लेख: :शनिमंदिर और नया चलन

शनिदेव क्षमा करें ,,,

एक दिन अचानक टीवी देखने का मन किया वैसे हम टीवी देखते ही नहीं हैं ,
देखा तो डिसकवरी या ,पर्यटन चैनल कोई ,
उस दिन
जुगुप्सा हुयी ,
एक के बाद एक सैकड़ों मटके दही ,दूध शहद घी तेल फूल फल ,चीनी चढ़ाते शनिदेव का स्नान कराते लँगोटी पहने विशालकाय व्यक्ति को फिर उसी स्नान से बहे द्रवों के मिश्रण से बने तालाब में लोटते देखा ।
फिर पोशाक आरती और चूमना लिपटना प्रतिमा से ।
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यह सब वैदिक आध्यात्म नहीं है ।
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यज्ञ हवन मंत्र ध्यान जप कीर्तन तप त्याग वैराग दान चिकित्सा शोध परहित परदुख हरण शरणागत वत्सलता क्षमा दया करुणा संहार ,
सब धर्म के यथा स्थिति अंग हैं ।
पार्थिव विग्रहों की पूजा का विधान केवल स्मारक स्मृति और माध्यम के रूप में ही है । जहाँ मन धैर्य पाये वहाँ मंत्रोच्चार ध्यान करना ,न
लोग वनवासी वानप्रस्थी होकर भारतीय सदगृहस्थों की सहायता करते रहे हैं एक मुट्ठी अनाज और तीन गज वस्त्र से अधिक तो लिया ही नहीं कभी ।
आज
यह विकृतिकरण है ।
स्वर्ण के भंडार मंदिर में रखे अवश्य जाते रहे परंतु वे ""आपदा प्रबंधन की राशि रूप ही रहते थे "
पंचगव्यस्नान भी औषधीय विलेपक के रूप में था ।
जिसका सूक्ष्म प्रतीकात्म सुंदर रूप देखना है तो दतिया पीतांबरापीठ पर देखें वहाँ ये सब आडंबर नहीं होते ,
माई का स्नान भोर होकर श्रंगार होता है ,स्वामीजी ने कभी तृण की मूढ़ा कंबलासन और एक लंबी कोपीन चादर के सिवा संचय नहीं किया ।
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वेदों की ध्वनियाँ नहीं
नहिं पवित्र आचार
????????
मंत्र यज्ञ जप तप नहीं
""सुधा"" धर्म व्यापार
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लोग कहते हैं ब्राह्मणों को अनुचित ,
ये आशाराम कौन हैं ,
बाबा रामपाल कौन हैं
बाबा राम रहीम कौन है
भिंडरावाला /जगजीतसिंह कौन हैं
दाती महराज कौन हैं
राधे माँ कौन हैं ??
कौन कौन हैं वे लोग
जो तरह तरह के भीड़ पंथ समुदाय लगाकर ,
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गैरिक या पीतांबर ,श्वेतांबर का कृष्णांबर धरकर ,हिंदू धर्म की आड़ में ,
व्यापार चला रहे हैं ?
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वे ठग हैं
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परंतु आप क्यों ठगवा रहे हैं स्वयं को ?,
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कभी ज्योतिष के नाम पर कभी रत्न और कालाजादू लालकिताब के नाम पर कभी ,ग्रहशांति और .......कीर्तन भजन के नीम पर ,
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अप्प दीपो भव
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अपना प्रकाश स्वयं बनो ,
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उठो और पढ़ो ,पढ़ नहीं सकते तो अंतरमन से पुकारो ,
हमारा मार्ग तो पार्थिव पदार्थ विग्रह के समक्ष वृक्ष चेतना के नीचे मंत्र जप के उपरांत यज्ञ करके ध्यान करते हुए निरंतर हृदय नाम स्मरण का है जिसमें आचरण की पवित्र मन की शुचिता विचारों की धवलता और अपरिग्रह अस्तेय ब्रह्मचर्य सत्य की आचरणता ,क्षमा दया करुणा की भावना परहित परोपकार परपीड़ाहरण का व्यवहार और सादगी में ही ही है हिंदू धर्म का आधार ।
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व्यर्थ जाते संसाधनों पर भी स्पष्ट रेखा है विभाजन की , पुनर्प्रयोग ,कणाद ,का तप ,
गोबर से भी गेहूँ बीनकर निकालना ,फसल कटने के बाद बची बालियाँ बीनना ,हवन के बाद बिखरी सामग्री का सिलाना ,निरमाल्य का विसरजन ,देह का अग्निदाह ,भस्म का प्रवाह और अस्थि का विसर्जन ,
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हम स्वयं तो कुछ सोचें पहले !!!!,
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ये नचैये गवैये साधु हमपर हावी हो ही नहीं सकते ।
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पढ़ो ,
सोचो
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हमारे पास इतना सबकुछ है कि हमें किसी के पीछे लगने की आवश्यकता नहीं ,
©®सुधा राजे
©®सुधा राजे

नोट करें
दाती महाराज परंपरागत शनिदान ग्रहीता जोशी नहीं हैं ,
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वे ढोलक बजाने वाले मेघवाल समुदाय की संतान है ,नाम था मदन ,

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