Tuesday 5 February 2019

पत्र:मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश को

#MyYogyAdityaNathJi पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसा देखा एक एलियन की दृष्टि से (सुधा राजे)दूसरी किश्त
4भयंकर मिलावटी नकली और हूबहू ब्रांड रैपर लगाकर बिकती कृत्रिम चीजें -------
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-खाद्यपदार्थ हों या साबुन तेल क्रीम पाऊडर आक प्रयेक प्रसिद्ध ब्रांड की नकल प.उ.प्र.के किसी भी कसबे नगर महानगर के घने बाज़ार फेरी वाले या खोखे वाले पर मिल जायेगी । अमूल धारा पतंजलि सनसिल्क फेयरएंड लवली रविन्द्रा एवरेस्ट नेस्ट्ले ....कोई भी । ग़ौर से देखें तब बहुत परख हो तब पता चलेगा अरे !यह तो मिलावटी है । दीवाली होली भाईदूज शिवरात्रि रक्षाबंधन पर मिठाईयों के नाम पर नामी गिरामी दुकानों तक के माल पर भरोसा नहीं किया जा सकता । कतार से मीलों दूर तक खुले थाल में कटे फटे फल सलाद मिठाईयाँ गजक पपड़ी चाट खोमचे की चीजें जमकर उड़ती धूल की परत दर परत चढ़ती रहती है और दनदन मख्खियाँ भिनकतीं रहतीं हैं आपने धोखे से भी कह दिया दुकानदार को कि ढँक लो ,तो चार खरी खोटी सुनाकर लड़ बैठेगा कि माल दिखेगा तो बिकेगा न"
,तुम मती लेओ ना जी ,भतेरे आंवेंगे लेन्ने वाल्ले ,
आप अपनी खिसियाहट छिपाईये और हुबकती उलटी रोकते हुये ध्यान मत दीजिये कि ऐन गटर के ऊपर खुली नाली पर आवारा कुत्तों और पशुओं को डंडे से हाँक कर भगाता पसीने से लथपथ दुकान दार वहीं काऊंटर के नीचे ही पड़े गंदे कचरे पर खड़े बेंचों के बेड़े पर बैठे लोगों को बिना हाथ धोये ही वही सब परोस रहा है । कहीं से भी शुद्ध मावा पनीर दही दूध खोआ या दूध से बनी क्रीम घी दूध के बने पदार्थों वाली मिठाई आपको उपलब्ध पश्चिमी यूपी में हो जाये बिना घर में बनाये तो चमत्कार से कम नहीं है ।
सफेद रसगुल्ले को तो भूलकर भी मावे छैने का समझना नहीं न जाने क्या क्या हो सकता है पकड़ी गयी कई क्विंटल मिठाईयाँ जो कहीं दूर गांवों के भीतर से बनकर नीले ड्रमों में पैक होकर हर हलवाई के पास रेडीमेड रसगुल्ले के रूप में आती है और वह कह देता स्वयं बनाई है न जाने क्या क्या निकला उसमें सेलखड़ी वाॅशिंग पाऊडर कैमिकल हेयर रिमूवर तरह तरह के आटे और भी कचरा रसायन जो सड़ने देता नहीं बस मीठा लगने देता गंध के लिये नकली खाद्य सेंट जमकर हर तरह की मिठाई में पड़ते हैं ।
खाद्य निरीक्षण विभाग !!!वह होता है क्या ?अगर होता तो दशकों से ये सड़ गले पदार्थ नकली सामान खुले जहर बच्चों के स्कूलों काॅलेजों और अस्पतालों बअड्डों रेलवे स्टेशनों जैसी जगहों पर तो कदापि नहीं बिक सकते थे !!जूस के ठेलों पर गंदगी रस की चरखियों पर गंदगी समोसे कचौरी पकौड़ी चाय की दुकानों पर भीषण गंदगी क्या खाद्य निरीक्षण सेनेटरी और स्वास्थ्य विभाग मिलकर शिक्षालयों के माध्यम से यह सब रोक नहीं सकते ?परंतु लगता है उनको कुछ भी अजीब नहीं लगता वे ही तो लोग है जो इस सबके अभ्यस्त हैं इसीलिये कहते हैं जमने नहीं देना चाहिये संत सरकारी कर्मचारी विद्वान और काई को ।
5-लोगों की आहारशैली पवित्र और हाईजिनिक नहीं है ------
---------------------------------------*चकित करने वाली बात है कि दूर दक्षिण ठेठ पश्चिम प्रांतों तक में जो आदतें गांव गांव की आम शैली हैं स्नान मंजन दातुन या टूथब्रश हाथ माँजना हर बार टाॅयलेट से आकर और कुछ भी खाने से पहले वह दिल्ली एनसीआर से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिखाने की विषय वस्तु है !!
लोग लाख कारखानों को मालिक हैं बच्चे इंगलिश मीडियम में पढ़ रहे हैं परंतु यूनिफाॅर्म घर में सबमर्सिबल और वाशिंग मशीन होते हुये भी नित्य नहीं सप्ताह में एक बार ही प्राय:धुलती है । या मैली दिखने पर बच्चे मुँह धोकर मंजिन किये बिना ही सजकर स्कूल चल दिये यह बहुत से अभिभावकों को पता तक नहीं रहता । काॅन्वेंट स्कूल यदि सख्ती ना करें तो दाँत  नाखून बाल जूते बस्ते तो कभी साफ ही ना हो !!क्या ऐसा ही अभ्यास परिवार में चल रहा है ?सहज ही  प्रश्न आता है क्योंकि कड़ाके की सरदी में भोर चार बजे मंजन करके नहाकर प्रार्थना करने वालों का यह देश रहा है ।
कटे हुये फल इस तरह गली गली सड़े गले होने पर भी लोग टूटकर खरीद ही न जाने क्यों लेते हैं !!हर ऋतु में अनेक समाचार फूड पाॅईजनिंग के आते रहते हैं फिर भी लोगों की आहार शैली नहीं बदलती और बच्चे आराम से माँ की गोद में बाप के कंधे पर गंदगी से भरी चीजों को टपकाते गिराते आॅटोरिक्शा टैम्पो ई रिक्शा बस ट्रेन सब जगह मिल जाते हैं ,यह नहीं कि अनपढ़ अरे भई महँगे कपड़ों में एसी कार वाले लोग भी हू हू करती धूल की परत चढ़ते थाल तवे पर से आराम से खाते दिख सकते हैं  । संपन्नता स्वच्छता की प्रतीक नहीं है यह सबक मिलता है तो प.उ.प्र. में आकर ठसाठस घर भरा हो हर तरह की आधुनिक सुविधा से और नोटों से पर्स किंतु सहभोज दावत आदि में टूट पड़ने जैसी हालत से वूफे डिनर या कहें कि दिन की दावतों में लंच और ब्रेकफास्ट लूट लूट पड़ते लोग पल भर में सजे धजे पंडाल को कचराघर बनाने में माहिर हैं । मज़ाल कि कहीं डिसपोजेबल दोने पत्तल चम्मच कूड़ेदान में डाल दें ?वह तो वहीं जहाँ खाया निगाह चुराई और पटक दिया सर्विंग टेबल के नीचे मंडप के पीछे डाईनिंग टेबल की टाँगों में जयमाला स्टेज के सामने कहीं भी । जरा सी देर में आपको पछताना पड़ सकता है कि ओह ये प्योर सिल्क चंदेरी कांजीवरम् पटोला भदरी बंगालतांत बनारसी कांथा यहां के लिये नहीं था तब समझ में आयेगा कि इतनी दमक चमक धमक के कपड़े गहने पहने लोग हैंडवाॅशेबल ही क्यों पहनते हैं और आप जीवन में कभी भूलकर भी सूती या सिल्क दावतों में नहीं पहनेंगे पता नहीं कहाँ से चटनी साॅस चाशनी की निशानी मिल जाये । बच्चों को पता नहीं माँयें संस्कार नहीं देतीं या पिता या को ही नहीं पता कि स्नान नित्य करने चाहिये मंजन नित्य करना चाहिये नाक पोंछने के लिये रूमाल लें हाथ या आस्तीन नहीं बड़ों को नमस्कार करें आप कहें तुम नहीं बड़ों के ऊपर टीका टिप्पणी ना करें दूसरों की चीजें बिना पूछे ना छुयें सहपाठी या मेजबान के सामान ना चुरायें टाॅयलेट के सिवा कहीं अन्य जगह सूसू छीछी नहीं करें रैपर छिलके कचरा जहाँ खाया यूज किया पैंसिल छीली वहीं नहीं गिराना है कचरेदान में डालना है ,कहीं भी मुँह करके नहीं खाँसना छींकना है रूमाल रखना है । हाथ हर बार साबुन से धोकर ही कुछ खाना है दूसरों के बस्ते बैग पर्स में से कुछ भी नहीं उठाना है । बहुत कठिन है ऐसे गिने चुने परिवार खोज पाना जिनके बच्चों में भी हाईजिनिक अभ्यास हो जिनका अमीरी गरीबी से लेना देना नहीं बस संस्कार की बात है ।स्कूल मददगार हो सकते हैं परंतु उनको पहले सरकारी प्राईवेट में बाँटो उसमें रखो मिड डे मील चुनाव राहतें वजीफे यूनिफाॅर्म इमदाद के हिसाब में सही गलत का तिकड़म और दूसरी तरह कैसे और पैसा निकाले माँबाप से गायन वादन नाच चित्रकला फैंसीड्रेस और किताबों आदि के बहानों की जुगाड़ किसे पड़ी संस्कार साफ सफाई और चारित्रिक विकास की नींव धरे !!क्रमश:जारी ©®सुधा राजे

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