Monday 4 February 2019

लेख:वीर वर्ण टुकड़ियों के नाम हैं जातीयगुण में कर्मलक्षित है

वे लंगर चलाने को धर्म समझने लगे ?
भूल गये कि लंगर उनके लिए चलवाये गए थे जिनको उजाड़ दिया था
परिवार मारकर घर जमीन व्यापार छीनकर !
जिसकी तेग में धार नहीं वह सिख नहीं होता,
योद्धा नहीं तो क्षत्रिय नहीं ,
वीर नहीं तो सिख नहीं ,
डर गया तो जाट नहीं ,
अड़ न सके तो गूजर नहीं ,
डरपोक है तो वनवासी नहीं
और दिशा दशा पर निर्देशक न रहे तो  ब्राह्मण  नहीं ,

आज
सुरा सुंदरी में डूबने लगे ये सब ,
,
विनाश के लिए ,
,
यही तो पथ है ,
,
जो कामी की बातों पर संस्कार भूल  रीझ पड़े वह कुलांगना नहीं होती ,
,
जो हथियार सिरहाने नहीं रखता शूर नहीं होता,
,
,
वणिक वैश्य कायस्थ ,धन से प्याऊ धर्मशाला ज्ञानियों को संरक्षण देना बंद कर दें ,तो धनी नहीं रहता ,
,
शूद्र देश का पेट भरने श्रम करने के स्थान पर जुआ शराब सट्टा कलह हिंसा अपराध मनोरंजन में लिप्त रहने लगें तो नष्ट हो जाता है ,
,
युद्ध के समय गीत युद्धभेरी का ही सुहाता है ,जो संकट में सौन्दर्य वर्णन करता रहे वह कवि नहीं ,
,
.तो देश के भीतर ,हो या बाहर कहीं भी
,,

"देशवासी रीढ़विहीन रहकर मार दिया या दबा दिया जायेगा ,तुम्हें बाहर के 39 दिख रहे हंगामों को ,हम गिनते रहते हैं देश के भी केरल कासगंज कैराना कर्नाटक बिहार पंजाब दिल्ली कश्मीर .......मेरे देश जाग तो सही .....तुम कीर्तन करके धर्म निभाना पर्याप्त समझते हो ?कीर्तन करने में विघ्न डालते तत्वों को कौन रोकेगा ,?

©®सुधा राजे

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