Monday 4 February 2019

कविता भावचित्र: :यही क्या कम है कि जीवित हूँ मैं

मुझे ज्ञात था प्रारंभ से ही मैं विशिष्ट हूँ, क्योंकि प्रत्येक सृजन प्रथक और विशिष्ट होता है, मुझे ज्ञात था प्रारंभ से ही मुझे मात्र साँस लेकर छोङ देने के लिये नहीं जीवित रहना है, किंतु मुझे मेरी उपलब्धियों से तौलकर सदा ही अल्पतम आँकने वाले तुम!!
तुम्हें कभी मेरे हास्य स्मित के परे मेरे क्रंदन नहीं दिखे न कभी याचना के स्वर, तुम कैसे समझते कि इतनी श्रंखलाओं में जकङकर रख देने के बाद मैं यहाँ जीवित हूँ यही क्या कम है और कितना आश्चर्य कि श्रंखलाओं में बँधे करपाद प्राचीरों में सीमित देह के बाद मैं बटोर लाती हूँ पवन से अशन और किञ्चित दिखते  गगन से गीत, अब तुम डाह करो या श्लाघा किंतु मैं जानती हूँ मेरा हर गीत तुम्हारे अट्हास से मधुर और सत्य है  क्योंकि यह है जिजीविषा का शब्दचित्र,
©®सुधा राजे

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