Monday 4 February 2019

लेख: ::दोस्ती व्यवहार और धर्म मजहब

कैसे पहचाने  दोस्त का दिल ?
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लालू ,मुलायम ,राहुल ,केजरीवाल ,ममता ,और सारे कम्युनिस्ट सेक्युलरिज्म का अर्थ केवल हिन्दू विरोध ही समझे हैं ,आप हिंदू हैं ?तो इनसे कभी सहानुभूति की आशा न रखिये ।

इनकी मजबूरियाँ समझिये ,भले ही शतप्रतिशत हिंदू भाजपाई नहीं है न ही संघी है न ही विहिप या मोदी में तनिक भी लगाव रखता है ,
परन्तु ये सब लोग तो यही समझते दिखाते बताते जताते है और मानते हैं कि हिंदुओं का ठेका विहिप संघ मोदी और शाह के पास है

इसलिये वे सब हिंदू जो काँग्रेस
आ आ पा
सपा
बसपा
तृमूकाँ
माकपा
और अन्य दलों में हैं उनको वोट करते हैं उनके समर्थन में दिन रात लंबे लंबे लेखन करते है ,
सड़क पर धरने नारे और बैनरपोस्टर लगाते हैं ,
वे केवल
पेट की खातिर मजबूर लोग हैं या अवसर की तलाश में नेतृत्व बुभुक्षु छुट्टन नेतागण ,
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उनको जबकि खूब पता है कि उनकी अपनी ही अस्मिता नहीं होती यदि वे हिंदू नहीं होते ।
राजनीति
का घोड़ा ढाई घर की मार करता है और वही धोखा होता है लोग केवल वज़ीर पर ध्यान रखते हैं
*हिन्दू *
......... यह शब्द तीन साल पहले तक लिखने में हिचक होती थी "हिन्दू"?
इसकी बात तीन साल पहले तक साम्प्रदायिकता मानी जाती थी ,
हिन्दू *
इस शब्द को कहने में दब जाती थी आवाज़ और स्वयं को सेक्युलर दिखाने नरम दिल सहिष्णु जताने के लिये सबसे पहला काम राजनीति या सरकारी नौकरी से जुड़ा आदमी यही करता था अपनी हिंदू पहचान पर लेप चढ़ा देता था अपने ही रीति रिवाज़ों ग्रंथों और अभ्यासों की निंदा से पहनावे और खानपान के बदलाव से ।
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ईद पर जाकर बकरा खाकर
तिलक जनेऊ शिखा त्यागकर ,
मंदिर न जाये भले परंतु हर जुमेरात को मज़ार दरगाह पर जाकर
सहरी और इफ्तार की दावतें देकर
टोपी पहनकर
घर कार्यलय में मक्का मदीना की तावीज दरवाजा कैलेंडर अयातुल खुरसी आबे जमजम मौलवी का नजर धागा तावीज आदि रखकर ,
दीदी दादी माँ का किया तिलक घर से निकलते समय चुपके से पोंछकर
,
मंदिर के सामने सिर्फ आँखों से प्रणाम करके ।
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शीर सिवैयाँ जाकर खाकर दोस्त पड़ौसी की बहिन से राखी बँधाकर ,दोस्त की अम्मी चाची भाभी जीजा अब्बू के पाँव छूकर ,
गले में क्राॅस या 786 लटकाकर
,
प्राय:यह यकीन करते कराते रहते आये कि उनके भीतर कट्टरपन नही वे सेकुलर हिंदू हैं और वे सब धर्मों का आदर करते हैं ,

आज लिख रहे हो कि आपके साथ भेदभाव करते हैं नेता पत्रकार सेकुलरिज्म के नाम पर !!
बात कर रहे हो अपने साथहो रहे भेदभाव की !!
यह कम नहीं है ।
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माहौल में कट्टरपन तब से ही आता रहा है जब से आपको सेकुलर होने की धुन सवार थी ।
सीधी सी बात आपका दोस्त आपसे आराम से बिना हिचके कह देता है मैं नमाज़ अदा करने जा रहा ?तो आप क्यों नहीं कह पाते कि आरती का समय हो गया पाँच मिनट रुको मैं दिया बत्ती करके आता हूँ ।
उसके रोज़े रखने जुमे के सफे में जाने दाड़ी रखने माथे पर मसजिद की देहलीज की धूल रगड़ने के काले निशान पड़ने ,जालीदार टोपी पहनने ,चारखाने का रूमाल डालने ,गायभैंस का माँस खाने से आपको जब तनिक भी अंतर नहीं पड़ता आप दोस्ती में यकीन रखते हैं सहर्ष मिलते जुलते है चाय पानी खाना सहभोज में शामिल रहते हैं तो ,
यदि सचमुच दोस्त या पड़ौसी या सहकर्मी या सहपाठी का दिल साफ है वह भी उतना ही उदार है तो परेशानी कुछ नहीं होनी चाहिये ।
जरा परखिये तो सही ।
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आप दोस्त पड़ौसी के मज़हब का आदर करके चादरपोशी सहरी ,इफ्तार सब करते हैं

,कभी ध्यान करना कि मन्दिर के बाहर से निकलते वह एक बार सिर झुकाता हाथ जोड़ता या आपकी माँ दादी दीदी के चरण स्पर्श करता है ,?

दीवाली की मिठाई तो खा लेता है परन्तु क्या कभी होती का नन्हाटीका गुलाल का लगाता है ?
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आप स्वयं काँवड़ कीर्तन आरती के शोर पर आपत्ति करते हैं ,परन्तु वह कभी फकीरों द्वारा रिक्शों पर बैटरी माईक लाऊडस्पीकर लगा कर गलियों में जकात मांगने ,दरगाहों पर जबरन मोरपंख झाड़कर पैसा वसूलने ,गौवंश तसकरी चुपके से करने वालों ,बहुत पास पास बन चुकी सैकड़ो दरगाहों जगह जगह मसजिदों में लंबे लंबे माईक लगाने पर आपत्ति करता है ?
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आप हिंदू की हिंसा अपराध जातिवाद रूढ़ियों विहिप संघ हिंदू संगठनों तीर्थों पर अव्यवस्था  पर निंदा बेधड़क करते हैं ,
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वह कभी बुरका परदा मेहरम प्रथा तीन तलाक औरतों का मसजिद और ईदगाह न जाने देना मुसलिमों में फिरका परस्ती परिवार में ही विवाह कजिन से ,जातिवाद ,बढ़ते बहाबिज्म कट्टरपन आतंकवाद पर निंदा करता है ??
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आप हिंदू मुसलिम भाई बहिन मैत्री शादी मुहब्बत सब पर उदार हैं ,
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इतने कि मुहब्बत की खातिर मज़हब बदलना पड़े तो भी क्या फरक पड़ता है मानव पहले हैं आप हिंदू बाद में ,,

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क्या आपका दोस्त ऐसे किसी समाचार पर जिसमें लड़की मुसलिम हो और लड़का हिंदू हो दोनों की शादी के बाद लड़की का माँग भरना बिंदी लगाना महावर लगाना मंदिर जाना गीता पढ़ना सहर्ष सहन करता है हावभाव परखें ।
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रहना तो इसी समाज और देश में है ये इकतरफा दोस्ती बहुत रिस्की होती है ।
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सचमुच जहाँ मुहब्बत दोस्ती उदारता सेकुलरिज्म है वहाँ इन प्रश्नों की बात ही करनी बेकार है आप नसीब वाले भाग्यवान होंगे ।
©®सुधा राजे

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