लेख: :देश पर गर्व का खंडन करता स्त्री के प्रति क्रूर रवैया

भारतीय गर्व कर सकते हैं वेदों पर, योग पर, आयुर्वेद पर, वैज्ञानिक स्वर व्यञ्जन लिपि पर, गणित पर, कृषि और मोहन जोदङो लोथल कालीबंगा और गंगा यमुना सरयू सरस्वती पर, शास्त्रीय नृत्यकला और चित्रकला संगीत और परिधान पर '''''''''''''
वास्तुशास्त्र, ज्योतिष और नक्षत्र गणना पर!!!!!

किन्तु?
किन्तु क्या?

क्या भारतीय आज भी पूरी तरह सभ्य हो चुके हैं "स्त्रियों के प्रति?
बच्चों के प्रति?
बुजुर्गों के प्रति?
अपनी व्यक्तिगत आदतों के प्रति?
देश के प्रति?
होगा भारत महान और हो गा आपको भारतीय होने पर अभिमान '
किन्तु जब 'छत्तीसगढ़ के किसी बालिका विद्यालय में नाबालिग छात्रा दैहिक शोषण से गर्भवती हो जाये और प्रधानाचार्या छिपाती रहे बात को, प्रसव हो पूरे नौ माह बाद और नवजात शिशु को नदी किनारे रेत मिट्टी में गाढ़ दिया जाये तब????????????

हर लङकी को जो "गरीब परिवार की है और किसी ऐसे छात्रावास में पढ़ने जाना चाहती है या रहती है "

शर्मिन्दा होती है या भयभीत!!!!!!!

जब
एक परिवार में बेटे का विवाह होता है और उसी परिवार की सब स्त्रियाँ तक लङकी को पसंद करने जातीं हैं तो "हाङ माँस का नाप तौल तो लेतीं ही हैं, रुपया पईसा धन दौलत मशीने सामान कितना मिलेगा यह भी तय करने में जमकर चतुराई चालाकी भरी कपटई करती है "और
जमकर आव भगत करवाने खर्चा कराने के बाद भी, 'छोङ देतीं हैं नापसंद करके """"या शादी हो जाये तो 'रहना दूभर कर देतीं हैं उस नववधू का परिवार में,
तब?????
भारत की हर सचेत जागरूक स्वाभिमानी और गरीब, या मध्यवर्ग की, दहेज न रहने पर सताई जाती, काला रंग होने पर उत्पीङित की जाती, या घरेलू कार्यों सेवाओं में पेलकर भी सम्मान न पाती बंधुआ मजदूर बनाकर जरा भी आर्थिक हक़ न रखती ',
बहू शर्मिन्दा रहती है अपने देश पर समाज पर अपनी जाति परिवार और स्त्री होने पर!!!!!!

तब
जब एक, गली, सङक, चौराहे पर गुजरती स्त्रियों को देखकर लोग घूरने लगते हैं, ' फिकरे कसते हैं, ' छूने पकङने की कुचेष्टा करते हैं, ' अश्लील हरकतें इशारे करते हैं, गंदे गाने या डायलॉग या शब्द जानबूझकर बकते हैं और वह तेज तेज गति से वहाँ से तुरंत निकलने पर विवश होती है, 'तब जब लोग कहीं भी लघुशंका करने खङे हो जाते हैं बिना महिलाओं के आने जाने के मार्ग और उपस्थिति की परवाह किये, 'और कहीं भी पेशाब करते वक्त भी जानबूझकर स्त्रियों को देखते रहते हैं या दिखाने की कुचेष्टा करते हैं अपनी हरकतें तब
वहाँ से निकलती हर लङकी
शर्मिन्दा रहती है अपने नगर गाँव कसबे और इस देश की लङकी होने पर, '''''
तब
जब
कोई भी कहीं भी मुँह करके "पान गुटखा तंबाकू च्युंगम या यूँ ही सङक पर दीवार पर अस्पताल बसस्टेण्ड, डाकघर बैंक, स्कूल कॉलेज, मंदिर मजार तक के आजू बाजू थूक देता है
या पेशाब कही भी कर देता है 'या कूङा कचरा कहीं भी डाल देता है ''

तब हर
स्वच्छता पसंद भारतीय और भारत से बाहर रहकर भारत की गंदी आदतों का ताना सुनने वाला "भारतीय मूल का  निवासी अनिवासी भारतीय "
शर्मिन्दा रहता है "
"""""""""
घर में जब पत्नी के आर्थिक हक नहीं समझे जाते, पेंशन बीमे और बैंक की सुविधायें नहीं रखी जातीं ',
जब सब्जी दाल व्यञ्जन बच्चों की और महिलाओं की पसंद की परवाह किये बिना केवल पुरुषों की पसंद पर ही बनते और लाये जाते हैं ',
तब
जब
बच्चों को घर में, ढाबों पर, लघु कुटीर उद्योगों में, बजाय स्कूल भेजने के, '
मजदूरी पर लगा दिया जाता है
तब
और जब
उनकी छात्रवृत्ति साईकिल और सब सुविधायें परिजन छीन लेते हैं फिर
भी
स्कूल नहीं जाने देते
बल्कि मजदूरी पर लगा देते हैं और
घर में छोटे भाई बहिनों की रखवाली या मेहमानों की सेवा के लिये रोक लेते हैं या
घर के साफ सफाई रसोई खेत के काम कराते हैं ',
तब
हर सचेत बच्चा और ऐसा हर युवा प्रौढ़ जिसने ऐसा बचपन बिताया हो ',
पछताता है या शर्मिन्दा रहता है ',

बेशक हमें अपने देश पर गर्व है '
किंतु
ऐसी छोटी बङी सब बातें
जो परिवार गली मुहल्ले के स्तर पर ही ठीक होनी हैं जिन्हें सरकार अकेली नहीं बल्कि प्रति व्यक्ति के संकल्प आचरण विचार क्रियान्वयन से ही ठीक किया जा सकता है ",,

कल ही एक कन्या शिशु को माँ पिता मंदिर की सीढ़ियों पर रखते सी सी टीवी में देखे गये """""दूसरी जगह बोरी में भरकर कचरे में आग लगा दी गयी और नवजात कन्या लगभग मरणातुल्यावस्था में बचा ली गयी,,,,,, कब तक? और क्यों ऐसे हालात या सोच?

जब तक ठीक नहीं हो जातीं '''
हम जैसे अनेक भी
शर्मिन्दा है
©®सुधा राजे

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