लेख:जातिवाद के बीच धर्म बदलने पर विचार

मान लो अगर कोई "मुसलिम बने तो? ये कैसे तय होता है कि वह ""शिया ""कहलायेगा?
सुन्नी कहलायेगा?
या सलाफी बहाबी कहलायेगा?
या कुर्द कहलायेगा??
बलौच कहलायेगा?
शेख सैय्यद मुगल पठान कहलायेगा????
""""
जब सारे मजहबी मौलवी उपदेशक कहते हैं कि """जातिवाद ""और छुआछूत को नहीं मानते मुसलमान तो,,?????

कसाई कुरैशी
नाई बेग
धूने अंसारी
चुङहेरे मंसूरीव
लांगङ
शेख
पठान
अली
सय्यद
कस्सार
मेवाती
शराब उतारने वाले 'कल्लाल "
कलई वाले सबनीगर
आदि जातियाँ क्यों हैं????
और क्यों एक जाति दूसरी  जाति में निकाह नहीं करती मरने मारने पर भी???

और हाँ क्या आपको पता है कि
पाकिस्तान से जब हिंदू पलायन करके भारत आ रहे थे तब सन छियाली सैंतालीस में ही जिन जिन हिंदुओं को जबरन रोका गया था उनमें सबसे ज्यादा """शौचालयों को साफ करने के लिये ही रोका गया था ।""

क्या शौचालय साफ करने वाला कोई मुसलिम है??
भारत में??
दलित नारा बुलंद करने वाले पता करें कि """सफाईकर्मचारी वाली कोई जाति अगर इसलाम कुबूलती है तो उसे कौन सी जात कौन से फिरके में रखा जाता है??
ये तय है कि जो जिस जाति का है '
इसलाम कुबूलने के बाद भी जाति वही की वही ही रहनी है ।
और निकाह भी अपनी ही चचेरी ममेरी फुफेरी मौसेरी बहिन भाई से ही करना पङेगा वरना दुलहन खोजते रह जाओगे ।
और निकाह के वक्त ही ""मेहर ""भी लिखत पढ़त होगा ही ।

लङकियों को भी याद रखना चाहिये कि
इसलाम में पुरुष का केवल कमर ही बेपरदी मानी गयी है जबकि औरत सारा शरीर '''काम वासना बढ़ाने वाला तत्व मानकर गाल होंठ कलाईयाँ सब ढँकना जरूरी है ।
और तो और पुरुष मसजिद जाते हैं औरते घर में नमाज पढ़ती है
पुरुष समूह में कतार में नमाज पढ़ते है
औरते घर में ही अकेले अकेले नमाज पढ़ती है ।
औरत कभी भी अपने शौहर को सेक्स से इनकार नहीं कर सकती जब भी उसका मन हो या न हो ।
औरत को जब तक कोख में दम है तब तक जितने हो सकें उतने बच्चे जनम देने पङेगे 'मरजी पुरुष की उसकी कोख पर कब्जा है शौहर का और जिस्म तो निकाह के बाद है ही पुरुष की संपत्ति खेती ।
औरत को कभी भी दूसरी सौत तीसरी और चौथी सौत तक लाकर झेलने पर विवश कर देना हक है पुरुष का ।
औरत, न खाना बनाने से मना कर सकती है न सेज पर आने से मना कर सकती है ।
कहीं भी कभी भी बाहर आने जाने पर बुरका वह भी काला और ढीला ढाला ही अनिवार्य है ।और सिर तो हर समय ढँका होना चाहिये कि एक भी बाल न दिखे चाहे घर हो या बाहर ।
औरत कहीं भी देहलीज से बाहर अकेली कदम नहीं रख सकती उसको "एक मर्द साथ में ले जाना जरूरी है ''।
जो औरतें शौहर के अलावा किसी और के सामने "रुप सिंगार लाली वगैरह दिखातीं है वह सब गुनाह करतीं हैं ।
औरत, 'के बदन पर हर वक्त पाँच कपङे होने जरूरी हैं ।
औरत रोजा घर में ही खोलती है
पुरुष इफतार पार्टी में मसजिद में और कतार दावत में ।
औरत, 'तलाक देने के बाद औलाद पर हक नहीं रखती ""नुत्फा जिसका बच्चा उसका "
बीज वाला पुरुष है सो औरत नामक खेत से वह अपनी फसल ले लेगा ।
'
'व्यवहार में जो जो आजादियाँ
मुसलिम महिलायें प्रयोग कर रहीं हैं
वास्तव में वे सब "सनातन धर्मियों यानिन
""काफिरो ""की नकल करने संगत में रहने और ""भारत होने से हैं ""
"""""""""किसी भी इसलामिक देश में औरतों को कोई आजादी नहीं है ।
औरत की गवाही भी एक पुरुष के बराबर नहीं जब चार औरतें कहें तब एक मर्द के बराबर गवाही मानी जाती है ।
औरत पर बलात्कार हुआ है यह,,, साबित करने को भी """पाँच पुरुष जब गवाही दें तब माना जायेगा कि औरत "सही कह रही है "
औरत की शादी बारह साल की उम्र में  जायज है और बारह साल छोटे लङके से भी जायज है क्योंकि औरत और मर्द की तुलना में बारह साल का लङका "मुख्तार है चौबीस साल तक की लङकी के साथ कहीं आने जाने को अधिकृत पुरुष ।
लङकी का हाथ माँगने का पहला हक फुफेरे ममेरे मौसेरे भाई का होता है ।
औरत को तलाक दे देने के बाद
अगर किसी कारण शौहर बीबी को अहसास हो कि गलती हो गयी बच्चे पालने को चलो एक हो जायें परिवार के लिये तब भी औरत का निकाह जब तक दूसरे मर्द के साथ होकर हिलाला "यानि कि उस नये शौहर से देहिक संबंध बनमे के बाद फिर तलाक और फिर चालीस दिन की इद्दत यानि एकांत वास ताकि ""गर्भ तो नहीं ""है तो किसका है यह निर्णय हो जाये तभी फिर वापस वही शौहर बीबी निकाह दुबारा कर सकते हैं ।
जातिवाद
भारतीय मुसलिमों में बुरी तरह व्याप्त है ',तो इसलामिक देश के लोग भारतीय मुसलिमों को हेय नीच समझते है और वहाँ जाने वाल् बताते हैं कि भारतीय लोग वहाँ नमाज तक उनकी मसजिदों में नहीं पढ़ सकते ।

कौन किसके पीछे वाली कतार में बैठकर नमाज पढ़ेगा इस पर भी भयंकर फतवेबाजी है ।
और
ताजा ताजा फतवा ये है कि
मुरादाबाद मंडल में जगह जगह बारात में बैंड लाने नाचने गाने बाजा ताशा ढोल बजाने डैक डी जे बजाने पर "काजी निकाह पढ़ने  से साफ मना करके बारात लौटाने तक को झगङ पङ रहे हैं ।
और तकरीर में माईक पर सुना कि
ये जो औरतें हैं बहुत बिगङ रही हैं काफिरों की देखा देखी लिपिस्टिक लगाकर गैर मर्द को होंठ जुल्फें दिखातीं है ।
और लङकियाँ नौ साल से दुपट्टा बाँधें बारह साल से बुरका पहनें और घर पर सिपारा पढ़े,
अकेली दुकेली तिकेली बिना किसी मर्द को लिये कहीं भी नहीं जायें ।
काफिरों की नकल पर औरतें बहुत """आजाद खयाल होने लगीं हैं """
कुटुंब से बाहर लङकी की शादी नहीं करनी चाहिये ',बारह साल छोटे और चाहे जितने साल तक के बङे मर्द से निकाह हो सकता है ।
जब कुटुंब में कोई मर्द न मिले निकाह को तभी बिरादरी में खोजना चाहिये ।
बहरहाल

सवाल ये है कि तमाम दावों के बावजूद
क्या आज के युग में स्त्री की ऐसी """"हालत """खुद पढ़े लिखे तरक्की पसंद मुसलिम मरदों को पसंद है???!!!!
??????
साफ जाहिर है कि नही है ।

वरना लङकियाँ कॉलेज स्कूल पुलिस फिल्म मेडिकल इंजीनियरिंह मीडिया से गायब हो जाती और रह जाते घरों की खिङकियों से बंद बुरकों में झाँकते बंदी मादा जिस्म ।

मुसलिम माँ बाप लङकियों को जॉब लगने तक पढ़ा रहे हैं तो भारतीय परिवेश की स्त्री स्वतंत्रता कैये कारण और सारे फतवे प्रचार ""नासमझ कट्टरवादियों तक ही रह रह जा रहे हैं ।
तो कट्टरवाद सबसे पहले स्त्रियों का दम घोंट देगा दूसरे फिर "कमाऊ मर्द की जिंदगी "
जातिवाद पर सब उपदेश झाङते हैं परंतु इतवारी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन मुँह चिढ़ा देते हैं ।
©सुधा राजे  '

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