Sudha Raje
लिखावट रेत पै उल्फ़त लहर
धो गयी सुनहरी सी
बची रह
गयी जो खाली ज़िदगी इक
शाम ठहरी सी
चमकते सुर्ख पानी पे
वौ परतौआफताबी रंग
टपकते पुर लहू आँसू दमकते
ज़ाम ठहरी सी
वो चुप खामोश ऊँचे
नारियल के ताङ के ताने
वो सन्नाटे सवाहिल
चौतरफ़ आवाम ठहरी सी
वो पेचो ख़म सियह
जुल्फों में उलझा डूबता
सूरज
वो गर्दो दर्द चश्मे तर
जो राहे आम ठहरी सी
सवालों के लिये आवाज़ देते
रेहङी वाले
ज़वाबों की वो ठंडी कुल्फियाँ अंज़ाम
ठहरी सी
कुरेदी पैर के नाखून से
गीली ज़मी यूँ ही
सुधा बेबस
किसी की बात
दहने बाम ठहरी थी
¶©®¶©®
चले आना घिसटते रेत पर
अनमिट निशानों सा
वो इक पूरी कहानी
आँसुओं
के नाम ठहरी सी
तुलूये-माह के सँग
संग़सारी
अश्क़बारी भी
वो खुद की बेग़ुनाहे
ख़ुदक़ुशी
बेनाम ठहरी सी
Sudha Raje
Thursday 28 February 2019
गजल, लिखावट रेत पर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment