भाषा
जाति
मजहब
जाति
वर्ग
संप्रदाय
के आधार पर बँटवारा कभी सुखद नहीं हो सकता ।
क्योंकि कालान्तर में ये एक ""वाद ""बन जाता है ।
ये सारे ही वाद
खतरनाक हैं
ये आदमी को आदमी से द्वेष करना सिखाते हैं ।
छोटे राज्य?
केवल
भौगोलिक विभाजन ही सही है ।
ताकि लोग मिलते रहे और
मराठी बिहारी
तमिल तेलगू
बुंदेली बघेली
पंजाबी हरियाणवी
गुजराती मारवाङी
असमी नागा
मिजो मणिपुरी
ये सब तरह के
तीखे विभाजन कुंद हो जायें ।
इसीलिये
जब उत्तराखंड विभाजन
की बात चली थी तब भी हमने भौगोलिक क्षेत्र के साथ सिफारिश की थी कि खतरनाक पहाङी भू क्षेत्र को आपदा राहत और मिलें कारखाने आदि लगाने को पहाङ से नीचे राजधानी देहरादून से हाईकोर्ट नैनीताल के बीच पङने वाली तहसीलें भी सौंप दी जानी चाहिये ताकि गढ़वाली कुमाऊँनी तराईवी खादरी लोग मिक्स अप होते रहे ।
आज ये विभेद फिर नफरत के रूप में सामने आ रहा है तेलंगाना और सीमान्ध्र विवाद के रूप में ।
जिस दक्षिण को प्रायः हिंदी भाषी मदरास और केरल के विशेषण के नाम पर ही जानते हैं ।
वे कदाचित उस गहरी विभेदकारी सोच को नहीं समझ सकते ।
किंतु
व्यवहार में देखा गया कि
तमिल अपने को तेलगू भाषी से श्रेष्ठ समझते हैं तो मलयालम भाषी कन्नङ भाषियों को अपने से गँवार समझते है ।
एक ओर स्थानीय कोंकणी द्रावङी बोलियों का स्थानीय विभेद है तो दूसरी ओर ब्राह्मण और ब्राह्मणेत्तर जातियों का । वहीं हैदराबादी और केरली इलाकों में मजहब वाद और बंगाल बिहार की पट्टी पर नक्सलवाद कम्युनिज्म और पूँजीवाद के भीषण जज्बे गहरे हैं ।
भारत
को
अमेरिकी लोकतंत्र से प्रेरणा इस मायने में लेनी चाहिये कि ।
वहाँ नये राज्य बनाने की जरूरत इसीलिये नहीं है कि
सांसद सीनेटर विधायक और प्रशासन
एक कुशल प्रबंध देते हैं ।
समस्या की जङ छोटे बङे राज्य कदापि नहीं है ।
बल्कि है
धन संग्रह में लिप्त भ्रष्ट विधायक सांसद कलेक्ट आएएस आई पी एस चेयरपरसन प्रोफेसर टीचर क्लर्क और तमाम सरकारी गैर सरकारी पदाधिकारी मंत्री और ऑफिसर
जो काम ही नहीं करना चाहते ।
न्यायपालिका
में व्याप्त वकीलों का तारीख बढ़ाऊ रिश्वत खाऊ रवैया ।
थाने पुलिस का गुंडाराज
और
वोट
विभाजन के
लिये कागज़ पर जाति मजहब के कॉलम ।
मुख्यमंत्री
हर विधायक के क्षेत्र का साल में तीन बार दौरा क्यों नहीं करता??
विधायक अपने क्षेत्र के हर गाँव का साल में तीन बार दौरा क्यों नहीं करता??
मुख्यचिकित्साधिकारी
अपने जिले के हर हैल्थ सेंटर
अस्पताल का साल में तीन बार दौरा क्यों नहीं करता??
कलेक्टर अपने जिले के हर गाँव का साल में तीन बार दौरा क्यों नहीं करता??
एस पी
आई जी
अपने हर थाने का साल में तीन बार दौरा क्यों नहीं करता??
जिला शिक्षाधिकारी
अपने जिले के हर स्कूल का साल में तीन बार दौरा क्यों नहीं करता??
कंजरबेटर
डीएफओ
अपने क्षेत्र के रेंज सबरेज का साल में तीन बार दौरा क्यों नहीं करते ।
किसी भी विभाग
का
चीफ एक
बादशाह
की तरह हैडक्वार्टर पर तानाशाही दिखाता रहता है
एक मंत्री विधायक सांसद चेयरमेन मेंबर प्रधान पंच अधिकारी को खुद को "जनसेवक ""
नहीं अंग्रेजी शासन की तर्ज़ पर "आक़ा "समझते हैं।
न्यायालय
चलन्यायालय क्यों नहीं हो सकते?
कि हर जिले पर साल में दो बार
""हाईकोर्ट पखवाङा "
क्यों नहीं लग सकता।
लोकअदालत !!!
हर बार एक महीने के अंतर से अलग अलग थाने में क्यों नहीं लग सकती
चलअस्पताल
हर रेल में क्यों नहीं।
गाँव गाँव हर हफ्ते चल अस्पताल क्यों नहीं??
ये ब्रिटिश दरबार सिस्टम कब खत्म होगा
जनता के द्वार पर सरकार कब??
यही
दरबारवाद
हर सङाँध की जङ है
सरकारी बस का तो कंडक्टर भी अपनी सीट पर बैठा टिकिट बाँटता है।
(क्रमशः जारी)
©®सुधा राजे
No comments:
Post a Comment