Sunday 3 February 2019

कविता: वो जितने मंतर मारा था

Sudha Raje
जब बस्ती के छोर पे कोई घर
वीरान सिसकता था ।
तब बच्चों की मौत पे डायन सबसे
ज्यादा रोती थी।
वो जिसने टोना मारा था मंतर काले
जादू का ।
वही टोनहिन दिखा सभी को ।
काले नयन
भिगोती थी।
बच्चों की कब्रों का सौदा पहले तय कर
आयी थी।
बिलख बिलख कर पीट के
छाती अरथी को सँग ढोती थी।
तङप देख कर सभी द्रवित थे उसकी ।
लोट
पोट थी यूँ
माँस और हड्डी से जिसकी रोज
"बियारी"होती थी।
dinner
शव के साथ सती होने का स्वाँग सजाये
चीखी वो ।
जो रातों के पहलू में नित उगता सूर्य
डुबोती थी।
रोक लिया सबने करुणा से जिसे
वही थी हत्यारन ।
सुधा वहाँ पर कोई न समझा विष की बूँदें
मोती थी।
©®SudhaRaje
सुधा राजे

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