गद्यचित्र: ओए छोकरी

ऐ लङकी!!!!!!!!
ओये छोकरी!!

बहुत मॉडर्न हो गयी????
अब ये भी सुनती जा

बक बक बक करने से तेरा फ़लसफ़ा सब नहीं मानने लग जायेंगे!!!!!!!!

देखा ही क्या है तूने अभी???

कभी पीठ पर बूढ़ा बाप ढोया?
कभी खाँसती हुयी दादी को रात में पानी गरम करके लौंग भूनकर दी??

कभी प्रसूता भाभी के नन्हें के पेट पर जाङे की रात में हींग मलकर गरम रूई बाँधी????

जा पहले जाकर गाँव गाँव घूम
देख कि पानी भरे कीचङ वाले धान के खेत में घुटनों तक खप खप कर चलती अगहनिया जब पटेला पर बैठे ललकू को देखती है तब पीछे पीछे बैल हाँकता पसीने से तर बङकू की मछलियाँ उछलकर उसके घूँघट को उङा देती है और आँखों में कौंध जाता साँस तक महकता सुनहरा सेला चावल गमकौआ बासमती मुट्ठी में लेकर पारण करती नवान्न पर गोवर्धन का भोज गजरभत्त होकर तेरे

ठेलों ढाबों होटलों की पिज्जा बरगर चाऊमीन को कूङे से ज्यादा कुछ नहीं मानता ।

क्योंकि पनेसर की नवोढ़ा फालिज मारने पर छोङ नहीं जाती ससुराल

अङकर कमाती है गाय गोबर गेवङा और गेंहूँ से ।
क्योंकि
सङक किनारे गवार फली गुल्लक और गंडेरियाँ बेचती गिन्निया की पतोहू का जी कब्बी नहीं ललचाता

अंडे चाट आईसक्रीम छोले पटाके गोलगप्पे टिक्की समोसे कटलेट कबाब पर ।

वह सारा दिन भूखी रहकर शाम को घर जाकर फिर मजूरी से लौटे मरद और कारखाने से लौटे बालकों को भोजन पकाकर देने के बाद बासी रोटी नमक मिर्च अचार से खाकर खिलखिला सकती है ।
और तब थैले से रेवङी गजक निकाल कर मुनिया को दे सकती है जब बरसों से बालूशाही का मन भूल गयी।
जब गोदी में तीसरा बच्चा लगातार दूध चूसता रहता है और सूत अँटेर सकती है देर रात तक

उसको आता है सौ के सौ  भेङियों कुत्तों गीदङों कौओं से अपना बदन छिपाकर भी दिनभर सङक किनारे रुपिया गिनकर घर लाना और रात को ठाठ से दोनो तरफ बच्चे चपेटकर सो जाना अपनी झिलगी खाट पर ।

वह फालिज की दवा लगाते चार गालियाँ खाकर सास के लिये पानी का घङा भर कर रख जाना नहीं भूलती और न ही कभी भूलती है कंधा हथेली छूने को बढ़ते मेट आङतिया और सब्जी लेने वाले बाबुओं को डपट देना ।

तुम नहीं समझोगी
वह किसी जिम नहीं जाती लेकिन तुम्हें मरोङ सकती है
औऱ
लगातार संयम की पराकाष्ठा के शिखर पर खङी रह सकती है जब

हरे दुपट्टे ओढ़कर तुम हर दसवें मरदाने चेहरे पर हवस पढ़कर भी अनजान बनी रहती हो नौकरी के वास्ते

वह फङ की जगह बदल कर फेरी लगा सकती है
क्योंकि जब तुम अपने पाँचवे बॉयफ्रैंड से ब्रेकअप पर थीं

वह  सोच रही थी मेरे गिन्नी से ज्यादा खूबसूरत मर्द दुनियाँ में कोई हो ही नहीं सकता

तब जब तुमने पहली बार ताना मारा था मंगेतर को कमाई का
वह
चुपके से पायल बेचकर मालिश का तेल खरीद रही थी।
और
जब तुम बॉस की गिजगिजी बातों पर हँस रही थी
वह पुङियाँ बाँट रही थी बच्चों को हलवे के साथ क्योंकि गिन्नी चलने लगा था।और एक लात जोर की गुस्से में कमर पर पङी क्योंकि
वह नहीं चाहता कि धनियाँ
अब भट्टे पर जाये ।
वह
हँस रही थी और बक रही थी तमाम गालियाँ
सात पीढ़ी को

तब जब तुमने महसूस किया कि कंपनी मालिक
तुम पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है  तो क्यों न शादी करके सैटल हो जायें वह बीबी बच्चे तलाक़ दे तो रहा है
तब कल्ली  ने भूरे को जमकर पीटा वह
सुन आई थी शहर की नीली बस्ती गया था ।

तुम नहीं समझोगी
क्योंकि -""घर कभी कहीं नहीं जाता
जाते हैं घरवाले-""

कभीं से भी  घूम भटककर
सब रास्ते घऱ आ जाते  हैं
क्योंकि
घर औरत की टाँगों  से बँधा होता है
कहीं ऐसा न हो घर चल दे
राह भटक जाये
तो  बित्तू बाबा कैसे खोजेंगे
लाठी
औऱ  मुनिया पढ़कर आय़ेगी तो किसकी दीवार डाँट खायेगी कि अभी लीपापोती की थी अभी फिर लिख दिया
??कर्ज़ा बढ़ायेगी क्या
लिखने पर!!
"घ-से घर मीन्स होम
चाहे  वह झोपङा हो या  हवेली
©®™Sudha  Raje
सुधा राजे

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