लेख: पड़ौसी के घर

कल नगर से एक खतरनाक आतंकवादी पकड़ा गया ,
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और तुम काल्पनिक प्रेमगीत लिख रहे थे ,
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कल पास के प्रांत में बहुत से लोग मार दिये गये ,
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और तुम टी वी पर समाचार देखकर डर रहे थे ,
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कल पास की सड़क पर हादसे में नौ लोग मर गये ,
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और तुम अखबार पढ़कर नयी कार देख रहे थे ,
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कल एक बच्ची की बर्बर सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या कर दी गयी ,
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और तुम स्मार्ट फोर्न पर पोर्न साईट देॆख कर तप रहे थे ,
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कल सरकार ने नयी और सबसिडी छूट वजीफे घोषित कर दिये ,
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और तुम बेटे के लिये  शिक्षा ऋण लेने के लिये प्रबंधक से गिड़गिड़ा रहे थे ,
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कल पड़ौसी के घर संदिग्ध लोग देर रात को आते रहे दरवाजे धीरे से खुलते बंद होते रहे और तुम ,
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डरे हुये बच्चों के साथ दूर महानगर में नये फ्लैट की किश्ते भरने को बचत कर रहे थे ,
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तुम्हें पता था कि वह कर्मचारी भ्रष्ट है और यह गलत है,
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फिर भी तुम अपने जायज और वैध कार्य के लिये उसे घर के कीमती सामान गिरवी रखकर घूस दे रहे थे ,

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हर दिन कुछ तो ऐसा होता है जो डराता है ,चिंता देता है ,
परंतु तुम सब कुछ जानकर बस डरे हुये दफतर से घर बाजार से घर और अस्पताल से घर आते जा रहे थे ,
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जी में आता है यह डर दहशत चिंता खत्म हो ,कोई हो जो कुछ करे कि यह डर मरे ,
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वह सड़क सुधरे वहां से अतिक्रमण हटे कि वहां फिर कोई न मर सके ,
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वे सब देशद्रोही आतंकवादी पकड़कर फांसी चढ़ा दिये जायें जो दहशत के लिये मारडालते हैं निर्दोषों को ,कहीं से कुछ ऐसा नैतिक बदलाव आये कि कभी कोई लड़की न छेड़े न घूरे न उठाये न मार पाये ,
वे सब लोग पकड़कर फांसी चढ़ा डाले जायें जो लड़कियों की हत्या करते हैं बलात्कार करते हैं ,वह सब सुविधा बंद कर दी जाये जो निर्धन गरीब के नाम पर नहीं जाति और मजहब के नाम पर बांटी जाकर देश में मजहबी घृणा और जातीय भेदभाव बढ़ाती जाती है ,
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परन्तु तुम जमाने को कोस रहे थे क्योंकि ,
तुम्हें लगता है क्रांति हो ,बदलाव आये तो क्रांतिकारी पैदा तो हो परन्तु मेरे नहीं ;
पड़ौसी के घर
©®सुधा राजे

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