लेख: तलाक निकाह औरत और आज की जरूरतें

अदालत को गुमराह करता मुसलिम पर्सनल लाॅ बोर्ड
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कोई भी विधि छात्र यह खूब अच्छी तरह जानता है कि तलाक के तीन प्रकार हैं lतलाक उल हसन ,तलाक उल अहसन ,एवं तलाक उल बिद्दत lशिया पर्सनल लाॅ बोर्ड की पृथक से इसीलिये बहुत अधिक आवश्यकता है क्योंकि तलाक का सबसे सही और न्यायपूर्ण तरीका हालाँकि आज के संदर्भ में औरतों की बेहतर जिंदगी के लिये उसमें तलाक के बाद वाले हालात पर विचार बहुत जरूरी हैं l
बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट ही नहीं कम समझ और कम कानून जानने वाले सभी मुसलिमों को भी गुमराह किया है l
शिया तलाक में तलाक एक बार बोलकर एक इद्दत पूरी होने पर फिर एक बार बोलकर दूसरी इद्दत पूरी होने पर फिर अंतिम और तीसरी बार बोलने पर निकाह हर तरह से समाप्त होता है l
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इसमें अच्छाई यह है कि ,एक बार तलाक बोलने के लिये ग़वाह चाहिये और तलाक एक बार कहने से शुरू तो हो जाता है परंतु पूरा नहीं होता l पुरुष चाहे तो पछतावा माफी एवं परिवार की समझाईश पर रद्द कर सकता है इद्दत के दौरान तलाक को l
दूसरी बार तलाक मासिक होने पर बोला जाता है ,और इद्दत चालू हो जाती है lतब भी तलाक रद्द किये जाने का अवसर परिवार औरत एवं मर्द की सुलह सफाई से रहता है l
अंतिम और तीसरी बार तलाक कहते ही तलाक पूरा और अपरिवर्तनीय होकर इद्दत पूरी करके औरत नये निकाह के लिये शुद्ध मानी जाती है और आजाद हो जाती है l
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तलाक का सबसे बुरा रूप मो. ह.सा. के समय से पहले प्रचलित था कि मर्द दबा कर गुलाम की तरह औरतों को डराये धमकाये और पीड़ित रखते थे lये कहकर कि न तो रखूँगा ,न ही छोड़ूँगाा l
तलाक कहकर इद्दत पर बिठाते और फिर तलाक पूरा होने से पहले ही दैहिक संबंध बनाकर तलाक तोड़ देते l
कमोबेश आज भी कुछ या कई मामलों में हम में से कई लोगों ने ऐसा मानसिक दैहिक उत्पीड़न देखा होगा l मेहर न देना पड़े सो तलाक नहीं देते ,और तलाक पूरा होने देने से पहले ही समझौता कर लेते हैं ,l
यह क्रूर तरीका था औरत को गुलाम और बाँधकर तड़पाने यातना देने का न अपनाते न छोड़ते l
इस पर यह व्यवस्था बनाई गयी कि तलाक एक बार कहने से पूरा नहीं होगा ,परंतु प्रारंभ हो जायेगा ,दो बार कहने से भी पूरा नहीं होगा परंतु जारी रहेगा ,किंतु तीसरी बार तलाक कहते ही तलाक पूरा और अपरिवर्तनीय हो जायेगा जिसे फिर चाहकर भी मर्द खुद भी नहीं काट सकता lतीन तलाक ,चाहेवउसने फिर एक एक करके कहे हों या एक साथ पूरे तीनबार कह दिया हो l
त्रिवाचा हारने जैसा वचन है ये
किंतु इसकी आलोचना स्वयं ,ह.मु.सा. ने की ,कि मेरे जीवित रहते ही तुम लोग इस तरह की गलती कैैसे कर सकते हो !!जब कि मैं इसे पाप मानता हूँ !!
तो किताब की जिन आयतों का हवाला देकर तीन तलाक को बाजिब और जायज ठहराने की कोशिश बोर्ड ने की है दरअसल वह तो स्वयं ही तीन तलाक की निन्दा करने के लिये है और हदीस यानि ह.मो.सा. के उपदेश तर्क वचन आदि का संकलन इस तरह के एक साथ दिये गये तीन तलाक तथा स्त्री के उत्पीड़न की निन्दा करता है l
समझें स्त्रियां और जाने
देश में रहती हर शै की जानकारी हमें होनी ही चाहिये ,,,,,,,,सुन्नियों और बहाबियों में बुराई के रूप में एक साथ तीन तलाक मारकर नाता तोड़ना जितना आसान है ,शिया में मौलवी ,गवाहऔर एक एक करके तीन माह में बोलने के बंधन के कारण तलाक बहुत ही कम मामलों में होते हैं ,फिर तीन बार पूरी तरह तलाक कहने पर अकाट्य है तलाक दोनों में और तब निकाह उस औरत को दुबारा उसी शौहर से करना गुनाह है ,इसलिये यदि तब चाहे किसी साल दो साल या बाद में तो उसे किसी अन्य से निकाह , हलाला ,तलाक ,,इद्दत ,की प्रक्रिया पूरी करनी होगी इसीलिये  शिया निकाह और तलाक आसान नहीं ,न ही हिलाला जैसी प्रथा बहुत अधिक शिया में नहीं मिलती ,परन्तु कम ही सही है अवश्य lतलाक के बाद औरत की स्थिति शिया में भी बहुत खराब है ,

सादर सुधा राजे

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