गद्यगीत: धत्त पगली

धत् पगली
और बस्स हो गयी पानी आँसू औरत सुनते ही
!!!!!!!
किस प्यार की प्यास को लिये भटक रही????
सदियों से????
अरी तू ही वो प्यार की समंदर है
किस प्रेम के लिये
माँ बाप भाई बहिन सहेलियाँ
जन्मभूमि
और अपने खेल खिलौने छोङकर
चल देती है???
पगली धत्
सचमुच
और
बस लग जाती है
दो दिन बाद लाल जोङा रखकर
खाना पकाना
झाङू पोंछा बरतन कपङे
औऱ सिलाई बुनाई कढायी में
!!!!!!
बच्चे और वंशदीपक पैदा करते
पोतङे धोते सुखाते
दूध पिलाते
और
खो जाती है
तेरी
काया तेरा गुण हुनर नाम पहचान
और
तब
एक अहसास मशीन हो जाने का
धत् पगली
प्रेम का रूप बस इतना ही
????????
कहाँ गयी तूली
कलम
संगीत
हँसी
किताबे
और सपने जमाना बदलने के
कितनी चिङचिङी हो गयी हो तुम
धत् पगली
दो बाहे
कल की गालियों के बाद फैली और
फिर रख दी
अधूरी कहानी
छिपाकर????
क्या ये प्रेम था??
©®¶SudhaRaje

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