गीत: आत्म बोध, उमर गयी बुनत बुनत चतुराई

उमर गई बुनत बुनत चतुराई """""""""""""
तऊ नहिं पीर सिराई ""
उमर गई बुनत बुनत चतुराई """"""""""""
अधरन ''कनक चषक ""विष धर लये
धर लयी कंठ बुराई
हिये धरौ विरहा कौ सागर
उदर धरी निठुराई ""
सात चक्र धरि माया काया तप जप जोग जराई """"""
वर लयी कर लयी धर लयी जैसें चंदन गंध पराई
उमर गयी बुनत बुनत चतुराई """
सुधि बुधि गति मति बिसरे निसरे
जनु सब संपत्ति खाई
प्रीत खोज तनहीत  खोज नित करत लरत बरिआई
सुधा हारि सब जीत्यौ बरबस
करि करि हियहिं लराई
जथा उजार्यौ कनक क्षेत्र प्रभु सुरभिह नित्य चराई
मोह कोह मद द्रोह भयौ गत रह ग्यौ एक कन्हाई
उमर गयी ""
सुधा सखी चरनन लिपटानी गहि लेऔ बाँह सिराई
कछु नहिं कहि आवे नहिं भावे
मैं अनाथ तुम सांई
कै तौ मोहिं उबारौ मोहन
कै लेओ चरन लगाई
कन कन क्षन क्षन मन मन जोरौ धोयो जगत हराई
उमर गयी """"कहत कहत हरिराई
©®सुधा राजे

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