दोहे: सुधा दोहावलि

सुधा राजे के दोहे
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"सुधा"पीर प्रारंभ है ,हर्ष मध्य व्यवहार
पुनः वेदना अंत है ,करो सत्य स्वीकार
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अपनी अपनी सब करें ,स्वारथमय संसार
ना रिपु ना कोइ मित्र है ,करो सत्य स्वीकार
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जो करनी जैसी करे ,अंत भरे सब हार
देर सवेरे ही सही ,करो सत्य स्वीकार
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रीते मन छलकत फिरें ,भरे हृदय नत भार
ओछे निज करनी बकें ,करो सत्य स्वीकार
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©®सुधा राजे

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