी,
इसलिये जवान हट्टी कट्टी काया वाली औरत हो या मर्द भीख ना दें ,
बच्चा मिले पता करें अनाथालय भेजें या स्कूल ,भीख देना बंद कीजिये ।

यदि आपने भीख नहीं दी
तो
बिलकुल ठीक किया आपने ,
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एक दो रुपये देने की लत ड्रग्स की तरह पड़ी रहती है और फिर वह मानव चाहे सांगोपांग स्वस्थ हो या विकलांग ,
कभी हुनर कौशल परिश्रम योग्यता से कमाने की तरफ नहीं बढ़ता ,
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भीख ,
में कई विदेशी बड़ी रकम डाल जाते हैं फिर विदेश में जाकर बुराई करते है इंडिया पूअर कंट्री ,
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परन्तु यहाँ मामला हमारा #यूपीसरकार #यूपीपुलिस गुप्तचर व्यवस्था सब को बताना अपना संदेह जाहिर करना है कि ,
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देखा हमने कि बहुत बड़ी रकम लोग ऐसे "प्रोफेशनल भिखारियों को देते जाते चुपचाप !!!
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मतलब कोई उपदेशक या संस्था उनको पहले ही बताती रहती "हो सकती है "कि ऐसो को यथाशक्ति ,भीख देनी ही है ,
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??????
हो सकता यह बड़ी गहरी रची बसी व्यवस्था हो ?
याद कीजिये टुंडा एक होमियोपैथिक झोलाछाप हकीम निकला जो ,इज़्तमा मजलिस आदि में अपना हाथ कटा दिखाकर कहता था कि काफिरों ने काटा ,
और
मदद करनी है बेबस मजहब मानने वाले मजबूरों की ,
उसकी अपील पर धन का ढेर लग जाता था ,
जबकि
वह कटा हाथ उड़ा था ,बम बनाने का सबके सामने एक इबादतगाह में प्रदर्शन करने को दौरान !!!,
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यह संदेह तो है ही ,
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दूसरी तरफ भीख माँगती औरत देखकर चिढ़ होती है ,कि फिर ये रमजान की जकातें कहाँ जातीं है ?
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जकात लेने को रमजान में अचानक बाढ़ सी आ जाती है हर गली में सुबह से शाम तक रिक्शों पर रिकाॅर्डेड आवाजों वाले भिखारियों की !!
मसजिदों में लगातार जमा होता रहता है कपड़ा खाना रुपया ,हर परिवार के सोना चांदी लड़का संतान और कमाई के प्रतिशत के हिसाब से अनिवार्य टैक्स के रूप में !!
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हर जुमे को अलग जकात जाती है कम या अधिक जमातों के खाने ठहरने के नाम पर ,
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रही बात इस बात की कि ,औरत को बुरी निगाह से सब देखते हैं कामकाज कोई नहीं देता ,
तो ,बुरी निगाह ,तो भिखारिन पर भी जिसे डालनी है ,डालेगा ही ,और अधिक लोगों के सामने फिरती है जब ?
ऊपर से जवान लड़कियों की दुहाई पर लड़कियों के लिए भी बुरे खयाल ला सकता है ,
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तो क्या वे परदानशीन भिखारिणी औरतें देश की नहीं ?कौन हैं ?क्यों भीख मांगने दी जाये ,
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मुफ्त नहीं मिलेगा कुछ भी काम करो ,दाम पाओ ,
जब तक जान है शरीर में थोडडी सी भी मेहनत करो ,
तब खाओ ,
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भीख ,अधिकार नहीं है


पता और जानकारी बिना दिया गया आपका रुपया कहीं आपके देश के लिए बारूद न खरीदने में जा रहा हो
©®सुधा राजे

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