Sunday 3 February 2019

संस्मरण:सुधा विषपायिनी

बेटी वाले बापू ,(सुधा राजे )
,
पापा को भाईयों भाभियों भतीजी भतीजियों के हवाले छोड़कर चली आने वाली बेटियाँ Father's Day पर क्या बोलें ?
कब पता रहता है कि पापा को चाय पीनी थी 4 बजे की आदत रही बेटी के राज पत्नी के राज में आधी रात में भी उठकर कुछ भी बनवा लिया ,अब पापा सोचते हैं कब भोर हो कब कोई कहे ""चाय "

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कैसे पता करे कि ,पापा को बेटी के राज में झक सफेद कपड़े पत्नी के राज में हर तरह से सजधज कर रहने की आदत थी तनिक मैली होते ही वरदी धोबिन पर लताड़ पड़ जाती थी ,और माँ तो पहले ही साफ रखतीं थी ,फिर हक था कहने का मेरे कपड़े धो कर प्रेस कर देना शाम को मीटिंग है ,अब सोचना पड़ता है यह पर्दनी यह कुरता यह कमीज अभी दो दिन और पहनी जा सकती है ,पसीने की गंध आ रही है तो आने दो हवा में टाँग देते हैं सोचते हैं कैसे कहें कि
"मेरे कपड़े धो दो "
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पापा को आदत थी रोज रात को सबके साथ मंडली बनाकर भोजन करने की उसी समय सबसे बातें होतीं रहतीं ,कभी बेटियाँ कभी पत्नी कभी बहुएँ कभी सेवक सेविकाएँ दौड़ते रहते परोसते रहते ,पापा आदेश देते घी और चुपड़ो बच्चे दुबरिया गए हैं ,गुड़ लाओ ,दूध और रखो ,खीर में मेवे कम पड़े हैं ,ये सब्जी दुबारा बघारो ,रायते में अंगूर और डालो ।पत्नी के राज में रोटी कबाब चिकिन मटन था बेटी के राज में खीर पूड़ी हलवा कोफ्ते पकौड़े पराँठे ,अब सोचते हैं कि मन तो है आज सत्तू खाने का ,पँजीरी और बहुत दिन हो गए गोभी के कोफ्ते चखे नहीं ,परवल बहू को पसंद नहीं कद्दू पोते को नहीं भाते ,बेटा लौकी नहीं खाता ,कुछ भी खाने की बात कहते ही परहेज ,परहेज पर उपदेश हर तरफ से मिल जाता है कैसे कहें कि
""गरम बूँदी टपकती चाशनी वाली याद आ रही है "
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पापा को आदत थी सुबह उठकर सबको बुलाकर पाठ सुनने की ,सूर्योदय से पहले ही सबको आवाज लग जाती सब नहा लेते ,सब मंदिर में जा पहुँचते और सब की रिपोर्ट आदेश सुबह ही हो जाते ,पत्नी के राज में हर बार नयी फिल्म लगते ही सिनेमाहाॅल पहुँचते थे , बेटी के राज में टीवी पर हर शाम कुछ न कुछ देखते ही रहते थे ,अब रिमोट कहीं टीवी कहीं चैनल हजारों और बेडरूम बहू का ,या नतबहू का ,पापा जानना चाहते हैं किसकी सरकार बनी ,मैच में कौन जीता ,कश्मीर से अरुणाचल तक गुजरात से केरल तक क्या हो रहा है ,परंतु किससे कहें तनिक "जोर पढ़ो समाचार "
या टीवी खोल दो दूरदर्शन चैनल लगाना है
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पापा को आदत थी दावतें देने की त्यौहार मनाने की हंगामा करके होली दीवाली दशहरा पर सबको बुलाकर तोहफे बाँटने की ,पत्नी के राज में कई दिन पहले से दूर पास की बेटियाँ आ जाती ,बेटी के राज में रंगोली चितेउर पकवानों की महक रहती ,आज किससे पूछे कैसे कहें कि ,छोटी को देखे बरसों हो गए बुलवा लो ,बड़ी का तो हाल चाल ही पता नहीं ,कोई ये कह देगा कि लड़की आएगी तो खर्चा लगेगा ,कोई ये कह देगा कि हमारे वश की आवभगत नहीं ,किससे पूछें कि
"बेटी को फोन किया "
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पापा सबको चिट्ठी लिखते रहते थे ,फिर आॅफिस के घर के डायल वाले फोन से ट्रंक काॅल बुक करवाकर बतिया लेते ,मन करता तो मिल आते ,जी करता तो बुलवा लेते ,ममेरे भाई चचेरी बहिन भाई की बहू बहिन की पोती ,बहू के पिता ,गाँव वाले पंडित जी ,मंदिर वाले पुरोहित जी ,खेत का मईँदार गौशाला के गुसाईँ जी ,पापा को सबका हाल चाहिए सबका पता ,पत्नी के राज में सब आते जाते रहते दान दक्षिणा पावन भेंट पाते रहते ,बेटी के राज में सबकी यादें सुनाते कहते रहते आज किसको बताएँ कहें सुनाएँ कि उस दिन पीपल तले जब बाघ आ गया तो जंगल में केवल दो ही जाबांज थे एक मैं दूसरा रघुनाथ और हम पेड़ पर चढ़कर बाघ से बचे , वहाँ उस दिन जब मीसाबंदी चल रही थी तो सबको भर भर कर दूसरे नगरों की जेलों में कितने नातेदार बंद थे ,अब कैसे पूछें कि ,
""अबकी फसल से पंचदान निकाले कि नहीं "
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पापा को पसंद नहीं था भीतर किसी अजनबी का आना ,और बिना खाना खाए किसी अतिथि का लौट जाना ,पत्नी के राज में सब चबूतरे पर ही प्रतीक्षा करते थे या मरदानी बैठक में ,बेटी के राज में बैठक का मार्ग बाहर से कर दिया था और कोई वहाँ नहीं जाता ,मेहमानखाने में प्रबंध लड़कों के हवाले था ,आज नहीं मालूम कौन भीतर कौन बाहर आता जाता रहता है ,पापा चाहते हैं डपटना ,पूछना रोकना टोकना पर कैसे कहें कि
""ये लोग भीतर ऊपर अटारी तक कैसे आने लगे "
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बेटी जानती है वह ना पापा को साथ ला सकती है ,ना पापा आएँगे ,वहाँ फोन करेगी तो तो पापा ऊँचा सुनते हैं और फोन कोई और उठायेगा वह कभी पूछ ही नहीं पाएगी पापा कैसे हो ,ना पापा खुलकर कह सुन पायेंगे ,बेटी के घर रहना पापा उचित नहीं समझते ,वह चाहती है पापा आएँ रहें नाना का प्यार बच्चों को मिले ,डरती भी है कोई पापा का अपमान ना कर दे ,बेटी के लिए पापा का रुतबा कभी रिटायर्ड नहीं होता है ,परन्तु जब पापा रिटायर्ड हो जाते हैं तो ,बेटी की मजबूत पृष्पोषण शक्ति नहीं रह जाते हैं ,वह चाहती है कि पापा स्वस्थ रहें शतायु हों ,परन्तु कैसे कहे ,
पापा इतनी सारी पेंशन मिलती है ,कभी कभी अपने ऊपर भी खर्च कर लिया करो ,कभी कभी मेरे लिए भी सोच लिया करो
©®सुधा राजे
सबके बापू डैडी अब्बा पापा डैड पाॅप्स को नमन

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