दब कर रह गयी चीख समय के कोलाहल में
चिर समाधि में डूब
गयी जैसे हलचल में
शैया पर आलिंगन में
वैराग अचंचल
और जिया चिर ध्यान
वार्ता चहल पहल में
अलंकार में रही
छिपाये मन वीराना
अट्टहास में क्रंदन
आँसू हँसी सरल में
मौन मूक अनकही
व्यथा गीतों कथाओं में
हाहाकार हृदय का
मूँदे नयन अटल में
मधुमासों में पतझङ
का कारूण्य दबाये
दाह शरद् का गाती
मैं हिमपात प्रबल में
महावृष्टि दावानल
सी दुर्भिक्ष काल की
हुलसी पूषा में कणाद
जैसे जंगल में
कौन लिखे पवमान्
आह निर्वात् शोर के
कौन पढ़े अवसान
भोर के ये दृगजल में
कैसे हों अभिव्यक्त
कथाये महापीर की
कैसे टीस विशाल
छिपे नन्हे आँचल में
©®¶¶©®Sudha Raje
Monday 4 February 2019
कविता: समय के कोलाहल में
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